नंबी नारायणन, रॉ नेटवर्क को उजागर करना, तिरंगे को सलामी नहीं, योग दिवस से नदारद, आइएसआइ कनेक्शन : हामिद अंसारी की राष्ट्रवाद से क्या दुश्मनी?
पाकिस्तान के पत्रकार नुसरत मिर्जा द्वारा किये गये खुलासे के बाद दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में एक बार फिर यह बहस छिड़ गयी है कि क्या यहां रहनेवाले मुसलमानों की वफादारी इस देश के प्रति, यहां की मिट्टी के प्रति बरकरार है। यदि देश के उप राष्ट्रपति के पद पर बैठा शख्स दुश्मन देश के एक ऐसे व्यक्ति को भारत आने का न्योता देता है, जो वहां की खुफिया एजेंसी के लिए काम करता है, तो फिर उस शख्स ने न केवल अपनी, बल्कि पूरी कौम की वफादारी को संदेह के घेरे में डाल देता है। इस प्रकरण के सामने आने के बाद आजाद भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का जनवरी, 1948 में दिये गये उस बयान की चर्चा होने लगी है, जो उन्होंने मुसलमानों की वफादारी को लेकर दिया था। सरदार पटेल ने कहा था, जो मुसलमान अभी भी भारत में हैं, उनमें से कई ने पाकिस्तान के निर्माण में मदद की। क्या उनका राष्ट्र रातों-रात बदल गया है? वे अब कहते हैं कि वे वफादार हैं और पूछते हैं कि उनकी वफादारी पर सवाल क्यों उठाया जा रहा है। तो मैं जवाब देता हूं कि आप हमसे क्यों सवाल कर रहे हैं, खुद से पूछिए। यह आपको हमसे नहीं पूछना चाहिए। सरदार पटेल का यह बयान हाल के दिनों में भारत में पैदा किये गये उस नैरेटिव की पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण हो जाता है, जिसके अनुसार मुसलमानों की वफादारी पर अकारण ही संदेह किया जाता है। वैसे तो आजादी के बाद से ही देश में ‘हिंदू-मुस्लिम भाईचारा’ और ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ के मिथक को गढ़ा गया, लेकिन समय-समय पर यह मिथक टूटता रहा। राजस्थान के उदयपुर में कन्हैया लाल की सरेआम हत्या इसी मिथक के भ्रम को तोड़नेवाली है। पूर्व उप राष्टÑपति हामिद अंसारी के बारे में नुसरत मिर्जा का खुलासा भी इस भ्रम को तोड़ता है। ‘मिथक-निर्माण’ किसी भी गणतंत्र की स्थापना की एक आंतरिक विशेषता है। सत्ता पर पकड़ मजबूत करने और अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए हर देश के सत्तारूढ़ संस्थान ऐसे ही कुछ मिथकों को गढ़ते हैं, जो उन्हें उनकी विचारधारा को सही ठहराने में मदद करती है। भारत में नेहरूवादी धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना के साथ भी इसी तरह की घटना देखने को मिली। इस दौरान ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ की विचारधारा का मिथक गढ़ा गया, जबकि हकीकत यह है कि गंगा और यमुना का पानी आपस में कभी मिलता ही नहीं। यहां तक कि यदि आप इन दोनों को अलग-अलग बर्तनों में लें और फिर एक साथ मिलाने की कोशिश करें, तब भी इनके बीच एक विभाजक रेखा कायम रहती है। हामिद अंसारी का ताजा प्रकरण इस मिथक के भ्रम को तोड़ता है। एक राजदूत और देश के उप राष्ट्रपति के रूप में उनके कार्यकलापों का विश्लेषण करती आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह की खास रिपोर्ट।
