विशेष
पाकुड़, जामा, बाघमारा, मधुपुर, नाला, सिंदरी और सिमडेगा में होगा झकझूमर
इन सीटों पर उम्मीदवार बदलने का पड़ रहा दबाव, इसलिए पसोपेश में भाजपा
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड (jharkhand) में इस बार का विधानसभा चुनाव दोनों ही गठबंधनों, सत्ताधारी इंडी अलायंस और विपक्षी एनडीए के लिए करो या मरो जैसा है। वैसे तो किसी भी राजनीतिक दल या गठबंधन के लिए हर चुनाव बेहद महत्वपूर्ण होता है, लेकिन झारखंड विधानसभा का चुनाव खास इसलिए है, क्योंकि यहां की राजनीति ने 2019 के बाद से कई करवटें बदली हैं। 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में राज्य की 14 में से 12 सीटें जीत कर भाजपा-आजसू ने अपना परचम लहराया था, लेकिन छह माह बाद हुई विधानसभा चुनाव में इन दोनों दलों की बुरी तरह पराजय हुई, जबकि झामुमो-कांग्रेस-राजद के गठबंधन ने सत्ता हासिल कर ली। इसके बाद हाल में हुए लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को राज्य में अपेक्षित सफलता नहीं मिली। झारखंड को कभी भाजपा का गढ़ माना जाता था, लेकिन 2019 में यह गढ़ दरक गया। इसलिए भाजपा इस बार उसे दोबारा हासिल करने की कोशिश में है, जबकि झामुमो-कांग्रेस-राजद का इंडी अलायंस उसे रोकने के लिए पूरा जोर लगा रहा है। कुल मिला कर कहा जाये, तो दोनों ही पक्षों के लिए यह चुनाव बेहद चुनौतीपूर्ण है। झारखंड में विधानसभा की 81 सीटें हैं। भाजपा इनमें से कितनी सीटों पर प्रत्याशी देगी, यह अब तक तय नहीं है, लेकिन कुछ ऐसी सीटों की पहचान की गयी है, जहां पार्टी के लिए उम्मीदवार चयन का काम काफी चुनौतीपूर्ण होगा। ऐसी कम से कम सात सीटें हैं, जहां भाजपा को प्रत्याशी चयन में फूंक-फूंक कर कदम रखना पड़ेगा। इन सीटों के प्रत्याशी चयन में अगर किसी के दबाव में किसी योग्य उम्मीदवार का पत्ता काटा गया, तो भाजपा को लेने के देने पड़ जायेंगे। इनमें चार सीटें संथाल की हैं, जबकि दो कोयलांचल और एक दक्षिणी छोटानागपुर की। क्या है इन सीटों पर भाजपा के लिए प्रत्याशी चयन में मुश्किल और क्या हो सकता है इसका परिणाम, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए अब सीट शेयरिंग का फार्मूला तय करने और प्रत्याशी चयन के लिए दावेदारों की सूची तैयार करने का काम शुरू हो गया है। दावेदारों के नाम सामने आने लगे हैं और विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने स्तर से विभिन्न दावेदारों की स्थिति का आकलन कर रहे हैं। चूंकि यह चुनाव भाजपा के लिए बेहद अहम है, इसलिए प्रत्याशी चयन के स्तर से ही वह अतिरिक्त सतर्कता बरत रही है। पार्टी के चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान और सह प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा पूरे राज्य का लगातार दौरा कर रहे हैं और स्थानीय स्तर पर फीडबैक भी ले रहे हैं। इन राजनीतिक कवायदों से इतर चुनावी यात्राओं के क्रम में जुटायी गयी जानकारियों के हिसाब से राज्य की 81 में से कम से कम सात ऐसी सीटें हैं, जहां भाजपा को प्रत्याशी चयन में बगैर दबाव और फूंक-फूंक कर कदम रखना होगा। इन सीटों पर किसे टिकट दिया जाये, यह तय करने से पहले भाजपा को उस क्षेत्र के लोगों का फीडबैक और प्रत्याशी की पकड़ का भी ध्यान रखना होगा। इन सात में से चार सीटें संथाल परगना की हैं, जबकि दो कोयलांचल की और एक दक्षिण छोटानागपुर की। इनके अलावा कुछ ऐसी सीटें भी हैं, जहां उम्र और अन्य कारणों से प्रत्याशी बदलना जरूरी होगा।
