विशेष
32वें से 37वें स्थान पर खिसक कर देश का सबसे चौथा गंदा शहर बना रांची
ध्वस्त हो चुकी है साफ-सफाई की व्यवस्था और लोग भी हो गये हैं लापरवाह
रांची नगर निगम के साथ शहरवासी हैं इस स्थिति के लिए बराबर के जिम्मेवार
स्वच्छता सर्वेक्षण की रैंकिंग को लेकर नगर विकास विभाग गंभीर
रैंकिंग जरूर निराशाजनक, लेकिन आने वाले दिनों में जरूर सुधार होगा: नगर निगम
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
दो दिन पहले स्वच्छता सर्वेक्षण 2024-25 के नतीजों ने रांची के साथ-साथ पूरे झारखंड के चेहरे पर करारा तमाचा मारा है। इस नतीजे के अनुसार सर्वेक्षण में शामिल 10 लाख से अधिक आबादी वाली श्रेणी में देश के 40 सबसे गंदे शहरों में झारखंड की राजधानी रांची चौथे स्थान पर है। इस श्रेणी में देश का सबसे गंदा शहर मदुरै है। उसके बाद लुधियाना दूसरा सबसे गंदा शहर है। उसके बाद चेन्नई और रांची का स्थान है। पिछले साल इस सर्वेक्षण में रांची को 32वां स्थान हासिल हुआ था, लेकिन इस बार वह फिसल कर 37वें स्थान पर चला गया। यहां बड़ा सवाल यह उठता है कि साफ-सफाई के मामले में रांची की इस शर्मनाक स्थिति के लिए जिम्मेवार कौन है। क्या इस स्थिति के लिए केवल रांची नगर निगम को जिम्मेवार ठहराया जा सकता है या फिर रांची के आम लोग भी इसके लिए जिम्मेवार हैं। इस सवाल के जवाब में केवल इतना कहा जा सकता है कि रांची नगर निगम के साथ रांची के लोग भी इस स्थिति के लिए जिम्मेवार हैं। रांची की साफ-सफाई की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं है। लोग जहां-तहां कचरा फेंकते हैं और नगर निगम भी उसका निपटारा अपने हिसाब से करता है। दुनिया में शायद रांची एकमात्र ऐसा शहर है, जहां कचरा फेंकने के लिए कूड़ेदान नहीं है। कुछ साल पहले शहर में कूड़ेदान दिखता था, लेकिन अब तो यह दिखाई भी नहीं देता। यह सब तब हो रहा है, जब रांची नगर निगम राज्य में टैक्स वसूलने के मामले में पहले स्थान पर है। क्या है रांची में गंदगी का कारण और क्या हो सकता है इसे दूर करने का उपाय, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड का सिर एक बार फिर शर्म से झुक गया है। राज्य की राजधानी रांची एक बार फिर स्वच्छता सर्वेक्षण की रैंकिंग में पिछड़ गयी है। दो दिन पहले राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की उपस्थिति में घोषित स्वच्छता सर्वेक्षण 2025 के नतीजों में रांची को 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहर की श्रेणी में 37वां स्थान मिला। इस साल के सर्वेक्षण में इस श्रेणी में 40 शहर शामिल किये गये थे। नतीजे का मतलब यही है कि रांची देश का चौथा सबसे गंदा शहर है। रांची से नीचे चेन्नई, लुधियाना और मदुरै हैं। झारखंड के लिए संतोष की बात यही रही कि 10 लाख से कम आबादी वाले शहर की श्रेणी में जमशेदपुर को तीसरे सबसे स्वच्छ शहर का खिताब मिला और बुंडू को झारखंड का सबसे स्वच्छ शहर का खिताब हासिल हुआ।
टैक्स कलेक्शन में आगे, पर साफ-सफाई में फिसड्डी
हैरानी की बात यह है कि रांची नगर निगम टैक्स कलेक्शन के मामले में राज्य के सभी निकायों से आगे है, लेकिन जब बात साफ-सफाई की आती है, तो तस्वीर एकदम उलटी नजर आती है। रांच नगर निगम द्वारा टैक्स भरपूर वसूला जाता है, लेकिन सफाई के मामले में रांची नगर निगम नाकाम साबित हो रहा है।
इन कारणों से पिछड़ गयी रांची
