विशेष
एक बार जरा आदिवासियों के घर का धुस्का खाकर तो देखिये
एक बार उनकी पीड़ा को गहराई से समझ कर तो देखिये
एक बार उनके गांव जाकर तो देखिये, दिल जीता कैसे जाता है
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
जगह जमशेदपुर का गोपाल मैदान। भारी बारिश, भीड़ और छतरी के नीचे लोग। अचानक गाड़ियों से सायरन की आवाजें आती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इंट्री होती है। जैसे ही मोदी की इंट्री होती है, एक बुजुर्ग ग्रामीण आदिवासी महिला कहती है कि इतनी बारिश में भी मोदी हम लोगों से मिलने आ गया। वहीं पास में खड़ी एक आदिवासी महिला कहती है, हां रांची से रोड से आया है। वे दोनों आदिवासी महिलाएं आश्चर्यचकित थीं। मैंने उनसे कहा कि नरेंद्र मोदी तो गाड़ी से आये हैं, आप लोग तो भीग कर उनका इंतजार कर रही हैं। उन्होंने कहा कि मोदी को देखना था, प्रधानमंत्री हैं, इतनी बारिश में वह जमशेदपुर आये हैं, बहुत बड़ी बात है। मेरे और उन महिलाओं के बीच जो संवाद हुआ, उसमें उनकी जो भावनाएं प्रकट हुर्इं, वह कोई छोटी-मोटी बात नहीं थी। यह एक संकेत है भाजपा नेताओं के लिए कि अगर ग्रामीणों में पैठ बनानी है, तो उनके जीवन में झांकना पड़ेगा। उनके दिलों को छूना पड़ेगा। उनके जीवन का हिस्सा बनना पड़ेगा। उन्हें सचमुच में यह विश्वास दिलाना होगा कि भाजपा आपके करीब है, आपके दिलों के करीब है। आपके दुख-दर्द में साथ है। पीएम भारी बारिश में सड़क से आये, यह वाकया उन महिलाओं के दिलों में घर कर गया। ये महिलाएं तीन घंटे से मोदी को देखने के लिए खड़ी थीं। सोच लीजिए, ऐसी वहां कितनी महिलाएं थीं, जो दुधमुंहे बच्चों को लेकर सिर्फ मोदी को देखने के लिए आयी थीं। छोटे-छोटे बच्चे, युवा, बुजुर्ग भारी बारिश में भीग कर सिर्फ और सिर्फ मोदी की एक झलक पाने के लिए घंटों इंतजार कर रहे थे। सोच लीजिए, अगर मोदी वहां किसी कारणवश नहीं पहुंच पाते, तो उन लोगों के अरमानों का क्या होता। वे कितने निराश हो जाते। लेकिन मोदी भी मोदी हैं। वह भला अपने चाहनेवालों को कहां निराश करते हैं। वह सड़क के रास्ते अब तक की सबसे लंबी यात्रा कर जमशेदपुर पहुंचे। उन्होंने यह नहीं सोचा कि सुरक्षा व्यवस्था कितनी दुरुस्त है। उन्होंने बस कोल्हान की जनता की भावनाओं को समझा और पहुंच गये जमशेदपुर। भाजपा को इससे सबक लेने की जरूरत है। भाजपा शहर में तो अपनी छाप छोड़ देती है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में वह अभी भी ग्रामीणों के दिलों को छूने के लिए संघर्ष कर रही है। आखिर क्यों भाजपा ग्रामीणों में अपनी पैठ बनाने में कामयाब नहीं हो पाती है और कैसे मिल सकती है इसमें सफलता बता रहे हैं, आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड राज्य बड़ा ही अनोखा है। यहां के लोग व्यवहार मात्र से ही पिघल जाते हैं, खासकर