दयानंद राय
रांची। यहां नृत्य था, ताल था और थी मांदर की गूंज। और इस गूंज में दस नहीं, बीस नहीं, पचास नहीं 100 नहीं पूरे 50 हजार लोग भागीदार थे। वे सुदेश के थे और सुदेश उनके। यह नजारा था झारखंडी संस्कृति की अद्भुत छटा बिखेरते सोनाहातू के जाड़ेया मैदान का। यहां आयोजित करम अखरा में झारखंडी संस्कृति जैसे फूल सी खिल कर महक उठी थी। 100 एकड़ में फैले इस मैदान में मांदर की था, नगाड़े की गूंज और नृत्य करते पैरों की अनुगूंज में पूरा सिल्ली उमड़ आया था। इसमें सिल्ली और उसके आसपास के गांव के लोग थे, उनकी उम्मीदें थीं और था सुदेश महतो के साथ उनका लगाव जो उनकी एक आवाज पर मैदान में पहुंच गया था। यह पैसे देकर बुलायी गयी भीड़ नहीं थी, यह लगाव की भीड़ थी और सुदेश के अपनत्व के सम्मोहन की भीड़ थी। यह भीड़ किसी बंबईया कलाकार के सम्मोहन में बंधकर नहीं आयी थी। यह झारखंडी संस्कृति के प्रति समर्पित सुदेश के आह्वान पर जुटी भीड़ थी। जैसे-जैसे नृत्य और ताल के स्वर ऊंचे होते गये, सुदेश के प्रति लोगों का विश्वास भी ऊंचा होता गया। आखिर सुदेश है तो उन्हीं का, उनकी माटी का और वह क्षेत्र की थाती भी है। आखिर सिल्ली में विकास की लहर उसी ने तो पैदा की, उसी ने तो पुल-पुलिये दिये और दिया यह भरोसा चाहे हार हो या जीत वे उन्हीं के हैं। यह आजसू की विचारधारा से जुड़े लोग थे और सुदेश से जुड़ने को तैयार थे। और सुदेश भी जैसे इस कार्यक्रम के माध्यम से अपने लोगों को यह संदेश देने को आतुर थे कि अपने क्षेत्र के लोगों का जीवन आनंदमय बनाने में वह कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
सुदेश और नेहा पर टिकी थीं सबकी नजरें
जब सुदेश करम अखरा स्थल पहुंचे, तो जैसे यहां मौजूद हर ग्रामीण की निगाहें उन पर टिक गयीं। सफेद परिधान में सज रहे और कांधे पर गुलाबी अंगवस्त्र डाले सुदेश ने कानों में करम फूल खोंस रखा था। थोड़ी देर में उनकी पत्नी नेहा महतो भी वहां पहुंचीं और पति-पत्नी मंच पर विराजमान हो गये। इस बीच वहां उपस्थित जनसमूह की नजरें उन पर टिक गयीं। तब तक मैदान के बीचो-बीच बने 210 120 फीट के मंच में पंच परगनिया नृत्य और सुर लहरी दोनों लोगों का मन मोह रही थी और समां बंध चुका था। लोग यह नृत्य देखने में इतने मगन थे कि जैसे ही इनके बीच कोई व्यवधान आता वे मंच पर से भीड़ हटाने का अनुरोध करने लगते। और आजसू के स्वयंसेवकों की टीम उनकी इस मांग को तुरंत पूरा करती। इस कार्यक्रम के बाद पद्मश्री मुकुंद नायक की टीम जब मंच पर अपनी प्रस्तुति देने लगी, तो उसके सम्मोहन में जैसे लोग थम कर रह गये थे। क्योंकि स्वर लहरी तो मुकुंद नायक के गले से निकल रही थी, पर उस स्वर लहरी का स्पंदन लोग अपने दिल में महसूस कर रहे थे। कलाकारों की अलग-अलग टोलियों में नृत्य और ताल का जो सामूहिक स्वर उभर रहा था, वह जनता को मोह चुका था। यही कारण था कि पसीने छुड़ाती धूप में भी लोगों का ध्यान मंच और उस मंच पर प्रस्तुति दे रहे कलाकारों पर था। मुकुंद नायक यहां सिर्फ गा नहीं रहे थे, झूम भी रहे थे और उनके साथ लोगों का दिल झूम रहा था।
पसीने से तर-ब-तर होने के बाद भी लोग जमे रहे
