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    Home»विशेष»झारखंड के आदिवासियों को साधने के लिए सक्रिय हुई भाजपा
    विशेष

    झारखंड के आदिवासियों को साधने के लिए सक्रिय हुई भाजपा

    shivam kumarBy shivam kumarJuly 1, 2024No Comments6 Mins Read
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    विशेष
    -हिमंता बिस्वा सरमा ने आदिवासी नेताओं से मिल कर हार का कारण पूछा, दिया मंत्र
    -अगले कुछ महीने में आदिवासियों के लिए कई कदम उठायेगी मोदी सरकार

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    झारखंड में विधानसभा चुनाव का बिगुल अभी बजा भी नहीं है, लेकिन राजनीतिक दल अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने में जुट गये हैं। झारखंड के किंगमेकर माने जाने ाले आदिवासी समुदाय के वोटों पर भाजपा सहित सभी दलों की नजर है। हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में झारखंड की सभी पांच आदिवासी सीट हारने के कारण भाजपा इस बार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है। इसलिए वह अभी से ही सक्रिय हो गयी है। आदिवासियों को साधने के लिए असम के मुख्यमंत्री सह झारखंड के सह चुनाव प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा ने एक दिन पहले झारखंड का दौरा किया और यहां के आदिवासी नेताओं से मुलाकात कर उनसे यह जानना चाहा कि आदिवासियों का वोट कैसे हासिल किया जा सकता है। किन कारणों से आदिवासी सीटों पर भाजपा को हार मिली। सरमा ने प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, पूर्व सांसद गीता कोड़ा-मधु कोड़ा, सीता सोरेन, समीर उरांव, अरुण उरांव और पार्टी के दूसरे आदिवासी नेताओं से मुलाकात की और विस्तार से बातचीत की। यह पहली बार है कि झारखंड में आदिवासियों को साधने के लिए भाजपा ने इतनी व्यापक तैयारी शुरू की है। इतना ही नहीं, ओड़िशा में एक संथाल आदिवासी मोहन मांझी को सीएम बनाने के बाद अब मोदी सरकार ने चुनाव के एलान से पहले आदिवासियों को साधने के लिए झारखंड समेत पूरे देश में आनेवाले दिनों में आदिवासियों के लिए कई नयी योजनाएं शुरू किये जाने की रणनीति तैयार की है और इन पर पर विचार किया जा रहा है, ताकि विधानसभा चुनाव के एलान से पहले आदिवासियों को लुभाने की कवायद को ठोस स्वरूप दिया जा सके। भाजपा को उम्मीद है कि हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से उपजी सहानुभूति को इन योजनाओं की मदद से कम किया जा सकता है। आदिवासी वोट हासिल करने के लिए भाजपा इतनी उतावली क्यों है और क्या है उसकी रणनीति, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    2019 के विधानसभा चुनाव के बाद हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में झारखंड की पांच आदिवासी सीटों पर हार का सामना करने के बाद भाजपा अब इस समुदाय का विश्वास दोबारा हासिल करने के लिए सक्रिय हो गयी है। झारखंड कभी भाजपा का मजबूत गढ़ हुआ करता था और यहां के आदिवासी उसके वोटर थे, लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव में यह समुदाय भाजपा से कट गया। इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा राज्य की 28 आदिवासी सीटों में से महज दो ही जीत सकी और वह भी किसी तरह। इसके बाद भाजपा ने आदिवासियों को साधने के लिए बाबूलाल मरांडी को कमान सौंपी और कई दूसरे जतन किये, लेकिन लोकसभा चुनाव में इसका कोई असर नहीं दिखा। इसलिए भाजपा इस बार कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती है और अभी से ही वह आदिवासियों को साधने के लिए सक्रिय हो गयी है।
    इस काम के लिए पार्टी ने असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को झारखंड का सह चुनाव प्रभारी बनाया है। वह एक दिन पहले झारखंड आये और यहां पार्टी के प्रमुख आदिवासी नेताओं से मिले। इस क्रम में उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, पूर्व सांसद गीता कोड़ा, उनके पति सह पूर्व सीएम मधु कोड़ा और लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी में शामिल हुईं शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन, समीर उरांव और अरुण उरांव से मुलाकात की। सरमा दूसरे आदिवासी नेताओं से भी मिले और आदिवासी वोट दोबारा पाने की रणनीतियों पर विचार किया। यह पहली बार हुआ है कि भाजपा इतने बड़े पैमाने पर आदिवासियों को साधने के लिए सक्रिय हुई है।

