मथुरा। द्वारका-शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने शनिवार को कहा कि केंद्र सरकार द्वारा संशोधित रूप में लाया गया अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) कानून भारतीय समाज में विघटन का कारण बनेगा। द्वारका-शारदापीठ की प्रतिनिधि डॉ दीपिका उपाध्याय द्वारा शंकराचार्य की ओर से जारी वक्तव्य के अनुसार शंकराचार्य ने एससी-एसटी एक्ट के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तक को आड़े हाथ लिया। उन्होंने इन दोनों बड़े नेताओं सहित भारतीय जनता पार्टी और उनके नेतृत्व की सरकार के इस कार्य को हिंदू विरोधी बताया। स्वरूपानंद इस समय वृंदावन के अटल्ली चुंगी स्थित उड़िया आश्रम में चातुर्मास प्रवास पर हैं।
शंकराचार्य ने कहा कि अच्छे और बुरे लोग तो सभी जातियों में होते हैं। ऐसे में यह कानून एक खतरनाक हथियार साबित होगा, जिसमें कि कहने मात्र से दूसरों को जेल हो जाये, यह अनुचित है। इससे लोगों में एक-दूसरे के प्रति घृणा बढ़ेगी। हम भी चाहते हैं कि दलित वर्ग का कल्याण हो, उनके साथ भेदभाव न हो, लेकिन इस कानून से वर्ग भेद होगा और देश बहुत पीछे चला जायेगा।
आपको बता दें कि इस साल 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एससी/ एसटी एक्ट के बेजा इस्तेमाल पर चिंता जताते हुए इसके तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाने का आदेश दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि इस कानून के तहत दर्ज मामलों में आॅटोमेटिक गिरफ्तारी की बजाय पुलिस को जांच करनी चाहिए और फिर आगे एक्शन लेना चाहिए। एससी ने यह भी कहा था कि सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी अप्वाइंटिंग आॅथोरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती। गैर-सरकारी कर्मी की गिरफ्तारी के लिए एसएसपी की मंजूरी जरूरी होगी। फैसले के खिलाफ दलित संगठनों के विरोध के बाद मोदी सरकार ने संसद के जरिये कोर्ट के फैसले को पलट दिया।
एससी/एसटी संशोधन विधेयक 2018 के तहत मूल कानून में धारा 18ए को जोड़ते हुए पुराने कानून को फिर से लागू कर दिया गया। नयी धारा यानी 18ए कहती है कि इस कानून का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ एफआइआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं है और ना ही जांच अधिकारी को गिरफ्तारी करने से पहले किसी से अनुमति लेने की जरूरत है।