दोपहर होते-होते जब सूरज आसमान में अपनी पूरी चमक बिखेर रहा था। लोग पसीने से तर-ब-तर थे। इसके बावजूद रुमाल से पसीना पोंछते लोग सुदेश को देखने को आतुर थे। पद्मश्री मुकुंद नायक ने जब मंच संभाला और सुदेश महतो के गले में मांदर डाल दी, तो सुदेश महतो भी इसे बजाने से नहीं रुके। इस कवायद में डॉ देवशरण भगत ने भी उनका साथ दिया। वहीं नेहा महतो भी अपने पति के संग पंचपरगनिया नृत्य में तल्लीन होकर समां बांध चुकी थीं। करीब आधे घंटे तक यह सिलसिला चला और साथियों के साथ नृत्य करते सुदेश और नेहा ने मंच के कई चक्कर लगाये। यह था तो नृत्य ही पर यह क्षेत्र के लोगों का नृत्यमय अभिवादन भी था। डेढ़ सौ से ज्यादा कलाकारों के पांव जब मंच पर रिद्म के साथ एक साथ थिरकते, तो उनकी अनुगूंज से मंच भी स्पंदित होने लगता और साथ ही स्पंदित होने लगता सिल्ली के लोगों के साथ सुदेश के अपनत्व का एहसास। सुख-दुख में साथ होने का एहसास, विकास में भागीदार होने का एहसास और जनता की संवेदनाओं को महसूस करके उनके कष्ट मिटाने का एहसास। खास तो यह है कि यह कार्यक्रम तब हो रहा था, जब झारखंड चुनावी फीवर की जकड़ में आ चुका है पर यहां सुदेश अपनी पत्नी संग संस्कृति के साथ कदमताल करते हुए नृत्य कर रहे थे। उनके होंठों पर मुस्कुराहट थी और इस मुस्कुराहट में राजनीति की छाया कहीं दूर तक नहीं थी।
विशुद्ध सांस्कृतिक आयोजन : इस मैदान में मंच पर पत्रकारों से बात कर रहे सुदेश से जब पूछा गया कि चुनाव नजदीक है। उसकी क्या तैयारियां हैं, तो उनका जवाब था कि यह विशुद्ध सांस्कृतिक मंच है और चुनाव की बात चुनाव के अखाड़े में होगी। इतना कहते हुए चेहरे पर एक मुस्कान बिखेरकर वे फिर जनता से जुड़ने में जुट गये। मंच पर सुदेश के पिता श्याम सुंदर महतो भी थे, कहने लगे इस करम मिलन समारोह में सिल्ली और आसपास के 614 गांव और टोलों के लोग आये हैं। करम पर्व बीत चुका है यह उसका महोत्सव है। झारखंड के लोग प्रकृति पूजक हैं और कला से उनका लगाव जगजाहिर है। यह कार्यक्रम सिल्ली और आसपास के गांवों की जनता को कला के संगम में स्रान कराने के लिए आयोजित किया गया है और इसमें 150 से ज्यादा कलाकारों की टीम मुकुुंद नायक के नेतृत्व में प्रस्तुति दे रही है।
ड्रोन कैमरे से शूट हो रहा था कार्यक्रम
यह कार्यक्रम पेश तो झारखंड की परंपरगत संस्कृति को कर रहा था पर इसको वीडियो में कैद ड्रोन और अन्य डिजिटल कैमरे कर रहे थे। मैदान मेें उपस्थित लोगों का मनोरंजन भरपूर हो, इसलिए यहां मुकुंद नायक की पूरी टीम थी जो झारखंडी संस्कृति की अपनी विश्वस्तरीय प्रस्तुति के लिए जाने जाते हैं। आयोजन स्थल गोलाकार सर्किल में विभाजित था, जिसमें मंच पर लोगों के बैठने की व्यवस्था थी। खास तो यह था कि यहां रामदयाल मुंडा की स्मृति और उनका कभी विस्मृत नहीं किया जानेवाला वाक्य जे नाची से बाची कार्यक्रम के मुख्यद्वार पर ही उद्धृत था। ड्रोन कैमरा चिड़िया की तरह उड़ता हुआ कभी यहां तो कभी वहां के दृश्य उतार रहा था और इसकी हलचल पर भी लोगों की निगाहें टिकी हुई थीं। जो लोग मंच पर किसी कारणवश नृत्यमय प्रस्तुति नहीं देख पा रहे थे, उनके लिए भी पूरा इंतजाम था और पूरे मैदान में कलाकारों की टोली लोगों का पूरा मनोरंजन करने में जुटी थी। कुल मिलाकर कार्यक्रम में आये हरेक व्यक्ति की उम्मीदों की संतुष्टि का पूरा इंतजाम यहां था और इस कार्यक्रम के केंद्र में थे सुदेश महतो। हां यह सुदेशमय करम महोत्सव था जिसमें सिल्ली और आसपास की जनता आनंद से सराबोर थी।
हर आयु वर्ग के लोग आये थे महोत्सव में
जाड़ेया में आयोजित करम मिलन महोत्सव में हर आयु वर्ग के लोग आये थे। इनमें दुधमुंहे बच्चे को संभाले माताएं थीं, तो वे युवतियां भी थीं, जो करम के मिलन समारोह की अनुभूति महसूस करना चाहती थीं। इस मैदान में हाथ में मोबाइल थामे कार्यक्रम की तस्वीर उतार रहे युवा भी थे, जो वीडियो फिल्म के रूप में इस आनंदोत्सव का एहसास अपने कैमरे में हमेशा के लिए कैद करके रखना चाहते थे और वे खांटी ग्रामीण बुजुर्ग भी थे, जो पंचपरगनिया नृत्य और मांदर की थाप पर अपने सपने को परवान चढ़ता देखना चाहते थे। और हां, यहां आजसू पार्टी के कार्यकर्ता भी थे, जो इस पूरे आयोजन को खास बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे। वे वह हरसंभव कोशिश कर रहे थे जिससे मैदान में उपस्थित लोग इस आनंदोत्सव का पूरा आनंद उठा सकें। इसमें पार्टी की सोशल मीडिया टीम भी थी, जो इस पूरे आयोजन को सोशल मीडिया पर वायरल करने में जुटी थी।