स्वच्छता सर्वेक्षण की रैंकिंग में रांची के फिसड्डी साबित होने के कई कारण हैं। यह हैरत की बात है कि पिछले पांच वर्षों से रांची टॉप 30 में भी जगह नहीं बना पा रही है, जबकि रांची शहर की सफाई पर नगर निगम हरेक माह करीब छह करोड़ रुपये खर्च करता है। शहर की सफाई और स्वच्छ पर्यावरण के नाम पर 50 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करके विभिन्न मशीनों की खरीदारी की गयी है। शहर में ठोस कचरा प्रबंधन लागू कर दिया गया है। इसके बावजूद शहर से नियमित रूप से कूड़े का उठाव नहीं हो रहा है। सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार रांची में मात्र 58 फीसदी घरों से ही कूड़े का उठाव हो रहा है। जल-मल निकासी के लिए सीवरेज-ड्रेनेज सिस्टम का अभाव है और 40 फीसदी सार्वजनिक शौचालय भी साफ नहीं होते हैं। सफाई व्यवस्था में सुधार लाने के लिए पिछले 24 वर्षों से प्रयास हो रहे हैं, लेकिन परिणाम बेहतर नहीं निकल रहे हैं। साफ-सफाई के मोर्चे पर रांची के पिछड़ने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन मुख्य रूप से इसके पीछे कागजी योजना, शून्य कार्यान्वयन और दिखावे की मॉनिटरिंग है। इसके अलावा आम लोगों में साफ-सफाई के प्रति जागरूकता का अभाव और सामूहिक इच्छाशक्ति का नहीं होना भी इसका कारण है।
कूड़ेदान का अभाव
पहले बात कचरा प्रबंधन की। रांची शायद दुनिया का एकमात्र शहर है, जहां कचरा फेंकने के लिए कोई नियत स्थान नहीं है और न ही कूड़ेदान की व्यवस्था है। कुछ साल पहले शहर में कूड़ेदान की व्यवस्था की गयी थी, लेकिन अब यह कहीं भी नजर नहीं आता। इसका नतीजा यह हुआ है कि लोग जहां-तहां कचरा फेंकते हैं और नगर निगम के लोग मनमर्जी के हिसाब से उसे उठाते हैं। इतना ही नहीं, नगर निगम के लोग नाली का कचरा भी सड़क पर ही छोड़ देते हैं, जिससे वह दोबारा नाली में चला जाता है।
सीवरेज-ड्रेनेज का अभाव
शहर के मात्र नौ वार्डों में सीवरेज-ड्रेनेज प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। पिछले एक दशक में मात्र 80 प्रतिशत काम हुआ है। सभी घर सीवर लाइन से नहीं जुड़े हैं। इस पर करीब तीन सौ करोड़ रुपये खर्च हो गये, फिर भी लोगों को फायदा नहीं मिला। शेष बचे 44 वार्डों में सीवरेज-ड्रेनेज का अभी तक डीपीआर ही बना है। काम कब तक शुरू होगा, इसका पता नहीं है।
कागजी योजनाएं
रांची नगर निगम में अब बड़ी-बड़ी कागजी योजनाएं बनती हैं। ठोस कचरा प्रबंधन लागू करने की योजना 13 वर्षों से बन रही है, लेकिन आज तक यह पूरी तरह धरातल पर नहीं उतरी, क्योंकि यह योजना व्यावहारिक नहीं है। कंसल्टेंट योजना बनाकर देते हैं और अफसर उसकी व्यवहारिकता समझे बिना उसे लागू कर देते हैं। इसी का नतीजा है कि साफ-सफाई नहीं दिखती। घरों से नियमित कूड़ा नहीं उठता। फिर भी निगम के अधिकारी गीला-सूखा कूड़ा अलग नहीं देने वाले घरों से कूड़ा नहीं उठाने की धमकी देते हैं।
कहीं कोई निगरानी नहीं
रांची दुनिया का एकमात्र ऐसा शहर है, जहां नगर निगम की कोई जिम्मेदारी नहीं है। कोई अफसर या कर्मी आम लोगों की न तो शिकायत सुनता है और न सुझाव पर ही ध्यान देता है। कई बार तो साफ-सफाई के लिए निगम कर्मियों और आम लोगों के बीच झगड़े तक हो जाते हैं। इसके साथ साफ-सफाई की निगरानी भी नहीं होती है। कोई ऐसा सिस्टम नहीं है, जहां से पूरे शहर की सफाई की निगरानी की जा सके।
अधिकारी ने कहा, हम लगातार काम कर रहे हैं, मदद करें
इस पूरे मामले पर नगर आयुक्त सुशांत गौरव ने बातचीत की और प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि नगर निगम सफाई व्यवस्था को बेहतर करने के लिए लगातार प्रयासरत है। इस बार की रैंकिंग जरूर निराशाजनक है, लेकिन आने वाले दिनों में सुधार किया जायेगा। उन्होंने इस मामले में आम लोगों से मदद करने की अपील भी की।
नगर विकास विभाग भी गंभीर
स्वस्छता सर्वेक्षण की रैंकिंग में पिछड़ने को नगर विकास विभाग ने भी गंभीरता से लिया है। राज्य के नगर विकास मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू कहते हैं, हम इस मामले को लेकर नगर निगम के अधिकारियों से बातचीत कर रहे हैं। झारखंड के शहरों को साफ रखने के लिए सरकार के स्तर पर हरसंभव कदम उठाये जायेंगे। इसमें निराश होने की जरूरत नहीं है।