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    Home»विशेष»बांग्लादेशी घुसपैठ राजनीतिक मुद्दा नहीं, जीवन-मरण का प्रश्न: अनंत ओझा
    विशेष

    बांग्लादेशी घुसपैठ राजनीतिक मुद्दा नहीं, जीवन-मरण का प्रश्न: अनंत ओझा

    shivam kumarBy shivam kumarSeptember 23, 2024Updated:September 23, 2024No Comments15 Mins Read
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    लव, लैंड के बाद अब वोट जिहाद, मतदाता सूची में 123 प्रतिशत वृद्धि कैसे
    घुसपैठ के खिलाफ 90 के दशक से लड़ता आ रहा हूं, डरूंगा नहीं, लडूंगा
    आजाद सिपाही की टीम संथाल दौरे पर है। शुक्रवार को साहिबगंज से गृह मंत्री आमित शाह ने भाजपा की परिवर्तन महारैली के माध्यम से विधानसभा चुनाव का बिगुल फूंक दिया है। वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जमशेदपुर दौरे से इसका आगाज कर दिया था। आजाद सिपाही की टीम ने राजमहल विधानसभा क्षेत्र में अपने कार्यक्रम भ्रमण के दौरान जनता के साथ संवाद किया। उस संवाद में साहिबगंज और राजमहल विधानसभा क्षेत्रों के मुद्दे और उस पर हो रही राजनीति के बारे में जनता ने बहुत कुछ साझा किया। कड़ी दर कड़ी राजमहल, बोरियो और बरहेट विधानसभा के बारे में आजाद सिपाही की टीम आपके साथ जानकारी साझा करेगी। फिलहाल अपनी पहली कड़ी में हम बताने जा रहे हैं राजमहल के मौजूदा विधायक अनंत ओझा को लेकर जनता ने क्या-क्या साझा किया। अनंत ओझा राजमहल के विधायक हैं। क्षेत्र में काफी चर्चित भी हैं। वह मुद्दों को उठाने के प्रति अपनी आक्रामकता और सूझ-बूझ के लिए जाने जाते हैं। राजमहल विधानसभा की जनता के मन में कई सवाल थे, कई मुद्दे थे। विधायक से जुड़ी शिकायतें भी थीं। कइयों ने विधायक द्वारा किये गये कामों को सराहा, तो कइयों ने अपना रोष भी प्रकट किया। कइयों का मानना था कि विपरीत स्थिति में भी विधायक अनंत ओझा ने क्षेत्र की गंभीर से गंभीर समस्याओं और मुद्दों को जोर-शोर से सदन से लेकर सड़क तक उठाया। वैसे अनंत ओझा क्षेत्र में काफी एक्टिव हैं। मुखर भी हैं। आम जनता के लिए वह आसानी से उपलब्ध भी रहते हैं। कोई भी कभी भी उनके आॅफिस या घर पहुंच जा सकता है और अधिकार के साथ अपनी बातों तो रख सकता है। विधायक उनकी समस्याओं को सुनते हैं और तुरंत बता भी देते हैं कि उनकी समस्या का समाधान कैसे करेंगे। अगर उसमे कोई पेंच है, तो उससे भी वह उन्हें अवगत करा देते हैं। विधायक की टाइमिंग के बारे में सबको पता है कि वह सुबह 9 बजे कहां मिलेंगे, उससे पहले उनसे कहां मिला जा सकता है। शाम को कब उनसे मुलाकात हो सकती है।
    सरल स्वभाव, आम जीवन जीनेवाले अनंत ओझा आक्रामकता और मुखरता के साथ क्षेत्र और जनता से जुड़े मुद्दों को उचित प्लेटफार्म पर उठाते रहे हैं। संथाल में बांग्लादेशी घुसपैठिये और डेमोग्राफी चेंज का मुद्दा उठा कर राजनीति में कदम रखने वाले अनंत ओझा को जान का भी खतरा बना रहता है। उन्हें लोग हिदायत भी देते हैं कि ऐसे गंभीर मुद्दों से वह बचें। लेकिन उनका मानना है कि एक ही जीवन है और अगर वह भी देशहित में नहीं जिया तो क्या जिया। मौत निश्चित है, लेकिन विपरीत परिस्थिति में भी अपनों के लिए जो लड़ा है, वही तो इतिहास बना है। प्रस्तुत है जनता के चुभते सवाल और राजमहल विधायक अनंत ओझा के जवाब, राकेश सिंह के शो भ्रमण में।

    सवाल: आप जब विधायक बने तो खासमहल के मुद्दे को लेकर आप मुखर रहे। जनता इस उम्मीद में रही कि इसका हल आप निकाल देंगे। आपने वादा भी किया था, लेकिन आज भी खासमहल का मुद्दा लटका पड़ा है, क्यों?

