विशेष
-पाकुड़ में बढ़ते तनाव के बीच महसूस हो रही है इस कांग्रेसी नेता की कमी
-हेमंत और आलमगीर की गिरफ्तारी के मुद्दे ने यहां बना दिया है भाजपा विरोधी माहौल
-गिरफ्तारी ने पाकुड़ के लोगों में पैदा कर दी है सहानुभूति की लहर
-आजाद सिपाही की चुनावी टीम ने संथाल परगना से शुरू कर दी अपनी यात्रा

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
आसन्न विधानसभा चुनाव को देखते हुए ‘आजाद सिपाही’ के चुनावी रथ ने संथाल परगना से अपनी यात्रा का आगाज कर दिया है। यह चुनावी रथ झारखंड के सभी 81 विधानसभा क्षेत्रों का भ्रमण कर वहां के चुनावी माहौल से आपको अवगत करायेगा, साथ ही अपने संवाददाताओं के सटीक और निष्पक्ष विश्लेषण की मदद से आपको और क्षेत्र के मतदाताओं को जागरूक भी करेगा। इस चुनावी रथ का पहला पड़ाव काला पत्थर के लिए पूरी दुनिया में चर्चित पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र था, जहां इस बार अजीब सी बेचैनी है। पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र के वर्तमान विधायक आलमगीर आलम भ्रष्टाचार और टेंडर घोटाले के मामले में जेल में बंद हैं। उन्हें इसी साल 15 मई को इडी ने गिरफ्तार किया था। उस समय वह कांग्रेस विधायक दल के नेता और राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री थे। भाजपा ने आलमगीर आलम की गिरफ्तारी को बड़ा राजनीतिक मौका माना, लेकिन आज वहां का माहौल कुछ और कहानी कह रहा है। पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र के लोग आज भी हर संकट में आलमगीर आलम की कमी महसूस करते हैं। भ्रष्टाचार और घोटाला यहां के लोगों के लिए भी मुद्दे हैं, लेकिन पहले हेमंत सोरेन और बाद में आलमगीर आलम की गिरफ्तारी को लोग पचा नहीं पा रहे हैं। वे मान रहे हैं कि यह भाजपा की साजिश है। इसलिए हेमंत सोरेन के साथ आलमगीर आलम की गिरफ्तारी के खिलाफ यहां एक सहानुभूति साफ दिखाई देती है। पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र के चुनावी माहौल को नजदीक से जानने के बाद वहां क्या कुछ हो रहा है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

झारखंड विधानसभा का चुनाव अगले तीन महीने में होना है। इसलिए राजनीतिक गतिविधियां तेजी से हो रही हैं, लेकिन इसके साथ ही लोगों के बीच भी अभी से चर्चाएं होने लगी हैं। राजनीतिक दलों से इतर चौक-चौराहों पर संभावित प्रत्याशियों के साथ संभावित परिणाम और विभिन्न दलों के गुण-दोष के आधार पर उनकी चुनावी संभावनाओं पर खूब चर्चा हो रही है। इसी चर्चा की नब्ज टटोलने के लिए आजाद सिपाही की टीम 26 जुलाई को पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र में पहुंची, जो संथाल परगना का महत्वपूर्ण जिला है और राजमहल संसदीय क्षेत्र का हिस्सा। काले पत्थर के लिए पूरी दुनिया में चर्चित झारखंड का पाकुड़ जिला पश्चिम बंगाल की सीमा से सटा हुआ है। यह एक अनारक्षित विधानसभा सीट है, जो पाकुड़ जिले में स्थित है। यहां अल्पसंख्यक मतदाताओं का वर्चस्व है, इसलिए यह कहा जाता है कि जिसने अल्पसंख्यक मतदाताओं को साध लिया, उसके लिए इस सीट पर चुनाव जीतना आसान हो जाता है। यह क्षेत्र आज भी विकास की दौड़ में पीछे है। यहां सिर्फ पत्थर और बीड़ी के उद्योग हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां मतदाताओं की संख्या करीब सवा तीन लाख है। इनमें अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या 20 हजार के करीब और अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं की संख्या 40 हजार के करीब है। करीब पौने दो लाख मुस्लिम मतदाता इस विधानसभा क्षेत्र में हैं, जबकि सामान्य मतदाताओं की संख्या करीब 90 हजार है।

पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र का चुनावी इतिहास
राजमहल संसदीय क्षेत्र के पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र में हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में झामुमो प्रत्याशी विजय हांसदा को 1.59 लाख से कुछ अधिक वोट मिले थे, जबकि भाजपा के ताला मरांडी को महज 80 हजार वोट ही मिले। इससे आसानी से समझा जा सकता है कि पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की स्थिति क्या है। इससे पहले 2019 के विधानसभा चुनाव में पाकुड़ में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला हुआ था। कांग्रेस की ओर से आलमगीर आलम ने 1.29 लाख से अधिक वोट हासिल किये थे, जबकि भाजपा के वेणी प्रसाद गुप्ता को 63 हजार से कुछ अधिक वोट मिले थे। आलमगीर आलम ने 65 हजार से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की थी, जो उस चुनाव में राज्य में सबसे बड़ी जीत थी। इससे पहले 2014 में भी आलमगीर आलम ने 83 हजार से अधिक वोट लाकर जीत हासिल की थी। उस चुनाव में उन्होंने झामुमो के अकील अख्तर को हराया था। 2009 में अकील अख्तर ने आलमगीर आलम को हराया था।

पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र का वर्तमान माहौल
जहां तक पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र के वर्तमान माहौल का सवाल है, तो यहां आज भी आलमगीर आलम की कमी महसूस की जा रही है। केवल मुस्लिम ही नहीं, आदिवासी और दूसरे समाज के लोग इस बात पर यकीन नहीं कर रहे हैं कि आलमगीर आलम की गिरफ्तारी घोटाले के कारण हुई है। वे बेहिचक कह रहे हैं कि भाजपावालों ने आलमगीर आलम को फंसा दिया। उसी तरह, जिस तरह हेमंत सोरेन को फंसाया था, जिन्हें हाइकोर्ट से न्याय मिला और वह जमानत पर बाहर आ पाये। आलमगीर आलम का नाम आते ही उनके सामने अपने विधायक का चेहरा आ जाता है। लोग बताते हैं कि आलमगीर आलम ने अपने क्षेत्र में कभी भी तनाव नहीं फैलने दिया। किसी भी टकराव की स्थिति में वह खुद सामने आते थे और लोग उनकी बात मानते भी थे। इतना ही नहीं, वह अपने इलाके के सभी वर्गों के लोगों के लिए सहजता से उपलब्ध थे। यही नहीं, इलाके में उनकी अलग प्रतिष्ठा है।

क्यों याद आते हैं आलमगीर आलम
पाकुड़ के लोग आलमगीर आलम को कितना याद करते हैं, इसकी एक बानगी 26 जुलाई को मिली, जब स्थानीय कुमार कालीदास मेमोरियल कॉलेज के आदिवासी हॉस्टल में देर रात पुलिस और छात्रों के बीच झड़प हुई। इसमें 11 छात्र और छह पुलिसकर्मी घायल हो गये। यह घटना गायबथान में आदिवासियों की जमीन पर मुस्लिम परिवार के कथित कब्जा करने की कोशिश से जुड़ा है। बताया जाता है कि जमीन कब्जे की कोशिश का विरोध करने पर मूल रैयतों को पीटा गया था, लेकिन अपराधियों को गिरफ्तार करने की बजाय लीपापोती की जा रही थी। इससे नाराज आदिवासी छात्र संगठनों ने 27 जुलाई को आक्रोश रैली निकालने का फैसला लिया था। इसके लिए उन्होंने परमिशन भी ली थी। 26 जुलाई की रात हास्टल में पुलिस यह कहते हुए पहुंची कि एक बच्चे का अपहरण हो गया है, और अपहरणकर्ता का लोकेशन हास्टल के आसपास ही मिल रहा है। इसकी जांच करने जब वहां पुलिस टीम पहुंची, तो उसे आदिवासी छात्रों के विरोध का सामना करना पड़ा। आक्रोशि छात्रों ने पुलिस पर हाथ छोड़ दिया। पुलिस भी एक्शन में आयी और दोनों ओर से मारपीट शुरू हो गये। इसमें दोनों ही ओर के करीब 17 लोग घायल हुए। इसमें 11 छात्र और 6 पुलिसकर्मी थे। इस घटना के बाद आजाद सिपाही की टीम ने कुछ लोगों से बात की। उनका कहना था कि आज अगर आलमगीर आलम बाहर होते, तो यह नौबत ही नहीं आती। वह छात्रों को भी समझा लेते और दूसरे को भी। जमीन विवाद के कारण पैदा हुई तनाव की स्थिति के बाद पाकुड़ का राजनीतिक माहौल गरमा गया है। एक तरफ जहां भाजपा इसे राज्य सरकार की तुष्टीकरण का परिणाम बता रही है, तो दूसरी तरफ आम लोग कह रहे हैं कि यदि आलमगीर आलम होते, तो यह टकराव नहीं होता, क्योंकि वह ऐसे मामलों में हमेशा खुद सामने आते थे।

