एंटरटेनमेंट के साथ सस्पेंस और ड्रामा का डबल डोज
दिलजलों की भी टोली एक्टिव, नजर कहीं और निशाना कहीं और
झारखंड का विधानसभा चुनाव नवंबर-दिसंबर में प्रस्तावित है। इस बार झारखंड का विधानसभा चुनाव बेहद रोमांचक होनेवाला है। झारखंड की 81 विधानसभा सीटों पर धीरे-धीरे अब बिसात भी बिछने लगी है। रोमांच के साथ-साथ पूरा एंटरटेनमेंट पैकेज भी है। इस पैकेज में एक्शन भी है, ड्रामा भी है, इमोशन भी है, सस्पेंस भी है तो घर-घर की लड़ाई भी है। टिकटों के लिए दावेदारी भी है, तो दूसरी ओर गणेश परिक्रमा भी है। राष्ट्रीय पार्टियों के टिकट के लिए कोई दिल्ली जाकर सेटिंग कर रहा है, तो कोई लोकल ही सवार है। बरसाती मौसम की तरह कोयले की काली कोठरी से अनगिनत कमानेवाले सफेदपोश भी मैदान में छलांग लगा रहे हैं। वहीं इस चुनाव में दलबदलुओं की भी भरमार देखने को मिलेगी। ऐसे-ऐसे चेहरों के दल बदलने की चर्चा है, जो चार साल तक अपने को पार्टी का सच्चा सिपाही बता-बता कर अपना नाम-दाम बढ़ाने में लगा था। वैसे लोग टिकट नहीं मिलने पर पूरे तामझाम के साथ दल बदलने को तैयार हैं। यदा-कदा मीडिया में उनके बयान भी दिखने लगे हैं कि अगर इस बार पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया, तो वह पार्टी को औकात बता देंगे। ऐसे दलबदलुओं का चेहरा झारखंड की राजनीति और विधानसभा चुनाव को और रोचक बना देगा। इस चुनावी रण में चर्चा भी है, खर्चा भी है, अर्जी भी है, मनमर्जी भी है, आश्वासन भी है, तो छटपटाहट भी है। कोई न्यू कमर लांच होने को बेताब बैठा है, तो कोई स्थापित किरदार उसकी आशाओं की पतंग काटने की तैयारी में है। कहीं-कहीं बुजुर्गियत हिलोरे मार रही है, बुझने से पहले फड़फड़ाना चाह रही है, तो उसी का चेला दावेदार अपनी अरमानों की कैंची से उसके पर कतरने में लगा है। प्रस्तुत है आगामी विधानसभा चुनाव का विशलेषण करती ‘आजाद सिपाही’ के विशेष संवाददाता राकेश सिंह की रीपोर्ट।
झारखंड में विधानसभा चुनाव की अभी घोषणा नहीं हुई है, लेकिन राजनीतिक दल के नेता और कार्यकर्ता इसमें रंगने लगे हैं। राजनीतिक तापमान धीरे-धीरे बढ़ रहा है। इस चुनाव में फिर से जेल वाला चैप्टर खुल सकता है। लेकिन इस बार वह उतना असरदार नहीं होनेवाला। यह जेल वाला चेप्टर ही था, जिसने लोकसभा चुनाव में किसी को हीरो बनाया तो किसी को जीरो। जेल वाला चैप्टर बड़ा ही रोचक रहा। जेल से उपजी सहानुभूति ने विरोधियों को एक तरह से धुल चटा दी। उस दल को भी पछतावा होने लगा कि अरे यह क्या हो गया। कहानी घर-घर की वाला चैप्टर भी लोकसभा चुनाव में खूब देखने को मिला। इसी सहानुभूति ने सीता की ऊंची उड़ान की कल्पना को ध्वस्त कर दिया। और कल्पना ने अकल्पनीय प्रदर्शन का उदाहरण पेश कर दिया। वैसे पतझड़, सावन, बसंत, बहार एक बरस के मौसम चार की बातें भी चुनाव के दौरान हुईं। उस दरम्यान व्यंग्य वाण भी खूब चले और अभी तक वे हवा में तैर रहे हैं। इसी बदलते मौसम में फिलहाल झारखंड में एक दिलजला घूम रहा है। दिल्ली, कोलकाता, रांची घूम कर झारखंड की राजनीति का टेंपरेचर बढ़ा रहा है। वह अपने