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    Home»Top Story»नवग्रहों से हार गये डॉ अजय, छोड़ा अध्यक्ष पद
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    नवग्रहों से हार गये डॉ अजय, छोड़ा अध्यक्ष पद

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskAugust 10, 2019Updated:August 11, 2019No Comments12 Mins Read
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    वह 21 नवंबर 2017 का दिन था, जब रांची एयरपोर्ट पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं से घिरे और फूल-मालाओं से लदे डॉ अजय कुमार को सुबोधकांत सहाय और आलमगीर आलम समेत अन्य नेताओं ने फूल-माला पहनायी थी। आज नौ अगस्त को कांग्रेस के इन्हीं दिग्गजों के दबाव में आकर डॉ अजय कुमार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। वह कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्षों की बैठक में शामिल भी नहीं हुए। लोकसभा चुनाव से पहले और फिर इसके बाद डॉ अजय के खिलाफ लगातार अभियान चलाया जा रहा था। लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद डॉ अजय ने इस्तीफे की पेशकश की थी, लेकिन इसे स्वीकार नहीं किया गया था।
    अब उन्होंने दोबारा इस्तीफा भेजा है और साफ कर दिया है कि वह इस पद पर नहीं रहेंगे। इतना ही नहीं, दिल्ली में होते हुए भी वह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों की बैठक में शामिल नहीं हुए। इससे साफ हो गया है कि झारखंड कांग्रेस को अब नया अध्यक्ष मिलेगा।
    इस्तीफे के बाद कई सवाल
    लेकिन इसके साथ ही सवाल यह भी उठता है कि डॉ अजय ने आखिर यह फैसला क्यों किया। क्या वह पार्टी के नवग्रहों का दबाव नहीं झेल सके या फिर राहुल गांधी की विदाई के बाद पार्टी के भीतर उनकी पूछ कम हो गयी है। इन सवालों का जवाब तो आनेवाले दिनों में मिलेगा, लेकिन इतना जरूर है कि विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी कांग्रेस के लिए यह अच्छा नहीं हुआ। इस समय डॉ अजय का पद छोड़ना पार्टी की चुनावी संभावनाओं पर विपरीत असर डाल सकता है, हालांकि डॉ अजय के विरोधी इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं हैं। उनके ऐसा नहीं मानने के पीछे का कारण राजनीतिक है, वास्तविकता से उसका नाता नहीं है।
    क्यों इस्तीफा दिया डॉ अजय ने
    डॉ अजय को राहुल गांधी का करीबी माना जाता है, लेकिन उनके विरोधियों को सोनिया गांधी और अहमद पटेल का आशीर्वाद मिला हुआ है। ऐसे में झारखंड कांग्रेस का अंदरूनी कलह उस मोड़ पर पहुंच गया था, जहां से वापस आना असंभव था। ऐसे में राहुल गांधी की विदाई के बाद डॉ अजय के लिए कांग्रेस मुख्यालय में जगह बनाये रखने में मुश्किल पेश आती। इसलिए उन्होंने पद छोड़ना ही अच्छा समझा। डॉ अजय जानते थे कि यदि वह पद पर बने रहे, तो आनेवाले दिनों में उनके सामने बड़ी चुनौतियां खड़ी होंगी और उसमें भी सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के नवग्रह ही होंगे। इससे वह पार नहीं पा सकते।
    कौन हैं वे नवग्रह
    झारखंड कांग्रेस के कम से कम नौ दिग्गजों ने डॉ अजय कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। इनमें सुबोधकांत सहाय जहां उनके लिए शनि साबित हुए, वहीं प्रदीप बलमुचु राहु और फुरकान अंसारी केतु का किरदार निभाते रहे। ददई दुबे, राजेंद्र सिंह, रामेश्वर उरांव, फुरकान अंसारी, सुखदेव भगत और मनोज यादव भी उनके लिए हमेशा सिरदर्द ही साबित होते रहे। हालात ऐसे बन गये थे कि इनकी छाया में डॉ अजय के लिए काम करना भी मुश्किल हो रहा था।
