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    Home»Breaking News»फुटपाथ दुकानदारों से उनकी जीविका न छीनें, बस थोड़ी सी जगह चाहिए, बन जायेंगे आत्मनिर्भर
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    फुटपाथ दुकानदारों से उनकी जीविका न छीनें, बस थोड़ी सी जगह चाहिए, बन जायेंगे आत्मनिर्भर

    azad sipahiBy azad sipahiJuly 14, 2021No Comments7 Mins Read
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    कोरोना ने परिवार छीना, नौकरी छीनी और छिन ली है आस
    कहते हैं चुनौतियां समय बता कर नहीं आती हैं। समय के साथ-साथ चुनौतियां भी धीरे-धीरे अपना पैर पसारती हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि जब आपके सामने चुनौतियां खड़ी होंगी, तभी आपको उसमें बहुत बड़ा अवसर भी छिपा मिलेगा। यदि समय रहते कदम उठा लिया जाये, तो चुनौती को अवसर में बदलने में वक्त नहीं लगेगा। कोरोना ने लोगों की सांसे छीनी, नौकरी छीनी, परिवार छीना, यहां तक कि जीने की आस तक छीन ली। अब बस दो वक्त की रोटी ना छिन जाये यही सबसे बड़ी चुनौती है। इसी दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करते लोगों की पीड़ा को ‘आजाद सिपाही’ ने समझा और भविष्य में इन चुनौतियों से उत्पन्न होनेवाली समस्याओं को भांपा। अगर आप सड़क पर चल रहे, तो बस आपको नजर दौड़ाने की जरूरत है। ध्यान देना है कि सड़क किनारे क्या-क्या बदलाव हुए हैं। हम दावे के साथ कह सकते हैं कि आपको भी इन लोगों की दर्द और पीड़ा का आभास जरूर होगा। इनके संघर्ष को आप भी जमीनी स्तर पर देख सकेंगे। हम यहां बात कर रहे हैं कोरोना काल के दौरान रोजगार छिन जाने से बेरोजगार हुए उन लोगों की, जो सड़क किनारे सब्जी, ठेला लगा कर दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसी दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करते लोगों की पीड़ा को उजागर करती आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राहुल सिंह की यह रिपोर्ट।

    आजादी के बाद हमारे देश में विकास के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाया गया। इसमें व्याप्त लाइसेंस राज, नौकरशाही, लालफीताशाही और भ्रष्टाचार ने देश की अर्थव्यवस्था को धीरे-धीरे खोखला कर दिया। कोरोना काल से उत्पन्न हुई परिस्थिति ने पूरे सिस्टम की पोल ही खोल दी। कोरोना अभी खत्म भी नहीं हुआ और इसका दुष्प्रभाव अभी से ही आम लोगों के जीवन में दिख रहा है। कोरोना काल के दौरान रोजगार छिन जाने से बेरोजगार हुए कई लोग दो वक्त की रोटी के लिए जूझते दिखे। खास कर वैसे लोग, जो किसी दुकान, किसी छोटी जगह या कहीं और छोटे-छोटे काम करते थे। ऐसे लोगों के सामने दो वक्त की रोटी का संकट खड़ा गया। गरीब-गुरबों को दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने के लिए वैकल्पिक रोजगार पर जाने की सोचा, तो सबसे आसान सड़क किनारे सब्जी, फल और अन्य चीजों की दुकान लगाना सबसे आसान लगा। यही कारण है कि दिन ब दिन सड़क किनारे इन दुकानों की तादाद बढ़ती जा रही है। इसमें इन लोगों का कोई दोष नहीं है, यह तो भूख की मार, बच्चों का रोना और परिवार की निराशा है, जो इन्हें ऐसा करने पर मजबूर कर रही है।

    देश में एक करोड़ फुटपाथ दुकानदार
    हमारे देश में व्यवसाय के रूप में फुटपाथ दुकानदारी का अस्तित्व आदिकाल से रहा है। हालांकि कोरोना महामारी के दौरान रोजगार छिन जाने से इसकी जनसंख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। इनमें से ज्यादातर कम दक्षता वाले लोग होते हैं। वे देहात और छोटे कस्बों से रोजगार की तलाश में शहर का रुख करते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार देश में फुटपाथ दुकानदारों की संख्या करीब 1 करोड़ अंकित की गयी है और कोरोना की मार के बाद भविष्य में इसमें लगातार बढ़ोत्तरी होने की संभावना है। भारी संख्या में लोग फुटपाथ दुकानदारी से जुड़ गये हैं और लॉकडाउन के समय सड़क किनारे दुकान लगाने लगे हैं। इनके भविष्य पर अभी से ध्यान देने की जरूरत है। स्थिति सामान्य होने पर जब उन्हें वहां से खदेड़ा जायेगा, तो विकट स्थिति पैदा होगी। उनसे वह रोजगार भी छिनेगा।