ऊपर हुए अन्याय की बात कर रहा है। आत्मसम्मान को ठेस पहुंची, ऐसी शिकायत कर रहा है। चिट्ठी लिख बगावत को धार देने की कोशिश कर रहा है। उस दिलजले को यह भरोसा है कि अगर अरमान परवान चढ़ गया, तो कोल्हान के साथ-साथ संथाल भी अपना रंग बदलेगा। वैसे अभी भी कोई सहानुभूति से लैस अस्त्र की धार पजा रहा है, तो कोई अपनी कमियों का ठीकरा दूसरों पर फोड़ रहा है। डर सता रहा है कि कहीं दल न बिखर जाये। लेकिन राजनीति में कहीं पे नजर और कहीं पर निशाना चरितार्थ होता है। भाजपा की नजर कांग्रेस पर है, लेकिन निशाना जेएमएम पर लगा रही है। जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, सत्ता पक्ष द्वारा किये हुए पुराने वादे फिर से डिमांड में आ रहे हैं। लेकिन इस बार उन्ही वादों पर जरा शुगर कोटिंग चढ़ायी जा रही है। पूर्व में किये गये वादों से पीछा छुड़ाया जा रहा है। और वादों का क्या है, वादा वही जो बार-बार किया जाये। और जो पूरा हुआ, वह वादे नहीं मजबूत इरादे होते हैं। लेकिन विपक्ष ने भी ठाना है, शुगर कोटेड वादों की परतों से शुगर हटाना है। झारखंड की राजनीति में अचानक से देखा गया कि झारखंड भाजपा रेस हो गयी, विधानसभा सत्र में धमाचौकड़ी मचा गयी। रात बितायी विधानसभा के गलियारों में, खबर छपी प्रमुखता से अखबारों में। विरोधियों ने यह प्रचार करना शुरू कर दिया कि हिमंता ने झारखंडी भाजपाइयों को असमी काढ़ा पीला दिया, बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उछलवा दिया। यही नहीं बाबूलाल ने भी हिमंता को संथाल का रास्ता दिखा दिया, गायबथान और बेंगाबाद तक की गलियों में पदार्पण करवा दिया। फिर क्या था हिमंता ने उसी को मुद्दा बना दिया। इस बार भी यह तय है कि झारखंड की सत्ता का द्वार संथाल होकर ही खुलेगा। वैसे उड़ता तीर लेने में कांग्रेसी बड़े माहिर हैं। किसी ने तो सौ-पचास साल से यहां रह रहे बिहारियों को घुसपैठिया बना दिया। राजनीति के शिल्पकारों को लगा कि यह मुद्दा उन्हें एकाएक झारखंड में स्थापित कर देगा। इस मुद्दे के बाद कांग्रेस ने महतो जी के हाथ में कमान सौंप दी। वह कितना कमाल कर पायेंगे यह समय ही बतायेगा। फिलहाल तो ठाकुर जी और गुप्ता जी दूसरों के घर में ताकझांक कर रहे हैं। गुप्ता जी भी पीछे कहां रहनेवाले। उन्होंने तो दूसरों के घर में ताकझांक कर एक को विभीषण तक की उपाधि दे डाली। ऐसा कहते समय वह भूल गये कि विभीषण कब और किसके राज में पैदा हुए थे। अगर वह विभीषण हैं, तो राम कौन है। ठाकुर जी और गुप्ता जी की द्विअर्थी बातों को तीर ने भी अपने निशाने पर ले लिया। तीर ने यह चेतावनी तक दे डाली कि गुप्ता जी और ठाकुर जी अपना घर संभालें। सच्चाई भी तो है, सबसे ज्यादा शंका-आशंका गुप्ता जी और ठाकुर जी की पार्टी में ही तो होती है। ऐसा कहते समय गुप्ता जी और ठाकुर जी शायद यह भूल गये कि दो साल पहले उनके ही दल के कुछ लोग कोलकाता में पकड़ा गये थे। उन्हें जेल तक की हवा खानी पड़ी। पार्टी ने उन्हें सस्पेंड तक कर दिया। पार्टी ने ही यह आरोप लगाया था कि वे बिकने चले थे।
