- मदरसों और वक्फ बोर्ड की संपत्ति की जांच के आदेश से हड़कंप : राज खुलने के डर से धड़ाधड़ गिरने लगे अवैध मदरसों के शटर
उत्तरप्रदेश में कुल 16,500 मान्यता प्राप्त मदरसे हैं। इनकी आड़ में यहां हजारों अवैध मदरसे भी संचालित हो रहे हैं। इस बात का खुलासा उस समय हुआ, जब उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मदरसों के सर्वे का आदेश दिया। इधर आदेश आया, उधर रातोंरात 2500 अवैध मदरसे गायब हो गये। उन्हें जमीन खा गयी या आसमान निगल गया, पता नहीं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि ये मदरसे सरकारी लाभ भी ले रहे थे। इन्हें आर्थिक मदद, मुतवल्लियों को तन्खवा और पढ़ानेवालों को वजीफा भी मिल रहा था, मतलब सरकारी खजाने की पूरी लूट मची हुई थी। जांच के दौरान ये भी खुलासे हो रहे हैं कि ज्यादा ग्रांट पाने के लिए मान्यता प्राप्त मदरसों में भी शिक्षकों और छात्रों की संख्या में हेरा-फेरी की गयी है। यह तो हुई सामान्य बात। इन मदरसों में जो सबसे ज्यादा गड़बड़ी सामने आ रही है और जिससे मदरसों को संचालित करनेवाले ज्यादा खौफजदां हैं, वह है सोर्स आॅफ फंड। मदरसावाले कह रहे हैं कि मदरसों को वे दान के पैसों से चलाते हैं, लेकिन यह दान कहां से आता है, कौन देता है। इसका खुलासा होते ही मदरसा के संचालक परेशानी में पड़ेंगे। मदरसों को 50 प्रतिशत फंडिंग सीक्रेट सोर्सेज से आती है। ये सीक्रेट सोर्स कौन हैं, वह अब बताना पड़ेगा। योगी सरकार अब इन सोर्सेज की भी जांच करेगी कि कहीं यह फंड आतंकी संगठनों से तो नहीं आ रहा। विदेशों से जो दान आ रहा है, उसे कौन दे रहा है। उत्तरप्रदेश में योगी सरकार ने एक और ऐतिहासिक फैसला लिया है। अब यूपी में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की जांच होगी। योगी सरकार ने वक्फ बोर्ड का 33 साल पुराना शासनादेश भी रद्द कर दिया। 7 अप्रैल, 1989 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने एक आदेश जारी किया था। इसमें कहा गया था कि यदि सामान्य संपत्ति बंजर, भीटा, ऊसर आदि भूमि का इस्तेमाल वक्फ के रूप में किया जा रहा हो तो उसे वक्फ संपत्ति के रूप में ही दर्ज कर दिया जाये। इसके बाद उसका सीमांकन किया जाये। इस आदेश के चलते प्रदेश में लाखों हेक्टेयर बंजर, भीटा, ऊसर भूमि वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज कर ली गईं। यही नहीं, 7 अप्रैल 1989 के बाद वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज सभी मामलों का पुनर्परीक्षण भी करवाया जायेगा। इस आदेश के बाद मदरसा के संचालकों, कुछ राजनीतिक दलों और कुछ स्वयंभू नेताओं के पसीने छूट रहे हैं। जाहिर है, इसकी आड़ में हजारों-हजार एकड़ सरकारी जमीन की लूट हुई है और गलत तरीके से फंड भी इकट्ठा किया गया है। 1989 के बाद से आज तक वक्फ बोर्ड ने कैसे जमीन हड़पी है और कैसे हजारों मदरसे कागजों पर उग आये थे, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
उत्तरप्रदेश में मदरसों का सर्वे किया जा रहा है। इसके लिए प्रदेश के सभी जिलों में अलग-अलग टीमें लगायी गयी हैं। सर्वे में मदरसा संचालकों से 11 बिंदुओं पर जानकारी ली जा रही है, जिसमें सबसे अहम है मदरसों की आय का स्रोत क्या है? सरकारी आंकड़ों के अनुसार पूरे प्रदेश में कुल 16500 मान्यता प्राप्त मदरसे हैं। इनमें 558 अनुदानित मदरसे हैं तथा 7,442 आधुनिक मदरसे हैं। इन सभी मदरसों में कुल 19 लाख से ज्यादा बच्चे हैं। रजिस्ट्रार मदरसा जगमोहन सिंह के मुताबिक सभी बच्चों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ने की कवायद चल रही है। नये-नये विषयों को भी मदरसों में लागू किया जा रहा है। 5 अक्तूबर तक सर्वे पूरा करने को कहा गया है। सर्वे रिपोर्ट 25 अक्तूबर तक शासन को सौंप दी जायेगी।
मदरसों के सर्वे को लेकर उत्तरप्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के अध्यक्ष डॉ इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा है कि सर्वे के शुरू होते ही राज्य से 2500 मदरसे रातोंरात गायब हो गये हैं। ये मदरसे सरकारी लाभ भी ले रहे थे। उनका कहना है कि कोई भी व्यक्ति, जो गरीब मुसलमान के बच्चों को आधुनिक बेहतर शिक्षा देने का पक्षधर होगा, वह मदरसों के सर्वे को गलत नहीं ठहरा सकता। हमें समझना चाहिए कि मदरसों के सर्वे का विरोध अब तक कौन और क्यों कर रहा था?