लगातार 10 साल तक देश के दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद पर रहे हामिद अंसारी को लेकर पाकिस्तान के पत्रकार नुसरत मिर्जा ने जो खुलासा किया है, वह चौंकानेवाला तो है ही, साथ ही इसने उस पुरानी बहस को फिर से जीवित कर दिया है, जिसमें पूछा जाता था कि आखिर मुसलमानों की वफादारी पर बार-बार संदेह क्यों किया जाता है। बकौल नुसरत मिर्जा, हामिद अंसारी ने जो किया, वह न केवल देश के साथ विश्वासघात था, बल्कि अपनी कौम को भी बदनाम करनेवाला था।
हामिद अंसारी के बारे में किये गये खुलासे के बाद से उस ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ पर भी बहस छिड़ गयी है कि क्या यह वाकई भारत की आत्मा में समाहित है। क्या मुसलमानों की भारत के प्रति वफादारी पर अकारण ही संदेह किया जाता है और ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ के मिथक को चोट पहुंचाया जाता है। लेकिन ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ की विचारधारा के मूल सिद्धांतों में से एक यह है कि 1947 में भारतीय मुसलमानों ने पाकिस्तान के इस्लामिक गणतंत्र को चुनने की बजाय धर्मनिरपेक्ष भारत को चुना था, इसलिए अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के सभी दस्तूर जायज हैं। इसने न सिर्फ इस्लामी कट्टरपंथ पर पर्दा डालने को प्रोत्साहित किया, बल्कि इसका महिमामंडन भी किया। इस स्पष्ट झूठ ने हामिद अंसारी और असदुद्दीन ओवैसी जैसे कट्टरपंथी इस्लामी नेताओं को यह कहने की खुली छूट दे दी है कि उन्होंने पाकिस्तान की बजाय भारत को चुना था। देश में एक बड़ा वर्ग अब कहने लगा है कि अब नेहरूवादियों के लिए धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांत पर सवाल उठाना लगभग अक्षम्य हो गया है। क्योंकि स्वतंत्रता युग के राजनीतिक समर्थकों को अच्छी तरह से पता था कि मुसलमानों ने भारत को अपने रहने के लिए इसलिए नहीं चुना था, क्योंकि उन्होंने एक इस्लामिक राज्य के दर्शन को अस्वीकार कर दिया था।
क्या कहा था सरदार पटेल ने
सरदार पटेल ने जनवरी 1948 में कोलकाता में अपने भाषण में उन भावनाओं को आवाज दी, जो हमारे धर्मनिरपेक्ष नेताओं को गहरा मानसिक आघात दे सकते हैं। सरदार पटेल ने कहा था, जो मुसलमान अभी भी भारत में हैं, उनमें से कई ने पाकिस्तान के निर्माण में मदद की। क्या उनका राष्ट्र रातों-रात बदल गया है? मुझे समझ नहीं आया कि यह इतना कैसे बदल गया। वे अब कहते हैं कि वे वफादार हैं और पूछते हैं कि उनकी वफादारी पर सवाल क्यों उठाया जा रहा है। तो मैं जवाब देता हूं कि आप हमसे क्यों सवाल कर रहे हैं, खुद से पूछिए। यह आपको हमसे नहीं पूछना चाहिए। पटेल आगे कहते हैं, मैंने एक बात कही, आपने पाकिस्तान बनाया, आपके लिए अच्छा है। उनका कहना है कि पाकिस्तान और भारत को एक साथ आना चाहिए। मैं कहता हूं कि कृपया ऐसी बातें कहने से बचना चाहिए। पाकिस्तान को स्वर्ग बनने दो, हम इससे आनेवाली ठंडी हवा का आनंद लेंगे। यह पहली बार नहीं था, जब सरदार पटेल ने भारतीय मुसलमानों के पाकिस्तान के प्रति वफादारी की बात की थी।
