आजाद सिपाही संवाददाता
रांची। झारखंड में पाठ्यक्रम में शामिल भोजपुरी, अंगिका, उर्दू, बांग्ला, ओड़िया समेत बाहरी भाषाओं को हटाने की मांग की गयी है। मोरहाबादी स्थित नीलांबर पीतांबर पार्क में मंगलवार को झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति की बैठक हुई। बैठक में भाषाई अतिक्रमण को लेकर विभाग को ज्ञापन सौंपने का निर्णय लिया गया। कहा गया कि बाहरी भाषाओं को वापस नहीं लिया गया, तो हम उग्र आंदोलन करेंगे। बता दें कि राज्य में पूर्व में भी अंगिका, भोजपुरी और मगही को शामिल करने को लेकर विरोध हो चुका है। विवाद बढ़ने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसे धनबाद- बोकारो जिला से हटाने का फैसला लिया था। एक बार फिर उर्दू, ओड़िया, बांग्ला, भोजपुरी, अंगिका को झारखंड से हटाने की मांग को लेकर भाषा आंदोलनकारी जयराम महतो और मोतीलाल महतो ने आंदोलन तेज कर दिया है। वहीं, स्थानीय नीति के लिए 1932 का खतियान लागू करने को लेकर जयराम महतो ने बताया कि हमारी मांगें जारी रहेंगी। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्ववाले झामुमो के चुनाव मेनिफेस्टो में यह पहला वादा था कि 1932 लागू करेंगे, लेकिन इस पर अब तक कोई पहल नहीं हुई। अब जब सरकार पर आफत आई है तब ऐसा बयान विधानसभा में दिया जा रहा है। अपनी सरकार बचाने में करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं, लेकिन राज्य की जनता के हित में युवाओं के रोजगार और बेरोजगारी भत्ता को लेकर कार्य नहीं कर रहे हैं, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। वहीं कैलाश यादव के भोजपुरी, मगही, अंगिका भाषा को झारखंड से हटाने की मांग पर उन्होंने बताया कि झारखंड का कोई इतिहास इन भाषाओं से नहीं जुड़ा है। ना ही इन क्षेत्रों की सीमा रेखा से झारखंड का कोई रिश्ता नाता है।

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