    वह कांग्रेस की सर्जरी तो कर रहे थे, लेकिन पार्टी के पुराने और हेवीवेट नेताओं के साथ सामंजस्य बिठाने में असफल रहे। अजय पार्टी में नया खून भरना चाहते थे, लेकिन जिन नेताओं ने अपनी सारी उम्र कांग्रेस की सेवा में खपा दी, वे भला कैसे किनारे खड़ा रहते, वे अपने पसीने का मूल्य कुछ अधिक ही चाहते थे।
    क्या लिखा है इस्तीफा पत्र में
    डॉ अजय ने राहुल गांधी को संबोधित अपने इस्तीफा पत्र में अपने इस्तीफे के कारणों का विस्तार से उल्लेख किया है। इसमें सुबोधकांत सहाय, रामेश्वर उरांव, प्रदीप बलमुचू, चंद्रशेखर दूबे उर्फ ददई दूबे, फुरकान अंसारी और कुछ अन्य वरिष्ठ नेताओं पर निजी लाभ के लिए पार्टी के भीतर बनाये गये सिस्टम को बाइपास करने का आरोप लगाया गया है। डॉ अजय के अनुसार इन नेताओं की वजह से ही पार्टी को लोकसभा चुनाव में लोहरदगा और खूंटी में हार का सामना करना पड़ा। पत्र में डॉ अजय ने कहा है कि ये नेता अपने निजी स्वार्थ के लिए इतना नीचे उतर गये थे कि उन्होंने प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में ट्रांसजेंडरों तक को नाचने के लिए भेज दिया था। पत्र में कहा गया है कि भ्रष्टाचार और दलाली के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति ने ही इन वरिष्ठ नेताओं की नजर में उन्हें खलनायक बना दिया। इसलिए उन्हें बदनाम करने की हमेशा साजिश रची गयी। इन परिस्थितियों में उनके लिए इस पद पर काम करना संभव नहीं है।
    अब आगे क्या करेंगे डॉ अजय
    प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद डॉ अजय के भावी कदम के बारे में भी कयास लगाये जाने लगे हैं। खुद डॉ अजय ने अब तक अपने भावी कदमों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी है, लेकिन उनके करीबियों की मानें, तो झामुमो का आॅफर उनके पास है। वैसे झाविमो छोड़ने के बावजूद बाबूलाल मरांडी से उनकी करीबी अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि डॉ अजय कांग्रेस से अलग होते हैं या नहीं और यदि होते हैं, तो उनका नया ठिकाना कहां होता है। डॉ अजय झाविमो के टिकट पर ही लोकसभा तक पहुंच सके थे।
    कांग्रेस की भावी रणनीति
    डॉ अजय के इस्तीफा देने के बाद अब झारखंड कांग्रेस के लिए आगे का रास्ता और भी मुश्किल हो गया है। पार्टी आलाकमान चाहे जिसे भी प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेवारी सौंपेगा, उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती विधानसभा चुनाव में पार्टी को जिताने की होगी। अभी जो संकेत मिल रहे हैं, उसके मुताबिक पार्टी एक अध्यक्ष बना कर पांच कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति कर सकती है, जिनमें से हरेक के पास एक प्रमंडल का कार्यभार रहेगा। ये पांच कार्यकारी अध्यक्ष प्रदेश अध्यक्ष को रिपोर्ट करेंगे। इन पदों के लिए कई नेता रेस में हैं, लेकिन अभी तो कांग्रेस के सामने अपना राष्टÑीय अध्यक्ष चुनने की ही चुनौती है। इससे पार पाने के बाद ही उसका ध्यान झारखंड पर जायेगा।

    डॉ अजय ने राहुल गांधी को भेजे पत्र में लिखा है
    खराब से खराब अपराधी भी मेरे कुछ सहयोगियों से बेहतर हैं
    झारखंड प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देनेवाले डॉ अजय कुमार ने राहुल गांधी के नाम एक पत्र लिखा है। पत्र की प्रति सोनिया गांधी, एके एंटनी, गुलाम नबी आजाद, मल्लिकार्जुन खड़गे, अहमद पटेल, केसी वेणुगोपाल, अधीर रंजन चौधरी, रतनजीत प्रताप नारायण सिंह और रणदीप सुरजेवाला को भी भेजी गयी है। प्रस्तुत है पत्र का हिंदी अनुवाद।

    प्रिय राहुल जी
    पिछले डेढ़ साल से मैं झारखंड में कांग्रेस को बनाने के लिए बिना रुके काम कर रहा हूं। आपके द्वारा जो काम मुझे सौंपा गया था, उसमें जंग लगे संगठनात्मक ढांचे को ठीक करना और प्रखंड से लेकर राज्य स्तर तक पार्टी को पुनर्संगठित करना था। हालांकि झारखंड में कांग्रेस पार्टी को सुधारने के लिए मेरे सभी प्रयासों को कुछ निजी स्वार्थी तत्वों ने विफल कर दिया है।
