जब पापा निगेटिव होने लगे, पॉडकास्ट विद हरिनारायण सिंह शुरू किया
पूरे शो में पापा बोलते, मैं सिर्फ इंट्रो दे पाता, चाहता भी यही था मैं
लेकिन लगातार घटता हीमोग्लोबिन दोनों के कॉन्फिडेंस को तोड़ देता

पहले कीमो के बाद जब रांची पहुंचे, घर में घुसने की बजाय पापा ऑफिस में इंटर कर गये
पहले कीमो के करीब सात दिन के बाद हम रांची के लिए निकले। घर जाना हमेशा सुखद अनुभव रहता है। मैं और पापा बहुत उत्साहित थे। खैर शाम की फ्लाइट से हम रांची पहुंचे। पापा के लिए मैंने टिफिन बना रखा था। फ्लाइट में उन्हें खिला दिया। छोटा भाई राहुल हमें लेने एयरपोर्ट पहुंचा था। जब हम घर पहुंचे, नीचे फ्लोर में हमारा ऑफिस है। पापा सीधे ऑफिस में इंटर कर गये। मैं देखता रह गया। लेकिन खुशी भी हो रही थी कि बहुत दिनों के बाद पापा अपनी डेन में इंटर कर रहे थे। वहां उनकी ऊर्जा चीते जैसी हो जाती। ‘आजाद सिपाही’ की टीम ने अपने बॉस का पूरी गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। पापा ने उसी क्षण मीटिंग भी ले ली। वैसे ऑफिस में किसी को जानकारी नहीं थी कि पापा को कैंसर है। उन्हें बस यही पता था कि पापा को इन्फेक्शन है। उसी का इलाज दिल्ली में चल रहा है। पापा ने कहीं भी बताने से मना कर दिया था। उन्होंने कहा था कि यह हमारी लड़ाई है, हम खुद लड़ेंगे। जब ऑफिस में देर होनी शुरू हुई, मैंने कहा पापा चलिए, अब आप आराम कर लीजिये। पापा के लिए मां ने दल-पिट्ठी बनायी थी। बड़ा मन से वह दल-पिट्ठी खाया करते। उन्होंने उस रात दल-पिट्ठी और बैगन का चोखा खाया और अपने कमरे में चले गये। पापा ने मां से कहा कि दोनों बेटा कहा हैं। मां ने कहा कि ऑफिस में हैं। पापा ने कहा कि बुला दो। हम दोनों भाई पापा के कमरे में गये। पापा ने कहा आओ पास बैठो। हम दोनों भाइयों ने पापा के पैरों को दबाना शुरू किया। ऐसा नहीं है कि पापा पैर दबवाने के लिए बुला रहे थे, पापा को अपनी दोनों संतानों से ऊर्जा का आभास होता है और उन्हें ताकत भी मिलती। पापा को आनंद का बोध हो रहा था। एक तो घर और साथ में पूरा परिवार। थोड़ी ही देर में पापा की नाक बजने लगी। मम्मी बोली अब तुम लोग भी सो जाओ। मम्मी को पापा की बीमारी के बारे पता नहीं था। उन्हें बस इतना पता था कि पापा को इन्फेक्शन है। मैं जब अपने कमरे में गया तो अपनी पत्नी जूही को कहा कि पापा को दल-पिट्ठी बहुत पसंद है, लेकिन गेहूं के आटे की बजाय क्या मिल्लेट्स की दल-पिट्ठी बन सकती है। उतनी ही टेस्टी। जूही ने कहा, हां मैं मडुÞवा की दल-पिट्ठी बना सकती हूं। कल सुबह या फिर जब भी पापा को मन करे तो मैं ट्राई करूंगी।

