अयोध्या। करोड़ों हिंदुओं की आस्था का मंदिर अब बनने जा रहा है। पांच अगस्त 2020 वह ऐतिहासिक दिन होगा, जिस दिन प्रधानमंत्री राम मंदिर का शिलान्यास कर करोड़ों हिंदुओं को उनके प्रिय भगवान राम के मंदिर की सौगात देंगे। राम मंदिर बनना किसी बड़े सपने से कम नहीं है, क्योंकि इसे बनाने में पिछले सैकड़ों सालों का इतिहास है। सैकड़ों साल से संघर्ष की लड़ाई, आंदोलनों की वीरता और लोगों के संयम का फल है कि राम मंदिर बनने का सपना आखिरकार पूरा हो जायेगा। राम मंदिर करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है। जिन लोगों ने अपनी जिंदगियां कुर्बान की हैं, उनका परिणाम है।
राम मंदिर की लड़ाई 15वीं सदी से चली आ रही है। सबसे पहले सन् 1528 में मुगल हमलावर बाबर के सेनापति मीर बकी ने राम मंदिर का ढांचा तोड़कर यहां बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था। इसके बाद सन् 1885 में यह मामला पहली बार ब्रिटिश शासनकाल के दौरान अदालत में पहुंचा था। आपको जानकर हैरत होगी कि राम मंदिर मामले ने पूरे 135 सालों की कानूनी लड़ाई लड़ी है। राम मंदिर का निर्माण हिंदुओं के लिए ऐतिहासिक पल क्यों है, क्यों भगवान राम की जन्मभूमि पर मंदिर बनाना किसी संघर्ष से कम नहीं था। इतिहास में भगवान राम के अवतरण की अलग-अलग तिथियां और संदर्भ दिये हैं।
भगवान राम के जन्म पर क्या कहते हैं शोध
भगवान राम के जन्म को लेकर कई मान्यताएं हैं। कई लोग महर्षि वाल्मीकि की रामायण में बताये गये समय को ही भगवान राम का जन्म समय मानते हैं, लेकिन रामायण पर किये गये शोध के आधार यह बात सामने निकलकर आयी है कि राम का जन्म 5114 ईसा पूर्व 10 जनवरी को दोपहर 12.05 पर हुआ था। वाल्मीकि के अनुसार श्रीराम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी तिथि को हुआ था या फिर पुनर्वसु नक्षत्र में, जब पांच ग्रह अपने उच्च स्थान में थे, तब हुआ था। इस प्रकार सूर्य मेष में 10 डिग्री, मंगल मकर में 28 डिग्री, वृहस्पति कर्क में 5 डिग्री पर, शुक्र मीन में 27 डिग्री पर एवं शनि तुला राशि में 20 डिग्री पर था। इस स्थिति पर अलग-अलग शोधकर्ताओं का अलग-अलग मत है। डॉ वर्तक के अनुसार ऐसी स्थिति 7323 ईसा पूर्व दिसंबर में ही बनी थी, लेकिन प्रोफेसर तोबयस का मानना है कि जन्म के ग्रहों के विन्यास के आधार पर राम का जन्म 7130 वर्ष पूर्व यानि कि 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व हुआ था।
भगवान राम के जन्म पर क्या कहते हैं वेद
पौराणिक कथाओं में बताया गया कि भगवान राम का जन्म 24वें त्रेतायुग में हुआ था। महाभारत में कहा गया है कि भगवान राम त्रेता युग और द्वापर युग के बीच हुए बदलाव में जीवित थे। वाल्मीकि रामायण और राम की जीवनी पर बनी दूसरी किताबों के अलावा वायु पुराण, महाभारत, हरिवंश और ब्रह्मानंद पुराण में भगवान राम के जन्म के बारे में बताया गया है। जिन लोगों को इन पौराणिक बातों पर विश्वास नहीं होता, जिनके लिए ये सब बातें घिसी-पिटी सी होती हैं, उनके लिए विज्ञान का तर्क भी सामने है। विज्ञान ने भी भगवान राम के जन्म पर कुछ तथ्य सामने रखे हैं।
भगवान राम के जन्म पर क्या कहता है विज्ञान
इंस्टीट्यूट आॅफ साइंटिफिक रिसर्च आॅन वेद के प्लैनेटेरियम सॉफ्टवेयर के मुताबिक भगवान राम का जन्म अयोध्या में 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व को हुआ था, जैसा कि कई शोधकर्ता भी मान चुके हैं। भारतीय कैलेंडर के मुताबिक भगवान राम के जन्म का समय दोपहर 12 से एक बजे के बीच में है। इसके अलावा संस्थान ने भारतीय पौराणिक कथाओं में कई अन्य प्राचीन घटनाओं की पुष्टि करने में भी सफलता का दावा किया है, जो 2000 ईसा पूर्व से पहले तारामंडल (प्लैनेटेरियम) सॉफ्टवेयर का उपयोग करके हुई थी। इस संस्थान के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि वाल्मीकि ने रामायण में जो ग्रहों की स्थिति का वर्णन किया है, उसी के आधार पर राम की जन्मतिथि निकाली गयी है।
मिर्जापुर देवराहा बाबा आश्रम में तैयार हो रहे आठ हजार गायों के देशी घी से बने लड्डू, रामलला को लगेगा भोग