जो असदुद्दीन ओवैसी मदरसों के सर्वे को दूसरा एनआरसी कह रहे थे, उन्हीं के भाई अकबरुद्दीन ओवैसी का बेटा अमेरिका में एमबीबीएस कर रहा है और बेटी लंदन में लॉ पढ़ रही है। डॉ जावेद का यह भी कहना है कि जो लोग मदरसों के सर्वे का विरोध कर रहे थे, वे इसे मुसलमानों के आंतरिक मामलों में सरकार का दखल बता रहे थे। लेकिन जब आप केंद्र सरकार से हर साल 3000 करोड़ रुपये की सहायता लेंगे। अनेकों मदरसों में 50 हजार से लेकर लाख रुपये से ज्यादा वेतन लेंगे और उन्हीं मदरसों में सरकार से मिलनेवाली बिजली-पानी, सड़क की सुविधा का उपयोग करेंगे, तो यह आपका व्यक्तिगत मामला कैसे रह गया।
योगी सरकार के एक्शन से यूपी में अवैध मदरसेवालों के हाथ पांव फुले हुए हैं। सरकार की नजर मदरसों में आ रहे सीक्रेट फंड की तरफ भी है। सरकार पता लगा रही है कि कहीं ये फंड आतंकी संगठनों से तो नहीं आ रहा। यह फंड अगर विदेशों से भी आ रहा है, तो उसे कौन दे रहा है। आरोप तो यहां तक लगाया जा रहा है कि कुछ मदरसों में ऐसे फंड से जिहादी तैयार करवाये जाते हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि दुनिया भर में जितने बड़े आतंकी तैयार हुए हैं, उनका कहीं न कहीं भारत के मदरसों के साथ ताल्लुक रहा है। खासतौर से देवबंद से, इसके प्रमाण भी हैं। यह साबित भी हो चुका है कि देवबंद और आतंकवादियों का गहरा संबंध रहा है। देवबंद सहित आसपास के कई ऐसे मदरसे हैं, जहां बांग्लादेशी घुसपैठियों को शरण मिलती है। उनकी शिक्षक या छात्र के रूप में भर्ती की जाती है। हाल ही में असम में तीन मदरसों को बुलडोजर से ध्वस्त किया गया। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने कहा कि ये सभी मदरसे शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि अल-कायदा के केंद्र थे। यहां विदेशों से फंडिंग आती थी और आतंकवाद की ट्रेनिंग दी जाती थी। वहीं उत्तरप्रदेश की बात करें, तो गैर सरकारी आंकड़े के मुताबिक यूपी में 40 से 50 हजार मदरसे गैर मान्यता प्राप्त हैं। आंकड़े में अंतर इसलिए है, क्योंकि लगभग हर मस्जिद या संस्था के अपने खुद के कई मदरसे चलते हैं। मदरसों के सर्वे के पीछे यूपी सरकार का मकसद यह भी जानना है कि प्रदेश में कितने मदरसे चोरी-छिपे चल रहे हैं।
मदरसों के सर्वे पर शरू है विपक्ष की राजनीति
योगी सरकार के आदेश के बाद मदरसों के सर्वे पर राजनीति भी शुरू हो गयी है। असदुद्दीन औवेसी खुल कर इसका विरोध कर रहे हैं। कह रहे हैं कि इससे हिंदू-मुस्लिम भाईचारे को बिगाड़ा जा रहा है। अब मदरसों की जांच से भला हिंदू-मुस्लिम भाईचारा कैसे बिगड़ेगा। पता नहीं। ऐसे ओवैसी ने कौन सा हिंदू-मुस्लिम भाईचारा बनाया है, वही जानें। बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस पर सवाल उठाये हैं। इसके अलावा तमाम मुस्लिम संगठन कह रहे हैं कि मदरसों में पढ़ाई करना उनका सांविधानिक अधिकार है। इसकी