रांची। राज्य सरकार की नियोजन नीति पर झारखंड हाइकोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। हाइकोर्ट ने राज्य सरकार की नियोजन नीति को निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने राज्य के 13 अनुसूचित जिलों में प्रशिक्षित हाइस्कूल शिक्षक की आठ हजार 423 वैकेंसी को रद्द करते हुए, इन जिलों में फ्रेश नियुक्ति करने का निर्देश दिया। वहीं 11 गैर अनुसूचित जिलों में हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति को हाइकोर्ट ने बरकरार रखा है। अपने फैसले में हाइकोर्ट की वृहत बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के दो केस का हवाला देते हुए कहा कि सरकार की नियोजन नीति असंवैधानिक है। शत- प्रतिशत सीट आरक्षित करने का अधिकार न तो राज्यपाल को है और न ही राज्य सरकार को है। यह अधिकार सिर्फ संसद को है। इसलिए राज्यपाल द्वारा पांचवीं अनुसूची के तहत जारी की गयी अधिसूचना असंवैधानिक है, इसे निरस्त किया जाता है। हाइकोर्ट के न्यायमूर्ति एचसी मिश्र, न्यायमूर्ति एस चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति दीपक रौशन की वृहत बेंच में वीडियो कांफ्रेंसिंग से एकमत से फैसला सुनाया। कोर्ट ने 21 अगस्त को सभी पक्षों की सुनवाई पूरी होने पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।

17 हजार 572 हाइस्कूल शिक्षकों के पद के लिए निकला था विज्ञापन
राज्य में करीब 17 हजार 572 हाइस्कूल शिक्षकों के लिए विज्ञापन निकाला गया था। इनमें से नौ हजार 215 सफल अभ्यर्थियों की अनुशंसा झारखंड स्टाफ सेलेक्शन कमिशन की ओर से सरकार को भेजी गयी थी, जिनमें से अधिकांश की नियुक्तियां कर ली गयी हैं। हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति विज्ञापन 21/2016 के एक भाग को प्रार्थी सोनी कुमारी और अन्य ने हाइकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे सोमवार को हाइकोर्ट ने निरस्त कर दिया। वृहत बेंच ने राज्य सरकार के नोटिफिकेशन दिनांक 14 जुलाई 2016 को भी रद्द कर दिया।
क्या है मामला
बता दें कि प्रार्थी पलामू निवासी सोनी कुमारी ने याचिका दायर की थी। उन्होंने संयुक्त स्नातक स्तरीय प्रशिक्षित हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति विज्ञापन 21/2016 और राज्य सरकार की अधिसूचना 14- 01/ 2015/ स्थानीयता नीति- 5938, दिनांक 14.7.2016 (नियोजन नीति) एवं मेमो नंबर 5939/14.7.2016 को चुनौती दी थी। सरकार की नियोजन नीति के आलोक में हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति के प्रकाशित विज्ञापन में कहा गया था कि राज्य के 11 गैर अनुसूचित जिले के अभ्यर्थी 13 अनुसूचित जिलों में नियुक्ति के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं। 13 अनुसूचित जिलों के स्थानीय अभ्यर्थी अपने मूल जिले में ही आवेदन कर सकेंगे।

प्रार्थियों की थी दलील, 13 अनुसूचित जिलों में शत-प्रतिशत आरक्षण उचित नहीं
पूर्व की सुनवाई में प्रार्थी का कहना था कि राज्य सरकार की नियोजन नीति में अनुसूचित जिलों में गैर अनुसूचित जिलों के लोगों को नौकरी के अयोग्य माना गया है। जबकि अनुसूचित जिलों के लोग गैर अनुसूचित जिले में नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं। प्रार्थी ने इस नीति को असंवैधानिक बताते हुई हाइकोर्ट से इसे निरस्त करने का आग्रह किया था। साथ ही कहा था कि राज्य सरकार की इस नीति से झारखंड के लोग अपने ही राज्य में नौकरी के हकदार नहीं है। इस नीति से सभी पद किसी एक जिले के लोगों के लिए ही आरक्षित कर दिये गये हैं। इस कारण यह शत- प्रतिशत आरक्षित भी हो गया है। जबकि संविधान में शत-प्रतिशत आरक्षण को उचित नहीं बताया गया है। राज्य सरकार की ओर से राज्य की नियोजन नीति को सही बताया गया। प्रार्थी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को प्रस्तुत करते हुए कोर्ट को बताया था कि पांचवीं अनुसूची के तहत आंध्र प्रदेश के राज्यपाल द्वारा अनुसूचित जनजाति की शत- प्रतिशत सीट आरक्षित करने संबंधी अधिसूचना को असंवैधानिक बताया है। झारखंड में भी राज्यपाल ने पांचवी अनुसूची के तहत अनुसूचित जिलों में स्थानीय के लिए शत-प्रतिशत सीट रिजर्व कर दिया है। राज्यपाल को भी अधिकार नहीं है। राज्य सरकार द्वारा बताया गया कि राज्यपाल को पांचवीं अनुसूची के तहत अधिसूचना जारी करने का अधिकार है। झारखंड कर्मचारी चयन आयोग की ओर से अधिवक्ता संजय पिपरवाल ने बताया था कि सरकार की अधियाचना के अनुसार संयुक्त स्नातक स्तरीय प्रशिक्षित हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया चलायी जा रही है।

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