    गंगा पर पुल मेरा पहला वादा था, पूरा हुआ
    जवाब: जब झारखंड एकीकृत बिहार का हिस्सा था, तो राजधानी पटना से साहिबगंज की दूरी करीब 350 किलोमीटर थी। जब झारखंड अलग राज्य बना, तो राजधानी रांची से यहां की दूरी करीब 550 किलोमीटर है। इसलिए आजादी के 65 वर्षों तक मेरे जनप्रतिनिधि बनने से पूर्व, किसी राज्य सरकार ने यहां के लोगों के दर्द को नहीं समझा। सब भगवान भरोसे छोड़ दिया गया था। 2014 में जब जनता ने मुझे अपना जनादेश दिया और मैं विधायक बना, तो मैंने जनता से तीन चार वादे किये थे। उसमें जो प्रमुख वादा था, वह गंगा पुल का था। एक बुजुर्ग व्यक्ति ने मुझसे कहा था कि का बाबा हमनी के जिंदा रहते गंगा पुल देखब सब की ना देखब सब। उस भावना से प्रेरित होकर चुनाव के दौरान टिकट मिलने के दूसरे ही दिन क्षेत्र में मैंने भ्रमण प्रारंभ किया। मैंने कहा कि अगर मेरे कार्यकाल में गंगा पुल का काम चालू नहीं हो पायेगा, तो मैं अनंत ओझा खुद के लिए आपके दरवाजे पर वोट मांगने नहीं आऊंगा। उसी में दूसरी सबसे बड़ी समस्या खासमहल की थी। खासमहल अंग्रेजों के समय का ऐसा काला कानून है जिसे हल करने का साहस राज्य शासन ने नहीं दिखाया। उसी तरह से राजमहल में बच्चों को पढ़ने के लिए आजादी के बाद 70 वर्षों तक एक डिग्री कॉलेज तक नसीब नहीं हुआ था। बिजली की बात करें तो पहले मात्र सात घंटे, आठ घंटे बिजली मिलती थी। टोटल जिले को 12 मेगावाट बिजली मिलती थी। उसमें भी ट्रांसमिशन लाइन बहुत ही बदतर हालत में थी। आंधी आयी नहीं कि बिजली गुल।

    मौजूदा सरकार ने खासमहल के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया
    खासमहल का जो मुद्दा है, उसको लेकर मैं विधानसभा में पूर्व की रघुबर दास की सरकार में विधाई प्रणाली के अनेक माध्यमों से लगातार प्रश्न उठाता रहा। रघुबर दास की सरकार ने उच्च स्तरीय कमिटी बनायी। कई राज्यों का अध्ययन किया गया। खासमहल का मुद्दा डाल्टनगंज, चाइबासा, रांची के डोरंडा और हजारीबाग सहित झारखंड के अन्य हिस्से में भी है। हमारे यहां खासमहल का जो मुद्दा है, वह थोड़ा अलग है। हम रैयतधारी भी रहे हैं। लेकिन यह बात शासन में बैठे हुए अधिकारी समझते ही नहीं। एक ही पैमाना से पूरे राज्य को जोड़ कर देख रहे थे। उसके बाद जब खासमहल को लेकर रघुवर दास सरकार ने कमिटी बनायी। इन मुद्दों को कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में समाहित किया। उसे रघुवर दास मंत्रिपरिषद की बैठक में रखा गया। मंत्रिपरिषद ने निर्णय लेते हुए खासमहल की समस्या को जड़ से समाप्त करने का निर्णय लिया। कैबिनेट ने सूचना प्रकाशित की, गजट में प्रकाशन हुआ। दुर्भाग्य से यह काम अंतिम महीनों में हो पाया। उसके बाद नयी सरकार का गठन हुआ। एक बड़ा जनादेश लेकर हेमंत सोरेन की सरकार आयी। लेकिन इस सरकार ने अपने सोच के विपरीत, जो वादे नारे देकर आयी थी, उसने उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। जबकि विधानसभा में दर्जनों बार ऐसे प्रसंग आये हैं, जहां संसदीय कार्य मंत्री, मुख्यमंत्री और अन्य विभागों के मंत्री जब उत्तर देते थे, तो कहते थे कि हम इसे उसी संलेख के आधार पर समाप्त कर देंगे। कहा गया कि आवेदन कराइये। लोगों ने आवेदन भी किया, लेकिन चूंकि इनकी नियत में खोट थी, इसलिए हेमंत सरकार ने राजमहल-साहिबगंज की जनता के खासमहल के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया। जनता में यह उम्मीद थी कि हेमंत सोरेन चूंकि संथाल परगना से ही जनप्रतिनिधि हैं, तो वह इसका जरूर समाधान निकाल देंगे, लेकिन उन्होंने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। हेमंत सरकार ने गजट प्रकाशन पर काम ही नहीं किया। लटकाओ, अटकाओ, भटकाओ की नीति अपना कर इस सरकार ने इसे पूरी तरह लटका ही दिया। लेकिन मेरा वादा है कि इस बार भाजपा की सरकार बनते ही खासमहल का मुद्दा जड़ से समाप्त होगा।