जांच का क्या औचित्य है? वहीं अखिलेश यादव भी बौखलाये हुए हैं। उनका तो यह वोट बैंक ही है, नहीं बोलेंगे तो वोटरों के गुस्से का शिकार होना पड़ेगा। अखिलेश यादव के पास तो न विजन है, न मुद्दा है, न ही आगे के लिए कोई प्लान। उनका सिर्फ और सिर्फ ट्विटर पर सत्ता के खिलाफ बोलना रह गया है। उनका ट्वीट देख लेंगे तो पता चलेगा कि सही में अखिलेश के पास कोई काम नहीं रह गया है। वह खाली बैठे हैं। वह नामीबिया से लाये गये आठ चीतों के बारे में भी बात करते हैं। उनसे भी उन्हें दिक्कत ही है। उन्होंने चीते की आवाज पर ट्वीट किया है कि सबको इंतजार था दहाड़ का, पर ये तो निकला बिल्ली मौसी के परिवार का। उनके इस ट्वीट पर यूजर्स ने उन्हें बुरी तरह ट्रोल कर दिया। ऐसे हर ट्वीट पर उनका यही हाल होता है।
मदरसों में हो रहा बच्चों के भविष्य से खिलवाड़
यूपी बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ सुचिता चतुर्वेदी कहती हैं कि मदरसों में बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है। गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का तो हाल ही बुरा है, पर अनुदानित मदरसों की भी स्थिति सही नहीं है। उन्होंने कुशीनगर, देवरिया, महराजगंज आदि में मदरसों का निरीक्षण किया तो पाया कि सरकारी मदरसों में अध्यापकों का शैक्षिक स्तर निम्न है। दसवीं पास शिक्षक दसवीं को और इंटर पास इंटरमीडिएट को पढ़ा रहा है। आधुनिक मदरसों में तनख्वाह विषय विशेषज्ञ जैसे गणित, विज्ञान आदि की लेते हैं, पर पढ़ाते केवल दीनी तालीम हैं। सुचिता चतुर्वेदी कहती हैं: गणित पढ़ाने वाले अध्यापक मुझे सात का पहाड़ा तक नहीं सुना पाये। लखनऊ के गोसाईगंज स्थित सुफ्फामदीनतुल उलमा मदरसे में बच्चे को बेड़ियों में रखने का मामला सामने आया ही था। गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के निरीक्षण में तो अध्यापक अपना आधार कार्ड तक नहीं दिखा सके। वे कौन हैं, कहां से आये हैं यह पता चलना ही चाहिए। इन बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए सर्वे और सही नीतियों का बनना बेहद जरूरी है।
सर्वे में जिन सवालों का उत्तर देना है
- गैर मान्यता प्राप्त मदरसे का नाम? गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों का संचालन करनेवाली संस्था कौन है?
- मदरसे की स्थापना की तारीख क्या है? उसका स्टेटस यानी निजी घर में चल रहा है या किराये के?
- मदरसे में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं की सुरक्षा कैसी है? भवन, पानी, फर्नीचर, बिजली, शौचालय के क्या इंतजाम हैं?
- छात्र-छात्राओं की कुल संख्या, शिक्षकों की संख्या कितनी है? वहां पढ़ाया जाने वाला पाठ्यक्रम क्या है?
- मदरसे की आय का स्रोत क्या है? अगर छात्र अन्य जगह भी नामांकित हैं, तो उसकी जानकारी ली जा रही है? अगर सरकारी समूह या संस्था से मदरसों की संबद्धता है, तो उसका विवरण दें?
