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    Home»विशेष»नयी नियुक्तियों के साथ भाजपा ने शुरू की नयी ‘सोशल इंजीनियरिंग’
    विशेष

    नयी नियुक्तियों के साथ भाजपा ने शुरू की नयी ‘सोशल इंजीनियरिंग’

    adminBy adminJuly 7, 2023No Comments9 Mins Read
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    विशेष
    -मिशन 2024 को हासिल करने के लिए कोर वोटरों के पास लौटने की कवायद
    -चार नये प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति से भगवा पार्टी ने कर दी है बड़ी शुरूआत
    -जाखड़ हों या पुरंदेश्वरी, अपने-अपने प्रदेशों में है अलग राजनीतिक पहचान

    चुनावी साल में राजनीतिक दल अपने संगठन को चुस्त-दुरुस्त करने में जुट गये हैं। कांग्रेस जहां अलग-अलग राज्यों में गुटबाजी की समस्या से पार पाने के लिए एक्शन मोड में है, तो वहीं भारतीय जनता पार्टी भी संगठन के स्तर पर कोई कमजोर कड़ी नहीं छोड़ना चाहती है। केंद्र की सत्ता पर काबिज एनडीए की अगुवाई कर रही भाजपा भी राज्यों के संगठन की धार तेज करने की कवायद में जुटी है। इसके तहते उसने झारखंड, पंजाब, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में नये प्रदेश अध्यक्ष बनाये हैं। इन नियुक्तियों में साफ देखा जा सकता है कि लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करने की तैयारी में जुटी भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग का नया अध्याय शुरू किया है। पार्टी ने झारखंड में आदिवासी कार्ड चल दिया है, तो वहीं पंजाब में पार्टी की कमान कांग्रेस से आये सुनील जाखड़ को सौंपी है, जबकि आंध्र प्रदेश में डी पुरंदेश्वरी को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। जी किशन रेड्डी तेलंगाना भाजपा के नये अध्यक्ष बनाये गये हैं। इन नियुक्तियों से भाजपा ने साफ संदेश दे दिया है कि उसकी नजर केवल 2024 पर ही नहीं है, बल्कि उससे आगे पर भी है। मरांडी की नियुक्ति से जहां झारखंड के साथ छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे चुनावी राज्यों में आदिवासी वोटरों को साधा जा सकेगा, वहीं जाखड़ की मदद से पंजाब के अलावा राजस्थान को भी साधने की कोशिश की गयी है। आंध्रप्रदेश की कमान डी पुरंदेश्वरी को सौंप कर भाजपा ने अगल-बगल के राज्यों में कई समीकरण साधे हैं, क्योंकि एनटीआर की बेटी की अलग राजनीतिक पहचान है। दरअसल भाजपा ने साल 2024 के चुनाव को लेकर माइक्रो लेवल प्लान बनाया है। पार्टी संगठन से लेकर सरकार तक बड़े बदलाव की तैयारी में है। भाजपा द्वारा की गयी इन नियुक्तियों के राजनीतिक निहितार्थ का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    भारतीय जनता पार्टी 2024 के चुनावी मोड में आ चुकी है। महाराष्ट्र से लेकर बिहार तक विपक्षी खेमे में सेंधमारी करके सियासी गठजोड़ बनाने में जुटी है, तो पंजाब से लेकर झारखंड, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष बदल कर सियासी समीकरण साधने की कवायद की है। सिख बहुल पंजाब में भाजपा ने सुनील जाखड़ के जरिये हिंदू कार्ड, तो झारखंड में बाबूलाल मरांडी के चेहरे को आगे करके आदिवासी समुदाय के वोटों को अपने साथ जोड़ने का दांव चला है। ऐसे में भाजपा को इस नयी सोशल इंजीनियरिंग के लिए दलबदलू नेताओं पर ही भरोसा करना पड़ा है, लेकिन इसका उसे दूरगामी लाभ मिल सकता है।

