विशेष
-अधिक मजबूत और आक्रामक बन कर लौटे हैं हेमंत सोरेन
-झारखंड ही नहीं, पूरे देश में विपक्ष की राजनीति को देंगे नयी धार
-बीते पांच माह ने परिपक्व बना दिया है झामुमो के कद्दावर नेता को
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन पांच महीने बाद एक बार फिर से झारखंड की सत्ता में लौट रहे हैं। इन पांच महीनों ने उन्हें राजनीतिक रूप से अधिक परिपक्व तो बना ही दिया है, वह अधिक मजबूत और आक्रामक भी हो गये हैं। तीन ‘बी’ (बैडमिंटन, बुक और बाइसाइकिल) को बेहद पसंद करनेवाले हेमंत सोरेन के साथ बात जब राजनीति की होती है, तो ये सभी चीजें भुला दी जाती हैं। उस समय वह सामान्य तौर पर अपने अंतर्मुखी व्यक्तित्व को एक सीधे-सपाट व्यक्ति में बदल देते हैं, जिससे साबित होता है कि राजनीति केवल उनका पारिवारिक मामला नहीं है, बल्कि यह कुछ ऐसी चीज है, जो उनकी व्यक्तिगत पसंद भी है। 48 वर्ष के हेमंत तीसरी बार झारखंड की इस हॉट सीट पर बैठने के लिए तैयार हैं। और इस बार उनके पास स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता शीर्ष और राजनीति के खट्टे-मीठे अनुभवों का खजाना भी है। इस बार हेमंत के लिए हिम्मत की बात यह है कि उनके कंधों पर आरोपों का वह बोझ भी नहीं है, जो उन पर लादा गया था। हाइकोर्ट ने साफ कहा है कि जिन आरोपों के आधार पर हेमंत सोरेन के खिलाफ कार्रवाई की गयी, उसका कोई ठोस सबूत नहीं है। हेमंत सोरेन ने 2019 के विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल कर चार साल एक महीने तक झारखंड की कमान संभाली और अब पांच महीने के गैप के बाद फिर से उस जिम्मेदारी को संभालने जा रहे हैं। इस बार उनके अनुभवों में एक अध्याय इन पांच महीनों का भी जुड़ गया है, जब उन्हें सार्वजनिक जीवन से अलग जेल में रहना पड़ा। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के अलावा अदालती संघर्षों की आग में तप कर निकले हेमंत सोरेन इस बार अधिक मजबूत साबित होंगे, क्योंकि इस बार उनके साथ कई नयी बातें भी होंगी। इस बार एक मजबूत हाथ के रूप में उनकी पत्नी कल्पना सोरेन भी उनके साथ हैं, जिन्होंने हेमंत सोरेन की अनुपस्थिति में लोकसभा चुनाव में अपने आपको स्थापित किया है। हेमंत सोरेन के साथ-साथ कल्पना सोरेन भी आज झारखंड की राजनीति में झंडा गाड़ चुकी हैं। उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान झामुमो कार्यकर्ताओं और यहां तक कि इंडी गठबधन दलों के समर्थकों के बीच उत्साह की धार प्रवाहित की। अगले चार-पांच महीने में राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं और उसमें हेमंत सोरेन को इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करना है। जेल जाने से पहले ही हेमंत सोरेन झारखंड में इंडिया गठबंधन के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे थे, तो विधानसभा चुनाव में उनके सामने सत्ता में गठबंधन की वापसी का चैलेंज भी होगा। हेमंत के पास समय कम है, लेकिन वह इस कम समय में भी अपनी काबिलियत साबित करेंगे, यह उम्मीद की जानी चाहिए। क्या है हेमंत सोरेन के सामने चैलेंज और क्या होगा सत्ता में उनकी वापसी का असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

झारखंड के पहले राजनीतिक परिवार, यानी शिबू सोरेन परिवार के उत्तराधिकारी हेमंत सोरेन एक बार फिर झारखंड की सत्ता संभालने जा रहे हैं। 10 अगस्त, 1975 को शिबू सोरेन और रूपी सोरेन के दूसरे पुत्र के रूप में जन्म लेनेवाले हेमंत सोरेन तीसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री बनेंगे और वह राज्य के 13वें मुख्यमंत्री होंगे। इसी साल 31 जनवरी को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तार किये जाने से पहले नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देनेवाले हेमंत सोरेन की पांच महीने बाद सत्ता में वापसी हो रही है और जाहिर है कि इस बार वह अधिक मजबूत और आक्रामक होंगे।