मिर्जापुर। अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने जा रहे हैं। इसको लेकर पूरे देश में जगह-जगह विभिन्न आयोजन हो रहे हैं। मिर्जापुर के प्रसिद्ध देवराहा बाबा के शिष्य देवराहा हंस बाबा के आश्रम में भी इसकी तैयारियां जोर-शोर से की जा रही हैं। एक लाख 11 हजार देशी घी के लड्डू बनाये गये हैं। इन लड्डुओं के एक हिस्से को लेकर आश्रम जत्था अयोध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि पहुंच गया है। वहां मंदिर में लड्डू को चढ़ाने के बाद उसे वापस लाया जायेगा और उसे संपूर्ण लड्डुओं में मिला दिया जाएगा। बाद में पूरे देश के धर्मस्थलों में प्रसाद स्वरूप भेजा जायेगा। भगवान के भोग के बाद उसे देश के कोने-कोने धार्मिक स्थलों से लेकर अन्य राम भक्तों तक पहुंचाया जायेगा। यह लड्डू बाबा के आश्रम में रह रही गायों के घी से ही बनाया जा रहा है। आश्रम में आठ हजार से ज्यादा गायें हैं। आश्रम में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, आरएसएस के सर संघ चालक मोहन भागवत, विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष रहे स्वर्गीय अशोक सिंघल समेत कई बड़ी हस्तियां आ चुकी हैं। राम मंदिर निर्माण आंदोलन के शुरुआती दिनों में कई बार यहां महत्वपूर्ण लोगों की बैठकें भी हुई हैं। देवराहा हंस बाबा देवराहा बाबा के उत्तराधिकारी हैं। देवराहा बाबा ने वर्ष 1952 में भगवान राम के जन्म स्थान को सही ठहराया था। उन्होंने कहा था कि कोई कुछ भी कहे, लेकिन भगवान राम का जन्मस्थल अयोध्या में ही है। राम जन्मभूमि राम की है, राम की होगी, उसको नकारा नहीं जा सकता। वहीं देवराहा बाबा के उत्तराधिकारी देवराहा हंस बाबा ने भी 1989 में इसी बात को दोहराया था। देवराहा हंस बाबा ने कहा कि राम मंदिर निर्माण से महा आध्यात्मिक शक्ति के प्रभाव के द्वारा भारत एक महाशक्तिमान बनकर रहेगा।
शिलान्यास के मौके पर लोगों में बांटेंगे ‘राम कटोरी’
सिद्धार्थनगर। बर्डपुर कस्बे का श्रीराम जन्मभूमि से सीधा कनेक्शन है। सन 1992 में उठे आस्था के ज्वार की इस कस्बे के विनोद मोदनवाल भी लहर बने थे। गिरफ्तारी में 21 दिन की जेल क्या हुई, ‘राम कटोरी’ नाम की विशिष्ट मिठाई बनाने का ख्याल आया। बाहर निकलते ही उन्होंने ख्याल को मूर्त रूप दिया। देखते ही देखते यह मिठाई लोगों की जुबान पर चढ़ गयी। ‘राम कटोरी’ ने देश की सरहद पार कर खाड़ी देशों तक धूम मचा दी। 28 साल बाद पांच अगस्त को प्रस्तावित श्रीराम मंदिर के शिलान्यास की खबर से ‘राम कटोरी’ मिठाई बनाने वाले मोदनवाल काफी प्रसन्न हैं। उन्होंने शिलान्यास के दिन ‘राम कटोरी’ मिठाई बर्डपुर कस्बे में मुफ्त में बांटने की घोषणा की है। वर्ष 1992 में राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान यह मिठाई पहली बार बनायी गयी थी। क्षेत्र में यह मिठाई हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समाज में काफी लोकप्रिय है। बर्डपुर निवासी और मिठाई विक्रेता विनोद मोदनवाल राम मंदिर आंदोलन में बतौर कारसेवक जुड़े थे। 1992 में मंदिर आंदोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर बस्ती स्थित बेगम खैर इंटर कॉलेज में जेल भेज दिया गया। 21 दिन बाद वह छूटे। जेल में उन्हें नयी मिठाई बनाने का विचार आया, जिसका आकार कटोरी की तरह था। विनोद ने इसका नाम ‘राम कटोरी’ रख दिया। इसका वितरण उन्होंने अयोध्या जाने वालों के लिए मुफ्त किया था। धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता बढ़ी। अब मुस्लिम समाज के लोग भी सऊदी अरब, दुबई आने-जाने वाले परिवारीजन और मित्रों को भेंट के लिए ‘राम कटोरी’ ले जाते हैं। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में बतौर कारसेवक शामिल विनोद मोदनवाल कहते हैं कि शिलान्यास की तिथि घोषित होने के बाद से उनका मन प्रफुल्लित है। ‘राम कटोरी’ को भगवान राम के भोग और प्रधानमंत्री को भेंट की इच्छा है।
देशभर के धार्मिक स्थलों में बंटेगा भूमि पूजन का प्रसाद
अयोध्या। राम मंदिर भूमि पूजन अनुष्ठान का प्रसाद देशभर के धार्मिक स्थलों में बांटने की तैयारी भी की जा रही है। इसके लिए मणिराम दास की छावनी में भूमि पूजन के लिए एक लाख 11 हजार लड्डू बनने का काम शुरू हो गया है। इन्हें स्टील के डिब्बे में पैक किया जा रहा है। यह प्रसाद देवराहा बाबा स्थल से जुड़े अनुयायी बनवा रहे हैं। इन लड्डुओं को भूमि पूजन के दिन अयोध्या धाम और कई तीर्थ क्षेत्रों में वितरित किया जायेगा। भूमि पूजन के दिन 111 थाल में सजे लड्डू को रामलला के दरबार में भेजा जायेगा। श्री मणिराम दास छावनी सेवा ट्रस्ट के परिसर में प्रसाद की तैयारी में कारीगर जुटे हुए हैं। तीन प्रकार के डिब्बों में प्रसाद को पैक किया जा रहा है। पांच, 11 और 21 पीस की क्षमता वाले स्टील के डिब्बों में लड्डू रखे जा रहे हैं। पांच अगस्त को राम मंदिर भूमि पूजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास के हाथों रामलला को यह प्रसाद चढ़ाया जायेगा।
देवराहा हंस बाबा के सेवक तुषार ने कहा कि राम मंदिर निर्माण से देश के करोड़ों राम भक्तों की आस्था जुड़ी है। कोरोना काल में नियमों की प्रतिबद्धता के चलते दिव्य अनुष्ठान में हमें शामिल होने का मौका नहीं मिल रहा है। भूमि पूजन के अनुष्ठान का प्रसाद देवराहा हंस बाबा की ओर से सभी को पहुंचाया जायेगा।
