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    Home»Jharkhand Top News»कोल ब्लॉक नीलामी पर वाजिब थी झारखंड की आपत्ति
    Jharkhand Top News

    कोल ब्लॉक नीलामी पर वाजिब थी झारखंड की आपत्ति

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskAugust 11, 2020No Comments5 Mins Read
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    केंद्र सरकार ने कोल ब्लॉक की नीलामी को स्थगित कर दिया है। पिछले दो महीने से यह मुद्दा बेहद चर्चित और विवादित हो गया था, क्योंकि केंद्र के फैसले से सर्वाधिक प्रभावित होनेवाले राज्य झारखंड ने इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ ने भी केंद्र सरकार के फैसले पर आपत्ति जतायी है। कोयला खदानों की नीलामी की प्रक्रिया स्थगित करने का फैसला केंद्र सरकार को केवल इसलिए लेना पड़ा है, क्योंकि उसने फैसला लेने से पहले संबंधित राज्यों को भरोसे में नहीं लिया। नौकरशाहों द्वारा हड़बड़ी में लिये गये इतने बड़े फैसले का इतना गंभीर परिणाम होगा, यह किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन इस मुद्दे ने एक बात साफ कर दी है कि कोई भी फैसला तब तक नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि उसके सभी पक्षकारों के साथ विस्तार से बातचीत न कर ली जाये। कोल ब्लॉक नीलामी के मुद्दे पर झारखंड और दूसरे राज्यों ने जो आपत्ति जतायी थी, केंद्र ने उन्हें कमोबेश स्वीकार कर लिया है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तो पहले ही कहा था कि यदि नीलामी प्रक्रिया शुरू करने से पहले केंद्र सरकार उनसे बात करती, तो झारखंड का रुख अलग हो सकता था। केंद्र ने नीलामी स्थगित क्यों की और इसके परिणाम क्या होंगे, इन्हीं सवालों के जवाब तलाशती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    अंग्रेजी के महान साहित्यकार विलियम शेक्सपीयर ने ‘हैमलेट’ नामक एक नाटक की रचना की थी, जिसे साहित्य की दुनिया में ‘ट्रैजेडी आॅफ इनडिसीशन’ (अनिर्णय की पीड़ा) कहा गया। नाटक के सभी पात्र बिना कुछ सोचे-समझे हड़बड़ी में फैसला करते हैं और बाद में उन्हें उन फैसलों पर पछताना पड़ता है। केंद्र सरकार द्वारा कोयला खदान की नीलामी प्रक्रिया को स्थगित करना भी कमोबेश इसी तरह का फैसला है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के लिए कोयला खदान की नीलामी का मुद्दा भी ‘ट्रैजेडी आॅफ इनडिसीशन’ ही साबित हो रहा है। छह साल के कार्यकाल में यह पहला फैसला है, जिस पर केंद्र सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़े हैं।
    यहां सवाल यह उठता है कि आखिर केंद्र सरकार को नीलामी प्रक्रिया को स्थगित करने का फैसला क्यों लेना पड़ा। इसका जवाब पाने के लिए 30 जुलाई की ओर लौटना होगा। उस दिन केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी रांची आये थे। उनकी यात्रा का घोषित कारण झारखंड में कार्यरत कोल इंडिया की अनुषंगी कंपनियों के कामकाज की समीक्षा करना था, लेकिन वास्तव में वह कोयला खदान की नीलामी प्रक्रिया पर झारखंड सरकार के कड़े रुख पर बातचीत करने आये थे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बातचीत के दौरान केंद्रीय मंत्री को इस मुद्दे पर झारखंड की आपत्तियों को विस्तार से बताया। तब प्रह्लाद जोशी को इस बात का आभास हुआ कि नीलामी प्रक्रिया शुरू करने का फैसला जल्दबाजी में लिया गया, क्योंकि झारखंड की आपत्तियां पूरी तरह वाजिब थीं। सीएम से बातचीत के बाद केंद्रीय मंत्री ने इस बात का संकेत भी दिया था कि केंद्र सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सकती है।
