रांची। झारखंड हाइकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन में 75 प्रतिशत तक शारीरिक रूप से असमर्थ हो चुके कमांडेंट को प्रमोशन से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। दरअसल वर्ष 2012 में सीआरपीएफ के डिप्टी कमांडेंट पद पर प्रतिनियुक्ति पर झारखंड आये रवि शंकर मिश्रा एक नक्सली हमले में गंभीर रूप से घायल हो गये थे। इसके बाद लंबे समय तक उनका इलाज दिल्ली एम्स में चला। यहां उनका स्वास्थ्य बेहतर तो हुआ, लेकिन उनके शरीर के कई अंग पहले की तरह काम करना बंद कर दिये। 10 अगस्त 2022 को मेडिकल बोर्ड को उनके स्वास्थ्य का रिव्यू करना था। लेकिन उस दिन इनसे जूनियर पद पर पदस्थापित अफसरों को प्रमोट कर दिया गया और उनकी वरीयता नीचे चली गयी। इसके बाद रवि शंकर मिश्रा ने हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए वरीयता सूची में संशोधन करने और वरीयता सूची के मुताबिक प्रमोशन देने की मांग की।

चतरा जिले में नक्सल ऑपरेशन की कमान संभाल रहे थे डिप्टी कमांडेंट रवि शंकर मिश्रा
रवि शंकर मिश्रा की याचिका पर हाइकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस डॉ एस एन पाठक की कोर्ट में सुववाई हुई। प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता अमृतांश वत्स ने बहस की। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि जिस अफसर ने अपना पूरा जीवन फोर्स को दे दिया, नक्सलियों से लड़ते हुए अपने शरीर को खो दिया, उस अफसर को बिना किसी गलती के वरीयता सूची से वंचित नहीं रखना चाहिए। जब रवि शंकर मिश्रा नक्सली हमले में घायल हुए, उस दौरान वह चतरा जिले में नक्सल आॅपरेशन की कमान संभाल रहे थे। अपनी प्रतिनियुक्ति के दो वर्ष तक नक्सलियों के खिलाफ कई आॅपरेशन में शामिल डिप्टी कमांडेंट रवि शंकर मिश्रा वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान नक्सलियों द्वारा किये गये ब्लास्ट में गंभीर रूप से घायल हुए थे।

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