    झामुमो-कांग्रेस ने भ्रम की स्थिति बना दी
    यहां के प्रशासनिक तंत्र ने यहां एक भ्रामक वातावरण बना दिया है। जबकि इसमें सिंपल दो ही विषय था- एक जो लीज प्रक्रिया है, उसकी अद्यतन स्थिति और दूसरी 20 प्रतिशत रजिस्ट्री फीस देकर वन टाइम सेटलमेंट करना था। इसे लेकर भी झामुमो और कांग्रेस के लोगों ने भ्रम की स्थिति पैदा कर दी। लेकिन यह मेरा वादा है कि इस बार भाजपा की सरकार बनते ही हम इस मुद्दे को जड़ से समाप्त कर देंगे।

    सवाल: पश्चिमी और पूर्वी रेलवे फाटक पर घटों लग रहे जाम से लोग काफी परेशान हैं और कभी-कभी गंभीर संकट की स्थिति पैदा हो जाती है। पश्चिमी फाटक से कुछ दूरी पर सदर अस्पताल है। प्रसव के लिए जानेवाली महिलाओं को कभी घंटों जाम में फंसना पड़ता है। कई बार तो उन्हें टांग कर अस्पताल ले जाना पड़ता है। दूसरे मरीजों को भी परेशानी होती है। यहां ओवर ब्रिज की मांग है। इसका समाधान कैसे निकालेंगे?

    तुष्टीकरण के कारण टेंडर को लंबित करवा दिया गया है
    जवाब: इसका समाधान तो हो चुका है। रघुवर दास की सरकार में मैंने स्थायी रूप से चार आरओबी स्वीकृत कराया। यह सब बातें आॅन रिकॉर्ड हैं। चार आरओबी और एक अंडरपास। संयोग से दो आरओबी का काम तो तेजी से चल रहा है। तीन पहाड़ और महाराजपुर में आरओबी बन रहा है। साहिबगंज में दो आरओबी स्वीकृत था, पूर्वी और पश्चिमी फाटक। पश्चिमी फाटक की सारी प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। इस सरकार की मंत्री परिषद् ने भी अनुमति प्रदान कर दी। अब जब टेंडर की प्रक्रिया होनी थी, तो यहां तुष्टीकरण की राजनीति के कारण कतिपय जनप्रतिनिधियों के माध्यम से इसको दबाव बना कर लंबित करवा दिया गया। साहिबगंज के साथ सौतेला व्यवहार इस सरकार ने किया है। रेलवे से लेकर हर तरह की प्रक्रिया पूरी करने के बाद इसको रोकने के पीछे सरकार की क्या मंशा है, जनता भी इसे समझ रही है। जैसे ही यह सरकार बदलेगी, साहिबगंज का आरओबी एक साल के अंदर बन कर तैयार होगा।

    सवाल: यहां के लोगों की डिमांड है कि साहिबगंज में इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज हो? आपने वादा भी किया था कि मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज यहां बन कर रहेगा, लेकिन अभी भी साहिबगंज इससे वंचित है। फिलहाल उसकी क्या स्थिति है?