हरेक का ख्याल रख रहे थे सुदेश
कार्यक्रम में टुंडी विधायक राजकिशोर महतो भी आये थे और आये थे पार्टी महासचिव डॉ देवशरण भगत। उनके साथ सुदेश कार्यक्रम में आये हरेक व्यक्ति का ख्याल रख रहे थे। कोई सेल्फी लेने का अनुरोध करता, तो चेहरे पर जादुई मुस्कान के साथ तुरंत इसके लिए तैयार हो जाते। कोई क्षेत्र की समस्याएं बताता, तो उसे गंभीरता से सुनते और यह आश्वासन भी देते कि उनकी समस्या का समाधान हो। कार्यक्रम में उपस्थित पार्टी के वरीय नेताओं के सम्मान का भी वे पूरा ख्याल कर रहे थे। बीच-बीच में मीडिया के लोग उनसे सवालों की झड़ी भी लगा देते और फिर वह चिरपरिचित मुस्कुराहट के साथ उनका जवाब देने में जुट जाते। कार्यक्रम में मंच पर प्रस्तुति दे रहे लोगों को कोई दिक्कत न हो, इसका भी वह ध्यान रख रहे थे। वहीं उनकी पत्नी नेहा महतो भी पति के इस आयोजन में बराबर की भागीदार बनी जीवन संगिनी का दायित्व निभा रही थीं।
सुदेश महतो से बेहतर कोई नहीं
कार्यक्रम में उपस्थित आजसू बुद्धिजीवी मंच के लंबोदर महतो ने कहा कि सिल्ली में पराजय के बाद भी क्षेत्र की जनता से उनका लगाव कभी कम नहीं हुआ। क्षेत्र के लोगों का दुख दूर करने और उनका जीवन बेहतर बनाने में वह हमेशा जुटे रहे। उन्होंने बिरसा आहार योजना के जरिये न सिर्फ अपने क्षेत्र के लोगों को आहार दिया, बल्कि वंचितों की पेंशन की व्यवस्था भी की। करम पर्व झारखंड की संस्कृति का प्रतिनिधि पर्व है और इस पर्व पर भी उन्होंने बिना किसी राजनीतिक मकसद के सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया। क्षेत्र के लोगों के लिए वे एक आवाज पर खड़े होनेवाले शख्सियत हैं और यह लगभग निर्विवाद है कि इस क्षेत्र के लिए सुदेश से बेहतर कोई नहीं है। वहीं डॉ वीके जायसवाल ने कहा कि इस महोत्सव में राजनीति का कोई स्थान नहीं है। अगर राजनीति इस सांस्कृतिक मंच का मकसद होता, तो सुदेश महतो भाषण जरुर देते पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। सुदेश झारखंड की माटी से जुड़ी शख्सियत हैं और करम झारखंड की माटी का पर्व। इस विशाल आयोजन के जरिये वह अपनी जनता की भावनाओं का सम्मान करना चाहते थे और इसका निर्वाह उन्होंने सफलतापूर्वक किया है। यहां जो विशाल भीड़ उमड़ी है, ग्रामीणों का जनसैलाब उमड़ा है वह सुदेश के स्नेह है और उसी स्रेह से स्रेह की डोर बांधने लोगों की यह भीड़ उमड़ी है।
जे नाची से बाची
करम मिलन महोत्सव में आयी सिल्ली की विनीता महतो ने कहा कि गांव में इतना भव्य कार्यक्रम हो रहा था तो मैं खुद को यहां आने से नहीं रोक सकी। मेरे साथ मेरे परिवार के लोग आये हैं। यहां पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा की तस्वीर लगी है और यहां जो नृत्य करते और नृत्य देखते लोग हैं जैसे वे डॉ रामदयाल मुंडा के सूत्र वाक्य की ही आराधना में जुटे हैं। वहीं विमल महतो ने कहा कि इस कार्यक्रम में आकर बहुत अच्छा लगा। यहां पंचपरगनिया नृत्य और गीत दोनों की मनमोहक छटा दिख रही है। झारखंड का प्राण यहां की नृत्य और संस्कृति ही तो है। अगर यही खो गयी तो फिर क्या बचा रह जायेगा। यह कार्यक्रम करके सुदेश महतो ने जैसे क्षेत्र के लोगों के सपनों को ही सम्मान दिया है। झारखंड जिस बदलाव के दौर से गुजर रहा है उसमें ऐसे कार्यक्रमों का होना बेहद जरूरी है।
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