किताब, साइकिल और बैडमिंटन के शौकीन हेमंत सोरेन 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद से झारखंड की सियासत के केंद्र में रहे। बड़े भाई दुर्गा सोरेन के असामयिक निधन ने हेमंत को राजनीति में धकेल दिया। हेमंत ने पटना हाई स्कूल से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की और बीआइटी मेसरा में इंजीनियरिंग में नामांकन लिया। बाद में उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। तब तक राजनीति में उनके नाम की पुकार होने लगी थी। कई अवसरों पर यह संज्ञान में आया है कि हेमंत दयालु, गंभीर और कोमल हृदय के व्यक्ति हैं। हेमंत को अलग राज्य के लिए शिबू सोरेन द्वारा चलाये गये आंदोलन के दौरान कभी अपने पिता के साथ काम करने का मौका नहीं मिला, क्योंकि वह उस समय छोटे थे, लेकिन उन्हें राजनीति पसंद आने लगी थी। एक बच्चे के रूप में हेमंत हमेशा जिज्ञासु और कुछ नया सीखने की ललक लिये रहते थे। बचपन में भी हेमंत ने कभी जाति, नस्ल के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया। उनमें यह गुण आज भी मौजूद है और हमेशा रहेगा। नफरत शब्द से हेमंत पूरी तरह अपरिचित हैं।

हेमंत की शादी कल्पना सोरेन से हुई है। वह एक प्ले स्कूल चलाती थीं और गृहिणी थीं, लेकिन हेमंत की गिरफ्तारी ने उनका जीवन पूरी तरह बदल दिया है। अब वह गांडेय से विधायक हैं और राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। लोकसभा चुनाव के दरम्यान कल्पना सोरेन ने भी अपनी एक मजबूत पहचान बनायी है। इसलिए इस बार हेमंत सोरेन के पास उनकी पत्नी के रूप में एक बड़ी ताकत है।

हेमंत सोरेन का राजनीतिक सफर
मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत सोरेन का पहला कार्यकाल बहुत छोटा रहा। वह 13 जुलाई 2013 से 28 दिसंबर 2014 तक मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद 2014 में हुए आम चुनाव में चली मोदी लहर ने झारखंड को भी अपनी चपेट में ले लिया, लेकिन पांच साल बाद हेमंत स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में लौटने में कामयाब हो गये। 2024 की शुरूआत तक हेमंत सोरेन ने राजनीतिक और प्रशासनिक मोर्चे पर अपनी पकड़ बेहद मजबूत बना ली थी, क्योंकि उन्होंने पूरी ताकत के साथ इमानदारी बरती। तमाम अवरोधों और विरोधों के बावजूद हेमंत सोरेन सत्ता में बन रहे। फिर 31 जनवरी, 2024 को उन्हें एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार कर लिया। हेमंत के सार्वजनिक जीवन के सफर में लगे इस ब्रेक का भी उन्होंने बखूबी अपने पक्ष में इस्तेमाल कर लिया और परिणाम यह हुआ कि सहानुभूति के साथ-साथ हेमंत को राजनीतिक मजबूती भी मिली। हाइकोर्ट के आदेश पर जब हेमंत सोरेन जेल से बाहर आये, तो उन पर लगे वे आरोप भी धुल गये। हाइकोर्ट ने साफ कहा कि हेमंत सोरेन को जिस आरोप में जेल भेजा गया, उसका कोई ठोस सबूत जांच एजेंसी के पास नहीं है। सब कुछ संभावनाओं पर आधारित है।