पाकुड़ में आधा दर्जन दावेदार
शुरूआत करते हैं पाकुड़ से। यह सीट फिलहाल कांग्रेस के पास है। पिछले चुनाव में कांग्रेस के आलमगीर आलम ने भाजपा के वेणी प्रसाद गुप्ता को 65 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था। इस बार पाकुड़ से भाजपा के टिकट के दावेदारों में वेणी प्रसाद गुप्ता के अलावा मुकेश शुक्ला, बाबूधन मुर्मू, अनुग्रहित प्रसाद साहू और मीरा पांडेय शामिल हैं। इन सभी का इलाके में अलग-अलग असर है और इनकी दावेदारी के पीछे अलग-अलग कारण भी हैं। उम्मीदवार चयन करते समय भाजपा को स्थानीय कार्यकर्ताओं से भी फीडबैक लेना जरूरी होगा।
जामा में सुरेश मुर्मू हैं सशक्त दावेदार
जामा सीट अभी खाली है। पिछले चुनाव में यहां से झामुमो के टिकट पर सीता सोरेन जीती थीं। उन्होंने भाजपा के सुरेश मुर्मू को करीब डेढ़ हजार वोटों के मामूली अंतर से हराया था। लोकसभा चुनाव से पहले सीता सोरेन भाजपा में शामिल हो गयीं और दुमका से संसदीय चुनाव में पराजित हो चुकी हैं। वह इस बार जामा से चुनाव नहीं लड़ सकती हैं, क्योंकि वह ओड़िशा की मूल निवासी हैं और यह सीट झारखंड के आदिवासियों के लिए आरक्षित है। इसलिए वह इस बार जामा सीट से अपनी बेटी जयश्री सोरेन को उतारना चाहती हैं। भाजपा के सामने दुविधा यह है कि सुरेश मुर्मू उसके पुराने कैडर हैं और पिछले चुनाव में उन्होंने 58 हजार 499 वोट लाकर बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था। स्थानीय कार्यकर्ता भी चाहते हैं कि इस बार सुरेश मुर्मू को ही टिकट दिया जाये। अब भाजपा यहां कार्यकर्ताओं की पसंद सुरेश मुर्मू या सीता सोरेन की पसंद जयश्री सोरेन में से किसे चुनती है, यह देखनेवाली बात होगी।
मधुपुर में गंगा की जगह राज पालिवार की पकड़ ज्यादा
भाजपा के लिए सिरदर्द बनी संथाल की तीसरी सीट मधुपुर है, जहां 2019 में झामुमो के हाजी हुसैन अंसारी जीते थे। उन्होंने भाजपा के राज पालिवार को 23 हजार वोटों के अंतर से हराया था। कोरोना में उनके निधन के बाद 2021 में हुए उप चुनाव में झामुमो ने उनके पुत्र हफीजुल हसन को उतारा, जबकि भाजपा ने प्रत्याशी बदल दिया। उसने आजसू के गंगा नारायण सिंह को अपने खेमे में मिलाया और हफीजुल हसन के खिलाफ उन्हें उतार दिया। हफीजुल हसन ने गंगा नारायण सिंह को पांच हजार से अधिक मतों के अंतर से हराया। उप चुनाव में भाजपा की हार का एक प्रमुख कारण राज पालिवार की उपेक्षा को बताया गया। स्थानीय राजनीति में गोड्डा सांसद डॉ निशिकांत दुबे और राज पालिवार दो विपरीत ध्रुवों पर हैं। इनकी आपसी प्रतिद्वंद्विता में साफ देखी जा सकती है। आज की सच्चाई यह है कि स्थानीय कार्यकर्ताओं की पहली पसंद राज पलिवार हैं। यह सही है कि गंगा नारायण सिंह का इलाके में अपना प्रभाव है, लेकिन उनका अधिकांश समय क्षेत्र की बजाय कारोबार के सिलसिले में गोवा में बीतता है। इससे स्थानीय कार्यकर्ता निराश हैं। अब देखना यह है कि यहां भाजपा किसी के दबाव में राज पलिवार का टिकट काटती है, या कार्यकर्ताओं की पसंद को तरजीह देती है।
