आपने बहुत बार देखा होगा कि राजनेता किसी स्टेज पर भाषण देने के दौरान रोने लग जाते हैं, या फिर कुछ लोग बिना किसी बात के आंसू बहाना शुरू कर देते हैं। वैसा देखा जाए तो एक आदमी को सार्वजनिक रूप से इस तरह रोते हुए देखना अभी भी एक बहुत ही असामान्य घटना है। लेकिन पुरुषों की आंखों से आने वाले आँसुओं के पीछे विज्ञान क्या है? आइए जानते हैं-
यह पता चला है कि पुरुष रोते तो हैं लेकिन वो बायोलॉजिकल रूप से महिलाओं से तो बहुत ही कम रोते हैं। फिर भी, जब भी पुरुष रोते हैं तो समान रूप से महिलाओं की तरह ही भावनात्मक रूप से उनके इमोशन्स ट्रिगर्स होते हैं।
पुरुषों के आँसू बनाम महिलाओं के आँसू-
यह अच्छी तरह से हमें पता है महिलाएं कोई दुखी खबर सुनने पर यहां तक कि वो किसी अजीब टीवी शो को भी देखकर रोने लग जाती है लेकिन पुरूषों में ये देखा गया है कि उनके इस तरह की स्थितियों में बहुत ही मुश्किल से आंसू निकलते हैं। महिलाओं एक साल में कई बार रोती है और ये भी पता चला है कि वे पुरुषों के मुकाबले औसतन पांच गुना ज्यादा रोती है। इसके अलावा महिलाएं लगभग 6 मिनट तक रोती है लेकिन उनकी तुलना में पुरूष औसतन सिर्फ 2 से 3 मिनट तक ही आंसू बहाते हैं।
दुनिया की कई तरह की संस्कृतियों से महिलाओं के इस रोने के नेचर का पता चल जाता है। हालांकि, कुछ गरीब देश जैसे कि घाना, नेपाल और नाइजीरिया में लोग कम-से-कम रोते हैं।
ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि गरीब संस्कृतियों में रहने वाले लोगों की भावनात्मक अभिव्यक्तियों को शायद दबा दिया जाता है जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे अमीर देशों में लोग खुलकर अपनी बातें रख पाते हैं।
क्या कोई बायोलॉजिकल डिफरेंस भी होता है ?
कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि पुरुषों और महिलाओं के रोने के नेचर के पीछे कई तरह के बायोलॉजिकल कारण भी हो सकते हैं। प्रोलैक्टिन हार्मोन जो कि (जो स्तनपान कराने में शामिल है) के हाई लेवल होने के कारण भी महिलाओं में रोने की प्रवृति ज्यादा पाई जाती है। जबकि पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन का हाई लेवल होना उनके आँसुओं को रोक कर रख सकता है। यौवनकाल में हार्मोनल बदलावों के कारण लड़के और लड़कियां बहुत अलग तरीके से प्रभावित होती है।
अंत में शोधकर्ताओं ने तर्क दिया आँसू आने के नेचर में इस तरह से अंतर पाया जाना आंशिक रूप से सांस्कृतिक ही है।