    भाजपा के चार नए प्रदेश अध्यक्ष
    भाजपा ने चार प्रदेशों के अध्यक्ष बदल दिये हैं। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये सुनील जाखड़ को पंजाब की कमान सौंपी गयी है, जो अश्विनी शर्मा की जगह लेंगे। झारखंड में प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी बाबूलाल मरांडी को सौंपी गयी है, जो दीपक प्रकाश का स्थान लेंगे। इसी तरह तेलंगाना में प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री जे किशन रेड्डी को मिली है, जो बंदी संजय की जगह लेंगे, तो आंध्र प्रदेश में भाजपा ने डी पुरंदेश्वरी को पार्टी की कमान सौंपी है, जो सोमू वीरराजू का स्थान लेंगी। भाजपा ने चारों प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के जरिये अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने की रणनीति अपनायी है।

    जाखड़ के जरिये एक तीर के कई शिकार
    भाजपा ने सुनील जाखड़ को पंजाब प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपकर एक तीर से कई शिकार किये हैं। भाजपा ने जाखड़ के जरिये जाट हिंदू वोटों को साधने के साथ-साथ किसानों की नाराजगी को भी दूर करने का दांव चला है। इसके अलावा पार्टी ने जाखड़ को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस और दूसरे दलों के उन नेताओं को भी संदेश दे दिया है कि अगर दलबदल कर वे भाजपा में आते हैं, तो पार्टी में स्वागत ही नहीं, बल्कि सियासी अहमियत भी देगी। इतना ही नहीं, भाजपा को पंजाब में लंबे अर्से और नवजोत सिद्धू के पार्टी से जाने बाद सुनील जाखड़ के रूप में एक मजबूत जनाधार वाला नेता जरूर मिल गया है, जिसकी अलग राजनीतिक पहचान है।

    भाजपा का कमजोर दुर्ग हुआ मजबूत
    पंजाब की सियासत में भाजपा के पास अब नेताओं की एक पूरी फौज है। शिरोमणि अकाली दल के साथ रहते हुए भाजपा पंजाब की चंद सीटों पर ही चुनाव लड़ती रही है, जिसमें अमृतसर, गुरदासपुर, होशियारपुर सीटें शामिल हैं। ऐसे में मालवा के इलाके में अकाली दल के चुनाव लड़ने से भाजपा कभी अपना आधार नहीं जमा पायी थी। अकाली दल से नाता टूटने के बाद से भाजपा मालवा के इलाके को मजबूत करने में लगी है, जिसके लिए सुनील जाखड़ से कैप्टन अमरिंदर सिंह, अरविंद खन्ना और मनप्रीत सिंह बादल जैसे दिग्गज नेता भाजपा के साथ आ गये हैं। मालवा से आने वाले सुनील जाखड़ को पंजाब प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपा ने मालवा को साधने का दांव चला है। पंजाब की सियासत पर मालवा का दबदबा रहा है और अभी तक जितने मुख्यमंत्री बने हैं, वे सब भी मालवा से हैं। आम आदमी पार्टी ने मालवा क्षेत्र जीत कर पंजाब में अपनी सरकार बनायी है। पंजाब के शहरी इलाके में हिंदू मतदाता हैं, जो आम आदमी पार्टी का कोर वोट बैंक बन गया है। भाजपा अब उसे अपने पाले में लाने के लिए ही सुनील जाखड़ पर दांव खेला है, जो जाट हिंदू समुदाय से आते हैं। जाखड़ के पास संगठन का अनुभव है और किसानों की बीच उनकी मजबूत पकड़ रही है, जिसका भाजपा लाभ उठाना चाहती है।

    मरांडी के जरिये आदिवासी वोटों पर नजर
    भाजपा ने झारखंड में प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी बाबूलाल मरांडी को सौंपी है। मरांडी के पास लंबा सियासी अनुभव है। वह झारखंड के पहले मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। राज्य की सियासत में मरांडी बड़ा आदिवासी चेहरा माने जाते हैं और संताल अदिवासी समुदाय से आते हैं। संताल के इलाके में भाजपा काफी कमजोर स्थिति में है, जिसके चलते बाबूलाल मरांडी को पार्टी की जिम्मेदारी देकर आदिवासियों के साथ संताल को भी साधने की कवायद की गयी है। झारखंड में भाजपा को 2019 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी समुदाय की नाराजगी का खामियाजा उठाना पड़ा, जिसके चलते उसे सत्ता गवांनी पड़ी। भाजपा ने साल 2014 में रघुवर दास को मुख्यमंत्री बनाया था, जो गैर-आदिवासी समुदाय से हैं। हेमंत सोरेन को इसी का सियासी लाभ मिला। भाजपा ने सोरेन के सियासी दांव को उसी कार्ड से फेल करने की रणनीति चली है। इसीके मद्देनजर भाजपा ने पार्टी छोड़कर जा चुके बाबूलाल मरांडी को दोबारा से 2020 में घर वापसी करायी और पहले विधायक दल का नेता और अब पार्टी की कमान देकर आदिवासी समुदाय को सियासी संदेश देने की कवायद की है। इसके अलावा मरांडी स्वच्छ छवि वाले नेता माने जाते हैं और भ्रष्टाचार को लेकर उन्होंने आक्रामक रुख अपना रखा है। हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ मरांडी मोर्चा खोले हुए हैं। ऐसे में भाजपा ने मरांडी पर दांव चलकर झारखंड की सियासत में नये समीकरण को बनाने की रणनीति अपनायी है।

