विशेष
पार्टी की चुनावी तैयारियों की शुरूआत का संकेत है विधानसभा का घटनाक्रम
डेमोग्राफी, भ्रष्टाचार और वादाखिलाफी के साथ बालू पर भी करेगी दो-दो हाथ

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड में आसन्न विधानसभा चुनाव के लिए राज्य के राजनीतिक दल पूरी तरह तैयार हैं। इन तैयारियों का अंदाजा पांचवीं विधानसभा के अंतिम सत्र के अंतिम तीन दिन में हुई घटनाओं से मिल जाता है। इन तीन दिनों में झारखंड विधानसभा में वह सब कुछ हुआ, जो आज से पहले कभी नहीं हुआ था। विपक्ष के विधायकों ने सदन स्थगित होने के बाद विधानसभा के बरामदे में रात काटी, 18 विधायकों को सदन से निलंबित किया गया और फिर इन विपक्षी विधायकों ने विधानसभा परिसर में मुख्यमंत्री के चेंबर का घेराव किया और बालू की मंडी सजायी। विधानसभा के ये घटनाक्रम बताते हैं कि विपक्ष, खासकर भाजपा अब चुनाव में जाने के लिए कितनी बेसब्र और तैयार है। यह विधानसभा चुनाव राजनीतिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण होनेवाला है। भाजपा जहां महागठबंधन सरकार को सत्ता से हटा कर राज्य की सत्ता में अपनी वापसी कर झारखंड में डबल इंजन की सरकार बनाने की कोशिश में है, वहीं इंडिया गठबंधन एक बार फिर सत्ता पर काबिज होने की कोशिश में है।
इन सबके बीच विधानसभा का घटनाक्रम बताता है कि भाजपा कितने आक्रामक अंदाज में चुनाव मैदान में जानेवाली है। दरअसल 2019 में सत्ता से बाहर होने के बाद भाजपा का तेवर कहीं से भी आक्रामक नहीं रहा। पिछले पांच साल के दौरान उसने सदन के भीतर और सोशल मीडिया पर विपक्षी तेवर तो दिखाये, लेकिन आम जन मुद्दों पर सड़क पर उतर कर मुखर तरीके से आंदोलन नहीं किया। भाजपा विधानसभा के अंतिम सत्र में जिन मुद्दों पर सरकार और सत्ता पक्ष को घेर रही है, इसमें से सभी मुद्दे लगभग पांच साल पुराने हैं, यानी 2019 के चुनाव के पहले के। इन पांच सालों में इन मुद्दों पर कभी भी भाजपा इस तरह से आक्रामक नहीं हुई। न विधानसभा सत्र के दौरान और न ही जिला और ब्लॉक स्तर पर। पहले बाबूलाल मरांडी को प्रदेश की कमान सौंपने और फिर शिवराज सिंह चौहान-हिमंता बिस्वा सरमा की चुनाव प्रभारी- सह प्रभारी के रूप में तैनाती ने अब झारखंड भाजपा को आंदोलन करने का रास्ता दिखा दिया है। खुलेआम यह चर्चा होने लगी है कि आज भाजपा के विधायक जो कुछ भी कर रहे हैं, उनकी ऊर्जा उन्हें शिवराज सिंह चौहान और हिमंता बिस्वा सरमा ने ही दी है। तरीका भी उन्होंने ही सुझाया है। इस आक्रामकता का विधानसभा पर क्या असर पड़ेगा। यह भाजपा के पक्ष में जायेगा या इससे उससे पटकनी मिलेगी, यह तो चुनाव के समय ही पता चलेगा, लेकिन इस तेवर ने पहली बार विधानसभा में विचित्र स्थिति पैदा कर दी है। अब तक झारखंड विधानसभा में जो कुछ नहीं हुआ, वह अब देखने को मिल रहा है। भाजपा जहां इसे लोकतांत्रिक अधिकार के तहत किया गया कृत बता रही है, वहीं सत्ता पक्ष इसे हुड़दंगई करार दे रहा है। क्या है झारखंड भाजपा का यह नया तेवर और क्या हो सकता है इसका परिणाम, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

