महामारी कोरोना वायरस से बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन में परिवहन सेवायें बंद रहने और फिर राज्य सरकार के साथ बस मालिकों के टकराव के कारण प्राइवेट बसों के नहीं चलने की वजह से टिकट छपाई का कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। इससे टिकट छापने प्रिंटिंग प्रेस और उनमें काम करने वाले कर्मचारी भी आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान उनका कारोबार बिल्कुल नहीं हुआ है। यहां तक कि जून के प्रारंभ में सेवाओं के बहाल होने के बाद भी कारोबार में तेजी नहीं है क्योंकि अब भी कई बसों के सड़कों पर नहीं उतरने से यह धंधा आम दिनों की तुलना में बड़ा मंदा है। प्रिंटिंग प्रेस के कारोबार से जुड़े एक सूत्र ने बताया, ‘‘ एक लाख टिकट 1500 रूपये में बिकते हैं। औसतन एक प्रिटिंग प्रेस में एक महीने में 25-26 लाख टिकट छपते हैं और वह 250 बसों को अपनी सेवा प्रदान करता है।” प्रिंटिंग प्रेस से जुड़े एक कारोबारी को हर महीने करीब 40000 रूपये का कारोबार होता है और करीब 15000 रूपये की कमाई हो जाती थी । खर्च में कर्मियों की तनख्वाह भी शामिल है। पिछले महीने बस दो तीन लाख टिकट छपे, जिससे उनके लिए जरूरतें पूरा करना मुश्किल हो रहा है। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार से टकराव की वजह से कोलकाता की 6000 प्राइवेट बसों में से केवल दो हजार चल रही हैं और चार हजार के करीब बसें अभी भी हड़ताल पर हैं। क्योंकि डीजल की कीमत बढ़ गई है और सीट की संख्या के बराबर यात्री लेकर चलने की शर्त की वजह से मालिकों को कोई लाभ नहीं हो रहा बल्कि नुकसान हो रहा है। इसलिए अधिकतर बसें नहीं चल रही हैं।