    पार्टी का प्रवक्ता बनाये जाने के बाद से ही मैंने अपना दिल और अपनी आत्मा को पार्टी को सौंप दिया था और कांग्रेस पार्टी को आगे ले जाने के प्रयासों में खुद को झोंक दिया था। जब झारखंड में पार्टी का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी मैंने ली, तब मैंने अपने लिए पहला लक्ष्य पार्टी को व्यक्तिगत, स्वार्थ और निजी हितों के नजरिये वाली पार्टी से संगठित और जिम्मेदार संगठन के रूप में बनाने का तय किया था। पहली नजर में मैंने देखा था कि पार्टी के अधिकांश कार्यकर्ता पार्टी से अधिक अपने नेताओं के प्रति अधिक समर्पित थे। मैंने पार्टी को निचले स्तर से दोबारा बनाने का अभियान शुरू किया। और आज मैं गर्व से कह सकता हूं कि हम इस काम में सफल हुए और पार्टी को पंचायत तथा प्रखंड स्तर पर मजबूत किया। पार्टी आज उस बिंदु पर है, जहां आज से पहले कभी नहीं रही।
    पिछले 16 महीने में मैंने हर जिले के हर प्रखंड का दौरा किया है और कम सीटों पर लड़ने के बावजूद हमारा वोट शेयर उल्लेखनीय रूप से बढ़ा। इसी तरह कुछ महीने पहले तक जहां 33 विभाग केवल कागजों पर ही सक्रिय थे, आज पूरी तरह काम कर रहे हैं और उनका कामकाज शानदार है। यदि आप जमीन पर काम करनेवाले वास्तविक कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच सर्वेक्षण करायें, तो मुझे विश्वास है कि हमने क्या हासिल किया, उसकी हकीकत आपके सामने आ जायेगी।
    इसलिए, 2019 के लोकसभा चुनाव में खूंटी में एक हजार और लोहरदगा में सात हजार वोटों के मामूली अंतर से हारना मेरे लिए बेहद दुखद रहा। मेरे विचार से, यदि हमारे वरिष्ठ नेताओं ने निजी हितों के मुकाबले पार्टी हितों को तरजीह दी होती, तो झारखंड में कम से कम छह लोकसभा सीट हमारे लिए संभव हो सकती थी। दुर्भाग्य से मैं अब साफ-साफ देख रहा हूं कि सुबोधकांत सहाय, रामेश्वर उरांव, प्रदीप बलमुचू, चंद्रशेखर दूबे, फुरकान अंसारी और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने व्यक्तिगत लाभ के लिए केवल राजनीतिक पद हासिल करने की जुगत लगायी और पार्टी के हित में जो सिस्टम बनाया गया था, उसे तोड़ने के लिए हरसंभव प्रयास किये। इन बाधाओं के बावजूद इन तथाकथित नेताओं के समर्थन के बिना 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के वोट शेयर में 2014 के मुकाबले 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
    मैं खुद को बेहद कठोर मानता हूं और मेरे रास्ते में आनेवाली हर बाधा और बेइज्जत को मैंने नजरअंदाज किया, लेकिन अब इससे अधिक कीचड़ उछालना मैं सहन नहीं कर सकता। मेरा धैर्य तब जवाब दे गया, जब मेरी ही पार्टी के नेताओं ने पार्टी कार्यालय में मेरे साथ दुर्व्यवहार करने के लिए भाड़े के गुंडे बुलाये। सुबोधकांत सहाय जैसे नेता इतना नीचे गिरे गये कि उन्होंने ट्रांसजेंडरों को पार्टी मुख्यालय में नाचने तक के लिए बुला लिया।
    इस बुराई की जड़ें काफी गहरी हैं। पिछले कुछ महीने से मैंने कई मोर्चों पर हस्तक्षेप का सामना किया, चाहे तालमेल का मुद्दा हो, कांग्रेस कार्यकर्ताओं के प्रति भेदभाव हो, प्रदेश कांग्रेस कमिटी का गठन हो या बेईमान लोगों को पदों पर बैठाने का मामला। इस सब ने मुझे इस दुर्भाग्यपूर्ण नतीजे पर पहुंचने के लिए मजबूर किया कि मेरे द्वारा किये गये हर प्रयास को इन अवांछित तत्वों ने बेकार कर दिया। राज्य के कुछ नेता रुपयों के थैली के साथ बराबर दिल्ली जाते हैं, उन्हें वहां होटलों में ठहराया जाता है और उनका एकमात्र उद्देश्य प्रदेश में पार्टी के बारे में गलत और झूठा प्रचार करना होता है। मुझे पूरा विश्वास है कि इस काम में लगे बहुत से लोग आसानी से पहचाने जा सकते हैं। यह विडंबना है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता ऐसी गतिविधियों के लिए धन खर्च करने के लिए तैयार रहते हैं, लेकिन इनमें से कोई भी पार्टी को पांच हजार रुपये प्रतिमाह देने के लिए तैयार नहीं है।