ग्रामीण। जब भी आप झारखंड के ग्रामीण इलाकों में जायेंगे, आप पायेंगे कि उन इलाकों में लोग निश्छलता से भरे पड़े हैं। आप उनसे प्रेम से बात कीजिए, वे आपके लिए स्नेह का सागर खोल देते हैं। वे कुछ छिपायेंगे नहीं, खासकर आदिवासी। उन्हें झूठ बोलना ही नहीं आता। अगर वे झूठ बोलेंगे, तो तुरंत पकड़ में भी आ जाते हैं। अगर उन्होंने कोई गलती की है और उनसे जरा घुमा कर कोई पूछ लेता है, तो वे तुरंत सच्चाई उगल देते हैं। पीएम मोदी का भारी बारिश के बीच सड़क से जमशेदपुर आना कोई छोटी-मोटी घटना नहीं है। इसको मानवीय आधार पर तौला जाये, तो यह अपने आपमें एक मिसाल है। इस घटना ने वहां पर आये ग्रामीणों में बहुत बड़ा मैसेज दिया है। लेकिन यहां समझने वाली बात यह है की जमशेदपुर का गोपाल मैदान बिष्टुपुर इलाके में पड़ता है, जो शहरी क्षेत्र है। और शहरी क्षेत्रों में भाजपा मजबूत है। अगर यही आयोजन कोल्हान के ग्रामीण इलाके में हुआ होता, तो इसका असर कुछ और ही हुआ होता।
ग्रामीण इलाकों में जाना होगा नेताओं को
भाजपा की झारखंड के ग्रामीण इलाकों में पकड़ कमजोर है। यह हर चुनाव में सामने आ जाता है। भाजपा नेताओं को यह समझना होगा कि अगर उन्हें ग्रामीण इलाकों में पकड़ मजबूत करनी है, तो उनके बड़े नेताओं को उन इलाकों में जाना ही होगा। ग्रामीणों के जीवन का हिस्सा बनाना ही पड़ेगा। उनकी संस्कृति से उन्हें जुड़ना ही पड़ेगा। उनके साथ रह कर उनके पारंपरिक भोजन का स्वाद लेना ही पड़ेगा। साथ में बैठ कर खाना पड़ेगा। उनकी पीड़ा को सुनना पड़ेगा। उनकी असल समस्याओं को जानना पड़ेगा और उसका हल भी निकालना पड़ेगा। आज के दौर में सभा से क्या होगा। सभा तो लोग घर में बैठ कर भी मोबाइल से देख सकते हैं। भाषण ही देना है, तो कहीं से दे दीजिए। उस भाषण का असर मात्र 10-20 हजार लोगों पर ही होगा, जो वहां पर आये हैं या लाये गये हैं। लेकिन अगर यही पीएम कोल्हान के एक गांव में आते, लोगों का सुख-दुख सुनते, उनके साथ वक्त बिताते, तो जो मैसेज वहां से जाता, वह बड़ा ही अनोखा होता। फिर भाजपा को प्रचार तंत्र की जरूरत नहीं पड़ती। यह घटना इतिहास में दर्ज हो जाती। खैर पीएम सुरक्षा कारणों से शायद ऐसा कार्यक्रम नहीं कर पाये। प्रोटोकोल के हिसाब से वे हर जगह अपनी मर्जी से जा भी नहीं सकते, लेकिन भाजपा के अन्य नेताओं को किसने रोका है।
ग्रामीण जनता से कनेक्ट जरूरी
अगर झारखंड की बात की जाये, तो जितने नेता भाजपा मुख्यालय में बैठते हैं, वे अगर ग्रामीण इलाकों में जाकर ग्रामीणों के साथ कुछ दिन गुजारें या फिर उनकी दिनचर्या का हिस्सा बनें, तो फिर देखिये कैसे ग्रामीण उनसे कनेक्ट करते हैं। झारखंड विधानसभा चुनाव के प्रभारी और सह प्रभारी शिवराज सिंह चौहान और हिमंता बिस्वा शर्मा को बनाया गया है। दोनों जमीन से जुड़े नेता हैं। दोनों शहर और गांव का फर्क भी समझते