हालांकि यह बात भी सही है कि ‘मिथक निर्माण’ किसी भी गणतंत्र की स्थापना की एक आंतरिक विशेषता है। सत्ता पर पकड़ मजबूत करने और अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए हर देश के सत्तारूढ़ संस्थान ऐसे ही कुछ मिथकों को गढ़ते हैं, जो उन्हें उनकी विचारधारा को सही ठहराने में मदद करती है। भारत में नेहरूवादी धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना के साथ भी इसी तरह की घटना देखने को मिली। इस दौरान ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ की विचारधारा का मिथक गढ़ा गया।
10 साल तक उप राष्ट्रपति रहे हामिद अंसारी लौटते हैं हामिद अंसारी प्रकरण पर। हामिद अंसारी लगातार दो बार देश के उप राष्ट्रपति रहे। अगस्त 2007 से लेकर अगस्त 2017 तक लगातार वह इस पद पर रहे। उप राष्ट्रपति को राज्यसभा भी चलाना होता है। ऐसे में इन 10 वर्षों में वह राज्यसभा के सभापति भी रहे। लेकिन, जैसे ही हामिद अंसारी उप राष्ट्रपति नहीं रहे और देश में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार आयी, उन्हें अचानक से सब कुछ अच्छा नहीं लगने लगा। उनके भीतर का कट्टर मुस्लिम अचानक से जाग गया।
1961 में भारतीय विदेश सेवा का हिस्सा बने हामिद अंसारी ने अगले लगभग चार दशकों में आॅस्ट्रेलिया, अफगानिस्तान, ईरान और सऊदी अरब जैसे देशों में भारत के राजदूत के अलावा कई पद संभाले। 90 के दशक में उन्हें संयुक्त राष्ट्र में भारत का स्थायी प्रतिनिधि बनाया गया। फिर वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कुलपति बने और फिर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष। फिर एक दशक तक उप राष्ट्रपति रहे।
ताकतवर परिवार से हैं हामिद अंसारी
ऐसे किसी व्यक्ति को इस देश से या यहां के बहुसंख्यक समाज से कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए। लेकिन हामिद अंसारी ऐसे नहीं हैं। हामिद अंसारी के बारे में बता दें कि वह 1927-28 में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे मुख्तार अहमद अंसारी के परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जो आॅल इंडिया मुस्लिम लीग के अध्यक्ष और जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के कुलपति भी रहे थे। मऊ का बाहुबली पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी भी इसी परिवार से संबंध रखता है। जब मुख्तार अंसारी पंजाब के जेल में बंद था और पंजाब की कांग्रेस सरकार उसे बचाते हुए यूपी नहीं भेज रही थी, तब सुप्रीम कोर्ट में उसने अपने बचाव में गिनाया था कि वह हामिद अंसारी का भतीजा है। हामिद अंसारी पर एक-दो नहीं, बल्कि कई ऐसे आरोप हैं, जो राष्ट्रवाद से उनकी खुन्नस को दिखाते हैं। वह भारत के ‘डरे हुए’ मुस्लिमों में से एक होने का दावा करते हैं। मोदी सरकार में ‘मुस्लिमों पर अत्याचार’ के अंतरराष्ट्रीय प्रोपेगंडा का हिस्सा उन्हें भी माना जा सकता है।
नंबी नारायणन का करियर तबाह करने में भी हाथ, कौन है रतन सहगल
आर माधवन की फिल्म ‘रॉकेट्री’ के सामने आने के बाद लोगों को इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन के बारे में पता चला। वही प्रतिभावान एयरोस्पेस इंजीनियर, जिनका करियर देश विरोधी साजिश के तहत बर्बाद कर दिया गया और इस दिशा में भारत कितना पीछे चला गया। उन पर और उनके साथी वैज्ञानिकों पर पाकिस्तान के साथ मिले होने का आरोप लगाते हुए गिरफ्तार कर लिया गया था। कई यातनाएं दी गयीं उन्हें। अब उन्हें दोषमुक्त किया जा चुका है, लेकिन खुद को निर्दोष साबित करने की कीमत उन्होंने अपना करियर और जीवन की एक बड़ी अवधि देकर चुकायी। 