Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Sunday, May 25
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»विशेष»कई मायनों में अलग होगा झारखंड में विधानसभा चुनाव
    विशेष

    कई मायनों में अलग होगा झारखंड में विधानसभा चुनाव

    shivam kumarBy shivam kumarAugust 23, 2024No Comments10 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    विशेष
    बड़े खिलाड़ियों के साथ दूसरे किरदार भी निभायेंगे महत्वपूर्ण भूमिका
    हर दल के पास अपनी ताकत और कमजोरियां, इसलिए मचेगा धमाल

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    इस बार झारखंड का विधानसभा चुनाव कई मायनो में अलग होनेवाला है। चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी कमर कसनी शुरू कर दी है। शह-मात के इस खेल में सभी धुरंधर अपनी-अपनी गोटी फिट करने में लगे हैं। कब किसे कैसे पटखनी देनी है, उसकी रणनिति बनायी जा रही है। इस विधानसभा चुनाव में कोई भी पार्टी आत्मविश्वास के साथ नहीं कह सकती कि वह सत्ता में आ पायेगी। चाहे वह साढ़े चार साल सत्ता से दूर रही भाजपा और आजसू का गठबंधन हो या फिर सत्तारूढ़ जेएमएम, कांग्रेस और राजद का महागठबंधन। इस बार एनडीए और इंडी में गजब की जंग देखने को मिलनेवाली है। वहीं जयराम महतो और उनकी पार्टी जेकेएलएम, चंपाई सोरेन, सीता सोरेन, सरयू राय और लोबिन हेंब्रम कुछ ऐसे किरदार हैं, जिन पर सभी की नजरें रहेंगी। नजर तो कांग्रेस के कुछ विधायकों पर भी रहेंगी, जो कभी भी फ्रंट पेज की सुर्खियां बन सकते हैं। यह चुनाव पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए कठिन परीक्षा की घड़ी है। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद जहां इंडी गठबंधन को मजबूती मिली थी, वहीं भाजपा बैकफुट पर नजर आयी। लेकिन भाजपा मायूस नहीं हुई और चुनावी नतीजों को पॉजिटिव तरीके से लिया। लोकसभा में चार सीटें भले कम हुईं, लेकिन 52 विधानसभा की लीड को भाजपा ने पॉजिटिव तरीके से लिया है। भाजपा ने अपनी कमियों से सीखा है और ताकत को पहचाना भी है। पॉजिटिव यह भी कि अभी भी भाजपा झारखंड में लोकसभा की सीटों के हिसाब से नंबर वन पार्टी बनी हुई है। एक तरफ जहां लगातार दूसरी बार सत्ता में बने रहने का प्रेशर इंडी गठबंधन के पास है, वहीं दूसरी ओर फिर से सत्ता हासिल करने की चुनौती भाजपा खेमे में है। लेकिन इस बार परिस्थितियां दोनों खेमो के लिए बदली-बदली सी हैं। जेएमएम के पास सीता और चंपाई नहीं हैं। हेमंत सोरेन जेल से बाहर हैं, तो लोकसभा चुनाव से पूर्व वाली सहानुभूति भी गहरी नहीं है, जो वायदे हेमंत सोरेन ने 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान किये थे, वे वायदे भी विपक्ष के लिए इस बार मुद्दा बनेंगे। साढ़े चार साल के कार्यकाल में हेमंत सोरेन की लगभग आधा दर्जन योजनाएं जरूर हिट हुई हैं, जो जेएमएम के लिए राहत की बात है। वहीं भाजपा के पास इस विधानसभा चुनाव में सबसे प्रभावशाली अस्त्र बाबूलाल मरांडी हैं, जो 2019 में जेवीएम से विपक्ष में थे। भाजपा में बाबूलाल मरांडी ऐसे नेता हैं, जो किसी भी सूरत में झारखंड में कम से कम 2 से 3 प्रतिशत वोट को प्रभावित कर सकते हैं। यह बड़ी बात है। इस बार आजसू भी भाजपा के साथ है और सरयू राय जिन्होंने जेडीयू ज्वाइन कर लिया है, वह भी पूरी तरीके से एक्टिव हैं। जेडीयू केंद्र में भाजपा के साथ गठबंधन में है। बाकी जयराम, चंपाई क्या गुल खिलायेंगे यह भी मजेदार होनेवाला है। कैसे पक्ष और विपक्ष दोनों के लिहाज से अलग होनेवाला है झारखंड का विधानसभा चुनाव, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    इस बार झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर राज्य ही नहीं देश की भी नजरें हैं। क्योंकि जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव करीब आ रहा है, वैसे-वैसे यह चुनाव बड़ा रोचक होता जा रहा है। यह झारखंड में पहली बार होगा, जब सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों