-डेमोग्राफी की बात करते समय सलेक्टिव क्यों हो जाते हैं भाजपा नेता
रांची। पूर्व मंत्री बंधु तिर्की ने कहा है कि डेमोग्राफी के विषय में बात करते समय सभी भाजपा नेताओं को पूरे झारखंड के परिप्रेक्ष्य में बात करनी चाहिए। सलेक्टिव होकर डेमोग्राफी जैसे संवेदनशील मुद्दे पर बात करना खतरनाक है और यह झारखंड के साथ ही यहां के लोगों के हित में भी नहीं है। श्री तिर्की ने कहा कि इस बात का ख्याल न केवल लोकसभा या विधानसभा, बल्कि हर एक पब्लिक प्लेटफॉर्म पर और आपस की बातचीत में भी रखा जाना चाहिए।

कहा कि लोकसभा में सांसद निशिकांत दुबे द्वारा संताल परगना में आदिवासियों की संख्या कम होने, डेमोग्राफी बदलने और घुसपैठ के साथ ही संताल परगना में आदिवासियों की आबादी 36 प्रतिशत से घटकर 26 प्रतिशत होने के मुद्दे की बात हो या फिर झारखंड प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी द्वारा डेमोग्राफी में बदलाव के बाद डेमोक्रेसी पर खतरे की बात लेकिन यह दोनों नेता केवल और केवल संताल परगना के मामले में ही बातचीत करते हैं।

राजधानी रांची, दक्षिणी छोटानागपुर, उत्तरी छोटानागपुर और कोल्हान के संदर्भ में बातचीत करने के दौरान सभी भाजपा नेता, डेमोग्राफी का डी बोलने से भी परहेज करते हैं। श्री तिर्की ने कहा कि रांची के साथ ही जमशेदपुर, धनबाद, बोकारो और अन्य नगरों और अब तो ग्रामीण क्षेत्रों में भी आदिवासियों की संख्या तेजी से कम होती जा रही है। आदिवासी, जमीन लूट का शिकार हो रहे हैं, जिसके कारण आदिवासियों को विस्थापन और पलायन का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि विशेष रूप से बिहार और उत्तरप्रदेश से आये लोग आदिवासियों की जमीन पर कब्जा कर रहे हैं और इसमें वे सीएनटी और एसपीटी एक्ट की धज्जियां उड़ाने से भी बाज नहीं आते हैं। उन्होंने कहा कि श्री मरांडी और अन्य भाजपा नेताओं को यह भी बताना चाहिए कि राजधानी रांची में सबसे ज्यादा जमीन किसके द्वारा लूटी गयी और इसका आदिवासियों के ऊपर कैसा और कितना प्रभाव पड़ा

। श्री तिर्की ने कहा कि झारखंड की बात करते समय भाजपा नेताओं को हमेशा यह गौर करना चाहिए कि उनके अनेक वक्तव्यों से आदिवासियों के मन में उनके प्रति गुस्सा, नाराजगी और तकलीफ है। क्योंकि भाजपा नेताओं द्वारा जमीनी मुद्दों की तो बात नहीं होती, लेकिन वैसे मुद्दों पर बात करने के दौरान वे तेज तर्रार हो जाते हैं, जब बात हिंदू-मुसलमान की हो। श्री तिर्की ने कहा कि भाजपा नेताओं को अपनी अंतरात्मा में झांकना चाहिए और झारखंड के आदिवासियों के हित को प्राथमिकता देते हुए बात करनी चाहिए।

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