विशेष
भाजपा के लिए खतरे की घंटी है विधानसभा उपचुनाव के नतीजे
सात राज्यों की 13 में से 10 सीटों पर लहराया इंडिया ब्लॉक का परचम
उत्तराखंड, हिमाचल और पश्चिम बंगाल में भाजपा को लगा करारा झटका
राज्यों में दलबदलुओं को टिकट देने की रणनीति ने डुबा दी भाजपा की नाव
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
देश के सात राज्यों में 13 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के नतीजे आ चुके हैं। इनमें से 10 सीटें जीतकर इंडिया ब्लॉक ने महज दो सीट जीतने वाली भाजपा को बड़ा झटका दिया है। भाजपा को सबसे बड़ा झटका लगा है बंगाल में, जहां चार सीटों पर उसे टीएमसी के हाथों मात खानी पड़ी, वह भी तब, जब बंगाल में इन चार सीटों में से तीन पर भाजपा का कब्जा था। दूसरी बड़ी हार उत्तराखंड की बदरीनाथ सीट पर मिली है। हिमाचल में भी कांग्रेस ने भाजपा को सदमा दिया है। करीब 40 दिन पहले संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के बाद सियासी दलों की यह सबसे बड़ी परीक्षा थी, जिसमें इंडिया ब्लॉक ने भाजपा को बुरी तरह पराजित कर दिया है। उपचुनाव के नतीजों ने इंडिया गठबंधन को खुशी मनाने का बड़ा मौका दे दिया है। लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करनेवाले एनडीए के सबसे बड़े घटक दल भाजपा की इस पराजय के पीछे सबसे बड़ा कारण दलबदलुओं को मैदान में उतारने की उसकी रणनीति को बताया जा रहा है। उपचुनाव के नतीजों ने इसके अलावा भी कई सियासी संदेश दिये हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण यही है कि ये नतीजे भाजपा के लिए खतरे की घंटी हैं और अब पार्टी को अगले चुनाव के लिए अपनी रणनीति में व्यापक सुधार करने की जरूरत है। क्या है इस उपचुनाव के नतीजों के मायने और भाजपा के लिए इसको क्यों खतरे की घंटी माना जा रहा है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
लोकसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने से चूकने के बाद भाजपा को अब उपचुनाव में भी बड़ा झटका लगा है। सात राज्यों की 13 सीटों पर हुए उपचुनाव में एक बार फिर इंडिया गठबंधन का डंका बजा है, विपक्षी एकता की नींव ने भाजपा के सभी समीकरणों को बिगाड़ कर रख दिया है। इसी वजह से चुनाव में एक तरफ अगर भाजपा सिर्फ दो सीटों पर जीत दर्ज कर पायी, तो वहीं दूसरी तरफ दो राज्यों की पांच सीटों में से चार पर कांग्रेस, बंगाल की चारों सीटों पर टीएमसी और पंजाब की एक सीट पर आम आदमी पार्टी ने बड़ी जीत दर्ज की।
क्या रहे उपचुनाव के नतीजे
भाजपा की बात करें तो उसे सिर्फ दो ही सीटों पर जीत मिली है। एक तरफ हिमाचल प्रदेश की हमीरपुर सीट से उसे जीत का स्वाद मिला है, तो वहीं कमलनाथ के गढ़ अमरवाड़ा में भी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया। अगर मोटा-मोटा समझा जाये, तो सात राज्यों की 13 सीटों पर इंडिया गठबंधन एनडीए पर पूरी तरह भारी पड़ा है और उसने 10 सीटें हासिल की हैं। बिहार की रुपौली इकलौती ऐसी सीट रही, जहां पर दोनों इंडिया और एनडीए को झटका लगा और निर्दलीय उम्मीदवार ने वहां से जीत हासिल की।
भाजपा के लिए दलबदलू पड़ गये भारी
उपचुनाव के नतीजे से वैसे तो कई संदेश निकल रहे हैं, लेकिन एक संदेश ऐसा भी है, जो पिछले कई चुनाव में पहले भी देखने को मिला है, लेकिन किसी भी पार्टी ने इसे ज्यादा महत्व नहीं दिया। एक बार फिर जनता ने दलबदलू नेताओं को सिरे से खारिज कर दिया है। बड़ी बात यह है कि जो पांच दलबदलू नेता इस बार उपचुनाव में हारे हैं, उसमें से चार तो भाजपा की तरफ से थे। इस कड़ी में सबसे पहले नाम आता है होशियार सिंह का, जिन्होंने 2022 के विधानसभा चुनाव में हिमाचल प्रदेश की देहरा सीट पर बतौर निर्दलीय जीत दर्ज की थी। लेकिन 2024 के मार्च में सबसे बड़ा सियासी खेल हुआ और होशियार सिंह ने भाजपा का दामन थाम लिया। इस बार भाजपा को बड़ी उम्मीद थी कि उपचुनाव में होशियार सिंह जीत दर्ज कर लेंगे, लेकिन उन्हें बड़ी हार का सामना करना पड़ा। माना जा रहा है कि भाजपा में बड़े पद की वजह से उन्होंने पार्टी ज्वाइन की थी, लेकिन अब तो उनकी विधायकी भी हाथ से छिन चुकी है।
उत्तराखंड में भाजपा के साथ खेल