पापा की स्पेशल डाइट
सुबह हुई। मैं छह बजे ही उठ गया। दिल्ली या गुरुग्राम में भी छह बजे ही उठ जाता। पापा के लिए मैंने एक डाइट प्लान बनाया था। उसकी तैयारी करने के लिए जल्दी उठना पड़ता। सब कुछ अरेंज करना पड़ता। जब से पापा बीमार पड़े तो सोता भी लेट से ही था। पापा को सुलाने में देर हो ही जाती। खैर सुबह-सुबह जूस के साथ-साथ और भी कई चीजों की तैयारी करनी पड़ती। उसकी तैयारी में मुझे घंटों लग जाते। कभी-कभी तो मैं भूल जाता कि मुझे फ्रेश भी होना है। उस दिन पापा साढ़े सात बजे उठ गये। उठने के बाद उन्होंने नीम का दातून किया। उसके बाद मैंने उन्हें नींबू पानी दिया। उसके बाद आंवला, बीट, गाजर, धनिया पत्ता, पुदीना, पालक, कच्ची हल्दी, थोड़ी काली मिर्च, कढ़ी पत्ता, अनार का जूस दिया। कभी-कभी इसमें कुछ और फलों का भी मिश्रण कर देता। मैं कोशिश करता की बीट, गाजर और खीरा ज्यादा से ज्यादा सलाद फॉर्म में ही दूं। उसी बीच मैंने पेठा का भी जूस तैयार कर लिया। हां रांची में खाना मुझे नहीं बनाना पड़ता। मां ने यह डिपार्टमेंट बखूबी संभाल लिया था। वैसे घर में खाना कुक ही बनाया करता। मम्मी की तबीयत भी बीच-बीच में खराब ही रहती। लेकिन पापा की तबीयत बिगड़ने के बाद मम्मी एक्टिव हो गयीं। नाश्ता और शाम का खाना मम्मी के हिस्से था। दिन में मेरी पत्नी जूही पापा के लिए आलमंड मिल्क में अवाकाडो और चार पांच सीड्स के साथ स्मूदी बनाती। कभी-कभी डोसा, छीला और कई प्रकार की डिशेज बनाती। पापा की डाइट में शुगर और वीट हटा दिया गया था। पापा की डाइट में दो-तीन तरीके के जूस, मिल्लेट्स, दाल, ग्रीन वेजटेबल्स, सत्तू, फ्रूट्स और सूप शामिल थे। उनका डाइट चार्ट बनाने के लिए मैंने काफी रिसर्च किया था। जूस ज्यादातर डेटॉक्स वाले मैं तैयार करता। डेटॉक्स वाले जूस बहुत फायदा करते। इसमें मैं पत्तों का भी सहारा लेता। पेठा का जूस भी बेहतर डेटॉक्स का साधन है। कुछ ब्लड प्यूूरीफिकेशन और हीमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए और सूप आयरन और प्रोटीन युक्त रहता। क्योंकि कीमो के बाद हीमोग्लोबिन और आयरन पर ज्यादा असर पड़ता। फ्रूट्स में सीजनल फ्रूट्स के अलावा बेरीज को भी शामिल किया था। कभी-कभी शहतूत भी जुगाड़ कर के लाता। मिल्लेट्स की रोटी, जौ का भात, सावां का चावल पापा को देता। नॉनवेज में सिंघी मछली ज्यादातर खिलाया करता। कभी-कभी अंडे। समय-समय पर वेरायटी बदलती।

कीमो का साइड इफेक्ट
पहले कीमो के करीब दस दिनों के बाद पापा के ऊपर इसका साइड इफेक्ट दिखने लगा। पापा के मुंह में छाला हो गया। अब मोटा अनाज खाने में उन्हें कठिनाई होने लगी। बीच-बीच में लहर भी मारता। पापा लिक्विड डाइट पर आ गये। खिचड़ी निगल लेते। अब पाप को पीड़ा हो रही थी। धीरे-धीरे छाले का आकार बढ़ रहा था। डॉक्टर से बात हुई तो उन्होंने कुछ दवा और जेल दिया। करीब एक हफ्ते लगा, उसके बाद पापा को राहत मिली। फिर उन्होंने ठीक से मोटा अनाज खाना शुरू किया। इस दौरान पापा शाम को ऑफिस अटेंड करते और घंटों काम भी करते। काम के समय ऊर्जा पूरी रहती। काम करते वक्त कहीं से नहीं लगता कि वह किसी बीमारी से जूझ रहे हैं। ऑफिस के बाद हम लोग सब परिवार मिलकर इधर-उधर की बातें करते। मेरा छोटा बेटा रुद्रव उस वक्त दो साल दो महीने का था और पापा के साथ खूब खेलता। अपनी मासूमियत से पापा को खूब हंसाता। पापा से खिलौने की डिमांड करता। बोलता बाबा मेरा खिलौना कहां है। पूछता आप मुझे छोड़ कर कहां चले जाते हैं। पापा बोलते इलाज कराने। बेटा बोलता इलाज कराने, पापा बोलते हां, बेटा बोलता अच्छा…..। इस दौरान पापा नाश्ता करने के बाद छत पर चले जाते। वहां मैं पापा को धूप में तेल मालिश कर मसाज कर देता। छत पर भी मैंने पापा के लिए नॉन वेज किचन का सेटअप किया हुआ था। देसी अंडे को उबाल कर देता। कभी-कभी मछली भी स्टीम कर देता।