15वीं सदी से लेकर अब तक राम मंदिर के संघर्ष की कहानी
1528: बाबर ने यहां एक मस्जिद का निर्माण कराया, जिसे बाबरी मस्जिद कहते हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार इसी जगह पर भगवान राम का जन्म हुआ था।
1853: हिंदुओं का आरोप कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ। इस मुद्दे पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा हुई।
1859: ब्रिटिश सरकार ने तारों की एक बाड़ खड़ी करके विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिदुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दे दी।
1885: मामला पहली बार अदालत में पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की।
23 दिसंबर 1949: करीब 50 हिंदुओं ने मस्जिद के केंद्रीय स्थल पर कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति रख दी। इसके बाद उस स्थान पर हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे। मुसलमानों ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया।
16 जनवरी 1950: गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी।
05 दिसंबर 1950: महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राम मूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया। मस्जिद को ढांचा नाम दिया गया।
17 दिसंबर 1959: निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया।
18 दिसंबर 1961: उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।
1984: विश्व हिंदू परिषद ने बाबरी मस्जिद का ताला खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने और एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया। एक समिति का गठन किया गया।
01 फरवरी 1986: फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिदुओं को पूजा की इजाजत दी। ताले दोबारा खोले गये। नाराज मुस्लिमों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।
जून 1989: भारतीय जनता पार्टी ने विहिप को औपचारिक समर्थन देना शुरू करके मंदिर आंदोलन को नया जीवन दे दिया।
01 जुलाई 1989: भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवां मुकदमा दाखिल किया गया।
09 नवंबर 1989: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी।
25 सितंबर 1990: भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए।
नवंबर 1990: आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। भाजपा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
अक्टूबर 1991: उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आसपास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया।
06 दिसंबर 1992: हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढाह दिया। इसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए। जल्दबाजी में एक अस्थायी राम मंदिर बनाया गया।
16 दिसंबर 1992: मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन हुआ।
जनवरी 2002: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था।
अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की।
मार्च-अगस्त 2003: इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं। मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे।
सितंबर 2003: एक अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाये।
जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
28 सितंबर 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया।
30 सितंबर 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा, जिसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े में जमीन बंटी।
09 मई 2011: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।
जुलाई 2016: बाबरी मामले के सबसे उम्रदराज वादी हाशिम अंसारी का निधन।
21 मार्च 2017: सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की बात कही।
19 अप्रैल 2017: सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराये जाने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित भाजपा और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया।
08 फरवरी, 2018: सुप्रीम कोर्ट ने सिविल अपीलों पर सुनवाई शुरू की।
2019: सुप्रीम कोर्ट ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संविधान पीठ का गठन किया।
06 अगस्त, 2019: सुप्रीम कोर्ट ने रोजाना मामले की सुनवाई शुरू की।
16 अक्तूबर, 2019: सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा।
09 नवंबर, 2019: सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा: विवादित भूमि पर बनेगा मंदिर, मुस्लिम पक्ष को कहीं और मिलेगी जमीन।