आत्मविश्वास के साथ खुल कर नहीं कह सकते कि वही सरकार बनायेंगे। ऊपर-ऊपर भले बोल लें, लेकिन जमीनी सच्चाई उन्हें भी पता है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, वैसे वैसे भाजपा रेस हो रही है। वहीं जेएमएम के कुछ पुराने स्तंभ छिटक रहे हैं। जैसे हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन जेएमएम को त्याग कर भाजपा में शामिल हो गयीं। वहीं जेएमएम के मजबूत पिलर में से एक पूर्व मुख्यमंत्री चंपाइ सोरेन ने भी पार्टी से अपना रास्ता अलग कर लिया है। वह अब अपनी नयी पार्टी बनाने पर विचार कर रहे हैं। अगर उन्होंने नयी पार्टी बनायीं, तो यह पार्टी वोट काटने वाली श्रेणी में ही रहेगी और ज्यादा वोट कटेगा इंडी गठबंधन का। सरयू राय ने भी ठीक इसी प्रकार से 2019 के चुनाव से पहले रघुबर दास के अड़ियल रवैये के कारण, पार्टी से त्याग पत्र दे दिया था। उसके बाद रघुवर दास के साथ क्या हुआ, वह झारखंड ही नहीं भारतीय राजनीति के इतिहास में दर्ज हो गया। रघुवर-सरयू के पूरे प्रकरण से राज्य की राजनीति को एक ऐसा सबक मिला, जिसे लोग आज भी चटखारे लेकर सुनना और सुनाना पसंद करते हैं। एक सीटिंग मुख्यमंत्री को निर्दलीय प्रत्याशी ने हरा दिया। निर्दलीय भी वही, जिसका टिकट खुद रघुवर दास ने खुन्नस में काटा था। उस समय रघुवर दास के व्यवहार से भी पार्टी के कुछ पुराने कार्यकर्ता और नेता नाराज थे। उन्होंने एक बार सार्वजनिक रूप से कुछ नेताओं को चिरकुट कह दिया था। जब तक रघुवर दास कुर्सी पर रहे, तब तक तो यह घाव छिपा रहा, लेकिन जैसे ही चुनाव आया, उन कार्यकर्ताओं ने अंदर ही अंदर रघुवर दास के खिलाफ काम किया। रघुवर दास के इस रवैये ने भाजपा को विधानसभा चुनाव में बहुत पीछे धकेल दिया था। रघुवर दास के अड़ियल रवैये के कारण पार्टी और जनता में असंतोष का भी भाव देखने को मिला था। ऐसा नहीं है कि रघुवर दास ने काम नहीं किया था। उन्होंने झारखंड के विकास में अहम भूमिका निभायी थी। नक्सलियों का सफाया भी उन्हीं के कार्यकाल के दौरान तेजी से हुआ। महिलाओं के नाम पचास लाख रुपये तक की संपत्ति की रजिस्ट्री एक रुपये में करने, सहिया-सहायिका, डाकिया योजना के तहत पहाड़िया जनजाति के लोगों के पास अनाज घर-घर पहुंचाया। लेकिन कहते हैं न कि चुनाव के समय योजनाओं को लोग भूलने लगते हैं, और उस समय भी यही हुआ। अंतत: भाजपा के हाथ से सत्ता फिसल गयी। आजसू का भी भाजपा से छिटकने का एक कारण रघुवर दास को ही माना गया था। जिसका खामियाजा दोनों ने साथ-साथ भुगता। दोनों ही दल अतिआत्मविश्वास का शिकार हो गये थे और एक तरह से उन्होंने विपक्ष को ट्रे में सत्ता परोस दी। लेकिन इस बार एनडीए की स्थिति कुछ अलग है। इस विधानसभा चुनाव में भाजपा की कमान बाबूलाल मरांडी के हाथ में है। बाबूलाल मरांडी भाजपा में झारखंड के ऐसे अकेले नेता हैं, जो अपनी पहल और परिश्रम से झारखंड में कम से कम 2-3 प्रतिशत वोट शेयर को प्रभावित करने का माद्दा रखते हैं। यह एक बार नहीं, कई बार सामने आया है। जब बाबूलाल मरांडी ने भाजपा से अलग अपनी पार्टी जेवीएम बनायी थी, तो बहुतों को लगा था कि अब बाबूलाल की राजनीति खत्म हो जायेगी। लेकिन अपनी धुन के पक्के और संघर्ष करने की क्षमता और सबसे अलग विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य नहीं हारनेवाले बाबूलाल मरांडी ने वहां अपने को स्थापित कर लिया। न सिर्फ स्थापित किया, बल्कि चुनाव में आये परिणाम के बाद तो उन्हें विधायक बनाने की फैक्ट्री तक कहा जाने लगा। जेवीएम ने अपने पहले ही चुनाव में तीन सीटें जीती थी और 2014 में आठ सीटें जीत कर इतिहास बना डाला था। यह अलग बात है कि समय-समय पर विधायकों ने जेवीएम को एक सीढ़ी के रूप में इस्तेमाल किया और दूसरी पार्टी में चलते चले गये। 2019 में भी जेवीएम ने तीन सीटों पोड़ैयाहाट, मांडर और राज धनवार पर अपना परचम लहराया था। उनकी इसी सफलता ने भाजपा आलाकमान को प्रभावित किया और उन्हें भाजपा में वापस लाया गया। वह पूरे मनायोग से पार्टी की मजबूती के लिए काम कर रहे हैं।

