नई दिल्ली। यह जानकार अचंभित होंगे कि दुनिया की एक चौथाई कुपोषित आबादी भारत में रहती है। इसमें सर्वाधिक हिस्सेदारी बच्चों और महिलाओं की है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे बताता है कि देश की कुल महिलाओं में से महज चालीस फीसद सप्ताह में एक बार हरी पत्तेदार सब्जियां खाती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषित मां की संतानें बचपन से ही कुपोषण का शिकार हो जाती हैं और शहरी इलाकों में फास्ट फूड बच्चों को कुपोषित कर रहा है।

बड़ी भयावह बात है कि हर रोज देश के तीन हजार बच्चे अपर्याप्त या पोषण रहित भोजन से होने वाली बीमारियों की चपेट में आकर अपनी जान गवां देते हैं। भरपूर दूध, सब्जियों और दालों की पैदावार होने के बावजूद देश की एक-तिहाई आबादी को पर्याप्त भोजन नसीब नहीं होता। पुरातन काल से देश में परंपरा रही है कि घर की महिलाएं सबसे आखिर में भोजन करेंगी। इसके पीछे तर्क दिया गया कि पुरुषों को बाहर काम करने जाना पड़ता है इसलिए उन्हें पहले खाना खिलाया जाए। पुरुषों के साथ ही बच्चे भी खाना खा लेते थे। बच जाती थीं, तो महिलाएं जिन्हें बचा खुचा ठंडा भोजन करना पड़ता था।

इस परंपरा ने महिलाओं को पोषित नहीं होने दिया। अब शहरी इलाकों में तो महिलाएं घर के सभी सदस्यों के साथ भोजन करने लगी हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी इस परंपरा का निर्वाह हो रहा है। यह महिलाओं के कुपोषण की बड़ी वजह है। कहते हैं कि किसी महिला को शिक्षित करो तो पूरा परिवार शिक्षित बनता है। ऐसे ही अगर एक महिला की सेहत अच्छी रहेगी तो नई पीढ़ी भी स्वस्थ और सेहतमंद होगी।

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