अयोध्या। 84 हजार छह सौ वर्गफुट का विशाल श्रीराम जन्मभूमि मंदिर अब तक बने नागर शैली के मंदिरों में सबसे अलौकिक होगा। एक शिखर और पांच विशाल मंडपों के गुंबद से सुशोभित तीन तल का यह दिव्य मंदिर विश्व भर में अनूठा होगा। शिखर से लेकर अधिष्ठान तक 17 हिस्सों की डिजाइन के साथ हर एक हिस्से के आकार के पिंक स्टोन की माप और लागत तय हो गयी है। अहमदाबाद निवासी मुख्य शिल्पी चंद्रकात सोमपुरा और उनके दोनों पुत्र निखिल और आशीष ने कड़ी मेहनत से भगवान विष्णु को सर्वाधिक प्रिय नागर शैली में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की नयी डिजाइन का डायग्राम, हर हिस्से का मैप, 3-डी मॉडल से लेकर लागत तक का ब्योरा तैयार कर लिया है। शिखर या विमान, गर्भगृह, कलश, गोपुरम, रथ, उरूशृंग, मंडप, अर्धमंडप, जगति, स्तंभ, परिक्रमा या प्रदक्षिणा, शुकनात, तोरण, अंतराल, गवाक्ष, अमलक और अधिष्ठान इस मंदिर के 17 हिस्से होंगे। नागर शैली के शिल्पशास्त्र के अनुसार मंदिर के आठ प्रमुख अंग मूल आधार (जिस पर संपूर्ण भवन खड़ा होगा), मसूरक (नींव और दीवारों के बीच का भाग), जंघा (दीवारें, विशेषकर गर्भगृह की दीवारें), कपोत (कार्निस), शिखर (मंदिर का शीर्षभाग या गर्भगृह का ऊपरी भाग), ग्रीवा (शिखर का ऊपरी भाग), वतुर्लाकार आमलक (शिखर के शीर्ष पर कलश के नीचे का भाग) और कलश (शिखर का शीर्ष भाग) होता है। इंजीनियर निखिल सोमपुरा कहते हैं कि पूरब मुखी मंदिर की लंबाई 268 से 360 फुट और चौड़ाई 140 से बढ़ाकर 235 फुट की गयी है, जबकि ऊंचाई 128 से 161 फुट हो गयी है। मंदिर में गर्भगृह पर सबसे ऊंचा 161 फुट का शिखर बनेगा। इसके अलावा गूढ़ मंडप, नृत्यमंडप, रंगमंडप, प्रार्थना मंडप और कीर्तन मंडप पर कुल पांच गुंबद होंगे। समूचा मंदिर पिंक स्टोन से बनेगा। इसके विभिन्न हिस्सों में लगने वाले तराशे गये पत्थरों की डिजाइन से लेकर माप और लागत का ब्योरा तैयार है।
देश में नागर शैली के प्रमुख मंदिर : नागर शैली के मंदिरों में कंदरिया महादेव मंदिर, खजुराहो (मध्य प्रदेश), लिंगराज मंदिर, भुवनेश्वर (ओड़िशा), जगन्नाथ मंदिर, पुरी (ओड़िशा), कोणार्क का सूर्य मंदिर, कोणार्क (ओड़िशा), मुक्तेश्वर मंदिर, (ओड़िशा), खजुराहो के मंदिर, (मध्यप्रदेश), दिलवाड़ा के मंदिर, अबू पर्वत (राजस्थान), सोमनाथ मंदिर, सोमनाथ (गुजरात) आदि हैं।