    दरअसल, कोयला खदान की नीलामी प्रक्रिया शुरू करने का फैसला शुरुआत से ही विवादों में घिर गया था। 13 जून को ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस बारे में झारखंड की आपत्तियों को रेखांकित करते हुए नीलामी को स्थगित रखने का आग्रह किया था। झारखंड को मुख्य रूप से इस बात पर आपत्ति थी कि लॉकडाउन के कारण अभी नीलामी किये जाने से झारखंड के आर्थिक हितों को नुकसान पहुंचेगा, क्योंकि अभी बड़ी कंपनियां नीलामी में भाग नहीं ले सकेंगी। इसके अलावा झारखंड ने नीलामी से जुड़े सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों को भी उठाते हुए नीलामी को स्थगित करने का अनुरोध किया था। उस समय केंद्र ने इस अनुरोध को ठुकरा दिया। तब झारखंड सरकार सुप्रीम कोर्ट में चली गयी। वहां से नोटिस जारी होने के बाद केंद्र में बैठे अधिकारियों को अपनी चूक का एहसास हुआ। तब मामले को अदालत के बाहर सुलझाने की कोशिश शुरू हुई और केंद्रीय मंत्री को रांची आना पड़ा।
    अब कोयला खदानों की नीलामी को स्थगित कर केंद्र ने एक तरह से स्वीकार कर लिया है कि उसका फैसला जल्दबाजी में लिया गया था। यह कोई राजनीतिक फैसला नहीं था, बल्कि यह पूरी तरह कार्यपालिका का फैसला था।
    केंद्र सरकार में बैठे अधिकारियों को इस बात का आभास नहीं था कि कोरोना संकट और लॉकडाउन के दौरान इस तरह के फैसले का क्या असर पड़ सकता है। उन्होंने इस मुद्दे पर संबंधित राज्यों को भी विश्वास में लेने की जहमत नहीं उठायी। उन्हें लगा कि उनके द्वारा लिया गया कोई भी फैसला तमाम विरोधों से ऊपर होता है। लेकिन झारखंड जैसे राज्य के लिए, जहां जल-जंगल-जमीन उसके अस्तित्व से जुड़ा है, यह मुद्दा जीवन-मरण का प्रश्न था और इसलिए केंद्र के फैसले का सबसे पहले विरोध यहीं से शुरू हुआ।
    एक तरह से यह केंद्र में बैठे अधिकारियों के लिए बड़ी सीख भी है। उन्हें अब समझ लेना चाहिए कि राज्यों से संबंधित कोई भी बड़ा फैसला करते समय उन्हें हर संभावित मुद्दों पर विस्तार से बातचीत करनी ही चाहिए। ऐसा करने से ही उन फैसलों की पवित्रता भी बनी रहेगी और सार्थकता भी। राजनीतिक विरोध अपनी जगह है, लेकिन यदि किसी फैसले का सामाजिक या आर्थिक विरोध होता है, तो उस पर ध्यान जरूर दिया जाना चाहिए।
    बहरहाल, अब कोयला खदानों की नीलामी की प्रक्रिया दो महीने के लिए स्थगित हो गयी है और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को इसका राजनीतिक लाभ भी मिलेगा, लेकिन इतना तय है कि इसे अब प्रतिष्ठा की लड़ाई और जीत-हार के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। कोयले की उचित कीमत मिले, यह केंद्र भी चाहता है और राज्य सरकार भी। तो अपनी संपदा को बेचने के लिए उचित समय का इंतजार करना ही श्रेयस्कर होता है। इस प्रकार यह न तो केंद्र सरकार की पराजय है और न ही झारखंड की जीत, बल्कि यह एक समझदारी भरा फैसला है, जिसका स्वागत ही किया जाना चाहिए। अब दो महीने बाद, जब स्थिति सामान्य हो जायेगी, नीलामी शुरू होने से कोयला खदानों की अधिक कीमत मिलेगी और इसका लाभ पूरे देश को होगा।

    Jharkhand's objection to the coal block auction was valid
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