हीमोग्लोबिन लगातार गिरता गया
समय तेजी से गुजर रहा था। देखते ही देखते दूसरे कीमो की बारी आ गयी। हर 21 दिनों में पापा का कीमो होना था। पहले कीमो के बाद पापा की हीमोग्लोबिन डेढ़ यूनिट घट गयी थी। अक्टूबर महीने में जब पापा का पहला ब्लड टेस्ट करवाया था तब हीमोग्लोबिन 11.3 थी। उस वक्त कैंसर का ट्रीटमेंट या जांच शुरू नहीं हुई थी। बायोप्सी के बाद से पापा की सेहत में हल्का ढलान आना शुरू हुआ। पहले कीमो के एक हफ्ते के बाद, जब ब्लड टेस्ट करवाया, उस वक्त पापा का हीमोग्लोबिन 10.8 हो गया। एक हफ्ते के बाद ब्लड रिपोर्ट के साथ डॉक्टर से वीडियो कॉल पर बात करनी होती। अब जब दूसरे कीमो की बारी आयी, तो फिर से ब्लड टेस्ट करवा के जाना था। कीमो शुरू करने से पहले, डॉक्टर एक दिन पहले की ब्लड रिपोर्ट देखते। करीब 12 दिनों के बाद जब ब्लड टेस्ट हुआ था, तब 10.5 हो गया था। यानी एक महीने में ही 11.3 से 10.5 पर हीमोग्लोबिन पहुंच गया। दूसरे कीमो के लिए हम फिर गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल के लिए रवाना हुए। स्टार होटल में कमरा बुक था। शाम को पहुंचे। रात का खाना रांची से साथ लेकर आते। पापा के लिए मिल्लेट्स की रोटी और हरी सब्जी बनवा लेता। खुद के लिए सत्तू भरी पूरी बनवा लेता। ये सुबह तक चलती। सुबह सिर्फ पापा के लिए खाना बनाना पड़ता। देर शाम खाना खाने के बाद पापा को मैं रोज की तरह सुलाता। शाम को ही मार्केट जाकर मैं सुबह के लिए सब्जी ले आता। सुबह जल्दी उठ पापा के लिए खाना बना देता। दूसरे कीमो के लिए हम फिर वही साढ़े दस बजे अस्पताल पहुंचे। डॉक्टर ने ब्लड रिपोर्ट देखी। पापा का दूसरा कीमो शुरू हुआ। अगले ही दिन हम लोगों ने डिस्चार्ज ले लिया। घर आये खाये-पिये और अगले दिन फ्लाइट पकड़ कर रांची आ गये। दूसरे कीमो में पापा को खास कोई परेशानी नहीं हुई। पापा रोज की तरह ऑफिस अटेंड करते। छत पर थोड़ा बहुत चलते, योगा भी करते। खाने-पीने में पूरी सावधानी बरतते। लेकिन एक चीज जो लगातार पापा का पीछा नहीं छोड़ रही थी, वह था पापा का घटता हीमोग्लोबिन। यह पापा का पूरा मनोबल तोड़ देती। चूंकि कीमो के एक हफ्ते के बाद सीबीसी टेस्ट करवाता, उसमे हीमोग्लोबिन में कोई उछाल नहीं पाता। डाइट में कोई कमी नहीं थी। फिर भी समझ नहीं आता कि ऐसा क्यों हो रहा था। सेकंड कीमो के बाद पापा को मैं बाहर घुमाने ले जाता। पापा भी अपने बड़े और एक छोटे भाई को बुला लेते। तीनों फ्राइड या स्टीम मछली खाते। पुरानी बातें करते। गप करते। सब बढ़िया चल रहा था। कभी-कभी ऑफिस टूर भी मार लेते। ज्यादातर रामगढ़ या तमाड़ जाया करते। इन दोनों जगहों पर पापा के लिए नॉनवेज का इंतजाम हो जाता। पापा बड़े चाव से नॉनवेज खाते, खासकर मछली।