हैं। लोग उन पर विश्वास भी कर रहे हैं। अगर सचमुच में भाजपा को ग्रामीणों के बीच अपनी मजबूत पैठ बनानी है, तो इन्हें भी गांवों-ब्लॉक का दौरा करना पड़ेगा। शहर में तो ऐसे ही भाजपा मजबूत है। एक उदाहरण सामने है। पिछले महीने असम के सीएम और भाजपा के चुनाव सह प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा जब संथाल पगरना के गायबथान गये थे, तो ग्रामीणों के बीच उसका बहुत ही सकारात्मक असर पड़ा था।
बाबूलाल मरांडी ने सेट किया उदाहरण
फिलहाल झारखंड में भाजपा में मात्र एक ही ऐसा नेता है, जो गांव-गांव आज भी घूमता है। ऐसा कोई गांव नहीं, जहां वह नेता वहां के 20-25 लोगों को नाम से नहीं जानता। वह और कोई नहीं, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी हैं। बाबूलाल मरांडी सिर्फ आदिवासी नेता नहीं हैं, वह अन्य वर्गों को भी रिप्रेजेंट करते हैं। इनके साथ समस्या यह है कि वह इसका ढिंढोरा नहीं पीटते। शांति से काम करते हैं। टास्क पूरा करते हैं। बाबूलाल मरांडी नियमित रूप से जमीन पर ही काम करते रहे हैं। ग्रामीणों के घरों में जाते हैं, उनके साथ वक्त बिताते हैं, उनके साथ खाते हैं, उनकी समस्या को सुनते हैं। बस यही करना चाहिए अन्य भाजपा नेताओं को भी।
ग्रामीण इलाकों को टारगेट करना जरूरी
भाजपा परिवर्तन महारैली कर रही है। लेकिन अगर भाजपा इस रैली में सिर्फ शहरी इलाकों को टारगेट करेगी, तो उसे बहुत फायदा नहीं मिलनेवाला। क्योंकि शहरी वोटर्स तो उसके साथ हैं ही। लेकिन अगर इस रैली के माध्यम से कुछ फ्रूटफुल परिणाम चाहिए, तो उसे ग्रामीण इलाकों में इंट्री मारनी होगी। ग्रामीणों संग दिन बिताना होगा। भाजपा के बड़े नेताओं को ग्रामीणों की दिनचर्या में शामिल होना पड़ेगा। तब ग्रामीण कहेगा, अरे मेरे यहां इतना बड़ा नेता आया था, पूरे गांव में इसकी चर्चा होगी। गांव से गांव जुड़ा रहता है, यानी उस क्षेत्र में यह बात फैल जायेगी। आज गांव-गांव में मोबाइल फोन है। जब वहां के युवा वीडियो शेयर करेंगे, तो यह चर्चा का विषय बनेगा।
जनता नेताओं से जुड़ाव महसूस करेगी।
सरकारी योजनाओं का एक अलग स्थान होता है। योजनाओं के जरिये सरकार जनता को राहत पहुंचा सकती है। लेकिन दिलों का जुड़ाव योजनाओं से नहीं होता, रेवड़ियां बांटने से नहीं होता, यह तो एक समय के बाद जनता समझने लगती है कि यह तो उसका हक है। कोई भी देश अगर तेजी से विकास करता है, तो उसे जनता को उसका हक देना ही पड़ता है। मूलभूत सुविधा तो उपलब्ध करवानी ही पड़ती है। लेकिन अगर कोई डायरेक्ट जनता की असली समस्याओं को समझेगा, उसका परिणाम बहुत ही सकरात्मक होगा।
स्थानीय नेताओं को तरजीह देनी होगी
