विशेष
झारखंड विधानसभा चुनाव में लहलहायेगी परिवार की फसल
दर्जन भर सांसद-विधायक अपने परिजनों को टिकट दिलाने के जुगाड़ में
भाजपा से लेकर कांग्रेस और झामुमो के भीतर भी नहीं दिख रहा परहेज
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड की चुनावी सियासत में वंश, विरासत, परिवार और रिश्तेदारी की फसल खूब लहलहाती रही है। कोई भी पार्टी इस मामले में अपवाद नहीं है। हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में भी झारखंड की कई सीटों पर परिवारवाद देखने को मिला और अब अगले तीन-चार महीने में होनेवाले विधानसभा चुनाव में भी यह ‘फैमिली फैक्टर’ प्रभावी रहेगा। वैसे झारखंड की राजनीति में परिवारवाद नयी बात नहीं है। लोकसभा और विधानसभा दोनों ही चुनावों में एक ही परिवार के सदस्यों को अविभाजित राज्य के समय से ही सफलता मिलती रही है। पति-पत्नी और पिता-पुत्र या पुत्री की जोड़ियों के चुनावी दंगल में फतह हासिल करने के दर्जनों उदाहरण राज्य के विभिन्न लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों में मौजूद हैं। राज्य में मां-बाप के बाद बच्चों ने भी राजनीतिक विरासत संभाली है। इनकी फेहरिस्त काफी लंबी है। दर्जन भर से अधिक बेटे-बेटियां चुनावी दंगल में जीत हासिल कर चुके हैं। झारखंड के कम से कम दर्जन भर सांसद और विधायक ऐसे हैं, जो अपने परिजनों को टिकट दिलाने की कोशिशों में जुट गये हैं। इनमें सभी दलों के लोग शामिल हैं। इन सांसदों-विधायकों में से अधिकांश उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच गये हैं, जहां अब राजनीतिक रूप से सक्रिय रहना संभव नहीं हो पाता है। इसलिए वे चाहते हैं कि उनके परिजन किसी तरह राजनीति में स्थापित होकर विरासत को आगे बढ़ायें। इसलिए इतना तय है कि इस बार विधानसभा चुनाव में झारखंड में परिवारवाद का एक नया अध्याय लिखा जायेगा। कौन सांसद या विधायक हैं अपने परिजनों को चुनाव लड़ाने की कतार में और इसका क्या होगा परिणाम, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड में विधानसभा चुनाव से जुड़ी गतिविधियां पूरे उफान पर हैं। चर्चा है कि त्योहारी सीजन शुरू होने के पहले झारखंड में विधानसभा के चुनाव कराये जा सकते हैं। इसे देखते हुए तमाम राजनीतिक दल अब अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गये हैं। कहीं सीटों के बंटवारे पर चर्चा हो रही है, तो कहीं उम्मीदवारों के नाम पर विचार हो रहा है। पार्टियों के सामने दावेदार अपने-अपने दावे करने लगे हैं। धीरे-धीरे पूरे राज्य का माहौल चुनावी रंग में रंगता जा रहा है और इसी के साथ चर्चा होने लगी है कि झारखंड में इस बार भी परिवारवाद की फसल खूब लहलहाने वाली है। राज्य के कई सांसदों, विधायकों, पूर्व मंत्रियों और नेताओं के परिजन चुनावी मैदान में उतरने को उतारू हैं। वैसे कई नेताओं के परिजन पहले ही चुनाव लड़ चुके हैं और विधायक भी बन चुके हैं। झारखंड की पांचवीं विधानसभा में अमित मंडल, कुमार जयमंगल, शिल्पी नेहा तिर्की, हफीजुल हसन, कल्पना सोरेन, बेबी देवी, सविता देवी और सुनीता चौधरी इनमें शामिल हैं।
