बिहार में विधानसभा चुनाव का एलान हो चुका है और इसके साथ ही राजनीतिक अखाड़ों की सेनाएं सजने लगी हैं। रणनीतियां तो पहले से ही बनायी जा रही थीं, लेकिन अब असली संग्राम की तैयारी शुरू हो गयी है। बिहार की राजनीति हमेशा से देश के बाकी हिस्सों से अलग रही है। इसका एक प्रमुख कारण यहां की सामाजिक संरचना और व्यवस्था रही है। जाति के आधार पर राजनीति का इतना स्पष्ट विभाजन देश क्या, दुनिया भर में नहीं मिल सकता है। इसलिए बिहार को राजनीति की यज्ञ भूमि भी कहा जाता है। इस यज्ञ भूमि को राजनीतिक दलों ने अपने-अपने हिसाब से पवित्र करने की जिम्मेदारी उठायी, लेकिन कभी इसकी रिसती छत पर किसी का ध्यान नहीं गया। ऐसे में जब कोई गैर-राजनीतिक व्यक्ति इसका बीड़ा उठाता है, तो स्वाभाविक तौर पर उसे संदेह की नजरों से देखा जाता है। लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है। इस बार बिहार के राजनीतिक अखाड़े में एक ऐसे व्यक्ति ने जोरदार इंट्री मारी है, जिससे अभी से ही माहौल गरमा गया है। यह नाम है गुप्तेश्वर पांडेय का, जिन्होंने राज्य पुलिस प्रमुख के पद से वीआरएस लेकर सक्रिय राजनीति में उतरने का एलान किया है। यह तय है कि वह विधानसभा का चुनाव भी लड़ेंगे। गुप्तेश्वर पांडेय बिहार के लिए एक ऐसा नाम है, जिसने खाकी वर्दी पहन कर भी आम आदमी का चोला नहीं उतारा। एक आइपीएस के रूप में उनकी लोकप्रियता के कई किस्से बिहार में मशहूर हैं। ऐसे शख्स के राजनीति की पथरीली जमीन पर उतरने से लोगों को विश्वास हो गया है कि वह इस अखाड़े का पुराना गौरव लौटायेंगे। गुप्तेश्वर पांडेय के राजनीति में उतरने के मतलब पर आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
घटना आज से 21 साल पहले 19 मार्च, 1999 की है। मध्य बिहार का इलाका जातीय हिंसा की आग में जल रहा था। राजधानी पटना के बगल में स्थित जहानाबाद जिले के सेनारी गांव पर धावा बोल कर माओवादियों ने अगड़ी जाति के 34 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। एक रात पहले हुई इस घटना की सूचना पाकर पटना से मीडियाकर्मियों की टीम जब वहां पहुंची, तो उन्होंने एक आइपीएस अधिकारी को ग्रामीणों से बातचीत करते सुना। ग्रामीण बेहद उत्तेजित थे और मुख्यमंत्री को बुलाने की मांग पर अड़े थे। वह आइपीएस अफसर ग्रामीणों से स्थानीय भाषा में बात कर रहा था और कुछ ही देर के बाद ग्रामीण शांत पड़ गये। उत्तेजित ग्रामीणों के गुस्से को जिस आइपीएस अधिकारी ने शांत किया था, उसका नाम था गुप्तेश्वर पांडेय। उन दिनों मीडिया में गुप्तेश्वर पांडेय की खूब चर्चा हुई थी। दो दशक के बाद यही नाम एक बार फिर चर्चा में है। चर्चा इस बात को लेकर हो रही है कि गुप्तेश्वर पांडेय ने डीजीपी के पद से वीआरएस लेकर राजनीति के मैदान में हाथ आजमाने का फैसला किया है। अब यह तय हो गया है कि वह विधानसभा का चुनाव भी लड़ेंगे।