    किसी भी राजनीतिक पार्टी का उद्देश्य लोगों को प्रभावित करनेवाले मुद्दों के खिलाफ खड़ा होना और संघर्ष करना होता है। मैंने व्यक्तिगत लाभ के लिए कभी काम नहीं किया और मैंने अपने परंपरागत क्षेत्र जमशेदपुर से 2019 का लोकसभा चुनाव केवल इसलिए नहीं लड़ा, ताकि झारखंड में गठबंधन मजबूत रहे और हम एक मजबूत मोर्चा पेश कर सकें। हालांकि मेरे दृष्टिकोण से झारखंड के हमारे सभी वरिष्ठ नेता केवल अपने परिवार के लिए लड़ते हैं। एक नेता अपने लिए बोकारो और अपने बेटे के लिए पलामू सीट चाहते हैं। एक नेता अपने भाई के लिए हटिया सीट चाहते हैं। एक और नेता अपनी पुत्री के लिए घाटशिला सीट और अपने लिये खूंटी सीट चाहते हैं। एक और नेता अपने बेटे के लिए जामताड़ा, अपनी पुत्री के लिए मधुपुर और खुद के लिए महागामा चाहते हैं। एक नेता तो कई चुनाव हार चुके हैं, लेकिन फिर भी वह गुमला से एक सीट चाहते हैं। पार्टी का हरेक नेता हमारे द्वारा अच्छी तरह से बनाये गये गठबंधन का समर्थन केवल अपनी सीट सुरक्षित होने तक ही करता है। और यदि उसे यह नहीं मिलता है, तो वह बवाल काटने लगता है।
    मेरी केवल इतनी इच्छा है कि कांग्रेस अपनी जड़ों की ओर लौटे और लोगों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाये। यह महत्वपूर्ण है कि हमारे पास सरकार और विपक्ष में भी अच्छे लोग हैं। इसके बदले हम अभी केवल किरायेदार हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य सत्ता हासिल करना, चुनाव के नाम पर टिकट बेचना या पैसा कमाना है। एक गर्वित भारतीय, वीरता पदक पानेवाला सबसे कम उम्र का एक अधिकारी होने और जमशेदपुर से माफियाओं का उन्मूलन करने के बाद, मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि खराब से खराब अपराधी भी मेरे कुछ सहयोगियों से बेहतर है। इतना ही नहीं, मैं आपके द्वारा मुझे दिये गये सहयोग के लिए आपको धन्यवाद देता हूं। मैं आपको द्वारा उठाये गये साहसिक कदम और एक इंसान के रूप में आपकी शालीनता के प्रशंसकों में से एक रहा हूं। मैं हमेशा आपके द्वारा मुझे दिये गये अवसरों के लिए हमेशा आभारी रहूंगा।
    मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं कि मैंने जिला और प्रखंड अध्यक्षों की एक महान टीम के साथ काम किया। मैं कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम की प्रशंसा में एक शब्द जोड़ना चाहता हूं, जो एक शानदार सहयोगी रहे। मैं खुद को इस मामले में भी भाग्यशाली मानता हूं कि मुझे केंद्र में पार्टी के कुछ सच्चे-समर्पित नेताओं के साथ काम करने का मौका मिला। ये सभी आम लोगों के लिए संघर्ष कर रहे हैं और उन्होंने मुझे दिखाया है कि निजी स्वार्थ रहित और शिष्ट राजनीतिज्ञ क्या हासिल कर सकता है। दूसरी तरफ इन विघ्नसंतोषी और नकारात्मक कथित वरिष्ठ नेताओं ने मुझे दिखा दिया कि राजनीति को कैसा नहीं होना चाहिए।
    भ्रष्टाचार और दलाली के किसी भी प्रकार के प्रति मेरे जीरो टॉलरेंस ने मुझे मेरे काम को प्रभावी ढंग से करने से रोका है। इसलिए कृपया इसे झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे का औपचारिक पत्र मानते हुए इसे स्वीकार करें।
    आपके साथ काम करना मेरे लिए गर्व का विषय है और भविष्य में आपके द्वारा किये जानेवाले हर कार्य की सफलता की कामना करता हूं।
    भवदीय
    डॉ अजय कुमार

    Dr. Ajay lost to Navagrahas left the post of president
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