24 साल की लड़ाई के बाद उन्हें न्याय मिला। पूर्व रॉ अधिकारी एनके सूद ने बताया था, रतन सहगल नामक व्यक्ति हामिद अंसारी का सहयोगी रहा है। किसी को नहीं पता है कि नंबी नारायणन के खिलाफ साजिश किसने रची? यह सब रतन सहगल ने किया। उसने ही नंबी नारायणन को फंसाने के लिए जासूसी के आरोपों का जाल बिछाया। ऐसा उसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि बिगाड़ने के लिए किया। रतन जब आइबी में था, तब उसे अमेरिकन एजेंसी सीआइए के लिए जासूसी करते हुए पकड़ा गया था। अब वह सुखपूर्वक अमेरिका में जीवन गुजार रहा है। वह पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी का करीबी है और हमें डराया करता था। वह हमें निर्देश दिया करता था। सूद आगे कहते हैं, क्या इस मामले की जांच नहीं होनी चाहिए? भारतीय जांच एजेंसियों के साथ इस तरह का खिलवाड़ और उसमें ऐसे व्यक्ति को बिठाना, जो यहां के वैज्ञानिकों का करियर तबाह कर दुश्मन मुल्कों को फायदा पहुंचाये, यह किस साजिश का हिस्सा था? इससे हामिद अंसारी के तार कहां तक और कितने जुड़े हुए हैं? कई पुस्तकें लिख चुके पूर्व उप राष्ट्रपति को एक किताब लिख कर इन सवालों के जवाब भी दे देने चाहिए। रतन लाल से उनका क्या रिश्ता था?
नुसरत मिर्जा ने किये हैं गंभीर खुलासे
सूद के बयान के बाद सबसे ताजा खुलासे को ही ले लीजिए। पाकिस्तान के पत्रकार नुसरत मिर्जा ने बताया कि कैसे वह हामिद अंसारी के उप राष्ट्रपति रहते उनके मेहमान बन कर भारत आये थे और 15 राज्यों का दौरा कर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के लिए सूचनाएं इकट्ठी की, जासूसी की। उन्होंने दावा किया कि उस दौरान 56 मुस्लिम सांसद थे भारत में, जो उनके दोस्त हैं और काफी मददगार रहे। वह पांच बार भारत आये थे। यही पत्रकार भारत में अलगाववादी आंदोलनों का पाकिस्तान द्वारा फायदा उठाने की बातें भी करता है।
दीपक वोहरा ने भी हामिद अंसारी को संदिग्ध कहा था
हामिद अंसारी के बारे में एक और शख्स ने खुलासा किया था। इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल के कार्यक्रम में भारत को लेकर जहर उगलने वाले पूर्व उप राष्ट्रपति के बारे में विदेश सेवा में उनके जूनियर और प्रधानमंत्री के विशेष सलाहकार दीपक वोहरा ने बताया था कि हामिद अंसारी के विदेशी और इस्लामी लिंक की जांच शुरू हो गयी है। उन्होंने बताया था कि यह चेतावनी हमारी कई खुफिया एजेंसियों द्वारा भारत सरकार को दी जा चुकी है कि हामिद अंसारी की प्राथमिकताएं कभी भी भारत के पक्ष में नहीं थीं। वह हमेशा इस्लाम से जुड़ी थीं। उनकी ईमानदारी पड़ोसी मुल्कों के साथ दिखती थीं।
अब सोचिए, जिस व्यक्ति के बारे में देश की खुफिया एजेंसियां ही कह रही हैं कि उसके लिंक कट्टर इस्लामी समूहों से रहे हैं और देश के हित में रहे ही नहीं, उस व्यक्ति ने इस देश का 10 साल उप राष्ट्रपति रहते हुए हमारा कितना नुकसान किया होगा। राष्ट्रपति के बाद दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद भारत की शासन प्रणाली में यही है। किसी देश में ऐसा नहीं हो सकता कि उस देश के खिलाफ सोचनेवाला व्यक्ति वहां उप राष्टÑपति जैसे किसी बड़े पद पर आसीन रहे।