    इस चुनाव में हेमंत सरकार के लिए जो प्लस है, वह है उनकी लगभग आधा दर्जन योजनाएं और फैसले जो सफल हुए। लेटेस्ट की बात करें तो रक्षाबंधन से पहले झारखंड मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना, सावित्रीबाई फुले किशोरी समृद्धि योजना, सखी मंडल की दीदियों को बैंक क्रेडिट या लिंकेज, पलाश ब्रांड, अबुआ आवास योजना, विधवा, परित्यक्त या एकल माताओं के लिए योजना, पुरानी पेंशन योजना को लागू करना, कई कर्मचारी संगठनों की मांगों पर विचार करते हुए जरूरत के अनुसार उनका निराकरण करना, जैसे सहायक पुलिस कर्मी, होम गार्ड और सेविका सहायिका के वेतन में वृद्धि। हेमंत सोरेन का आपकी सरकार आपके द्वार कार्यक्रम भी काफी सफल रहा। ऐसे कई फैसले हैं और योजनाएं हैं, जिसके सहारे हेमंत सोरेन विधानसभा चुनाव में मजबूती के साथ उतर सकते हैं। लेकिन युवाओं को रोजगार, भत्ता, स्थानीय नीति, नियोजन नीति और आरक्षण के मुद्दे पर एक तरह से बैकफुट पर रही है हेमंत सरकार। इसे भाजपा ने अपना बड़ा हथियार बनाया है। भाजपा हेमंत सोरेन द्वारा किये गये वादों को गिना कर उन्हें घेर रही है। भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठियों का भी मुद्दा जोर शोर से उठा रही है, जहां हेमंत सरकार कुछ भी बोलने से बच रही है। वहीं उड़ता तीर लेने की कला में पारंगत हासिल करनेवाली कांग्रेस की एक विधायक ने बिहारियों को ही घुसपैठिया बता डाला। यह घुसपैठिया वाला बयान न सिर्फ कांग्रेस को नुकसान करेगा, जेएमएम के लिए भी हानिकारक है। क्योंकि 2019 में यही वे बिहारी लोग थे, जिन्होंने जेएमएम और कांग्रेस को गिरिडीह से लेकर गढ़वा और जमशेदपुर, बरही तक में भर-भर के वोट दिया था। लेकिन आज परिस्थितियां अलग हैं। अगर राजनीति के जानकारों की मानें, तो यह वोट बैंक अब भाजपा के पाले में जा सकता है। जो छोटी-छोटी गलतियां भाजपा ने 2014 से 2019 के दौरान की थीं, वही गलतियां इंडी गठबंधन कर चुका है। 2019 में जेएमएम इंटैक्ट था, लेकिन अब जेएमएम से उसके कुछ पुराने स्तंभ छिटक रहे हैं। सीता सोरेन, चंपाई सोरेन और लोबिन हेंब्रम ने अपनी अलग राह पकड़ ली है। सीता को तो कमल का फूल भा चुका है। चंपाई सोरेन अगर अपनी अलग पार्टी बना लेते हैं, तो वह जेएमएम को ही नुकसान पहुंचायेंगे। अगर चंपाई भाजपा में शामिल होते तो वह भाजपा के लिए बहुत फायदे का सौदा नहीं होगा। भाजपा में शामिल होने पर पार्टी में असंतोष फैलने का खतरा है, जैसा दुमका लोकसभा चुनाव में हुआ। दूसरा वोटर्स से कितना सहानुभूति बटोर पायेंगे चंपाई सोरेन, इसको लेकर चर्चा हो सकती है। चंपाई सोरेन ने जिस तरीके से हेमंत सोरेन पर खुद पर होनेवाले अन्याय को लेकर आरोप लगाया है, उससे हेमंत सोरेन को लेकर बातें तो होने लगी हैं। ये बातें कोल्हान ही नहीं संथाल में भी हो रही हैं। संथाल में तो बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा जिस तरीके से बाबूलाल मरांडी और हिमंता बिस्वा सरमा ने उठाया है, उससे अब वहां के लोगों में इंडी गठनबंधन के खिलाफ आवाज भी उठनी तो शुरू हो चुकी है। चाहे वह गायबथान वाला मामला हो या फिर केकेएम कॉलेज में आदिवासी छात्रों की पुलिस द्वारा पिटाई का मामला। पहली बार कुछ आदिवासी समूह इंडी गठबंधन के खिलाफ बोल रहे हैं और खास कर बांग्लादेशी घुसपैठ को मुद्दा बना रहे हैं। जो संथाल इंडी गठबंधन और खासकर सोरेन परिवार का गढ़ कहा जाता है, अब वहां विरोध में भी कुछ-कुछ बातें होने लगी हैं। भले ही उसकी संख्या अभी कम हो, लेकिन एक जंगल को राख में तब्दील करने के लिए एक चिंगारी ही काफी होती है।