    तेलंगाना में भाजपा ने चला बड़ा दांव
    तेलंगाना में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं और अगले साल लोकसभा चुनाव है। इसी मद्देनजर भाजपा ने तेलंगाना की कमान केंद्रीय मंत्री जे किशन रेड्डी को सौंपी है, जो भारी भरकम चेहरे के साथ संगठन के भी काफी अनुभवी नेता माने जाते हैं। 2010 से 2014 तक जी किशन रेड्डी आंध्र प्रदेश (संयुक्त) के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। छात्र राजनीति से सियासत में आये हैं और भाजपा के साथ शुरूआती दौर से जुड़े हैं। तेलंगाना अलग राज्य के आंदोलन में भी रेड्डी की अहम भूमिका रही है। ऐसे में भाजपा ने उन्हें पार्टी की कमान सौंप कर तेलंगाना को साधने का बड़ा दांव चला है। वैसे भी भाजपा के लिए दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा उम्मीद कहीं नजर आ रही है, तो वह तेलंगाना है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा वहां एक सीट ही जीत सकी थी, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में 17 में से चार सीटें जीतने में वह सफल रही थी। इसके बाद हैदराबाद के नगर निगम चुनाव में भाजपा ने जबरदस्त तरीके से प्रदर्शन किया था। भाजपा कर्नाटक की सत्ता गंवाने के बाद तेलंगाना में किसी तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है, जिसके लिए बंदी संजय को हटा कर जे किशन रेड्डी को कमान सौंपी गयी है, ताकि मजबूती के साथ केसीआर की बीआरएस और कांग्रेस से मुकाबला किया जा सके। कांग्रेस ने टीडीपी से आये युवा नेता रवन्ना रेड्डी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप कर अपने सियासी आधार को मजबूत किया है, जिसके चलते भाजपा ने भी अब तेजतर्रार प्रदेश अध्यक्ष बना कर सियासी संदेश दिया है।

    आंध्रप्रदेश में डी पुरंदेश्वरी को कमान
    आंध्रप्रदेश में भाजपा ने एनटी रामा राव की बेटी डी पुरंदेश्वरी को पार्टी की कमान सौंपी है। पुरंदेश्वरी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आयी हैं और सोमू वीरराजू की जगह उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। वह सांसद से लेकर केंद्र में मंत्री रह चुकी हैं और संगठन में भी अलग-अलग पदों पर रहकर जिम्मेदारियां उठा चुकी हैं। वह आंध्रप्रदेश की सियासत में काफी तेज-तर्रार महिला नेता मानी जाती हैं। उन्हें दक्षिण का सुषमा स्वराज कहा जाता है। भाजपा ने पुरंदेश्वरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर महिलाओं को साधने के साथ-साथ एनटी रामा राव की विरासत को भी भुनाने की कोशिश की है। आंध्रप्रदेश में वाइएसआर कांग्रेस के खिलाफ भाजपा ने आक्रामक रुख अपना रखा है और कांग्रेस कमजोर स्थिति में है, जिसके चलते भाजपा अपना सियासी आधार बढ़ाने के लिए कांग्रेस से आयी नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर सियासी संदेश देने की कवायद की है।
    इस तरह देखा जाये, तो भाजपा द्वारा की गयी ये नियुक्तियां उसकी दूरगामी रणनीति का परिचय तो देती ही हैं, राज्यों के साथ आम चुनावों में नयी समीकरणों को साधने की उसकी कुशलता को भी उजागर करती है।

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