विशेष
विकास कार्यों में भ्रष्टाचार ने एक बार फिर बेपर्दा किया है राज्य के सिस्टम को
ऐसे मामलों में जांच के आदेश तो होते हैं, पर नतीजों का कभी पता नहीं चलता
अब इस तरह की लापरवाही को बर्दाश्त करने से विकास पर लग जायेगा ब्रेक
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
15 नवंबर 2000 को देश के राजनीतिक नक्शे पर 28वें राज्य के रूप में जब झारखंड का उदय हुआ था, तब किसी को इस बात का आभास नहीं था कि निश्छल और संवेदनशील संस्कृति के समाज वाला यह प्रदेश बहुत जल्द भ्रष्टाचार की नयी परिभाषा गढ़ेगा और देश में इसकी चर्चा इसकी खनिज संपदा के साथ-साथ भ्रष्टाचार के कारण ही होगी। झारखंड को राजनीति के चतुर खिलाड़ियों और पैसा कमाने की अंधाधुंध होड़ में लगे लोगों ने जम कर लूटा और हर दिन यहां भ्रष्टाचार के नये किस्से सामने आने लगे। अभी गिरिडीह जिले में एक निर्माणाधीन पुल के धंसने की घटना के बाद पिछले 24 साल में झारखंड में होनेवाली इस तरह की घटनाओं की सूची अचानक सामने आ जाती है और तब पता चलता है कि विकास योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार ने इस राज्य को बार-बार कलंकित किया है। झारखंड एक ऐसा राज्य है, जहां कभी एक ही रात में सात पुल बह जाते हैं, तो कभी करोड़ों के खर्च से बने बांध को चूहे कुतर कर बर्बाद कर देते हैं। कभी बारिश और आसमानी बिजली गिरने की वजह से पूरा का पूरा मकान ढह जाता है, तो कभी हजारों हेक्टेयर में लगाये गये जंगल को मवेशी चर जाते हैं। कभी 10 करोड़ रुपये खर्च कर महज तीन साल में बनाया गया रांची जिला का सबसे लंबा पुल औपचारिक उद्घाटन से पहले ही बह जाता है और राजधानी की शान माने जानेवाले बिरसा मुंडा राजपथ के ठीक बगल में बनायी गयी पक्की सड़क में दरार पड़ जाती है। भ्रष्टाचार की इन कहानियों में एक बात सामान्य है कि इन सभी का एक पात्र ऐसा है, जिसे कोई कुछ नहीं कर सकता। भारी बारिश, चूहे, मवेशी या आसमानी बिजली के खिलाफ दुनिया का कोई भी कानून कुछ नहीं कर सकता। भ्रष्टाचार की इन कहानियों ने झारखंड को आर्थिक चोट ही नहीं पहुंचायी है, बल्कि पूरी दुनिया में इसकी इज्जत को मिट्टी में मिला दिया है। अब इन कहानियों के ‘अदृश्य नायक’ का पता लगाना बहुत जरूरी हो गया है। सबसे दुखद यह है कि इन घटनाओं की जांच के आदेश तो होते हैं, लेकिन उसके नतीजों का कभी पता नहीं चलता है। अब झारखंड को इस तरह की लापरवाही बहुत महंगी पड़ने लगी है। क्या है इस भ्रष्टाचार के पीछे का पूरा सिस्टम और इसके कारण कैसे राज्य का भविष्य भी चौपट हो रहा है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

झारखंड में भ्रष्टाचार की एक कहानी फिर दोहरायी गयी है। एक बार फिर राज्य में एक निर्माणाधीन पुल बह गया है। अब लोग कह रहे हैं कि यह पुल नहीं धंसा है, बल्कि झारखंड की प्रतिष्ठा धंसी है। गिरिडीह-जमुई को जोड़ने वाली भेलवाघाटी में अरगा नदी पर बन रहा पुल धंस गया है। हालांकि इस मामले की जांच के आदेश दे दिये गये हैं और संबंधित ठेकेदार को आर्थिक दंड लगाने के साथ उसके खर्च पर दोबारा नया निर्माण करने को कहा गया है, लेकिन मामला यहां खत्म नहीं होता। यहां वही पुराना सवाल उठ रहा है कि आखिर झारखंड में यह घिनौना खेल कब खत्म होगा और इसके खिलाड़ियों को कब बेनकाब किया जायेगा।
झारखंड ही नहीं, पूरी दुनिया के लोग यह जानते और समझते हैं कि गिरिडीह में पुल धंसने की यह घटना न पहली है और न अंतिम, लेकिन इस घटना ने साफ कर दिया है कि झारखंड की विकास योजनाओं में लगा घुन अब बेहद खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है। यह झारखंड की आधारभूत संरचना को खोखला कर रहा है।