हीमोग्लोबिन गया तेल लेने, शुरू हुआ पॉडकास्ट विद हरिनारायण सिंह
फिर 21 दिन बीतने को थे। तीसरे कीमो की बारी आ गयी। दूसरे कीमो के बाद पापा का हीमोग्लोबिन और तेजी से घटा। दूसरे कीमो के एक हफ्ते के बाद 9.5 और करीब 14 दिनों के बाद, तीसरे कीमो के लिए, जाने से पहले जो जांच करायी, उसमे 8.7 हीमोग्लोबिन हो गया। लेकिन पापा को बहुत कमजोरी महसूस नहीं हो रही थी। वह आराम से चल कर एयरपोर्ट भी गये और दिल्ली के एयरपोर्ट पर भी व्हील चेयर लेने की जरूरत नहीं पड़ी। दिल्ली का एयरपोर्ट काफी बड़ा है और चलना भी बहुत पड़ता है। लेकिन वहां कम चलना पड़े, उसके लिये भी, कई साधन मौजूद हैं। लेकिन पापा वाक कर के ही जाते। तीसरा कीमो भी पापा ने आसानी से लिया। लेकिन तीसरे कीमो के बाद जब हम घर आये तो कुछ दिनों के बाद पापा की हफनी बढ़ने लगी। अब छत पर चढ़ने से पापा को दिक्कत महसूस होती। लेकिन रुक-रुक कर किसी तरह वह छत पर चढ़ जाते। उन्हें छत पर घंटों रहना अच्छा लगता। वहीं मैं पापा का मसाज भी करता, नहला भी देता और पापा सो भी जाते। एक कमरा था छत पर भी। लेकिन हीमोग्लोबिन का घटना पापा के कॉन्फिडेंस को तोड़ रहा था। पापा कहते हीमोग्लोबिन घटना ठीक नहीं है। मैं कहता पापा अभी कीमो चल रहा है, हीमोग्लोबिन घटता है। एक बार जब कीमो बंद होगा सब फिर से बेहतर हो जायेगा। तीसरे कीमो के बाद से पापा ज्यादा सोचने लगे थे। कभी-कभी नेगेटिव भी हो जाते। फिर मुझे आइडिया आया कि पापा में ऊर्जा भरनी हो तो, उनसे पत्रकारिता की बात की जाये। मैंने एक शो डिजाइन किया। पापा से पत्रकारिता के दौर की स्टोरी निकलवायी जाये। मैंने उनसे कहा कि पापा जब आप ‘प्रभात खबर’ और ‘हिंदुस्तान’ में थे, उस दौरान झारखंड में कई सारी घटनाएं हुई थीं और आप उसके साक्षी भी थे। मुझे लगता है, इसपर शो करना चाहिए। ‘पॉडकास्ट विद हरिनारायण सिंह’ शुरू करते हैं। पापा उत्साहित हुए। बोले सही बोल रहे हो। पापा ने कहा एक-दो दिन मुझे दो, मैं तैयारी कर लेता हूं। पापा ने फिर से ऑफिस में बैठना शुरू किया। पापा ऊर्जा से लैस। हीमोग्लोबिन गया भांड़ में। दो दिन के बाद पापा तैयार थे। बोले शूट नहीं करोगे क्या पॉडकास्ट। मैंने कहा बिलकुल। मैंने पूरा सेटअप तैयार कर रखा था। उसी प्लान के साथ मैं आगे बढ़ा। पहला पॉडकास्ट शूट हुआ। नाम दिया ‘पॉडकास्ट विद हरिनारायण सिंह’। मैं शो के टॉपिक के बारे में इंट्रो तो दे देता और पहला सवाल भी पूछ लेता, उसके बाद पापा नॉन स्टॉप फ्लो में बोले जाते। मुझे मन में हंसी भी आती, मैं मन ही मन कहता, अरे पापा मुझे भी बोलने दीजिये, मैं शो का होस्ट हूं। लेकिन पापा कहां चुप रहने वाले थे और यही तो मैं चाहता भी था। गिन के एक-दो सवाल ही कर पाता। उसके बाद पूरा मंच पापा का। वैसे भी घटना उनके सामने हुई थी, सब उन्हें ही पता था। जब सारा मटेरियल वह खुद ही दे रहे थे, तो मैं बीच में फ्लो क्यों खराब करता। वैसे भी मैं बीच में किसे काटता पत्रकारिता के लीजेंड को। इतनी तो हैसियत नहीं थी मेरी। खैर शो आॅन एयर हुआ। उस शो का वह एपिसोड काफी चर्चा में आया। लेकिन कीमो के दौरान पापा की वह पहली झलक सबके सामने थी। उस तस्वीर ने पापा की सेहत के बारे में बहुत कुछ बयां कर दिया। जब से पापा को कैंसर डिटेक्ट हुआ था, पापा के साथ मैंने कभी कोई तस्वीर नहीं ली। खासकर अस्पताल जाने और आने के क्रम में। मैं नहीं चाहता था कि पापा को एक सेकंड के लिए भी आभास हो कि कहीं बेटा को तो नहीं लग रहा कि ……….. मैं इस वाक्य को पूरा नहीं लिख पाऊंगा। वैसे उस एपिसोड को तो लोगों ने खूब पसंद किया, लेकिन अब लोग कहने लगे थे कि हरी जी कहीं बीमार तो नहीं हैं। उनकी सेहत काफी ढल गयी है। लेकिन इस तरीके की कमेंट से मैं पापा को दूर रखता। उस दौरान गिन के पापा के साथ मैं दो ही शो कर पाया।