झारखंड की पांचवीं विधानसभा के अंतिम सत्र के अंतिम तीन दिन में जो कुछ हुआ, वह राज्य के विधायी इतिहास के लिए अभूतपूर्व तो था ही, साथ ही इसने विपक्षी दल भाजपा के नये अवतार को भी सामने रखा है। 2019 का चुनाव हारने और सत्ता से बाहर होने के बाद भाजपा ने पहली बार ऐसा तेवर दिखाया है। जानकार कह रहे हैं कि यह तेवर राज्य में आसन्न विधानसभा चुनाव को लेकर अपनाया गया है, ताकि पार्टी राज्य की खोयी हुई सत्ता को दोबारा हासिल कर सके। इसका प्लान चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान और सह प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा ने ही तैयार किया है। वैसे भी हिमंता बिस्वा सरमा अपने आक्रामक तेवर के कारण जाने जाते हैं। और यह सब कुछ हिमंता बिस्वा सरमा के झारखंड में रहने के दौरान ही हुआ है।

धरना-प्रदर्शन से घेराव और बालू की मंडी तक
विधानसभा के मानसून सत्र के अंतिम तीन दिन भाजपा ने राज्य के सियासी माहौल को पूरी तरह गर्म कर दिया। पहले सरकार की वादाखिलाफी के खिलाफ सदन के अंदर धरना और बाद में विधानसभा के गलियारे में रात काटने के बाद दूसरे दिन 18 विधायकों के निलंबन के कारण भाजपा की गतिविधियों की तरफ आम लोगों का ध्यान खींचने की कोशिश की गयी। इसके बाद सत्र के अंतिम दिन तो भाजपा के विधायकों ने जिस तरह विधानसभा भवन में सीएम के चेंबर का घेराव किया, नारेबाजी की और फिर बालू की मंडी सजा कर विरोध किया, उससे साफ हो गया कि पार्टी अब आक्रामक तेवर अपना चुकी है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि भाजपा इसे विधानसभा चुनाव में निश्चित रूप से चुनावी मुद्दा बनायेगी।

भाजपा ने तय कर दिये हैं चुनावी मुद्दे
झारखंड भाजपा वास्तव में पांच साल में पहली बार इतनी आक्रामक हुई है और चुनाव को देखते हुए मुद्दे भी तय करने लगी है। पहले संथाल परगना में घुसपैठ और डेमोग्राफी में बदलाव के मुद्दे को उठा कर उसने आम जन का भी ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की। पाकुड़ में हुई घटना ने और खासकर छात्रों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई ने भाजपा को महागठबंधन सरकार पर हमला करने का एक अवसर दे दिया। वह इसका भरपूर इस्तेमाल कर रही है। पहले बाबूलाल मरांडी पाकुड़ गये। उसके बाद हिमंता बिस्वा सरमा वहां धमके। गुरुवार को दोनों पाकुड़ और दुमका में रहे। वहां से लौटने के बाद हिमंता बिस्वा सरमा ने भाजपा विधायकों के साथ बैठक की और उसमें सत्र के अंतिम दिन भाजपा विधायकों को क्या करना है, इसकी रणनीति बनी। सत्र शुरू होने से पहले भाजपा के निलंबित विधायक विधानसभा परिसर में पहुंच गये और वहां उन्होंने बालू की मंडी सजा दी। यही नहीं, उन्होंने मुख्यमंत्री के चेंबर के सामने बैठ कर वादाखिलाफी के खिलाफ लगातार नारे लगाये। इन आंदोलनों का झारखंड की जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा और भाजपा को क्या लाभ मिलेगा, यह तो अभी नहीं पता, लेकिन आंदोलन के माध्यम से भाजपा विधायकों ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है, यह दिख रहा है। आंदोलन से उसने यह भी बता दिया है कि इस विधानसभा चुनाव में वह भ्रष्टाचार, बालू का मुद्दा, स्थानीय और नियोजन नीति को बड़ा मुद्दा तो बनायेगी ही, साथ ही महागठबंधन सरकार की वादाखिलाफी को भी उजागर करेगी।