हेमंत और आलमगीर की गिरफ्तारी के खिलाफ सहानुभूति
पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र के शहरी और ग्रामीण इलाकों में वर्ग विशेष के लोग जहां हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के खिलाफ हैं, वहीं आलमगीर आलम की गिरफ्तारी को भी वे गलत मानते हैं। लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान में कल्पना सोरेन ने जिस तरह घर-घर जाकर लोगों से बात की और इन दोनों नेताओं की गिरफ्तारी को संथाल परगना पर कब्जा करने की भाजपा की साजिश करार दिया, उससे इलाके में सहानुभूति की लहर है। आजाद सिपाही की टीम ने कुछ भाजपा नेताओं से भी बातचीत की। वे भी इस बात को स्वीकार रहे हैं कि गिरफ्तारी से भाजपा को नुकसान हुआ है। खासकर ग्रामीण इलाकों में भाजपाई मतदाताओं के पास जाने का साहस नहीं कर पा रहे हैं। भाजपा के एक पुराने नेता ने कहा कि हम लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि इस सहानुभूति को कैसे दूर किया जाये। लोग हमारी बात सुनने के लिए भी तैयार नहीं हैं।

क्या है पाकुड़ का राजनीतिक माहौल
पाकुड़ का वर्तमान राजनीतिक माहौल एकदम साफ है। कांग्रेस-झामुमो का इंडी अलायंस पूरी तरह अपने अल्पसंख्यक-आदिवासी वोटों पर निर्भर है और निश्चिंत भी। दूसरी तरफ भाजपा इसी उम्मीद में है कि किसी तरह पाकुड़ के चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाया जाये, ताकि इंडी अलायंस के वोट का बंटवारा किया जा सके। इसके लिए भाजपा ने अकील अख्तर पर निगाहें जमा रखी हैं, जिन्होंने हाल ही में आजसू से इस्तीफा दे दिया है। उनके तृणमूल कांग्रेस की तरफ से मैदान में उतरने की चर्चा है। भाजपा को उम्मीद है कि यदि अकील अख्तर चुनाव मैदान में उतरते हैं, तो वह इंडी अलायंस का वोट बांट लेंगे, जिससे उसका रास्ता आसान हो सकता है। लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि अगर अकील अख्तर मुसलिम मतदाताओं में 40 से 50 हजार वोट की सेंधमारी कर पायेंगे, तभी भाजपा मुकाबले में आ सकती है, वरना राह बहुत कठिन है और वहां कांग्रेस उम्मीदवार का मार्जिन बढ़ना तय माना जा रहा है। उधर आलमगीर आलम के जेल में रहने की स्थिति में उनके पुत्र तनवीर आलम ने पाकुड़ का मैदान संभाल लिया है। कांग्रेस नेताओं में से कुछ का विचार है कि आलमगीर आलम की जगह उनके पुत्र को ही चुनावी मैदान में उतारा जाये। वह इलाके में सक्रिय भी हैं। लेकिन यह सब कुछ कांग्रेस आलाकमान को तय करना है। फिलहाल आज की तारीख में पाकुड़ में सहानुभूति की लहर बह रही है।

आगे हम बतायेंगे कि कैसे पाकुड़ में एक तांगा वाला भी ताल ठोक रहा है

 

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