    इस विधानसभा चुनाव में परिस्थिति तो जयराम महतो भी बदलने में लगे हैं। जयराम महतो एक बड़े वोटबैंक को टारगेट कर रहे हैं। जिस हिसाब से लोकसभा चुनाव में जयराम और उनकी पार्टी जेबीकेएसएस का प्रदर्शन रहा, बड़े-बड़ों को वह हांफने को मजबूर कर चुके हैं। यह तो समय के गर्भ में है कि जयराम महतो और उनकी नयी रजिस्टर्ड पार्टी जेकेएलएम का हश्र विधानसभा चुनाव में क्या होगा। लेकिन इतना तो तय है कि वह और जेकेएलएम अपनी छाप तो जरूर छोड़नेवाले हैं। कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि जयराम महतो की पार्टी का असर झारखंड की राजनीति पर जरूर पड़ेगा। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि सत्ताधारी गठबंधन के सामने चुनौतियां ज्यादा हैं। भाजपा चूंकि विपक्ष में है, इसलिए ज्यादा जवाब तो सत्ता पक्ष को ही देना है।

     

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleमायावती ने एससी-एसटी आरक्षण को लेकर केंद्र को घेरा, कांग्रेस-सपा की चुप्पी पर भी उठाए सवाल
    Next Article चतरा में एसबीआई के एटीएम से चार लाख की चोरी, एटीएम रूम में लगाई आग
    shivam kumar

      Related Posts

      भारत के ‘कूटनीतिक स्ट्राइक’ से बिलबिलाया पाकिस्तान

      May 25, 2025

      सबको साथ लेकर चलनेवाले नेता थे राजेंद्र सिंह

      May 24, 2025

      सवाल कर राहुल ने स्वीकारा तो कि भारतीय सेना ने पाकिस्तान पर करवाई की

      May 23, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • लालू यादव ने तेज प्रताप को पार्टी और परिवार से निकाला, कहा-‘इनके संस्कार हमारे अनुरूप नहीं’
      • राजतंत्र की समाप्ति के 19 साल बाद ज्ञानेन्द्र शाह ने किया राजदरबार में प्रवेश
      • डुमरियाघाट में कार-ट्रक की टक्कर में दो की मौत,चार गंभीर
      • अवैध बालू लदे हाइवा को खनन विभाग की टीम ने खदेड़ा, चालक फरार
      • गुजरात, केरल, पंजाब और बंगाल में उपचुनाव की तारीखों का ऐलान; 19 जून को वोटिंग, 23 को आएंगे नतीजे
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version