बार-बार फीवर का आना पापा को तोड़ देता
पापा को बीच-बीच में फीवर आ जाता। कमजोरी बढ़ती चली गयी। पापा ज्यादा देर अब बैठ नहीं पाते। बार-बार हीमोग्लोबिन का गिरना भी पापा और मेरे मोटिवेशन को तोड़ देता। मैं भी सोचता इतना बेहतर डाइट देने के बावजूद आखिर हीमोग्लोबिन बढ़ता क्यों नहीं। ऐसा नहीं था कि पापा खाना-खाने में कोई लापरवाही बरतते। पापा अच्छे से खाया करते। कभी-कभी उनका मन नहीं होता, तो मैं अपनी हाथों से उन्हें खिला देता। वैसे तीसरे कीमो का असर साफ दिखने लगा था। पापा अब कमजोर होने लगे थे। पापा का वजन भी तेजी से घटने लगा था। अब हाथ-पांव दबाने पर पता चलता कि पापा का शरीर ढलने लगा था। जैसे-तैसे तीसरा कीमो पार हुआ।

फिर चौथे कीमो की तारीख नजदीक आ गयी। इस बीच मैंने और पापा ने आपस में चर्चा भी की कि डॉक्टर ने पहले तीन कीमो के लिए बोला था। बाद में चार बोला। क्या हमें चौथा कीमो करना चाहिए। मैंने पापा से कहा कि चौथे कीमो से पहले हम लोग पहले डॉक्टर को कहेंगे कि क्या अब आगे कीमो की जरूरत है। रांची से निकलने से पहले हम ब्लड टेस्ट करवा लेते थे। इस बार पापा की हीमोग्लोबिन 7.5 हो गयी। अगले दिन सुबह हम अस्पताल पहुंचे। कीमो शुरू होने से पहले डॉक्टर ने पहले ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट देखी। डॉक्टर को हमने कहा कि फोर्थ कीमो जरूरी है क्या। उन्होंने कहा कि हां जरूरी है। मैंने कहा कि डोज घटा दीजिये। अब पापा को बहुत दिक्कत हो रही है। तीसरे कीमो के बाद फीवर भी बार-बार आ रहा था। फोर्थ के बाद तो दिक्कत और बढ़ जायेगी। और तो और हीमोग्लोबिन भी बहुत गिर रहा है। डॉक्टर चीजों को समझ रहे थे। लेकिन उनको हमसे ज्यादा ज्ञान था, तो उन्होंने कहा आप टेंशन मत लीजिये। ये आखिरी कीमो है। फिर पेट सिटी करा लेंगे। खैर मजबूरन हमने चौथा कीमो करने का फैसला लिया। पापा ने भी कहा चलो एक कीमो की ही बात है, फिर देखा जायेगा। लेकिन मैंने पूरे तरीके से मन बना लिया था कि पांचवा कीमो नहीं कराना है।

जीवन में अपना पहला खून पापा को ही दिया