झारखंड की चुनावी सियासत में परिवारवाद अब नयी बात नहीं है। हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में यह देखने को मिला। इसलिए विधानसभा चुनाव में भी इस बार कई नेता अपने परिजनों के लिए टिकट के जुगाड़ में लग गये हैं। इनमें से कुछ नेता तो उम्र के ढलान पर पहुंच गये हैं और स्वास्थ्य कारणों से उतने सक्रिय नहीं रह पाते हैं। इसलिए वे चाहते हैं कि उनके परिवार का कोई सदस्य राजनीति में स्थापित हो जाये और चुनाव जीत जाये, तो उनकी विरासत को आगे बढ़ाया जा सकेगा। इसके अलावा बेबी देवी और सविता महतो जैसी महिला नेता भी हैं, जो राजनीति में खुद को कंफर्टेबल नहीं पाती हैं और रोजमर्रा के उनके काम भी उनकी संतान ही संभालती हंै। इसलिए वे भी अपने बेटे-बेटियों को विरासत सौंपने के लिए तैयार हैं। वहीं कुछ नेताओं के लिए हालात ऐसे बन गये हैं कि उन्हें अपनी विरासत को जिंदा रखने के लिए अपने परिजनों को विधानसभा चुनाव में उतारने को विवश होना पड़ा है।
इस फेहरिस्त में पहला नाम राज्य कैबिनेट के वरिष्ठतम मंत्री और लोहरदगा से कांग्रेस विधायक डॉ रामेश्वर उरांव का है। ढलती उम्र के कारण अब वह राजनीति में उतने सक्रिय नहीं रह पा रहे हैं। वित्त मंत्री की भारी-भरकम जिम्मेदारी वह किसी तरह निभा रहे हैं, लेकिन अपने क्षेत्र में सक्रिय नहीं हैं। वह चाहते हैं कि इस बार उनके स्थान पर उनके पुत्र रोहित प्रियदर्शी उरांव को लोहरदगा विधानसभा सीट से टिकट दिया जाये। उनके अलावा लोहरदगा के नवनिर्वाचित सांसद सुखदेव भगत भी अपनी पत्नी या बेटे के लिए टिकट के जुगाड़ में हैं। इसी तरह विश्रामपुर से भाजपा विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी भी उम्र के कारण राजनीतिक रूप से सक्रिय नहीं रह पा रहे हैं। इसलिए वह चाहते हैं कि इस बार अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे ईश्वर सागर चंद्रवंशी को सौंप दें। ईश्वर सागर भी क्षेत्र में उसी हिसाब से काम कर रहे हैं और चुनाव लड़ने वाले किसी नेता की तरह ही क्षेत्र में सक्रिय हैं। दुमका से नवनिर्वाचित झामुमो सांसद और शिकारीपाड़ा के पूर्व विधायक नलिन सोरेन सात बार विधायक रह चुके हैं और पहली बार लोकसभा का चुनाव जीते हैं। वह अपने बेटे आलोक सोरेन को शिकारीपाड़ा से विधानसभा चुनाव लड़ाने की तैयारी में हैं। झामुमो के कद्दावर नेता और महेशपुर सीट से विधायक प्रो स्टीफन मरांडी भी स्वास्थ्य कारणों से पिछले कुछ समय से राजनीतिक कार्यक्रमों, सभाओं और सम्मेलनों में जाने से बचते हैं। उनके कार्यक्रमों में अक्सर उनकी बेटी उपासना मरांडी उर्फ पिंकी मरांडी को उनके साथ देखा जाता है। वे कार्यक्रमों में भाग भी लेती हैं और भाषण भी देती हैं। चर्चा है कि इस बार स्टीफन मरांडी की जगह उनकी बेटी को महेशपुर से मैदान में उतारा जायेगा। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो वह जामा से भी झामुमो की प्रत्याशी हो सकती हैं, जहां से हाल ही में भाजपा में शामिल हुईं सीता सोरेन की बेटी राजश्री सोरेन टिकट की प्रबल दावेदार हैं। राजश्री सोरेन दिवंगत दुर्गा सोरेन और सीता सोरेन की बेटी, गुरुजी शिबू सोरेन की पोती और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भतीजी हैं। वह दुर्गा सोरेन सेना नामक संगठन के जरिये सामाजिक क्षेत्र में लंबे अरसे से काम कर रही हैं। दुमका के लोकसभा चुनाव में उन्होंने अपनी मां सीता सोरेन के लिए खूब प्रचार किया था। इसके बाद नाम आता है कि पाकुड़ के कांग्रेस विधायक और जेल में बंद पूर्व मंत्री आलमगीर आलम का। इस बार उन्हें टिकट मिलने में संदेह है, तो इसको देखते हुए उन्होंने खुद अपने पुत्र तनवीर आलम को टिकट दिलाने की कोशिश शुरू कर दी है।