अयोध्या केवल राम जन्मभूमि नहीं, देवों की नगरी और मोक्षदायिनी भी है
अयोध्या। अयोध्या के बारे में ये तो सब जानते हैं कि यह भगवान राम की नगरी है और हिंदुओं की आस्था का बड़ा केंद्र है। सालों तक विवादों का केंद्र रही अयोध्या अब मंदिर के भूमि पूजन को लेकर एक बार फिर चर्चा में है। कुछ घंटे बाद अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण का शंखनाद हो जायेगा। इस बीच अयोध्या के बारे में कुछ ऐसी जानकारियां हैं, जिन्हें जानना जरूरी है।
अयोध्या मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की जन्मभूमि और रघुवंशी राजाओं की राजधानी थी। अयोध्या का अर्थ है, ऐसा स्थान जहां कभी युद्ध न होता हो। कहा जाता है कि यह कौशल क्षेत्र की राजधानी थी, इसलिए इसे कौशल देश भी कहा जाता था। वाल्मीकि रामायण के पांचवें सर्ग में अयोध्या का विस्तार से वर्णन किया गया है।

पवित्र सप्तपुरियों में पहले स्थान पर है अयोध्या
हिंदू मान्यताओं में सात पवित्र नगरों या तीर्थों की बात कही गयी है। पुराणों में कहा गया है कि ये सात नगर या तीर्थ मोक्षदायक हैं। अर्थात इन तीर्थों की यात्रा करने वाला व्यक्ति अंत में जीवन-मरण के बंधन से मुक्त होकर भगवान की शरण में पहुंच जाता है और उसका कल्याण होता है। अयोध्या इन सात नगरों में पहले स्थान पर है। इन सात पवित्र नगरों में क्रमश: अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची (कांचीपुरम), अवंतिका, उज्जैन और द्वारिका शामिल हैं। इन सात नगरों को सप्तपुरी भी कहा जाता है। अयोध्या के धार्मिक महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन प्राचीन सप्तपुरियों में पहला स्थान अयोध्या को दिया गया है।

अथर्ववेद में अयोध्या की स्वर्ग से की गयी है तुलना
चार वेदों में से एक अथर्ववेद में अयोध्या को स्वर्ग के बराबर बताया गया है। अथर्ववेद में कहा गया है, ‘अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या’ अर्थात ‘आठ चक्र और नौ द्वारों वाली अयोध्या देवताओं की नगरी है’। कहते हैं कि सरयू के तट पर अयोध्या 12 योजन (करीब 144 किमी) लंबाई और तीन योजन (36 किमी) चौड़ाई में बसी थी।

जैन धर्म के पांच तीर्थंकरों की जन्मस्थली है अयोध्या
जैन धर्म के अनुसार 24 जैन तीर्थंकरों में से पांच का जन्म अयोध्या में हुआ था। इनमें जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ, दूसरे अजितनाथ, चौथे अभिनंदननाथ, पांचवें सुमितनाथ और 14वें तीर्थंकर अनंतनाथ का जन्म अयोध्या में हुआ था। जैन धर्म के सभी तीर्थंकरों को भगवान राम के इक्ष्वाकु वंश का ही माना जाता है।

वैवस्वत मनु महाराज ने की थी अयोध्या की स्थापना
रामायण में सरयू नगर के तट पर बसी अयोध्या की स्थापना के बारे में कहा गया है कि विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज ने यह नगरी बसायी थी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मा की संतान मरीचि थे, मरीचि की संतान कश्यप, कश्यप की संतान विवस्वान और उनके पुत्र वैवस्वत थे। वैवस्वत के 10 पुत्र थे, जिनमें इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यंत, करुष, महाबली, शर्याति और प्रषध शामिल थे। इन दसों में सबसे ज्यादा विस्तार इक्ष्वाकु के कुल का हुआ। इसी वंश के दशरथ अयोध्या के 63वें शासक और भगवान राम के पिता थे। कहते हैं कि महाभारत काल तक इस वंश का शासन रहा।

