नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के वर्चुअली आयोजित शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता की। इस दौरान प्रधानमंत्री ने जहां एक ओर दुनिया पर छाए खाद्य, तेल और उर्वरक संकट का मुद्दा उठाया वहीं दूसरी ओर आतंकवाद और चरमपंथ के खतरों के प्रति भी निर्णायक कार्यवाही का आह्वान किया।
उन्होंने कहा कि हमें मिलकर विचार करना चाहिए कि संगठन के रूप में हम लोगों की अपेक्षा और आकांक्षाओं को पूरा कर रहे हैं। क्या हम आधुनिक चुनौतियों को सामना करने में सक्षम हैं और क्या एससीओ एक ऐसा संगठन बन रहा है, जो भविष्य के लिए पूरी तरह से तैयार है।
अपने शुरुआती भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले दो दशक में एशियाई क्षेत्र में एससीओ शांति, प्रगति और विकास का महत्वपूर्ण मंच रहा है। हम इसे केवल एक विस्तृत पड़ोस नहीं बल्कि एक विस्तृत परिवार के तौर पर देखते हैं।
उन्होंने कहा कि भारत ने एससीओ में सहयोग के 5 नए आयाम तैयार किए हैं। इसमें स्टार्टअप और इनोवेशन, परंपरागत चिकित्सा, युवा सशक्तिकरण, डिजिटल समावेशन और साझा बौद्ध विरासत शामिल है।
उन्होंने कहा कि भारत 2 सिद्धांतों वसुधैव कुटुंबकम और सिक्योर (secure) पर आधारित प्रयास कर रहा है। भारत विश्व को एक परिवार के तौर पर मानता है। साथ ही सुरक्षा, आर्थिक विकास, संपर्क, एकता, संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान और पर्यावरण संरक्षण पर केंद्रित सोच का समर्थन करता है।
इस दौरान प्रधानमंत्री ने एक बार फिर आतंकवाद से वैश्विक शांति को खतरे की ओर ध्यान दिलाते हुए इस पर निर्णायक कार्रवाई का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हमें सीमा पार आतंकवाद को हथियार की तरह इस्तेमाल करने वाले देशों की आलोचना करने में संकोच नहीं करना चाहिए।
इस दौरान प्रधानमंत्री ने अफगानिस्तान का विषय उठाया और कहा कि भारत पड़ोसी देश में समावेशी सरकार और महिलाओं व बच्चों के अधिकारों का समर्थक है। उन्होंने कहा कि भारत नहीं चाहता कि अफगानिस्तान दूसरे देशों में अस्थिरता का कारण बने।
इस दौरान प्रधानमंत्री ने ईरान को नए सदस्य के तौर पर एससीओ में शामिल होने पर बधाई दी। साथ ही बेलारूस को शामिल करने के लिए मेमोरेंडम ऑफ ऑब्लिगेशन पर हस्ताक्षर का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि ईरान के शामिल होने से अब भारत चाबहार पोर्ट को लेकर और बेहतर ढंग से सहयोग कर पाएगा।
इस दौरान प्रधानमंत्री ने एआई आधारित भाषाई मंच भाषिनी को सबके साथ साझा करने पर हर्ष व्यक्त किया। इससे एससीओ देशों में भाषा से संबंधित रुकावटें दूर होंगी।