Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Saturday, June 14
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»विशेष»झारखंड कांग्रेस को क्यों लगता है बंधु, प्रदीप और सुखदेव से डर
    विशेष

    झारखंड कांग्रेस को क्यों लगता है बंधु, प्रदीप और सुखदेव से डर

    azad sipahiBy azad sipahiJuly 22, 2021No Comments7 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    सबसे प्यार जताना सीखो, सबको गले लगाना सीखो। अपनों के प्यार में तो हर कोई जीता, औरों के लिए यह एहसास जगाके तो देखो। यह दो पंक्तियां जीवन के हर मर्ज की दवा के समान हैं। अगर इस सोच को अपना लिया जाये, तो जीवन में निराशा और हताशा आपसे कोसों दूर रहती है। यह कहना बिल्कुल भी गलत नही होगा कि हमारे देश में राजनीति की नींव भी इसी सोच के साथ पड़ी थी। राजनीति में अपनों का सम्मान और दूसरों का स्वागत ही सबसे बड़ा मूल मंत्र होता है। लेकिन इस रचनाकार की यह दो पंक्तियां वर्तमान में झारखंड कांग्रेस के कुछ नेताओं की सोच से बिल्कुल परे हैं। विगत विधानसभा चुनाव के पहले झारखंड में कांग्रेस को टा-टा करनेवाले नेताओं की कतार लगी थी। उनकी घर वापसी पर अभी तक झारखंड कांग्रेस का सवालिया निशान है। लेकिन सच यह है कि भले ही झारखंड में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन उसकी ताकत कहीं ना कहीं, अपनों के चले जाने से कम हो गयी थी। इसी बीच विधायक बंधु तिर्की और प्रदीप यादव ने झाविमो से नाता तोड़ कर कांग्रेस को अपनाया, ताकत को मजबूत किया। कांग्रेस के केंद्रीय आलाकमान ने उन्हें गले लगाया। घोषणाएं हुर्इं। आज भी केंद्रीय आलाकमान उन्हें अपना मान रहा है। जाने पर सम्मान दे रहा है। घंटों बातें कर रहा है। लेकिन दूसरी तरफ झारखंड कांग्रेस के कुछ नेताओं को आज भी बंधु तिर्की और डॉ प्रदीप यादव पच नहीं रहे हैं। इन दोनों विधायकों की राजनीतिक गतिविधि कुछ नेताओं को रास नहीं आ रही। अगर विधानसभा से अलग वे कहीं और दौरा करने जाते हैं, तो कुछ नेताओं की धड़कनें तेज हो जाती हैं। वहीं कभी जो अपने थे, प्रदीप बलमुचू और सुखदेव भगत, वे भी आज बेगाने हैं। घर वापसी तो चाह रहे हैं, लेकिन राह में अपने ही रोड़े अटका रहे हैं। बात यहीं तक नहीं है, पुराने दिग्गज कांग्रेसी सुबोधकांत सहाय को भी इन दिनों हाशिये पर खड़ा कर दिया गया है। शायद झारखंड कांग्रेस के कुछ नेताओं को पता है कि अगर ये नेता कांग्रेस में पूरे दमखम के साथ आ गये, तो पता नहीं किसकी कुर्सी खतरे में पड़ जाये। झारखंड कांग्रेस की मौजूदा राजनीतिक गतिविधि की पड़ताल करती आजाद सिपाही के सिटी एडिटर राजीव की रिपोर्ट।