    सरकारी महिला कॉलेज स्थापित कराया
    जवाब: देखिए, साहिबगंज में शैक्षणिक रूप से पहले मात्र साहिबगंज विद्यालय था। वह सरकारी कॉलेज था। यहां हमने महिलाओं के लिए एक सरकारी महिला कॉलेज स्थापित कराया। पहले यहां के बच्चों को दूसरे राज्यों में पॉलिटेक्निक करने के लिए जाना पड़ता था। आज यहां पॉलिटेक्निक कॉलेज है। पढ़ाई भी प्रारंभ है। रघुवर दास की सरकार में मैंने इंजीनियरिंग कॉलेज की स्वीकृति करवायी। मौजूदा सरकार प्रतिशोध की भावना के साथ काम कर रही है। जमीन नहीं होने का बहाना बना कर इसे लटका दिया है। वहीं मेडिकल कॉलेज भी मैंने उस वक्त भारत सरकार की मदद से पास कराया। लेकिन इस सरकार ने वन विभाग की जमीन को चिह्नित करके दे दिया। वन विभाग की अपनी कुछ प्रक्रियाएं होती, जिससे कुछ विलंब हो रहा है, लेकिन मेडिकल कॉलेज तो यहां निश्चित रूप से बन कर रहेगा।

    सवाल: महिला कॉलेज की बिल्डिंग तो बन गयी है, लेकिन पढ़ाई अभी चालू नहीं हो पायी है?
    जवाब: इस सवाल में मैं थोड़ा सा संशोधन करूंगा। महिला कॉलेज में पढ़ाई भी प्रारंभ हो गयी है।

    सवाल: लेकिन एक दो कमरे में ही पढ़ाई हो रही है?
    जवाब: फिलहाल वह अपने भवन में स्थापित हो गया है। पहले पढ़ाई साहिबगंज कॉलेज में होती थी, लेकिन अब भवन में चालू हो गयी है। अभी उसमें कुछ शिक्षकों की कमी है, मौजूदा सरकार के संज्ञान में यह मामला भी मैंने सदन में लाया है। इस सरकार में शिक्षकों की नियुक्ति अभी नहीं हो पा रही है और भी आधारभूत संरचनाओं में जो कमी है, उसे आनेवाले दिनों में पूरा कर लिया जायेगा।

    सवाल: झारखंड में भाजपा का सबसे बड़ा मुद्दा बांग्लादेशी घुसपैठियों और डेमोग्राफी परिवर्तन को लेकर है। आपने जब अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत की, तब आपने इस मुद्दे को जोर शोर से उठाया था। कैसे राजमहल और संथाल इस घुसपैठ और डेमोग्राफिक परिवर्तन से प्रभावित हो रहा है?

