रांची। लोकतांत्रिक प्रणाली और राजनीति में विरोध एक सतत प्रक्रिया है लेकिन झारखंड में यह विरोध असामाजिक गतिविधियों, कुछ मामले में राष्ट्रविरोधी गतिविधियों तक का रूप लेने लगा है। विरोध के नाम पर कुछ कथित बुद्धिजीवियों और धर्म विशेष के ठेकेदार होने का दावा करने वालों ने समाज के एक वर्ग को भटकाने की साजिश की है। पहले पत्थलगड़ी के नाम पर सरकार व विकास कार्यों का विरोध और फिर बच्चों को बेचने के मामले में धर्म विशेष के कुछ लोगों के घेरे में आने के बाद उसके प्रतिनिधि समेत कुछ राजनेता भी न सिर्फ खुलकर उनके समर्थन में आए बल्कि पुलिस कार्रवाई का भी आदिवासी हित के नाम पर विरोध किया। हैरत की बात है कि स्कूल के फादर और उनके सहयोगियों के इशारे पर पांच आदिवासी युवतियों से सामूहिक दुष्कर्म की घटना और उसके आरोपित पत्थलगड़ी समर्थकों व नक्सलियों के खिलाफ इनमें से किसी ने एक शब्द तक नहीं कहा।
यहां तक कि बच्चे बेचे जाने की घटनाओं पर भी उनके कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। सच तो यह है कि झारखंड को सबसे ज्यादा नुकसान आदिवासी हित के नाम पर राजनीति करने वाले कुछ तथाकथित नेताओं और धर्म विशेष के नाम पर सेवा की आड़ में सिर्फ सरकारी और गैरसरकारी संगठनों से मोटी रकम वसूलने वालों ने सर्वाधिक नुकसान पहुंचाया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि आदिवासी हित के नाम पर सकारात्मक और सही सोच के साथ राजनीति करने वाले नेताओं की कभी कमी नहीं रही है। इसी तरह धर्म के साथ सेवा करने वालों ने भी झारखंड को बिना किसी स्वार्थ के भरपूर दिया है। धर्म विशेष के नाम पर चल रहे शिक्षण संस्थान और अस्पतालों का गौरवमयी इतिहास इसके प्रमाण हैं। लेकिन इसमें भी दो राय नहीं कि दोनों की ही आड़ में अपने स्वार्थ की रोटी सेंकने वालों की भी कमी नहीं है। ऐसे लोगों को ही अपराधियों के खिलाफ पुलिस और सरकार की कार्रवाई धर्म और आदिवासी समाज पर हमला नजर आने लगा है।
पत्थलगड़ी के नाम पर सरकार और विकास कार्यों का विरोध, नक्सली गतिविधियां और अब धर्म और सेवा के नाम पर बच्चे बेचने की घटना पर कार्रवाई के विरोध में आक्रामक एकजुटता में कहीं न कहीं सरकार को अस्थिर करने का प्रयास दिख रहा है। यह प्रयास अभी तक अलग-अलग नजरिए से देखा जा रहा था लेकिन अब इन मामलों को समेकित दृष्टि से देखने की आवश्यकता है। शुरुआत पत्थलगड़ी से करें संविधान की पांचवीं अनुसूची का सहारा लेकर कुछ असामाजिक व देशद्रोही ताकतों ने केंद्र और राज्य सरकार के अधिकार व अस्तित्व को चुनौती देकर पत्थलगड़ी की आड़ में इलाके में चल रही सारी सरकारी एवं विकास कार्यों की गतिविधियों को ठप करा दिया। यहां तक कि अधिकारियों व कर्मचारियों के इलाके में प्रवेश पर रोक लगा दी। पुलिस ने हस्तक्षेप की कोशिश की तो उसके अधिकारियों व कर्मचारियों को बंधक बनाकर पीटा गया। हद तो तब हो गई जब सरकारी तंत्र के प्रवेश को बंद करने के बाद पत्थलगड़ी की आड़ में स्कूलों को बंद करने, अफीम की खेती को बड़े पैमाने पर करने तथा देह व्यापार के लिए नाबालिग लड़कियों को दूसरे राज्यों में भेजने की घटनाएं जबर्दस्त तरीके से बढ़ गईं।
इन सब बातों को आदिवासी हित के नाम पर जोड़कर सरकार पर चुप रहने का दबाव बनाया गया। सरकार चुप बैठी भी रही। संयोग से उसी दौरान इलाके के ही कुछ कुछ पढ़े-लिखे आदिवासी युवाओं ने इसके विरोध में नुक्कड़ नाटक के जरिये जब लोगों को जागरूक करना शुरू किया तो उन्हें सबक सिखाने के लिए नाटक के बहाने सुदूर गांव में बुलाकर स्कूल के पादरी के इशारे पर पत्थलगड़ी समर्थकों और नक्सलियों ने सामूहिक दुष्कर्म कर साफ कर दिया कि उनके लिए स्थानीय हित से ज्यादा निजी हित हैं। इसके बाद सरकार की आंखें खुलीं और उसने आक्रामक तरीके से इलाके में प्रवेश कर कार्रवाई की। हालांकि पुलिस की कार्रवाई में अब फिर थोड़ी सुस्ती नजर आने लगी है। परिणामस्वरूप पत्थलगड़ी समर्थक पुन: सक्रिय होते नजर आ रहे हैं। बच्चों को बेचने का मसला अहम दूसरा अहम मसला मदर टेरेसा द्वारा स्थापित मिशनरीज आफ चैरेटी के तहत चल रहे निर्मल हृदय संस्था में नवजात बच्चों को बेचने तथा उन्हें धर्म प्रचार में लगाने का है।
इस प्रकरण के खुलासे के बाद सरकार ने सख्त कार्रवाई शुरू की। दिलचस्प पहलू यह है कि यह मामला पहले ही प्रकाश में आ गया था लेकिन तब मामले का खुलासा करने वाले बाल संरक्षण आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष ओमप्रकाश सिंह को मिशनरीज आफ चैरिटी संस्था की एक कर्मचारी द्वारा छेड़छाड़ की शिकायत पर पद से हटा दिया गया था। राहत की बात है कि सरकार की ओर से उचित जांच और कार्रवाई शुरू हो चुकी है लेकिन यह सतत और ईमानदारी से हो तभी इस बड़े और गंदे नेटवर्क का खुलासा हो सकेगा। यह चुनौती सरकार के लिए भी है।
झारखंड में आदिवासी हित और धर्म के नाम पर विरोध की गंदी राजनीति
Previous Articleपूर्व मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती को इलाज के लिए मिली औपबंधिक जमानत
Related Posts
Add A Comment