    नजरिया बदलने की जरूरत
    फुटपाथ दुकानदारों के प्रति आम नजरिया है कि उन्हें सड़कों का अधिग्रहण, जाम और भीड़ लगाने वाले के रूप में देखा जाता है। हमें यह नजरिया बदलने की जरूरत है। क्योंकि फुटपाथ दुकानदार को रोजगार के साथ-साथ लोगों को सेवा प्रदान करने वाला व्यवसायी के रूप में भी देखा जाना चाहिए। फुटपाथ दुकानदारी से सिर्फ लाखों परिवारों का भेट ही नहीं भरता, बल्कि शहरों में रहनेवाले लोगों को सहूलियत भी होती है। इसे अमूल्य सेवा के रूप में देखा जा सकता है। इनके होने से हमें जरूरी सामान जैसे फल, सब्जी के लिए अपने घर से ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं होती। इसे फुटपाथ दुकानदारों का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि समय-समय पर इन्हें भीड़ बढ़ाने वाला तत्व कहा जाता है। डंडे का डर दिखा कर इन्हें भगा दिया जाता है। उस समय हमें इनकी मजबूरी और पीड़ा का अहसास नहीं होता और ना ही इनके द्वारा दी जा रही सेवा और सहूलियत पर ध्यान जाता है। गाड़ी में बैठे-बैठे हम बस यही सोचते हैं कि यही वे लोग हैं, जिनके चलते सड़कों पर अकसर जाम लग जाता है। भीड़ बढ़ जाती है। पुलिस-प्रशासन इनके साथ ठीक कर रहीाहै। उस समय हम यह भूल जाते हैं कि हमारे घर में जो फल और सब्जियां आ रही हैं वे भी इन्हीं की दुकानों से आ रही हैं।

    रोजगार और सेवा से जुड़ा है मामला
    सड़क किनारे फुटपाथ पर दुकान लगाने वालों के प्रति नजरिया बदलेगा, तो इससे संबंधित बातों पर भी ध्यान दिया जा सकेगा। यह सड़क के किनारे भीड़ बढ़ने का मुद्दा नहीं, बल्कि करोड़ों परिवार की जीविका से जुड़ा मुद्दा है। साथ ही इनके द्वारा दी जा रही सभी देशवासियों को सेवा और सुविधा से जुड़ा मामला है। जब कुछ सहूलियत मिलती है, तो संभव है कुछ परेशानी भी हो। जरूरत है सहूलियत कायम रखने और परेशानी को दूर करने की। यह सही है कि फुटपाथ दुकानदारों से सड़कों पर आने-जाने वाले लोगों को परेशानी होती है। इस परेशानी को भावना में बह कर दूर करने की बात सोचनी नहीं चाहिए। इन्हें डंडा मार कर हटा देना, सामान जब्त कर लेना या अन्य कोई दंंडात्मक तरीका अपनाने से समस्या का निदान संभव नहीं है। इससे एक समस्या से निदान मिलेगा, तो चोरी, राहजनी, छिनतई, जैसी आपराधिक घटनाएं संभव हैं कि बढ़ जायें। इसलिए एक नयी सोच और नये नजरिये की जरूरत है। आखिर इसमें किसकी गलती है। अगर कोई अपने परिवार का पेट भरने के लिए सड़क किनारे सब्जी या फल बेच रहा है, तो इसमें गलत क्या है? पुलिस-प्रशासन यातायात व्यवस्था ठीक करने, भीड़ कम करने और सुरक्षा के कारण फुटपाथ दुकानदारों के खिलाफ कार्रवाई करता है, तो क्या यह गलत है? दोनों ही बातें अपनी-अपनी जगह सही हैं। ऐसे में फुटपाथ दुकानदारों के लिए संवेदनशीलता के साथ सोचने और समस्या का निदान निकालने की जरूरत है। उनकी समस्या और पीड़ा को समझना होगा। वह बारिश, धूप, ठंड हर मौसम में सड़क किनारे फुटपाथ पर बैठ कर केवल दो वक्त की रोटी ईमानदारी से कमाने के लिए बैठे हैं। जिस तरह से कोरोना संकट के कारण फुटपाथ दुकादारों की संख्या लगातार बढ़ रही है, उसे देखते हुए भविष्य में समस्या न हो, उन्हें उजाड़ने से बचाने के लिए अभी से प्रयास शुरू करने की जरूरत है। इसमें सरकार और प्रशासन की सबसे अहम भूमिका है।

    व्यवस्थित करने से परेशानी होगी दूर
    फुटपाथ दुकानदार शहरी गरीब जनसंख्या के भाग होते हैं। उन्हें भी संविधान के तहत सम्मान से जीवन जीने का अधिकार है। उनके अधिकार और सम्मान की रक्षा करते हुए सरकार को सकारात्मक पहल करने की जरूरत है। जिस तरह से अस्पताल और स्कूल जरूरी हैं, उसी तरह से फुटपाथ दुकानें भी जरूरी हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि फुटपाथ दुकानदार सिर्फ इसलिए अपना व्यवसाय कर पाते हैं, क्योंकि जनता चाहती है। नागरिकों की स्वीकृति के बगैर फुटपाथ दुकानदारी नहीं चल सकती। इसलिए इन्हें डंडा मार कर भगाना कहीं से भी उचित नहीं है। समय रहते अगर इनके बारे में सोचा जाये तो सभी परेशानियों का हल निकल सकता है। अगर जनता के साथ-साथ सरकार और प्रशासन मिल कर इस मुद्दे पर सोचे, तो इन करोड़ों लोगों का भविष्य संवर सकता है। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वह इन दुकानदारों की पीड़ा समझे और इन्हें अपनी दुकान लगाने के लिए उचित स्थान प्रदान करे। हर क्षेत्र में कई ऐसी सरकारी जमीन होती हैं, जो खाली पड़ी होती है। सरकार और प्रशासन को ऐसी जगह को चिह्नित करना चाहिए। उन जगहों को फुटपाथ दुकानदारों के लिए विकसित और व्यवस्थित करना चाहिए। जिस तरह हर क्षेत्र के लिए सरकार की योजनाएं बनती हैं और उस मद में बजट निर्धारित किया जाता है, उसी तरह इन फुटपाथ व्सवसाय के लिए भी बजट निर्धारित करना चाहिए और बजट का कुछ हिस्सा उनके भविष्य को संवारने के लिए उपयोग में लाना चाहिए।

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