चौथा कीमो शुरू हुआ। कीमो देने से पहले डॉक्टर ने कहा एक यूनिट ब्लड ट्रांस्फ्यूजन करना होगा। पापा को मैंने एडमिट करवाया। वही सिंगल प्राइवेट रूम लिया। ब्लड बैंक से मैसेज आया कि मिस्टर हरिनारायण सिंह के लिए एक यूनिट ब्लड के लिए डिमांड आयी है, कृपया ब्लड बैंक से संपर्क करें। मैं नीचे गया। मुझे कहा गया कि डोनर कहां है। मैंने कहा कि मैं अटेंडेंट हूं। डोनर तो नहीं है। हम लोग इलाज कराने रांची से आये हैं। उन्होंने कहा कि डोनर तो चाहिए। मैंने कहा कि मैं डोनेट कर देता हूं। उसके बाद मैंने जीवन में अपना पहला ब्लड डोनेट किया। डोनेशन के बाद सैंडविच और जूस दिया गया। उसे मैं हाथों में लेकर पापा के रूम में चला गया। पापा अकेले थे कमरे में। नर्स को बोल कर मैं आया था। पापा को रात में करीब एक बजे ब्लड चढ़ाया गया। पापा बोले कितना लेट चढ़ाता है। पापा की एक आदत हो गयी थी। जब दवा भी चढ़ती वह टकटकी लगा कर उसे देखा करते। मैं ध्यान भटकाने की कोशिश करता, लेकिन वह बोलते देखो न उसका ड्रॉप धीरे-धीरे गिर रहा है। बड़ा देर लगेगा। मैं पापा को कहता, पापा उसकी स्पीड वही है। ज्यादा तेज नहीं चढ़ाया जाता। पापा फिर बोलते अरे बहुत देर लगेगा। मैं मन में मुस्कुराता। बोलता पापा आप सो जाइये, उधर मत देखिये। खैर ब्लड चढ़ाने के बाद अगले दिन कीमो हुआ। फिर डिस्चार्ज लेकर स्टार होटल के कमरे में चले गये। फिर वही शाम का रूटीन। बाजार जाना, खाना बनाना और पापा को अच्छे से सुलाना। फिर अगले दिन रांची के लिए निकल जाना। पापा इस बार खुश थे, बोले चलो कीमो से मुक्ति मिली। लेकिन अब हमें पेम मैंटेनेंस के लिए हर 21 दिनों के बाद आना था। इसमें इम्यूनोथेरेपी के लिए आना था। यह कीमो जैसा घातक नहीं होता।

आगे पढ़िए: पापा चले गांव। पापा का मैंने ऑटोबायोग्राफी भी किया शूट। बहुत खुश थे पापा। 2023 में हरिनारायण सिंह जी ने बुढ़वा महादेव मंदिर का निर्माण उत्तर प्रदेश स्थित पातेपुर गांव में करवाया। 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के दिन पापा ने मंदिर में पूजा की और भंडारा का भी आयोजन करवाया था।

Share.
Leave A Reply

Exit mobile version