‘डरा हुआ मुस्लिम’ नैरेटिव को आगे बढ़ाया
अगर कांग्रेस की सरकार 2014 में फिर से आती, तो लगभग तय था कि हामिद अंसारी को राष्ट्रपति बनाया जाता। उसी साल गणतंत्र दिवस के मौके पर हामिद अंसारी ने देश के लोकतंत्र की आलोचना की और कहा कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है और यह देश अब संवैधानिक मूल्यों से हट गया है। हिंदू राष्ट्रवाद पर उन्होंने चिंता जता दी। इसी तरह जनवरी 2021 में अमन चोपड़ा को दिये गये इंटरव्यू में उन्होंने दावा कर दिया था कि भारत में मुस्लिम असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और धर्म से प्रेरित होकर उनकी लिंचिंग की जा रही है। हामिद अंसारी पर ये भी आरोप लग चुके हैं कि जब वह 1990-92 के दौरान ईरान में भारत के राजदूत थे, तो उन्होंने खाड़ी देशों में रॉ के सेटअप को उजागर कर रॉ के अधिकारियों की जिंदगी को खतरे में डाल दिया था। रॉ के पूर्व अधिकारी एनके सूद ने 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर हामिद अंसारी के रोल की जांच करने की मांग की थी। सूद ने 1991 में भारतीय अधिकारी संदीप कपूर के अपहरण का भी जिक्र किया था। इस मामले में हामिद अंसारी पर लापरवाही का आरोप भी लगा था।
इतना ही नहीं, सवाल तो यह भी उठा कि भारत के संवैधानिक पदों पर रहा कोई व्यक्ति भला दुश्मन मुल्क की खुफिया एजेंसी से जुड़े कार्यक्रम में कैसे शामिल हो सकता है? विदेशी मंच पर भारत की छवि धूमिल करनेवाला व्यक्ति इस देश का उप राष्ट्रपति था, कइयों को तो इसी पर यकीन नहीं होता। त्रिपुरा में हुए दंगों में जिस संस्था का हाथ सामने आया, उसके मंच पर हामिद अंसारी ने भारत विरोधी भाषण दिया। पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के साथ भी इस संस्था के लिंक सामने आये थे।
पद से हटते ही ‘डरे हुए’ बन गये
उप राष्ट्रपति पद से विदा होने के बाद से हामिद अंसारी ‘बेहद डरे हुए’ हो गये। उससे पहले पद का उपयोग कर एजेंडा फैलाने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं आती थी, तो सब ठीक था। 2020 में ही वह धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद को महामारी बताते हुए रटने लगे थे कि गणतांत्रिक संस्थाओं पर हमले हो रहे हैं। एक गणतंत्र दिवस पर उन्हें राष्ट्रध्वज को सलामी न देने के भी आरोप लगे। इसकी तस्वीर वायरल भी हुई थी। जून 2015 में पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के कार्यक्रम से भी वह नदारद रहे थे। बालाकोट एयर स्ट्राइक पर सवाल उठानेवालों का भी उन्होंने समर्थन किया था।
सवाल तो अब मजबूत हुआ है
इतना सब कुछ होने के बाद साफ है कि देश का एक प्रभावशाली मुस्लिम यदि इस तरह खुलेआम देशविरोधी गतिविधियों में लिप्त है, तो फिर उस पूरी कौम की वफादारी पर सवालिया निशान तो लगते ही हैं। यह सवाल उठता ही नहीं है, बल्कि अब मजबूत होता है। चाहे पाकिस्तान के खिलाफ क्रिकेट मैच हो या फिर उदयपुर में कन्हैया लाल की हत्या, झारखंड में मुखिया चुनाव में प्रत्याशी की जीत के बाद ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगना, नुसरत मिर्जा के खुलासे से यही नैरेटिव बनता है कि भारत के प्रति मुसलमानों की वफादारी अब भी संदेह के घेरे में है।