नाला में बाटुल की लोकप्रियता सबसे अधिक
जहां तक नाला विधानसभा सीट का सवाल है, तो यह सीट 2019 में रवींद्र नाथ महतो ने करीब साढ़े तीन हजार वोटों के अंतर से जीती थी। उन्होंने भाजपा के सत्यानंद झा बाटुल को हराया था। इस बार इस सीट पर भाजपा के कई नेता जोर लगा रहे हैं। उन्होंने कुछ हद तक बाटुल को हाशिये पर भी धकेल दिया है, लेकिन क्षेत्र में घूमने पर साफ-साफ दिखता है कि कुछ कमियों के बावजूद बाटुल की लोकप्रियता औरों की बनिस्बत अधिक है।
बाघमारा में ढुल्लू की पत्नी और पुत्र भी दावेदार
अब आते हैं कोयलांचल की बाघमारा सीट पर, जहां 2019 में भाजपा के ढुल्लू महतो ने कांग्रेस के जलेश्वर महतो को महज आठ सौ से कुछ अधिक वोटों के अंतर से हराया था। इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने ढुल्लू महतो को धनबाद सीट से उतारा और वह जीत कर दिल्ली चले गये हैं। इसलिए बाघमारा विधानसभा सीट ओपेन है। इस सीट पर जदयू की भी नजर है। दूसरी तरफ भाजपा की तरफ से सांसद ढुल्लू महतो की पत्नी सावित्री देवी और पुत्र प्रशांत महतो मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि इस बात की पूरी संभावना है कि परिवार वाद के विरोध के कारण ढुल्लू महतो की पत्नी या बेटे को भाजपा टिकट नहीं देगी। भाजपा-जदयू के बीच संभावित सीट शेयरिंग में यदि बाघमारा सीट जदयू के पास चली जाती है, तब तो भाजपा के लिए कोई परेशानी ही नहीं होगी।
सिंदरी में इंद्रजीत महतो की पत्नी की दावेदारी
कोयलांचल की दूसरी सीट सिंदरी है, जहां भाजपा के सामने प्रत्याशी चुनने की चुनौती है। 2019 में यहां से भाजपा के इंद्रजीत महतो ने मासस के आनंद महतो को सात हजार वोटों के अंतर से हराया था। चुनाव जीतने के बाद इंद्रजीत महतो कोरोना काल में बीमार पड़ गये और पिछले दो साल से अधिक समय से इलाजरत हैं। इस बीच उनके साथ एक और हादसा हुआ। पिछले साल उनके 27 वर्षीय पुत्र विवेक ने आत्महत्या कर ली। इसके बावजूद परिवार आज भी भाजपा के साथ मजबूती से जुड़ा हुआ है। इस बार इंद्रजीत महतो की पत्नी तारा देवी अपने पति के स्थान पर टिकट की दावेदारी कर रही हैं। उनके साथ जनता की सहानुभूति भी देखी जा रही है। हालांकि यहां से कुछ दूसरे दावेदार भी हैं। देखना है, भाजपा यहां क्या करती है।
सिमडेगा से श्रद्धानंद बेसरा की दावेदारी सबसे मजबूत
अब बात दक्षिणी छोटानागपुर की सिमडेगा विधानसभा सीट की, जहां से 2019 में कांग्रेस के भूषण बाड़ा ने जीत हासिल की थी। उन्होंने भाजपा के श्रद्धानंद बेसरा पर महज तीन सौ वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। श्रद्धानंद बेसरा भाजपा के दिग्गज और चार बार के विधायक निर्मल बेसरा के पुत्र हैं। इस बार के चुनाव में भाजपा के टिकट के कई दावेदार हैं, लेकिन सबसे मजबूत दावेदारी श्रद्धानंद बेसरा की ही है। टिकट चयन में अगर भाजपा दबाव में नहीं आयी, तो श्रद्धानंद बेसरा ही यहां से मैदान में उतरेंगे।