रांची: कुछ युवाओं ने पिछले तीन सालों से एक अनूठी मुहिम शुरू कर रखी है। इस मुहिम के तहत वैसे बदनसीबों को मुक्ति दिलाने का काम किया जाता है, जिन्हें मरने के बाद अपनों का कंधा तो दूर उनका अंतिम संस्कार तक नहीं हो पाता। मुक्ति नामक संस्था ने रविवार को 34 लावारिश शवों का अंतिम संस्कार विभिन्न धार्मिक रीति-रिवाजों और परंपराओं का निर्वहन करते हुए किया।
वक्त और हालात के मारे वैसी लावारिश लाशों को मुक्ति मिल गयी, जो महीनों से अपनों के कंधों की आस में रिम्स के मोर्चरी में पड़े थे। मुक्ति ने सामूहिक अंतिम संस्कार कर इन लाशों को सदगति दिलायी। जुमार नदी के तट पर लावारिश लाशों के सामूहिक अंतिम संस्कार में सभी धर्मों के लोग मौजूद थे। संस्था के पदाधिकारियों की मानें, तो इस काम में रिम्स और नगर निगम का सहयोग मिलता है। लेकिन रिम्स की व्यवस्था से लाशों की दुर्गति हो जाती है।
हजारीबाग मुर्दा कल्याण समिति की प्रेरणा से रांची के इन युवाओं द्वारा शुरू किये गये लावारिश लाशों के अंतिम संस्कार करने की अनूठी पहल कई चरणों में संपन्न होती है। पहले रिम्स और जिला प्रशासन से लावारिश लाशों के अंतिम संस्कार की अनुमति ली जाती है। इसके बाद रिम्स के मोर्चरी में पड़ी लाशों का अंतिम संस्कार किया जाता है। संस्था के सदस्यों की मानें तो ये लाशें लावारिश नहीं बल्कि मुक्ति परिवार के सदस्य इसके वारिस हैं। सभी धर्मों में यह मान्यता है कि जब तक शवों का अंतिम संस्कार नहीं हो जाता तब तक मुक्ति नहीं मिलती। ऐसे में मुक्ति दिलाने का काम परिजन करते हैं। लेकिन रिम्स के मोर्चरी में ऐसे कई शव अंतिम संस्कार की आस में पड़े होते हैं जिनका कोई अपना सामने नहीं आता। ऐसे में मुक्ति ने आगे आकर इन शवों के अंतिम संस्कार की जो पहल की है, वह न सिर्फ शवों को मुक्ति दिलाती है बल्कि समाज को एक प्रेरणा भी देती है कि लावारिश लाश नहीं होती। ये परिवार के साथ समाज की भी जिम्मेवारी होती है।