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    Home»स्पेशल रिपोर्ट»अब शर्मनाक हो गये हैं मणिपुर के हालात
    स्पेशल रिपोर्ट

    अब शर्मनाक हो गये हैं मणिपुर के हालात

    adminBy adminJuly 21, 2023No Comments9 Mins Read
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    विशेष
    -अभी नहीं चेते, तो खतरे में पड़ जायेगी देश की एकता और अखंडता
    -चिंता जताने से नहीं होगा, अब जमीन पर उतर कर करना होगा काम
    -पूरे देश को उठानी होगी वहां की स्थिति सामान्य करने की जिम्मेवारी

    पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है। 3 मई से शुरू हुई जातीय हिंसा में डेढ़ सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, आगजनी की चार हजार से अधिक घटनाएं हुई हैं और 60 हजार लोग पलायन कर चुके हैं। इधर गुरुवार को वहां का एक वीडियो वायरल हुआ है, जो शर्मनाक ही नहीं, भयावह है। करीब 30 लाख की आबादी वाला यह छोटा सा खूबसूरत प्रदेश जातीय और धार्मिक हिंसा की आग में इस तरह जल रहा है, इसकी कल्पना नहीं की गयी थी। इस वीडियो के सामने आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और समाज का लगभग हर तबका स्तब्ध है, गुस्से में है। हर कोई मणिपुर के इस शर्मसार करनेवाले वीडियो में दिख रहे दोषियों के लिए मौत की सजा की मांग कर रहा है। लेकिन इस वक्त सबसे जरूरी है इस मुद्दे को राजनीति से दूर रखना। हर किसी को समझना होगा कि मणिपुर की स्थिति को सामान्य करना पूरे देश की जिम्मेदारी है। यह वीडियो ढाई महीने पुराना है, लेकिन इसमें दिख रहे दोषी अब तक छुट्टा घूम रहे हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं कि इस शर्मनाक कृत्य के दोषी लोग कम से कम इंसान कहलाने के काबिल नहीं हैं, वे भारतीय तो नहीं ही हैं। इसलिए इनके खिलाफ अब तत्काल कार्रवाई होनी चाहिए। कानून भी है कि यदि कोई जानवर हिंसक हो जाता है, तो उसे गोली मार दी जाती है। मणिपुर के दरिंदों के साथ भी यही किया जाना चाहिए। मणिपुर की इस भयावह घटना का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    मणिपुर में मैतई-कुकी की हिंसक लड़ाई के बीच दो महिलाओं की यौन प्रताड़ना के वीडियो ने पूरे देश में भूचाल ला दिया है। वीडियो वायरल होने के बाद मणिपुर में तनाव का माहौल है। यह वीडियो 4 मई का बताया जा रहा है, जिसमें हथियारबंद भीड़ दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर अपने कब्जे में लेकर जा रही है। भीड़ में शामिल लोग महिलाओं के निजी अंगों से छेड़छाड़ कर रहे हैं और महिला रहम की भीख मांग रही है। मणिपुर में 3 मई से जारी हिंसा में अब तक डेढ़ सौ से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 50 हजार से ज्यादा लोग घायल हैं। हिंसा रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की ओर से अब तक कई प्रयास किये गये, लेकिन वहां के बिगड़े हालात ने सब पर पानी फेर दिया है। सेना की तैनाती और देखते ही गोली मारने के आदेश के बावजूद मणिपुर में हो रही हिंसा ने शासन-प्रशासन पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। आदिवासी संगठन टिपरा मोथा के प्रमुख प्रद्युत देव बर्मन का कहना है कि मणिपुर में पुलिस-प्रशासन पर से लोगों का भरोसा खत्म हो गया है। प्रशासन की शह पर ही सारे कुकृत्य हो रहे हैं। विपक्ष हालात कंट्रोल नहीं कर पाने के लिए केंद्र को भी जिम्मेदार ठहरा रहा है। उसने मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाने की मांग की है। विपक्ष की मांग मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने की भी है। इधर आदिवासी संगठनों का कहना है कि राजधानी इंफाल में प्रदर्शन कर महिलाओं और बच्चों पर हुए अत्याचार के कई और सबूत पेश किये जायेंगे। सबूत, कार्रवाई, हिंसा के बीच बड़ा सवाल है कि मणिपुर में स्थिति नियंत्रण में क्यों नहीं आ रही है।