बड़ी बात यह है कि देहरा सीट पर अगर होशियार सिंह की हार हुई है, तो वहीं मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू की पत्नी कमलेश ठाकुर ने एक आसान जीत दर्ज की। देहरा की तरह हिमाचल प्रदेश की नालागढ़ सीट पर भी भाजपा को दलबदलू प्रत्याशी उतारने का नुकसान भुगतना पड़ा। असल में भाजपा की तरफ से उन केएल ठाकुर को मैदान में उतारा गया था, जो 2022 में निर्दलीय चुनाव जीत गये थे। लेकिन मार्च में उन्होंने भी भाजपा का दामन थाम लिया। पार्टी ने भी तुरंत उपचुनाव में उन्हें अपना प्रत्याशी घोषित किया। लेकिन नालागढ़ सीट पर कांग्रेस के हरदीप सिंह बावा ने बड़ी जीत दर्ज की। भाजपा को राजेंद्र भंडारी के रूप में एक और बड़ा झटका इस उपचुनाव में लगा है। उत्तराखंड की बद्रीनाथ सीट से इस बार भाजपा ने उन राजेंद्र भंडारी पर भरोसा जताया था, जो एक समय कांग्रेस के कद्दावर नेता माने जाते थे। लेकिन दल बदलना राजेंद्र भंडारी को तो भारी पड़ा ही, भाजपा को भी हार का स्वाद चखना पड़ा।
पंजाब में भाजपा को झटका
वैसे भाजपा को झटका तो पंजाब में भी दलबदलू नेता की वजह से लगा है। शीतल अंगुरल ने 2022 में जालंधर पश्चिम सीट से जीत दर्ज की थी। उस समय वे आम आदमी पार्टी की तरफ से बैटिंग करते थे। लेकिन शीतल ने बड़ा फैसला लेते हुए लोकसभा चुनाव से पहले दल बदला और भाजपा में शामिल हो गये। पहले जानकार कह रहे थे कि इतने बड़े नेता का भाजपा में जाना पंजाब में पार्टी के पक्ष में कुछ माहौल बना सकता है, लेकिन उपचुनाव के नतीजे बताते हैं कि यह दावा पूरी तरह उल्टा साबित हुआ है। आम आदमी पार्टी के महेंद्र पाल भगत ने इस सीट से उपचुनाव में जीत हासिल की।
भाजपा को तो दलबदलू नेताओं की वजह से झटका लगा ही है, बिहार में बीमा भारती को भी इसी श्रेणी में रखा जा सकता है। बीमा भारती पांच बार की विधायक रही हैं और उन्होंने जदयू की तरफ से एक लंबी पारी खेली। लेकिन इस साल लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने राजद का दामन थामा और तब से ही उनके सियासी करियर में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। पहले लोकसभा चुनाव में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा और अब इस बार के उपचुनाव में भी वे जीत दर्ज नहीं कर सकीं।
बंगाल में एक बार फिर भाजपा पस्त
अब ये चुनावी नतीजे भाजपा के लिए किसी बुरे सपने जैसे हैं। बड़ी बात यह है कि जिस पश्चिम बंगाल में पार्टी पिछले कई सालों से विस्तार की कोशिश कर रही है और खुद को एक प्रमुख विपक्षी दल के रूप में उसने स्थापित किया है, वहां पर इस बार अपनी ही जीती हुई तीनों सीटों पर पार्टी की हार हुई है और ममता दीदी का मैजिक सिर चढ़कर बोला है।
स्थानीय मुद्दे ही रहे हावी
वैसे अगर दलबदलू नेताओं ने सभी पार्टियों को बड़ा संदेश देने का काम किया है, तो अगर ध्यान से देखा जाये, तो स्थानीय मुद्दों ने भी एक निर्णायक भूमिका इस उपचुनाव में निभायी है। कई ऐसी सीटें रही हैं, जहां पर चेहरों से भी ज्यादा बड़े वो मुद्दे बन गये, जिनके आधार पर जनता ने वोट किया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण देवभूमि उत्तराखंड में देखने को मिला है जहां पर भाजपा ने कांग्रेस के हाथों दो सीटें गंवा दी। जानकार मानते हैं कि बद्रीनाथ में भाजपा के हारने के कई कारण हैं। आॅल वेदर रोड जैसी विकास परियोजना की चर्चा तो पार्टी ने कई मौकों पर की, लेकिन ऐसा लग रहा है कि जमीन पर जनता ने इस योजना के खिलाफ अपना वोट डाला है। इसी तरह से कई विकास प्रोजेक्ट के लिए जिस तरह से देवभूमि में पेड़ों को काटा गया और उसका विरोध भी देखने को मिला, उसका झटका भी भाजपा को ही लगा है।
विपक्ष के अच्छे दिन
इंडिया गठबंधन के लिए भी इस उप चुनाव में कई बड़े संदेश छिपे हैं। लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता की वजह से ही भाजपा इस बार बहुमत हासिल नहीं कर पायी थी और उसे 240 सीटों से संतोष करना पड़ा। इसी तरह अब उपचुनाव के नतीजे भी बता रहे हैं कि विपक्षी एकता की वजह से ही कई सीटों पर भाजपा के साथ खेल हुआ है। ऐसे में आने वाले कई चुनाव में अगर विपक्षी एकता इसी तरह कायम रहती है, तो भाजपा की राह और ज्यादा कठिन हो जायेगी और आने वाले दिनों में सही महीना में विपक्ष के अच्छे दिन आ जायेंगे।