झारखंड के पूर्व मंत्री टाइगर जगन्नाथ महतो और मंत्री सह डुमरी से झामुमो विधायक बेवी देवी खुद को राजनीति में सहज नहीं महसूस करती हैं। इसलिए वह अपने बेटे अखिलेश महतो उर्फ राजा महतो को हमेशा अपने साथ रखती हैं। राजा महतो क्षेत्र से लेकर मां के सरकारी कामकाज में उनकी मदद करते हैं। पिता के निधन के बाद डुमरी में जब उपचुनाव हुआ, तो राजा महतो की उम्र 25 साल से कम थी। इसलिए उनकी मां को उतारा गया। इस बार यह बाधा दूर हो गयी है और झामुमो राजा महतो को उतारने की तैयारी कर चुका है। बेबी देवी की तरह ही इचागढ़ की झामुमो विधायक सविता महतो भी खुद को राजनीति में सहज नहीं महसूस कर रही हैं। उनके पति सुधीर महतो राज्य के उप मुख्यमंत्री रह चुके हैं। सुधीर महतो निर्मल महतो के भाई थे। सविता महतो ने अपनी मदद के लिए अपनी बेटी स्नेहा महतो को साथ रखा हुआ है, जो अपनी मां का हाथ बंटाती हैं। वह पिछले कुछ साल से राजनीतिक और सामाजिक काम में जुटी हुई हैं। क्षेत्र में भी वह अपनी मां से ज्यादा सक्रिय रहती हैं और लोकसभा चुनाव में भी चर्चा थी कि जमशेदपुर सीट से उन्हें झामुमो का टिकट मिलेगा। अब विधानसभा के चुनाव में स्नेहा महतो अपनी मां की जगह इचागढ़ से चुनाव लड़ सकती हैं। इसके अलावा कांग्रेस के कद्दावर नेता सह बेरमो के विधायक रहे दिवंगत राजेंद्र सिंह के छोटे पुत्र कुमार गौरव भी इस बार किसी नये क्षेत्र से टिकट के जुगाड़ा में हैं। उनके बड़े भाई कुमार जयमंगल बेरमो से अपने पिता की जगह पर विधायक हैं और भाभी अनुपमा सिंह ने हाल ही में धनबाद लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था। यदि सब कुछ सही रहा, तो कुमार गौरव को धनबाद से उतारा जा सकता है। बरही के कांग्रेस विधायक उमाशंकर अकेला भी इस बार अपने पुत्र के लिए टिकट की लॉबिंग में जुटे हैं। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन और उनकी बेटी दुखनी सोरेन भी चुनाव लड़ने की तैयार में हैं, हालांकि बताया जाता है कि खुद चंपाई सोरेन इस बात के लिए तैयार नहीं हैं। इनके अलावा राज्य के श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता भी इस बार अपनी बहू रश्मि प्रकाश के लिए टिकट के जुगाड़ में हैं। दरअसल भोक्ता राजद के टिकट पर चतरा सीट से विधायक हैं, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। भोक्ता अब अनुसूचित जनजाति में शामिल हो गये हैं, क्योंकि केंद्र सरकार ने भोक्ता समाज को एसटी में शामिल कर लिया है। इसलिए सत्यानंद भोक्ता अब चतरा से चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। इस कारण उन्होंने अपनी बहू के लिए लॉबिंग शुरू कर दी है। रश्मि प्रकाश अनुसूचित जाति से आती हैं। इनके अलावा चर्चा इस बात की भी है कि ओड़िशा के राज्यपाल रघुवर दास जमशेदपुर पूर्वी से अपनी बहू पूर्णिमा दास के लिए टिकट के जुगाड़ में हैं।
इस तरह साफ है कि इस बार झारखंड विधानसभा चुनाव में मौजूदा सांसदों-विधायकों और बड़े नेताओं के कई परिजनों को यदि टिकट दिया गया, तो मुकाबला बेहद रोमांचक हो जायेगा। इतना ही नहीं, झारखंड की छठी विधानसभा में पहली बार विधायक बनने वालों की संख्या भी अच्छी-खास होगी। इसका झारखंड के सियासी भविष्य पर सकारात्मक असर पड़ सकता है।