    मणिपुर हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, सरकार को दी हिदायत
    मणिपुर हिंसा और उसके बाद सामने आये वीडियो पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है। चीफ जस्टिस डीवाइ चंद्रचूड़ ने कहा कि यह संवैधानिक अपमान है। अगर सरकार मणिपुर हिंसा के इस मामले में ठोस कार्रवाई करने से विफल रहती है, तो हम हस्तक्षेप करेंगे। चंद्रचूड़ ने कहा कि हिंसा के वक्त महिलाओं को साधन बनाना अस्वीकार्य है। हम केंद्र और राज्य को नोटिस जारी कर रहे हैं कि इस मामले में अपना जवाब दाखिल करे।

    पीएम मोदी ने भी भर्त्सना की
    मणिपुर वीडियो पर प्रधानमंत्री ने भी गहरा दुख और गुस्सा व्यक्त किया है। संसद के बाहर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि यह घटना देश को शर्मसार करनेवाली है। 140 करोड़ लोगों का अपमान हुआ है। जो भी मामले में दोषी होंगे, वे बख्शे नहीं जायेंगे।

    हालात पर काबू पाने के लिए अब तक क्या-क्या हुआ
    मणिपुर में ढाई महीने से जारी हिंसा पर नियंत्रण के लिए अब तक कई कदम उठाये गये हैं। सेना के साथ-साथ केंद्रीय बलों की तैनाती के बावजूद स्थिति सुधर नहीं रही है। हिंसा शुरू होने के बाद सेना और केंद्रीय बलों के 40 हजार जवानों को मणिपुर के हिंसाग्रस्त इलाकों में तैनात किया गया है। हिंसा रोकने के लिए जगह-जगह पर चेक पोस्ट बनाये गये हैं। मणिपुर हिंसा पर रोक लगाने के लिए गृह मंत्री अमित शाह भी तीन बैठकें कर चुके हैं। 29 मई को शाह ने पहली बैठक राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के साथ की थी। इस बैठक में हालात पर काबू पाने के लिए राज्य सरकार से सख्त कदम उठाने के लिए कहा गया था। शाह ने दूसरी बैठक 24 जून को की थी। इसमें सभी दलों के नेताओं को बुलाया गया था और जरूरी कदम उठाये जाने का आश्वासन दिया गया था। शाह ने सर्वदलीय बैठक से पहले मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से पूरी स्थिति पर रिपोर्ट ली थी। तीसरी बैठक 26 जून को गृह मंत्री शाह ने प्रधानमंत्री के साथ की थी। इसमें शाह ने प्रधानमंत्री को पूरी रिपोर्ट सौंपी थी।

    हिंसा रोकने के लिए राष्ट्रपति शासन विकल्प है
    विपक्ष हिंसा रोकने के लिए राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग कर रहा है। विपक्ष का आरोप है कि राज्य सरकार हिंसा रोकने में पूरी तरह विफल हो गयी है। मणिपुर में बदतर हालात के लिए मुख्यमंत्री बीरेन सिंह जिम्मेदार हैं। विपक्ष का आरोप है कि राज्य सरकार हिंसा में अनभिज्ञ बन गयी है और उसकी प्रतिबद्धताओं में कमी है। अगर यह सही हो जाये, तो हिंसा आसानी से थम जायेगी।

    क्या है हिंसा का कारण
    मणिपुर इतना अशांत क्यों है, इसका कारण समझने के लिए इतना ही जानना काफी है कि इस अशांति की वजह इस इलाके में चल रहे धर्मांतरण के खेल और नशीली दवाओं के नेटवर्क के खिलाफ हाल के दिनों में शुरू किये गये अभियान हैं। राज्य में इसी साल की शुरूआत में विधानसभा के चुनाव हुए और एन बीरेन सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। इस सरकार ने राज्य में धर्मांतरण करा रहे धार्मिक संगठनों और नशीली दवाओं के कारोबार से जुड़े नेटवर्क पर करारा प्रहार करना शुरू किया। उसके बाद मई की शुरूआत से मणिपुर में जातीय संघर्ष शुरू हो गया। प्रत्यक्ष तौर पर मई के पहले सप्ताह में मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने पर विचार करने के कदम के विरोध में जनजातीय कुकी समुदाय की एक रैली के बाद हिंसा फैली। 3 मई की यह रैली मणिपुर के सभी पहाड़ी जिलों में निकाली गयी थी। इसके बाद सुनियोजित ढंग से मणिपुर के व्यापक क्षेत्रों में हिंसा फैलती गयी। हिंसा प्रभावित मुख्य इलाके तोरबंग बांग्ला, चुराचांदपुर, कांगपोकपी और तेंगनौपाल हैं। इन जिलों के सभी मैतेई बसावट वाले क्षेत्रों, गांवों, पहाड़ी और घाटी जिलों के आसपास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई।
    लेकिन अब इस स्थिति पर काबू पाना जरूरी है, क्योंकि यह बीमारी कैंसर की तरह फैल रही है। इस भयावह वीडियो में दिख रहे दोषियों को अब जिंदा रहने का कोई हक नहीं है। इनके लिए जानवर शब्द भी कम है। राजनीतिक दलों को समझना होगा कि मणिपुर की समस्या केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक है और उसे उसी तरह हल करना होगा। इसलिए सभी राजनीतिक दलों और सरकारों को एकजुट होकर इस बड़ी साजिश के खिलाफ खड़ा होना होगा, वरना देश की एकता और अखंडता को खतरा हो सकता है।