झारखंड विधानसभा के इस चुनावी दंगल में कुछ लोग पार्टी से भितरघात करने की ताक में भी बैठे हैं। कुछ लोग हवाबाजों की हवाबाजी निकालने को बेताब बैठे हैं। तो कुछ लोग हवाई सैर कर रहे हैं। न जाने कितने सालों का घाव अंदर दबाये बैठे हैं, मौका मिलते ही पीठ पर खंजर मारने को तैयार बैठे हैं। झारखंड की राजनीति में बड़ा खेला होनेवाला है। इसकी भी तैयारी लोग किये बैठे हैं। कब, कहां और किसकी जमीन खिसक जायेगी, कब किसके साथ खेला हो जायेगा, पता भी नहीं चलेगा। घोषणा के बावजूद टिकट भी तो कट सकता है। खैर झारखंड में एक युवा घूम रहा है। गाड़ियों की छतों पर बैठ भीड़ बटोर रहा है। भाषण दे रहा है। इसकी बढ़ती लोकप्रियता कई राजनितिक पार्टियों की आंखों में चुभ रही है। जो लोग कभी किसी जाति विशेष की राजनीति के शिरमौर्य बने बैठे थे, आज वे कुछ परेशान से हैं। लेकिन यह चुनाव है। शह-मात का खेल बाकी है। एक से एक धुरंधर बैठे हैं। वैसे में वे पूरी कोशिश करेंगे कि उसके गुब्बारे की हवा निकल जाये। वैसे उस युवा का घर भी कुछ-कुछ दरक रहा है।
वैसे इस चुनाव में सबसे ज्यादा कॉन्फिडेंट कांग्रेसी ही हैं। कब कौन यहां वहां चला जाये, इसकी संभावना हर समय बनी रहती है। वैसे हेमंत तो बहाना हैं, भाजपा को शिकार कांग्रेसियों को ही बनाना है। अब भाजपा वाले कांग्रेस के लोगों से इतनी मोहब्बत जो करते हैं। वैसे हिमंता भी पहले कांग्रेसी ही थे, लेकिन धीरे-धीरे अपने साथ हुई नाइंसाफी और देश प्रेम के उनके जज्बे ने उन्हें भाजपा के नजदीक ला खड़ा कर दिया और वे भाजपा से मोहब्बत कर बैठे। अब वही मोहब्बत वह दूसरों में भी बांटना चाहते हैं। कुछ कांग्रेसी भी असमी राजनीतिक काढ़ा पीने को बेकरार हैं। और कुछ दिन इंतजार कीजिए, काढ़ा अपना रंग धीरे-धीरे ही दिखाता है। वैसे लोगों के पुराने जख्म कुरेदने, उन्हें सत्ता का सब्जबाग दिखाने के लिए चंचल स्वभाववाले लोग भी लगे हुए हैं।
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कहानी घर-घर की वाला चैप्टर भी लोकसभा चुनाव में खूब देखने को मिला। इसी सहानुभूति ने सीता की ऊंची उड़ान की कल्पना को ध्वस्त कर दिया। और कल्पना ने अकल्पनीय प्रदर्शन का उदाहरण पेश कर दिया।
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हिमंता ने झारखंडी भाजपाइयों को असमी काढ़ा पीला दिया, बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उछलवा दिया। यही नहीं बाबूलाल ने भी हिमंता को संथाल का रास्ता दिखा दिया, गायबथान और बेंगाबाद तक की गलियों में पदार्पण करवा दिया।
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वैसे इस चुनाव में सबसे ज्यादा कॉन्फिडेंट कांग्रेसी ही हैं। कब कौन यहां वहां चला जाये, इसकी संभावना हर समय बनी रहती है। वैसे हेमंत तो बहाना हैं, भाजपा को शिकार कांग्रेसियों को ही बनाना है।
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खैर झारखंड में एक युवा घूम रहा है। गाड़ियों की छतों पर बैठ भीड़ बटोर रहा है। भाषण दे रहा है। इसकी बढ़ती लोकप्रियता कई राजनितिक पार्टियों की आंखों में चुभ रही है।