    घुसपैठ हमारे लिए जीवन-मरण का प्रश्न, सरकार बनते ही एनआरसी लागू करायेंगे
    जवाब: बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा हमारे लिए राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि हमारे लिए जीवन मरण का प्रश्न है। विशेष रूप से देखा जाये तो जो छद्म सेक्यूलर पार्टी बताती हैं, जैसे कांग्रेस, जेएमएम, राजद, कम्युनिस्ट पार्टियां, इनके द्वारा वोट बैंक की राजनीति करने के कारण, तुष्टीकरण की राजनीति को पोषित करने वालों के कारण, आज हमारा देश और खासकर संथाल परगना यह दंश झेल रहा है। 90 के दशक से इस इलाके में बांग्लादेशी घुसपैठियों का आना प्रारंभ हुआ। उस समय शासन में जो अधिकारी थे, वे वैसे ही उस मुद्दे पर गुमराह करते थे, जैसे आज हेमंत सोरेन की सरकार सदन के अंदर और बाहर, यहां तक की माननीय न्यायालय को भी गुमराह कर रही है। हेमंत सरकार कह रही है कि यहां एक भी बांग्लादेशी घुसपैठिया नहीं है। और उसी सरकार के द्वारा विधानसभा में सवाल उठाने पर कहा जाता है कि चार बांग्लादेशी पकड़ाये हैं। बाद में सरकार को न्यायालय के समक्ष भी कहना पड़ा कि चार बांग्लादेशी पकड़ाये हैं। सच्चाई यह है कि संथाल में कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहां हजारों की संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिये नहीं हों। इन घुसपैठियों के कारण हमारा सामाजिक ताना-बाना बिगड़ रहा है। हमारी संस्कृति पर आक्रमण हो रहा है। जल जंगल जमीन प्रभावित हो रहे हैं। आंतरिक सुरक्षा खतरे में है। ये छद्म सेक्यूलर पार्टियां इस मुद्दे को सांप्रदायिक चश्मे से देखती हैं। अपनी विभाजनकारी राजनीति को पोषित करने के चश्मे से देखती हैं। जबकि इस जटिल समस्या को हम देश के चश्मे से देखते हैं। मैं यह लड़ाई 90 के दशक से लड़ता आ रहा हूं। जब यहां की जनता ने मुझे चुन कर राज्य की सबसे बड़ी पंचायत में भेजा, उस पंचायत के अंदर मैंने यहां के लोगों के दर्द को साझा किया। जब-जब मैंने इस मुद्दे को उठाया, चाहे वह रघुवर दास की सरकार हो या अब हेमंत सोरेन की सरकार हो, हर समय कांग्रेस, जेएमएम और राजद बंगलादेशी घुसपैठियों के समर्थन में खड़ी दिखी। शुक्रवार को जब गृह मंत्री अमित शाह ने यहां सभा की, तो उन्होंने मंच से खुल कर कहा कि हमारी सरकार आयेगी तो साहिबगंज और पाकुड़ जिला में हम एनआरसी कि प्रक्रिया को प्रारंभ करेंगे और एक-एक बांग्लादेशी घुसपैठिये को चुन-चुन कर निकाल बाहर करेंगे।

    सवाल: राजमहल उधवा प्रखंड में लोकसभा चुनाव के दौरान 12 हजार मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से गायब हो गये थे, ये क्या चक्कर है।

    षडयंत्र के तहत मतदाताओं के नाम सूची से गायब कर दिये गये
    जवाब: इस बात की शिकायत हमने राज्य निर्वाचन से भी की थी। एक बड़े सुनियोजित षडयंत्र के तहत, वैसे तो यह कार्य राज्य के सभी जिलों और विधानसभा क्षेत्रों में हुआ है। खासकर राजमहल विधानसभा की बात करूं, तो हमारे यहां जो डेमोग्राफी बदली है, उसके कारण हमारे राजनीतिक कार्यकर्ता भी संवेदनशील रहते हैं और उनके आसपास जो घटनाएं घटती हैं, उस पर वे पैनी नजर भी रखते हैं। इस क्षेत्र में जब लोकसभा चुनाव हुआ, तो हजारों की संख्या में हिंदू मतदाताओं के नाम या तो वोटर लिस्ट से डिलीट कर दिये गये, या उसका प्रकाशन ही नहीं हुआ। यही नहीं, पहले जिस मतदान केंद्र में मतदाता का नाम दर्ज था, उसको वहां से पांच-दस किलोमीटर दूर के केंद्र पर कर दिया गया।

    बड़े पैमाने पर यहां मतदाता सूची में 123 प्रतिशत तक की अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की गयी है। यानि अब लव जिहाद, लैंड जिहाद के बाद वोट जिहाद का षडयंत्र चल रहा है। मैंने इसकी जानकारी राज्य निर्वाचन आयोग और भारत निर्वाचन आयोग को दी। संवैधानिक संस्थाओं के प्रति मेरा अटूट विश्वास है। निर्वाचन आयोग ने मेरी बातों को नहीं सुना, लेकिन उच्च न्यायालय के संज्ञान में ये बातें आयीं और उच्च न्यायालय इस गंभीर मुद्दे पर संज्ञान ले रहा है। राजमहल के उधवा प्रखंड में 2014 से 2019 के बीच में मात्र आठ हजार मतदाता बढ़ते हैं लेकिन जैसे ही हेमंत सोरेन की सरकार आती है, 2019 से 2024 के बीच में यहां 24 हजार मतदाता बढ़ जाते हैं। आप इसका खुद आकलन कर सकते हैं। कई बूथों पर 2019 में 600 मतदाता थे, लेकिन 2024 में 1400 मतदाता हो जाते हैं। मेरी लड़ाई बांग्लादेशी घुसपैठियों से है। जिस प्रकार से देश और झारखंड के संसाधनों पर उनका अतिक्रमण हो रहा है, यह न तो देशहित में है और न ही झारखंड हित में। ये घुसपैठिये अवैध रूप से राशन कार्ड, वोटर कार्ड, आधार कार्ड बनवा रहे हैं। नागरिक प्रमाण पात्र बनवा रहे हैं और वहां के संसाधनों पर काबिज हो रहे हैं। आज पूरा झारखंड बांग्लादेशी घुसपैठ के दंश को झेल रहा है।

