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    Home»Jharkhand Top News»अपना कुनबा क्यों नहीं संभाल पा रही है कांग्रेस
    Jharkhand Top News

    अपना कुनबा क्यों नहीं संभाल पा रही है कांग्रेस

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJuly 14, 2020No Comments5 Mins Read
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    बड़ा सवाल यह कि इस हालत में क्यों है ग्रैंड ओल्ड पार्टी

    देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस एक बार फिर चर्चा में है, क्योंकि उसका कुनबा लगातार बिखर रहा है। दिसंबर 2018 में जिन तीन राज्यों की सत्ता में कांग्रेस की वापसी हुई थी, उनमें से मध्यप्रदेश उसके हाथ से निकल चुका है और राजस्थान में स्थिति डावांडोल है। आखिर कांग्रेस क्यों अपने कुनबे को संभाल नहीं पा रहा है। पार्टी के बड़े नेता एक-एक कर बागी बन रहे हैं और पार्टी छोड़ कर जा रहे हैं। राजस्थान के सियासी ड्रामे ने साबित किया है कि कांग्रेस के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है। यहां नेताओं की अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं और उसके आगे वे न तो पार्टी को तरजीह देते हैं और न ही उसकी नीतियोें को। राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार के सामने पैदा हुआ संकट भी सचिन पायलट की इसी महत्वाकांक्षा का परिणाम था, हालांकि अब खबर आ गयी है कि संकट दूर हो गया है। एक समय भारतीय राजनीति का पर्याय कही जानेवाली कांग्रेस की अंदरूनी स्थिति और उसके कारणों का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है। दिसंबर 2018 में तीन राज्यों की सत्ता में वापस आयी कांग्रेस लोकसभा चुनाव में करारी पराजय के बाद से ही लगातार भारतीय राजनीति के हाशिये पर जाती दिख रही है। हालांकि महाराष्ट्र और झारखंड की सत्ता में गठबंधन के सहारे उसकी वापसी ने इस पतन को रोकने की कोशिश की, लेकिन मध्यप्रदेश की सत्ता गंवाने और राजस्थान में पैदा हुए सियासी संकट से पार्टी के भीतर का खोखलापन एक बार फिर सामने आ गया है। यह सही है कि राजस्थान में अशोक गहलोत ने अपनी सरकार फिलहाल बचा ली है, लेकिन खतरा तो बरकरार ही है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर कांग्रेस को हो क्या गया है। वह सन्निपात की स्थिति में क्यों है। क्या पार्टी ने खुद को समाप्त करने का फैसला कर लिया है। इन सवालों के जवाब आसान नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस पहले कभी संकटों में नहीं फंसी। पार्टी इन संकटों से से उबर कर देश के राजनीतिक पटल पर मजबूत नेतृत्व देने को तैयार हुई। आजादी के बाद वैसे तो कांग्रेस में कई संकट आये, लेकिन सबसे गंभीर संकट तब पैदा हुआ, जब 1975 में आपातकाल लागू करने के बाद वह अत्यधिक अलोकप्रिय हो गयी। आपातकाल खत्म होने के बाद हुए चुनाव में वह सत्ता से बाहर हो गयी और उसकी सीटें 350 से घटकर 153 रह गयीं। खुद इंदिरा गांधी रायबरेली सीट हार गयीं, लेकिन जनता पार्टी की अल्पकालिक सरकार के बाद 1980 में कांग्रेस दोबारा सत्ता में आ गयी। 1984 में इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या के बाद सहानुभूति की लहर में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस 401 सीटें जीतकर सत्ता में फिर से आ गयी, लेकिन उसके बाद पांच साल में पार्टी का फिर से पतन हुआ। बोफोर्स कांड के चलते पार्टी फिर से संकट में आ गयी और गैर कांग्रेसी पार्टियां एक बार फिर एकजुट होकर सत्ता में आ गयीं। इस बार गैर कांग्रेसी पार्टियों की सरकार अल्पकालिक साबित हुई। 1991 में चुनाव के दौरान ही राजीव गांधी की हत्या के बाद पार्टी फिर से सत्ता में लौट आयी। 1996 में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते कांग्रेस फिर से सत्ता से बाहर हो गयी। इसके बाद गैर कांग्रेसी दलों के तीन नेता प्रधानमंत्री बने। आखिर 1991 से लेकर 1998 तक गांधी परिवार से बाहर के नेता कांग्रेस प्रमुख बने। लेकिन वे पार्टी को एकजुट रख पाने में ज्यादा सफल नहीं हो पाये। तब सोनिया गांधी ने तमाम अपीलों के बाद पार्टी की बागडोर संभाली। 1999 में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को सत्ता मिली। कार्यकाल पूरा होने के बाद 2004 में हुए चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए को जनादेश मिला। 2009 में भी यूपीए सत्ता बरकरार रखने में सफल रही। 2014 के बाद इस बार फिर से कांग्रेस की हार और सीटें 50 के आसपास रह जाने से इस बार का संकट सबसे ज्यादा गंभीर है, लेकिन इतिहास बताता है कि वह हर बार मजबूती के साथ उभरी है।
    कांग्रेस के साथ एक खास बात यह रही है कि आजादी के बाद से इसकी कमान हमेशा गांधी परिवार के हाथों में रही है। के कामराज और सीताराम केसरी जरूर इसके अपवाद हैं। पार्टी की वर्तमान अध्यक्ष सोनिया गांधी से पहले राहुल गांधी अध्यक्ष थे, लेकिन 2019 के चुनावों में करारी शिकस्त की जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने पद छोड़ दिया था। आजादी के बाद के इतिहास पर नजर डालें तो यह साफ हो जाता है कि पार्टी में स्थिरता सिर्फ गांधी परिवार के ही नेतृत्व में रही। जब भी गांधी परिवार से बाहर का व्यक्ति पार्टी के शीर्ष पद पर पहुंचा, किसी न किसी वजह से वह लंबे समय तक सभी को साथ लेकर चलने में विफल रहा। इस वजह से विरोधियों को यह कहने का मौका मिल जाता है कि कांग्रेस गांधी परिवार के प्रभाव से कभी बाहर नहीं आ सकती है।
    अब कांग्रेस एक नये मोड़ पर खड़ी है, जहां उसका सामना आक्रामक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी से हो रहा है। ऐसे में कांग्रेस नया राजनीतिक मॉडल अपनाने के लिए तैयार हो रही है। समय-समय पर पार्टी के भीतर भी ये मांग उठती रही कि आंतरिक चुनाव समुचित तरीके से कराये जायें और किसी को भी चुनाव में न सिर्फ खड़े होने की अनुमति दी जाये, बल्कि इसके लिए माहौल बनाया जाये। लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि जब तक पार्टी के नेता अपनी महत्वाकांक्षाओं को पार्टी से ऊपर रखेंगे, कांग्रेस का कल्याण संभव नहीं है। कभी देश की राजनीति पर निर्विवाद रूप से छायी रहनेवाली कांग्रेस के सामने चुनौती बहुत बड़ी है और यह देखना दिलचस्प होगा कि वह इनसे कैसे पार पाती है। पार्टी के खिलाफ हो रहे चौतरफा हमले और इसके नेताओं की चुप्पी भी पार्टी के लिए खतरनाक साबित हो रही है। अब कांग्रेसियों को अपना अस्तित्व बचाने के लिए खुद ही आगे आना होगा और पार्टी को पार्टी की तरह चलाना होगा।

    Why is Congress unable to handle its clan
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