बालू पर भी खूब होगा झकझूमर
इधर झारखंड विधानसभा के मानसून सत्र के अंतिम दिन भाजपा ने अपने आंदोलन को बालू की तरफ मोड़ दिया। झारखंड में बालू के मुद्दे पर सालों से राजनीति होती रही है। भाजपा हमेशा से सत्ता पक्ष पर बालू को लेकर कई गंभीर आरोप लगाती रही है। विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान सीएम हेमंत सोरेन ने सदन के अंदर ही गरीबों को मुफ्त में बालू देने की घोषणा की थी। इसके खिलाफ भाजपा विधायकों ने सदन के बाहर एक सौ रुपये से लेकर एक हजार रुपये किलो की दर से बालू बेच कर सरकार की बालू नीति का विरोध किया। भाजपा विधायकों ने कहा कि राज्य में किसी भी गरीब को मुफ्त बालू नहीं मिल रहा है। सरकार की अकर्मण्यता और बालू की कालाबाजारी से एक ओर जहां बालू के दाम आसमान छू रहे हैं, तो दूसरी ओर सरकार चुनाव को सामने देख सिर्फ राज्यवासियों को भरमाने के लिए लोकलुभावन घोषणा कर रही है। इससे यह तय हो गया कि भाजपा इस विधानसभा चुनाव में बालू को भी एक बड़ा मुद्दा बनायेगी।
इसके अलावा भाजपा के लिए चिंता की बात यह भी है कि हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित लोकसभा की पांच सीटों में उसे एक भी नहीं मिली, जिनके अंतर्गत 28 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। यही वजह है कि भाजपा ने इस बार अपनी रणनीति बदली है।

ओबीसी पर नजर, पर सवर्ण पर भी फोकस
लोकसभा चुनाव में आदिवासी सीटों पर हार का सामना करने के बाद भाजपा ने विधानसभा चुनाव में ओबीसी वोट बैंक को साधने पर फोकस किया है।
इसके अलावा पार्टी ने अपने पारंपरिक सवर्ण वोट को भी नाराज नहीं करने पर ध्यान दिया है। भाजपा ने इसी कसरत के तहत शिवराज सिंह चौहान और हिमंता बिस्वा सरमा की नियुक्ति की है। इनमें शिवराज ओबीसी हैं, तो सरमा सवर्ण हैं। इन दोनों नेताओं ने आदिवासियों के बाद अब ओबीसी और सवर्ण वोटरों पर ध्यान केंद्रित कर दिया है।

चौहान-सरमा के कारण हुआ यह बदलाव
भाजपा ने झारखंड विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए इस बार कुछ भी करने के लिए तैयार है। लोकसभा चुनाव में राज्य के 52 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल करने से उत्साहित पार्टी ने अपने दो कद्दावर नेताओं, शिवराज सिंह चौहान और हिमंता बिस्वा सरमा को चुनाव प्रभारी और सह प्रभारी के रूप में तैनात किया। इनकी पहचान आक्रामक चुनावी रणनीतिकार के रूप में हैं। इन दोनों नेताओं ने पिछले करीब डेढ़ महीने में प्रदेश भाजपा के भीतर नयी जान फूंक दी है। इन दोनों नेताओं ने साफ कर दिया है कि पार्टी पूरी आक्रामकता के साथ चुनाव मैदान में उतरेगी। विधानसभा का ताजा घटनाक्रम इसी रणनीति का परिणाम है।
यह बात दीगर है कि सत्ता पक्ष और खासकर झामुमो शिवराज सिंह चौहान और हिमंता बिस्वा सरमा को चुनाव प्रभारी बनाये जाने के बाद यह आशंका जतायी है कि ऐसा राज्य को अस्थिर करने और वितंडा खड़ा करने के लिए ही भाजपा ने किया है, लेकिन भाजपा तो इन दोनों को अपना बड़ा हथियार मान रही है।

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