    सवाल: मिर्जापुर चौकी से लेकर साहिबगंज मुख्यालय तक एनएच में गड्ढे ही गड्ढे हैं, इसका समाधान क्या है?

    फोनलेन पर काम चालू हो गया है
    जवाब: एनएच 80 का जो विषय है, पीएम मोदी और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हमारे लोगों के दर्द को समझा। साहिबगंज-मनिहारी गंगा पुल बनवाने की दिशा में उन्होंने काम किया। वहीं राजमहल से लेकर मानिकचक तक भी पुल बनाना प्रस्तावित है। इसको लेकर भी मैंने आवाज उठायी। इसमें बंगाल के साथ जमीन को लेकर अड़चन आ रही है। अगर पार्टी ने मुझे फिर से आशीर्वाद दिया तो मैं अपने अगले कार्यकाल मैं विश्वास दिलाता हूं कि राजमहल से मानिकचक पुल हमारे पहले एजेंडे में है और उसे उसी कार्यकाल में पूरा करेंगे। 2014 से पहले यहां सड़क में गड्ढा है या गड्ढे में सड़क है, पता ही नहीं चलता था। लेकिन पीएम मोदी के आशीर्वाद से मिर्जापुर चौकी से लेकर फरक्का तक एनएचआइ के माध्यम से फोर लेन का काम चल रहा है। हेमंत सरकार की लटकाने वाली नियत के कारण मिर्जापुर चौकी से लेकर साहिबगंज मुख्यालय तक वाली सड़क निर्माण में देरी हुई। लेकिन कई प्रयास के बाद अब 46 करोड़ की लागत से इस सड़क का निर्माण हो रहा है।

    सवाल: भाजपा शहरी क्षेत्रों में मजबूत है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी संघर्ष कर रही है। कैसे आप अपनी बातों को मजबूती से साथ ग्रामीणों तक पहुंचायेंगे ?

    इस बार गांव से ही होगा परिवर्तन
    जवाब: पीएम मोदी देश का नेतृत्व कर रहे हैं। यह देशवासियों के लिए गर्व का विषय है। पीएम मोदी द्वारा जो भी काम किये जा रहे हैं, वह समाज में बैठे अंतिम व्यक्ति तक तो देख कर किया जा रहा है। उस अंतिम व्यक्ति तक योजनाओं का लाभ मिले, इसके लिए वह हमेशा प्रयासरत रहते हैं। क्षेत्र विशेष की मानें तो पहाड़ों में जायेंगे तो थोड़ी कमियां हैं हमारे अंदर। बदली हुई डेमोग्राफी के कारण एक बहुत बड़ा समूह है, जिन्हें हम अपनी बातों को नहीं समझा पा रहे हैं। लेकिन मेरे क्षेत्र में आप बैठेंगे, तो हर एक गांव हमारे साथ जुड़ा हुआ है। अमित शाह के कार्यक्रम में आपने जो जनसैलाब देखा, उनमें ज्यादा संख्या ग्रामीणों की ही थी। ऐसा नहीं है कि ग्रामीणों में भाजपा लोकप्रिय नहीं है। ग्रामीण भाजपा पर भरोसा करते हैं, लेकिन जिन समूहों तक हम नहीं पहुंच पाये हैं, उन तक जरूर पहुंचने की कोशिश करेंगे। अमित शाह ने भी कहा कि पार्टी के नेता, कार्यकर्ता और शीर्ष नेतृत्व गांव-गांव जायेंगे और हेमंत सरकार की नाकामियों को गिनवायेंगे। परिवर्तन होगा और निश्चित होगा।

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