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    Home»Breaking News»चीन के खिलाफ सैन्य विकल्प आखिरी रास्ता: बिपिन रावत
    Breaking News

    चीन के खिलाफ सैन्य विकल्प आखिरी रास्ता: बिपिन रावत

    sonu kumarBy sonu kumarAugust 24, 2020No Comments4 Mins Read
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    चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने कहा कि लगातार कूटनीतिक और सैन्य वार्ताओं के जरिए चीन से बिगड़े रिश्ते सुधारने की कोशिश की जा रही है। अभी तक की वार्ताओं में सहमति जताने के बावजूद चीन बैठक में लिये जा रहे फैसलों पर अमल करता नहीं दिख रहा है। इसके बावजूद आखिरी उम्मीद तक चीन से भारत के मुताबिक फैसलों पर अमल कराने की कोशिश की जाएगी। सभी तरह की वार्ताएं नाकाम होने पर ही सैन्य विकल्प का इस्तेमाल किया जायेगा।
    उन्होंने एक ट्विट में कहा कि “लद्दाख में चीनी सेना द्वारा किए गए बदलाव से निपटने के लिए एक सैन्य विकल्प जारी है, लेकिन दोनों सेनाओं और राजनयिक विकल्प के बीच बातचीत विफल होने पर ही अभ्यास किया जाएगा। 2017 में चीन के साथ डोकलाम में 73 दिनों तक चले गतिरोध के दौरान जनरल बिपिन रावत भारतीय सेना प्रमुख थे। उन्होंने इस बात को ख़ारिज कर दिया कि प्रमुख खुफिया एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी है। सीडीएस रावत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि लद्दाख में एलएसी पर चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा किए गए बदलावों से निपटने के लिए उनके पास सैन्य विकल्प है लेकिन केवल दो देशों की सेनाओं और राजनयिक विकल्प के बीच बातचीत नाकाम होने पर ही आखिरी विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा।
    उन्होंने कहा कि एलएसी के साथ बदलाव अलग-अलग धारणाओं के कारण होते हैं। रक्षा सेवाओं को इस पर निगरानी रखने और घुसपैठ को रोकने की जिम्मेदारी दी जाती है। इसलिए पहले ऐसी किसी भी गतिविधि को शांतिपूर्वक हल करने और घुसपैठ रोकने के लिए सरकार के संपूर्ण दृष्टिकोण को अपनाया जाता है। रक्षा सेवाएं हमेशा सैन्य कार्यों के लिए तैयार हैं, फिर भी एलएसी पर यथास्थिति बहाल करने के सभी प्रयास किये जा रहे हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जिम्मेदार सभी लोग इस उद्देश्य के साथ सभी विकल्पों की समीक्षा कर रहे हैं कि पीएलए लद्दाख में यथास्थिति बहाल करती है या नहीं।
    पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना से टकराव की स्थिति लगातार बढ़ती जा रही है। कूटनीतिक और सैन्य वार्ताओं को झुठलाते हुए चीन अपने सैनिकों को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से पीछे नहीं हटा रहा है। इसके विपरीत एलएसी के साथ सड़क, पुल, हेलीपैड और अन्य सैन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण जारी रखे है। इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए भारत का सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व दो-तीन दिन से लगातार बैठकें करके चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए आगे की रणनीति पर विचार कर रहा है।
    भारत भी चीनी सेना की तैनाती के जवाब में ही सही लेकिन लद्दाख से अरुणाचल तक फैली 3,488 किलोमीटर लम्बी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैनिकों, तोपखाने, टैंकों और अन्य भारी हथियारों की तैनाती करता जा रहा है। यानी कि एलएसी पर दोनों ओर से सेनाओं और हथियारों का जमावड़ा बढ़ने से टकराव की स्थिति लगातार बढ़ती जा रही है। पूर्वी लद्दाख में चीन से सैन्य टकराव के 100 दिनों से ज्यादा हो चुके हैं लेकिन अब तक कोई समाधान निकलता नहीं दिख रहा है। इसलिए सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने देश भर के अपने शीर्ष सात सेना कमांडरों और सैन्य खुफिया एजेंसियों के साथ एलएसी और एलओसी की सुरक्षा स्थिति और परिचालन संबंधी तैयारियों की समीक्षा करने के लिए 20-21 अगस्त को एक महत्वपूर्ण बैठक की।
    भारत और चीन के बीच सीमा पर जारी गतिरोध को सुलझाने के लिए राजनयिक स्तर पर हुई वार्ता के दो दिन बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार को एक बैठक की। इसमें सैन्य बलों के प्रमुख (सीडीएस) बिपिन रावत ने तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ रक्षा मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल को तीनों सेनाओं की तैयारी और योजना के बारे में जानकारी दी। बैठक में सेना, नौसेना और वायु सेना प्रमुखों और एनएसए अजीत डोभाल ने एलएसी की स्थिति पर चर्चा की। लगभग दो घंटे तक चली बैठक में आर्मी चीफ जनरल जनरल एमएम नरवणे ने भी भारत की सैन्य तैयारियों, हथियारों और सैनिकों की तैनाती, वास्तविक नियंत्रण रेखा सहित सभी संवेदनशील इलाकों में कड़ाके की सर्दी के बीच सैनिकों की तैनाती बनाए रखने को लेकर जानकारी दी। इस बैठक में हुई चर्चा की जानकारी एनएसए डोभाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देंगे, जिसके बाद आगे की रणनीति तय की जाएगी।
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