2019 के 29 दिसंबर को झारखंड के 11वें मुख्यमंत्री के रूप में जब हेमंत सोरेन शपथ ले रहे थे, तो शायद उन्हें भी मालूम नहीं था कि डबल इंजन की सरकार से विरासत के रूप में उन्हें कई चुनौतियां मिलने वाली हैं। हेमंत जब सीएम की कुर्सी पर बैठे, तो राज्य का खजाना खाली था। राज्य में विकास का पहिया पूरी तरह से रुका पड़ा था और व्यवस्था बेपटरी हो चुकी था। हेमंत बहुत जल्द समझ गये कि उनके सिर पर कांटों भरा ताज है और झारखंड को पटरी पर लाना वाकई बेहद चुनौतीपूर्ण है। उन्होंने हिम्मत दिखायी और एक-एक कर इन चुनौतियों से निपटने के लिए रणनीति बना कर काम शुरू किया। लेकिन वह अपनी रणनीति पर आगे बढ़ते, तभी कोरोना के संकट ने राज्य को अपनी चपेट में ले लिया। इस मुसीबत की घड़ी में एक तरफ लोगों की जान बचाने की चुनौती थी, तो दूसरी तरफ राज्य के गरीब और जरूरतमंदों का पेट भरने की जिम्मेदारी थी। इन सभी मोर्चों पर जूझते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने चुनौतियों का सफलता से सामना किया और नतीजा सामने है। मुसीबत की इस घड़ी में उन्होंने न केवल खुद को राजनीति का एक माहिर खिलाड़ी साबित किया, बल्कि प्रशासनिक मोर्चे पर भी तमाम भविष्यवाणियों को गलत साबित कर दिया। कोरोना काल में प्रदेश में गरीबों और जरूरतमंदों को भरपेट भोजन उपलब्ध कराना, देशव्यापी लॉकडाउन के कारण देश के दूसरे हिस्सों में फंसे झारखंड के लोगों को सकुशल वापस लाना और फिर उन्हें काम देने की बड़ी चुनौती का सामना हेमंत ने पूरी ताकत और हिम्मत से किया। कोरोना से निपटने के बाद हेमंत सोरेन ने झारखंड के कुछ ज्वलंत मुद्दों पर निर्णायक फैसला किया। सरना धर्म कोड और आरक्षण की सीमा को बढ़ाने के लिए उन्होंने विधानसभा से प्रस्ताव पारित कराया। यह प्रस्ताव उनके विरोधी दलों के लिए राजनीतिक फांस बन गया। यह कहना गलत नहीं होगा कि पिछले चार साल में झारखंड ने कई उपलब्धियां हासिल कीं। मुख्यमंत्री बनने से एक सप्ताह पहले हेमंत ने दुनिया को आश्वस्त किया था कि वह बदले की भावना से कोई काम नहीं करेंगे। इस भरोसे को उन्होंने कायम रखा। उन्होंने कहा था कि अब हर फैसला झारखंड के हितों को ध्यान में रख कर किया जायेगा और पिछले चार साल में उनका एक भी फैसला राज्य हित के खिलाफ नहीं गया है। चाहे कोरोना संकट हो या कोयला खदान की नीलामी, प्रवासी मजदूरों के लिए विशेष ट्रेन की व्यवस्था करने का सवाल हो या गरीबों के लिए दूसरी कल्याणकारी योजनाएं शुरू करने का मामला, हेमंत ने साबित कर दिया कि वह सचमुच काम में यकीन रखते हैं। यही कारण है कि उन्होंने अपने शासन काल के पहले छह महीने में राज्य के प्रशासनिक ढांचे में कोई बड़ा फेरबदल नहीं किया था।

मुख्यमंत्री के रूप में अपने चार साल के कार्यकाल में हेमंत सोरेन ने एक ऐसी लकीर खींच दी, जो किसी भी मुख्यमंत्री ने नहीं किया। देश के टॉप सीएम के रूप में पहचान बनाना किसी इतिहास से कम नहीं है। हेमंत सोरेन जब मुख्यमंत्री बने थे, तो गरीबों और जरूरतमंदों में एक उम्मीद और आस जगी थी। सभी लोग अपनी उम्मीद लेकर सीएम से मिलते रहे और हेमंत सभी की उम्मीदों पर खरा उतरने का हरसंभव प्रयास कर रहे थे। इस चार साल के दौरान हजारों जरूरतमंदों को वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन, छात्रवृत्ति और सामाजिक सुरक्षा की दूसरी योजनाओं का लाभ मिल चुका था। सबसे बड़ा काम उन्होंने राज्य में पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल कर किया। यह झारखंड के लिए सुखद संकेत है। झारखंड की आगे की चुनौतियां हेमंत सोरेन जैसे मुख्यमंत्री के फौलादी इरादों के आगे शायद ही अवरोध पैदा कर सकें। हेमंत के लिए पांच महीने का ब्रेक नया अनुभव लेकर आया है, जिससे वह अधिक मजबूत और परिपक्व हुए हैं। चूंकि चार महीने बाद ही झारखंड में विधानसभा के चुनाव हैं, उम्मीद की जानी चाहिए कि इस चुनाव में हेमंत सोरेन अपना बेस्ट फारफार्मेंस दिखायेंगे।

Share.

Comments are closed.

Exit mobile version