किसी आइपीएस के सक्रिय राजनीति में उतरने और चुनाव लड़ने का यह पहला मामला तो नहीं है, फिर गुप्तेश्वर पांडेय के इस फैसले की इतनी चर्चा क्यों हो रही है, यह बड़ा सवाल है। इस सवाल का एकमात्र जवाब यही है कि गुप्तेश्वर पांडेय खाकी वर्दी में भी हमेशा एक आम बिहारी ही रहे और उनकी कार्यशैली उनके जमीन से जुड़े होने का प्रमाण देती रही। इसलिए लोग उन्हें अपने बीच का व्यक्ति मानते हैं और उनके राजनीति में सक्रिय होने को वे अच्छा संकेत मानते हैं।
गुप्तेश्वर पांडेय हमेशा अलग किस्म के आइपीएस रहे। बक्सर के छोटे से गांव में अशिक्षित माता-पिता के यहां पैदा हुए इस शख्स को यह मानने में कोई गुरेज नहीं है कि वह अपने खानदान में स्कूल का मुंह देखनेवाला पहला बच्चा था। पटरे के कपड़े की हाफ पैंट और बनियान पहन कर झोरा-बोरा लेकर स्कूल जानेवाले गुप्तेश्वर पांडेय ने एक बार बातचीत में बताया था कि उनके पुलिस सेवा में जाने के पीछे कोई खास कारण नहीं था। हालांकि उनके बचपन की एक घटना ने उन्हें पुलिस व्यवस्था में बदलाव के लिए जरूर प्रेरित किया था। उनके बचपन के दिनों में उनके घर में चोरी हुई। उस घटना की जांच करने जो अफसर आया, उसने उनकी मां के साथ अच्छे ढंग से बात नहीं की। कुछ दिन बाद उनके एक रिश्तेदार के यहां भी चोरी हुई। वहां भी वह अफसर जांच करने गया और बेअदबी से बात की। इतना ही नहीं, चोरी की इन दोनों घटनाओं के बारे में कोई मामला भी दर्ज नहीं किया गया। एक पुलिस अधिकारी के इस रवैये ने गुप्तेश्वर पांडेय के बाल मन पर गहरा असर छोड़ा। इसलिए 1987 में दूसरे प्रयास में वह जब आइपीएस बने, तो उन्होंने अपने साथ हुई घटना याद रखी। इसलिए करीब साढ़े तीन दशक के अपने कैरियर में उन्होंने कभी किसी के साथ ज्यादती नहीं की और न ही अप्रिय व्यवहार किया।
राजनीति के वर्तमान दौर में गुप्तेश्वर पांडेय सरीखे लोगों की मौजूदगी बेहद जरूरी है। वह इसलिए, क्योंकि राजनीति अब पूरी तरह पेशे में बदल गयी है। ऐसे में एक पेशेवर पुलिस अधिकारी, जिसने अपने जीवन का आधा हिस्सा जनता के सीधे संपर्क में बिताया हो, जनता की समस्याओं को ज्यादा अच्छी तरह समझ सकता है। हालांकि यह भी सही है कि पहले भी कई नौकरशाह राजनीति में हाथ आजमाने उतरे, लेकिन जनता ने उन्हें खारिज कर दिया। गुप्तेश्वर पांडेय इन सबसे अलग हैं, क्योंकि वह अपनी बात बेहद बेबाकी से सामने रखते हैं और हर समय आम लोग ही उनके फैसलों के केंद्र में होते हैं। इसलिए बिहार की राजनीति में इंट्री के उनके एलान से चुनावी माहौल अभी से ही गरमा गया है। गुप्तेश्वर पांडेय किस सीट से चुनाव लड़ेंगे, यह अभी तय नहीं हुआ है, लेकिन एक बात तय है कि वह इस समय लोकप्रियता के शिखर पर हैं और उन्हें विधायक चुन कर वोटरों को पछताना नहीं पड़ेगा। गुप्तेश्वर पांडेय के रूप में एक पुलिस अधिकारी को लोगों ने अच्छी तरह देखा-परखा है, लेकिन एक राजनीतिज्ञ के रूप में उनकी चुनौतियां अभी बाकी हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि वह इन चुनौतियों का सामना भी अच्छी तरह से करेंगे और बिहार को नयी दिशा देंगे।
राजनीति के अखाड़े में स्वागत है गुप्तेश्वर पांडेय का
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