भगवान विष्णु के चक्र पर विराजमान है अयोध्या
स्कंदपुराण में अयोध्या के बारे में एक रोचक बात कही गयी है। इसके अनुसार अयोध्या भगवान विष्णु के चक्र पर विराजमान है। कहते हैं कि जब मनु ने ब्रह्मा से अपने लिए एक नगर बसाने की बात कही, तो ब्रह्मा उन्हें भगवान विष्णु के पास ले गये। विष्णु ने साकेत धाम (अयोध्या) में स्थान बताया, जहां विश्वकर्मा ने नगर निर्माण किया। अयोध्या का मामला जब सुप्रीम कोर्ट में था, तो अदालत ने अपने फैसले में स्कंदपुराण का भी उल्लेख किया था। अदालत ने कहा था कि हिंदुओं का यह विश्वास कि अयोध्या ही भगवान राम की जन्मभूमि है, वह वाल्मीकि रामायण और स्कंद पुराण जैसी पवित्र पुस्तकों से आयी है और उन्हें आधारहीन नहीं मान सकते।
सदियों तक अक्षुण्ण रहेगा रामलला का गर्भगृह, इंजीनियरों ने बनाया मास्टर प्लान
अयोध्या। श्रीरामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के मास्टर प्लान को अंतिम रूप दे दिया गया है। इंजीनियरों की टीम ने सदियों तक अक्षुण्ण रहने वाले भव्य राममंदिर की नींव से लेकर संपूर्ण निर्माण प्रक्रिया की रणनीति बनायी है। परिसर के निकट ही सरयू नदी को देखते हुए नींव की गहराई मंदिर के क्षेत्रफल और ऊंचाई के अनुपात में होगी। इसे आरसीसी की बीम की बजाय मंदिर की लंबाई-चौड़ाई के दो गुने परिक्षेत्र की गहरी खुदाई कर आरसीसी की एक पर एक पांच फीट मोटी चार से पांच लेयर में तैयार किया जायेगा, जिसे कभी भी नदी की सीधी तेज धारा से लेकर कोई भी बाढ़ या भूकंप मंदिर को हिला न सके। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने अब अंतिम रूप से तय कर लिया है कि राम मंदिर का निर्माण विश्व हिंदू परिषद के प्रस्तावित मॉडल पर ही होगा। यह मॉडल गुजरात के प्रख्यात वास्तुविद चंद्रकांत सोमपुरा ने तैयार किया था। मंदिर 128 फीट ऊंचा, 268 फीट लंबा और 140 फीट चौड़ा होगा। मंदिर निर्माण से पूर्व ट्रस्ट की ओर से 70 एकड़ भूमि के समतलीकरण का कार्य चल रहा है। इस बीच राम मंदिर निर्माण के लिए अधिकृत कंपनी एलएंडटी के वरिष्ठ पांच इंजीनियरों की टीम ने नींव खोदने से पहले जगह-जगह गड्ढे खोदकर मिट्टी की जांच की। इसकी रिपोर्ट आने के बाद डिजाइन को अंतिम रूप दिया गया। इंजीनियरों द्वारा यहां अलग-अलग स्थानों के करीब 80 फीट तक गहरे मिट्टी के नमूने की जांच की गयी। शिल्पी आशीष सोमपुरा की टीम ने तमाम प्राचीन मंदिरों की रिपोर्ट साझा की। एलएंडटी के इंजीनियरों ने सरयू नदी के कछार से लेकर उसकी धाराएं बार-बार बदलने पर भी राय रखी। इंजीनियरों ने सदियों तक अक्षुण्ण रहने वाले राममंदिर के निर्माण को लेकर डेढ़ एकड़ के प्रस्तावित परिसर के करीब दोगुने आकार में आरसीसी की गहरी नींव बनाने की रणनीति बनायी। इसे पांच से छह लेयर में पांच से आठ फीट मोटा बनाने की बात हुई। इसी नींव पर प्रस्तावित मंदिर मॉडल में तय पत्थर की नींव बनायी जायेगी। इसके बाद भूतल, प्रथम तल और शिखर का निर्माण होगा। भूकंप रोधी सभी तकनीकी उपाय अपनाये जायेंगे।
सरयू की ओर से आने वाली हवाओं का असर मंदिर पर न पड़े, इसके लिए 70 एकड़ भूभाग की चहारदीवारी के पहले तीन लेयर में वृक्षारोपण की भी रणनीति बनायी गयी। इंजीनियरों का कहना था कि नींव की खुदाई और तैयार होने में रात-दिन चार शिफ्ट में काम होने पर भी छह से सात महीने लगेंगे।

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