    हिमंता बिस्वा सरमा को क्यों दी गयी जिम्मेदारी
    दरअसल, हिमंता बिस्वा सरमा ने पूर्वोत्तर में भाजपा के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। झारखंड के आदिवासियों का पूर्वोत्तर के आदिवासियों से गहरा रिश्ता है और सरमा ने जिस तरह वहां के आदिवासियों में भाजपा को स्थापित किया है, वैसे ही वह झारखंड में भी कर सकते हैं, ऐसा पार्टी का मानना है। माना जा रहा है कि ओड़िशा में सीएम के रूप में मोहन मांझी को कमान सौंपने के पीछे भी सरमा का ही हाथ है, क्योंकि इसका सकारात्मक असर झारखंड में पड़ सकता है।

    क्यों महत्वपूर्ण हैं आदिवासी
    झारखंड में करीब 26 फीसदी आदिवासी समुदाय के वोटर हैं, जो राजनीतिक दलों का सियासी समीकरण बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं। यही वजह है कि सभी राजनीतिक दल इस समुदाय को साधने में जुटे रहते हैं। झारखंड की कुल 81 विधानसभा सीटों में से 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। 2014 के विधानसभा चुनाव में इन 28 सीटों में से भाजपा और झारखंड मुक्ति मोर्चा को 13-13 सीटें हासिल हुई थीं, जबकि दो सीटों पर अन्य उम्मीदवार विजयी हुए थे। 2019 के विधानसभा चुनाव में यह स्थिति पूरी तरह बदल गयी और भाजपा केवल दो आदिवासी सीट ही जीत सकी। इसके कारण भाजपा के हाथों से झारखंड की सत्ता भी फिसल गयी।
    क्या कहा हिमंता बिस्वा सरमा ने
    झारखंड दौरे की समाप्ति पर हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि झारखंड का विकास और आदिवासियों का कल्याण भाजपा की प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि पिछले पांच वर्षों से राज्य में कोई सरकार नहीं है। पिछले पांच वर्षों में राज्य में महिलाओं और आदिवासियों पर अत्याचार कई गुना बढ़ गये हैं। विधानसभा चुनाव के लिए जब भाजपा का घोषणापत्र आयेगा, तो पता चलेगा कि पार्टी ने अगले पांच साल में आदिवासी लोगों के लिए कितना काम करने की योजना बनायी है।

    आदिवासी सीटों पर करारी हार से सीखा सबक
    झारखंड में 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में भाजपा की सबसे बुरी स्थिति आदिवासी सीटों पर हुई। राज्य की जिन पांच सीटों पर भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा, वे सभी आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। इनमें खूंटी, सिंहभूम, लोहरदगा, दुमका और राजमहल शामिल हैं। सिंहभूम और राजमहल में पिछली बार भी भाजपा को हार मिली थी, लेकिन इस बार सबसे चौंकानेवाली हार बाकी तीन सीटों पर हुई। आदिवासी सीटों पर भाजपा की हार का कारण हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के कारण पैदा हुई सहानुभूति को बताया जा रहा है। हालांकि भाजपा से आदिवासियों की नाराजगी 2019 के विधानसभा चुनाव में ही सामने आ गयी थी। उसके बाद से भाजपा ने आदिवासियों को साधने के कई उपाय किये। आदिवासियों के बड़े नेता बाबूलाल मरांडी को वह अपने खेमे में वापस लायी और उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गयी। इतना ही नहीं, 15 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलीहातू गये और उस दिन को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। लेकिन इसका कोई खास असर आदिवासियों पर नहीं पड़ा। यह भाजपा के लिए बेहद चिंता का विषय है और अब विधानसभा चुनाव में भाजपा आदिवासियों का वोट दोबारा हासिल करने के लिए हर उपाय करने के लिए तैयार हो गयी है। अब देखना है कि हेमंत सोरेन, चंपाई सोरेन और कल्पना सोरेन के त्रिस्तरीय प्लान का वह कैसे मुकाबला कर सकती है।

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