इससे पहले 2021 के मई महीने के अंतिम सप्ताह में चक्रवाती तूफान ‘यास’ के असर से पूरे झारखंड में बारिश हो रही थी, तब एक तरफ कई शहरों और गांवों के लोग घरों में पानी घुसने से परेशान थे, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे, जो इस बात को लेकर खुश हो रहे थे कि यह बारिश उनके काले कारनामों को भी धो देगी। ऐसे ही लोगों में वह भी शामिल थे, जिन्होंने तीन साल पहले रांची के बुंडू प्रखंड में 10 करोड़ की लागत से कांची नदी पर पुल बनवाया था। इस पुल निर्माण की देखरेख और निगरानी करनेवाले वे अधिकारी और इंजीनियर भी खुशी मना रहे होंगे कि इस भारी बारिश में यदि वह पुल बह जाये, तो उनके काले कारनामे पर हमेशा के लिए पर्दा पड़ जायेगा और सारा दोष बारिश पर मढ़ दिया जायेगा। हुआ भी ऐसा ही और बारिश के देवता ने उन ठेकेदारों, अधिकारियों और इंजीनियरों की कारस्तानी का दोष अपने ऊपर ले लिया। पुल बह गया और तीन प्रखंडों के 30 गांवों की आबादी एक बार फिर परेशानी के दौर में पहुंच गयी। यह वही आबादी है, जिसने इस पुल बनवाने का श्रेय अपने नेता को दिया और उसकी कीमत अपने वोट से अदा की। रांची की शान कहे जानेवाले बिरसा मुंडा राजपथ के ठीक बगल में दो साल पहले पक्की सड़क बनायी गयी और उसके ठेकेदार को भी बारिश से सुकून मिला होगा, क्योंकि उसकी बनायी गयी इस सड़क पर भारी बारिश की वजह से दरार पैदा हो गयी है और यह सड़क इस्तेमाल के लायक नहीं रह गयी है।

झारखंड में न तो पुल बहने की यह पहली घटना है और न ही सड़क में दरार पड़ने की। यहां तो 2010 के मई महीने में गुमला जिले में एक ही रात सात पुल बह गये थे और किसी ठेकेदार या अधिकारी का बाल बांका नहीं हुआ। जामताड़ा में पूरा का पूरा स्कूल भवन ही आसमानी बिजली का शिकार होकर ध्वस्त हो गया और इसे बनानेवाला ठेकेदार कहीं दूसरी जगह ऐसी ही इमारत बनवा कर अपनी तिजोरी भरता रहा। 2019 में हजारीबाग की कोनार सिंचाई नहर परियोजना का उद्घाटन किया गया था। करीब दो हजार करोड़ रुपये की इस परियोजना के उद्घाटन का पूरा श्रेय नेताओं ने लिया, लेकिन महज 13 घंटे में ही यह बह गया, क्योंकि चूहों ने इसे कुतर दिया था। चतरा में हजारों हेक्टेयर जमीन पर जंगल लगाये गये, लेकिन एक भी पौधा पेड़ नहीं बन सका, क्योंकि मवेशियों ने उन्हें अपना ग्रास बना लिया था। इन घटनाओं के कारण ही झारखंड को भ्रष्टाचार का पर्याय माना जाने लगा।

अब समय आ गया है कि ऐसे ठेकेदारों, अधिकारियों और इंजीनियरों को कानून के कठघरे तक लाया जाये। गिरिडीह में पुल बहने की घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि झारखंड में इंजीनियरों की लॉबी इतनी ताकतवर है कि कोई इसका बाल भी बांका नहीं कर सकता है। इस मिथक को तोड़ने की जरूरत है। झारखंड को यह साबित करना ही होगा कि यदि इसके दिल में करुणा, प्रेम और सद्भाव पनपता है, तो इसका संकल्प चट्टान जैसा है और अपने साथ की गयी हर नाइंसाफी का यह हिसाब लेगा।

झारखंड की इज्जत को मिट्टी में मिलानेवाले ऐसे ठेकेदारों, अधिकारियों और इंजीनियरों की पहचान कर उनके खिलाफ ऐसी कार्रवाई करने की जरूरत है कि भविष्य में कोई भी इस तरह का काम करने से पहले सौ बार सोचे। सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपना रखी है, तो इस तरह के भ्रष्टाचार की कहानियों की जांच बाद में होगी, पहले संबंधित अधिकारियों, इंजीनियरों और ठेकेदारों को सीखचों के पीछे बंद करना जरूरी है। तभी झारखंड विकास की अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ सकेगा।

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