जाहिर है इतने सारे सवालों का जवाब तो हजारों की संख्या में चल रहे मदरसों के पास नहीं ही होगा। मदरसों की हालत क्या है, यह किसी से छिपा नहीं है। ज्यादातर मदरसों में बस नाम की हिंदी, इंग्लिश और मैथ्स पढ़ाई जाती है। यहां के बच्चे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का नाम तक नहीं बता पाते। अंग्रेजी के शब्दों की स्पेलिंग तो छोड़ ही दीजिए। ऐसे मदरसों के बच्चों से बातचीत करेंगे तो वे बतायेंगे कि उनको मदरसे में हिंदी, इंग्लिश, मैथ्स, साइंस सब पढ़ाया जाता है। लेकिन जब उनसे इन सब्जेक्ट से जुड़े सवाल पूछ लेंगे तो वे जवाब नहीं दे पायेंगे। यहां तक कि मदरसे के मैथ्स के टीचर खुद पहाड़ा नहीं सुना पाते। कई मदरसे ऐसे हैं, जहां बैठने के लिए सीट तक नहीं है। बोरा पर बैठ कर बच्चे पढ़ाई कर रह हैं। धर्म के ठेकेदारों से अगर बात कीजियेगा तो वे मदरसों पर बड़ी-बड़ी बात करेंगे, लेकिन अगर उनके बच्चों के बारे में जानियेगा तो पता चलेगा, उनका बच्चा विदेशों में पढ़ाई कर रहा है। मदरसा की गलियों में भी वे अपने बच्चों को लाना नहीं चाहते।
आखिर योगी ने ले ही लिया वक्फ को रडार पर
दो दिन पहले ही आजाद सिपाही में प्रमुखता से यह बताया गया था कि किस तरह वक्फ बोर्ड के नाम पर हजारों हजार एकड़ जमीन का खेल हुआ है। उन संपत्तियों की जांच के लिए योगी सरकार का आदेश वक्फ पर परमाणु बम गिरने जैसा है। अब उत्तरप्रदेश में वक्फ की संपत्तियों की जांच शुरू होनेवाली है। योगी सरकार ने इसके आदेश जारी कर दिये हैं। इस सर्वे को एक महीने में पूरा करने के लिए कहा गया है। इसके लिए उत्तरप्रदेश सरकार ने वक्फ बोर्ड से जुड़ा 33 साल पुराना आदेश रद्द कर दिया है। योगी सरकार 7 अप्रैल 1989 के बाद वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज सभी मामलों का पुनर्परीक्षण भी करवायेगी। 7 अप्रैल, 1989 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने एक आदेश जारी किया था। इसमें कहा गया था कि यदि सामान्य संपत्ति बंजर, भीटा, ऊसर आदि भूमि का इस्तेमाल वक्फ के रूप में किया जा रहा हो, तो उसे वक्फ संपत्ति के रूप में ही दर्ज कर दिया जाये। इसके बाद उसका सीमांकन किया जाये। इस आदेश के चलते प्रदेश में लाखों हेक्टेयर बंजर, भीटा, ऊसर भूमि वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज कर ली गयी। योगी सरकार का कहना है कि संपत्तियों के स्वरूप अथवा प्रबंधन में किया गया परिवर्तन राजस्व कानूनों के विपरीत है। उप सचिव का कहना है कि शासन द्वारा एक बार फिर से उत्तरप्रदेश मुस्लिम वक्फ अधिनियम 1960 को लागू करते हुए वक्फ बोर्ड की सभी संपत्तियों का रिकॉर्ड मेंटेन किया जायेगा। ऐसी संपत्तियों के रिकॉर्ड में कब्रिस्तान, मस्जिद, ईदगाह जैसी स्थिति में सही दर्ज है या नहीं, इन सबका अवलोकन किया जायेगा। वक्फ बोर्ड एक ऐसी संस्था है, जिसे कांग्रेस ने सींचा। उसे असीमित अधिकार दिये। एक तरह से खुला लाइसेंस दे दिया- जाओ जमीनों पर कब्जा करो। नतीजा यह हो रहा है कि वक्फ बोर्ड ने गांव का गांव कब्जा लिया है। तमिलनाडु के त्रिची गांव की पूरी जमीन पर वक्फ बोर्ड का कब्जा हो गया है, जो हिंदू बहुल है। यहां तक कि यहां 1500 साल पुराने मंदिर पर भी वक्फ का कब्जा हो गया है।