    क्या करना चाहिए
    वीडियो में मणिपुर की जो वीभत्स घटना वायरल हो रही है, वह कानून की नजर में रेयरेस्ट आॅफ रेयर है। रेयरेस्ट आॅफ रेयर की सजा सिर्फ और सिर्फ फांसी है। वीडियो में चेहरे भी साफ दिखाई पड़ रहे हैं। इस पर विशेष कदम उठाया जाना चाहिए। दोषियों को बीच चौराहे पर फांसी देनी चाहिए।
    मणिपुर में सेना के जवान भी आखिर क्या कर रहे हैं। उनके हाथ में हथियार हैं। आखिर इन हथियारों का इस्तेमाल क्या सिर्फ उस समय होगा, जब उन पर आक्रमण होगा। जब खुलेआम उग्रवादी जनता का कत्ल कर रहे हैं, तो उन्हें गोली क्यों नहीं मारी जा रही है।
    मणिपुर पुलिस की पूरे देश में थू-थू हो रही है। वायरल वीडियो में जिन महिलाओं के साथ अत्याचार की बात सामने आ रही है, उन्हें भीड़ ने पुलिस के हाथ से ही छीना था। आखिर यह कैसी मणिपुर पुलिस है कि अपनी जान बचाने की खातिर पुलिस की शरण में आयी महिलाओं को उग्र भीड़ ने छीन लिया और पुलिस चुपचाप लौट गयी। डेढ़ माह बाद जीरो एफआइआर दर्ज करने का क्या मतलब। आखिर ऐसा कर पुलिस किसे बचा रही थी।
    आपात स्थिति में ही सेना का इस्तेमाल हो होता है। अगर राज्य सरकार से स्थिति नहीं संभल रही है, तो कुछ दिनों तक वहां राष्टÑपति शासन लगा कर स्थिति पर नियंत्रण पाया जा सकता है। जब स्थिति सुधर जाये, तो वहां फिर से चुनी हुई सरकार को बैठाया जा सकता है।
    देश के तमाम राजनीतिक दलों को बयानबाजी बंद कर समाधान खोजना चाहिए। यह सिर्फ मणिपुर राज्य सरकार के लिए ही नहीं, केंद्र सरकार के लिए ही नहीं, देश के तमाम राजनीतिक दलों के लिए भी अशुभ संकेत है। आखिर मणिपुर में किस राजनीतिक दल के कार्यकर्ता नहीं हैं। वे कार्यकर्ता क्या सिर्फ वोट एकत्र करने के लिए तैयार किये जाते हैं या फिर उनका कुछ सामाजिक सरोकार भी है। अगर वे कार्यकर्ता सजग होते, देशहित में सोचते तो क्या अब तक स्थिति पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता था।
    देश भर के नेता ऐसी कमरों में बयानबाजी नहीं कर संगठित होकर मणिपुर जायें। एक साथ जायें, एक मंच पर बैठें। एक साथ अपील करें। एक साथ चेतावनी दें। जब लोग रहेंगे तो राजनीति होगी, बयानबाजी भी होगी। अपने दल के लिए तो सभी जाते हैं, कम से कम एक बार मणिपुर की जनता के लिए तो देश के तमाम राजनीतिक दल आपसी मतभेद भुला कर मणिपुर जायें और उनके सुख-दुख में शामिल हों।

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