    समाज में यह परंपरा रही है कि घर वापसी करनेवाले का गले लगा कर स्वागत करना चाहिए। दूसरे भी अगर घर में आ गये, तो उनसे दिल मिलाया जाये, लेकिन झारखंड कांंग्रेस के कुछ नेता तो इनसे गले तो मिल ले रहे हैं, लेकिन दिल मिलाना नहीं चाह रहे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण जेवीएम से कांग्रेस में आये विधायक बंधु तिर्की और डॉ प्रदीप यादव हैं, तभी तो उन्हें दिल्ली दरबार तक हाजिरी लगानी पड़ी। कांग्रेस में आने के बाद पार्टी की ताकत को और बढ़ाने की गरज से दोनों नेता रेस हो गये थे। प्रदीप यादव संथाल परगना में कोरोना जागरूकता के दरम्यान दमखम दिखाने में जुट गये, तो दूसरी तरफ बंधु तिर्की ने झारखंड के कई जिलों में स्वास्थ्य सेवाओं का हालचाल लेने के दरम्यान बांहें फैलानी शुरू कर दीं। एक हफ्ते तक वह लगातार दौरे पर रहे। रांची से शुरू हुआ उनका दौरा गुमला, लोहरदगा, लातेहार, गढ़वा, डालटनगंज से पांकी होते हुए रांची में संपन्न हुआ। बंधु तिर्की पूरे जोश में थे। झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री ने उन्हें इस दौरे को अधिकृत बनाने के लिए चिट्ठी दे दी थी। इस दौरे में कांग्रेसियों ने भी जिला-जिला में बंधु तिर्की को गले लगाया। जोरदार स्वागत किया। और इसी स्वागत से संभवत: झारखंड कांग्रेस के कुछ नेताओं को डर लगने लगा। यही कारण है कि बंधु तिर्की के स्वास्थ्य दौरे पर संभवत: विराम लगा दिया गया। अब वह किसी ब्लॉक में कोरोना की वैक्सीन और स्वास्थ्य सेवाओं का हालचाल जानने नहीं जा रहे हैं।

    अब बात सुबोधकांत सहाय की। एक जमाने में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में गिनती हो रही थी। विधायक, सांसद और फिर केंद्रीय मंत्री भी बने, लेकिन आज स्थिति यह है कि वह भी कभी-कभी महानगर कांग्रेस या युवा कांग्रेस के किसी-किसी कार्यक्रम में ही दिखायी पड़ते हैं। प्रदेश कांग्रेस के कार्यक्रमों में वे कहीं नजर नहीं आते। आखिर सुबोधकांत सहाय जैसे खांटी कांग्रेसी से कुछ खास कांग्रेसियों को एलर्जी क्यों है!

    एक जमाने में कद्दावर कांग्रेसियों में शुमार प्रदीप कुमार बलमुचू और सुखदेव भगत ने समय के साथ अलग राह पकड़ी। एकीकृत बिहार में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे सरफराज अहमद ने भी पार्टी छोड़ दी। सरफराज अहमद झारखंड मुक्ति मोर्चा में शामिल हो गये और विधानसभा चुनाव में जीत भी हासिल की, लेकिन प्रदीप कुमार बलमुचू और सुखदेव भगत का साथ किस्मत ने नहीं दिया। बलमुचू आजसू पार्टी से जुड़े, लेकिन विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाये। सुखदेव भगत भाजपा में गये और उन्हें भी हार मिली। अब ये दोनों नेता आज अपनी घर वापसी चाह रहे हैं। झारखंड में चली राजनीतिक उठापटक कुछ समय पहले तक तीन विधायकों के लिए बड़े फायदे का सौदा दिख रही थी, लेकिन अब इन्हीं में से दो विधायकों की हालत कुछ सही नहीं दिख रही है। थोड़ा पहले देखें, तो राज्य में 2019 के विधानसभा चुनाव के अगले ही साल जेवीएम का विलय भाजपा और कांग्रेस में होने का दावा किया गया। बाबूलाल मरांडी ने भाजपा और बंधु तिकी-प्रदीप यादव ने कांग्रेस का दामन थामने का निर्णय लिया। बाबूलाल मरांडी जहां भाजपा की तरफ बढ़े, तो बंधु तिर्की और प्रदीप यादव ने कांग्रेस को मजबूत करने की ठानी। बाबूलाल मरांडी को तो भाजपा ने बांहें फैलाकर दल में ही शामिल नहीं कराया, बल्कि दिल भी मिलाया। इसी का परिणाम है कि उन्हें भाजपा ने विधायक दल का नेता बनाया। हालांकि दल-बदल का मामला विधानसभा अध्यक्ष के कोर्ट के होने के चलते बाबूलाल मरांडी को फिलहाल नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी नसीब नहीं हो सकी है। लेकिन बंधु तिर्की और प्रदीप यादव की हालत कुछ ठीक नहीं दिख रही है। वे आज भी कांगे्रेस के घर में बेगाने महसूस कर रहे हैं। राहुल गांधी के दरबार तक उन्हें फरियाद लगानी पड़ रही है। बंधु तिर्की और प्रदीप यादव के कांग्रेस में आने से पार्टी विधायकों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन अब ये कहना मुश्किल है कि कांग्रेस में इनका राजनीतिक भविष्य क्या होगा।

    राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि कांग्रेस का हाथ मजबूत करने आये दोनों ही विधायकों से कुछ नेताओं का दिल नहीं मिलना समझ से परे है। उन दोनों विधायकों के अपने काफी समर्थक हैं और वे समर्थक अब गुणा भाग करने लगे हैं कि कांग्रेस में आना उनके लिए कितना फायदेमंद हुआ और कितना नुकसानदायक है। वहीं विश्लेषकों का यह भी कहना है कि दोनों ही विधायक अपने दम पर चुनाव जीतनेवाले नेताओं की कैटेगरी में आते हैं। ऐसे में इन दोनों नेताओं के लिए चुनाव जीतने में दल ज्यादा महत्व नहीं रखता है। इधर कहा जा रहा है कि बलमुचू की वापसी पर कोई विवाद नहीं है, लेकिन सुखदेव भगत को लेकर झारखंड प्रदेश कांग्रेस कंफ्यूज है। सुखदेव भगत लोहरदगा के रहनेवाले हैं और वहीं से विधायक भी रह चुके हैं। वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव वहां से विधायक हैं और मंत्री भी। यहां यह भी बताना प्रासंगिक होगा कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष डॉ अजय कुमार की पार्टी में वापसी हुई है। इसके बाद से ही कयास लगाये जा रहे हैं कि सुखदेव भगत और प्रदीप बलमुचु पार्टी में फिर से शामिल होंगे, लेकिन झारखंड कांग्रेस के कुछ नेता इस पक्ष में नहीं हैं। अब देखना दिलचस्प होगा कि सुखदेव और बलमुचू को कितनी तरजीह मिलती है।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleअखिलेश यादव : इस बार सपा 350 सीटें जीतेगी, सपा ही बीजेपी का विकल्प
    Next Article यूपी: सभी ग्राम पंचायतों में बनेंगे सचिवालय, 58 हजार से ज्यादा कंप्यूटर ऑपरेटरों की होगी तैनाती
    azad sipahi

      Related Posts

      एक साथ कई निशाने साध गया मोदी का ‘कूटनीतिक तीर’

      June 8, 2025

      राहुल गांधी का बड़ा ‘ब्लंडर’ साबित होगा ‘सरेंडर’ वाला बयान

      June 7, 2025

      बिहार में तेजस्वी यादव के लिए सिरदर्द बनेंगे चिराग

      June 5, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • Air India के सभी बोइंग विमानों की होगी जांच, अहमदाबाद प्लेन क्रैश के बाद DGCA का एलान
      • एअर इंडिया के विमान की बम की धमकी के बाद थाईलैंड में आपात लैंडिंग
      • एयर इंडिया विमान दुर्घटना के राहत कार्यों में हर संभव मदद करेगी रिलायंस: अंबानी
      • शेयर बाजार में शुरुआती कारोबार में गिरावट, सेंसेक्‍स 769 अंक लुढ़का
      • रांची में अब पब्लिक प्लेस में शराब पीना पड़ेगा भारी, पकड़े जाने पर एक लाख तक का जुर्माना
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version