भाजपा को सिर्फ आयातित नेताओं पर डिपेंड नहीं रहना होगा। आयातित नेताओं की सीमाओं को भी भांपना पड़ेगा। भाजपा को अपने नेताओं पर भी भरोसा करना होगा। नयी पौध भी तैयार करनी होगी। लोकल नेताओं को भी मंच देना पड़ेगा। लोकल नेताओं को उनके क्षेत्र की समझ ज्यादा होगी। वहां के लोगों का जुड़ाव उनसे अधिक होगा। वे प्रमुखता से अपने क्षेत्र की समस्याओं से अवगत करा पायेंगे। उसका हल भी आसानी से निकल पायेगा।
कल्पना सोरेन का उदाहरण सामने है
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन का ही उदाहरण ले लीजिए। जब हेमंत सोरेन जेल में थे, वह घर की दहलीज लांघ कर सीधे जनता के बीच गयीं। इस क्रम में वह गांव-गांव भी गयीं। संकरी गलियों को भी उन्होंने लांघा। उन्होंने जनता के सामने अपनी पीड़ा को रखा। जनता ने भी समझा कि कल्पना अपनी पीड़ा उनसे इसीलिए बांट रही हैं, क्योंकि उन्हें अपना हिस्सा समझती हैं। एक कहावत है-धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी, आपद काल परिखिअहीं चारी। हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद कल्पना सोरेन ने अपना फर्ज निभाया। वे लोगों के दरवाजे तक गयीं। उन्होंने लोगों का भरोसा जीता। जनता ने भी दिल खोल कर उनकी मदद की। आज परिणाम सबके सामने है। कल्पना विधायक तो बनी हीं, उन्होंने लोकसभा में पार्टी को मजबूती भी दिलायी। आज की परिस्थिति में कल्पना सोरेन का कद झामुमो पार्टी में काफी बढ़ गया है। अब उन पर यह आरोप नहीं लग सकता कि सीएम की पत्नी होने के कारण दल में उन्हें सम्मान मिल रहा है। जब जेएमएम मुसीबत में थी, उन्होंने खुद को साबित किया। भाजपा नेताओं को भी इससे सबक लेने की जरूरत है। उन्हें भी ग्रामीणों का हिस्सा बनना पड़ेगा। दोनों ओर से संवाद के द्वार को खोलना पड़ेगा। अगर आप उनके लिए बहुत कुछ कर नहीं सकते, तो कम से कम उनका सुख दु:ख तो बांट ही सकते हैं।
पीएम के सड़क मार्ग से आने का बहुत बड़ा असर
उस आदिवासी महिला, जिसका जिक्र मैंने इंट्रो में किया, अगर वह पीएम के भारी बारिश में आने से प्रभावित हो सकती है, तो इसका संदेश बहुत बड़ा है। क्योंकि पीएम ने न तो जमशेदपुर के मंच से उसे किसी योजना से नवाजा, न ही उसे हेमंत सरकार की मंईयां सम्मान योजना जैसा लाभ मिला। पीएम मोदी ने बस उस महिला का दिल जीता, क्योंकि वह महिला पीएम का इंतजार बारिश में भीग कर घंटों से कर रही थी, और पीएम वहां पहुंच गये। पीएम थोड़ी न उस महिला से पर्सनली मिले, बस उस महिला ने देखा कि देश का प्रधानमंत्री सड़क के रास्ते बारिश में जमशेदपुर पहुंच गया। यानी पीएम ने कोल्हान की जनता की भावनाओं का सम्मान किया। उस महिला के दिल में पीएम मोदी की जगह सिर्फ इसलिए बन गयी, क्योंकि इसके पहले शायद वह मान कर चलती थी कि इतना बड़ा आदमी भला बारिश में सड़क मार्ग से कैसे आ सकता है।
गोपाल मैदान में हुई सभा की एक और खासियत थी। शहरी भीड़ तो पंडाल में कुर्सियों पर बैठ गयी थी, लेकिन गांव से आयी महिलाएं और बुजुर्ग लगातार हो रही बारिश में भी बीच मैदान में खड़े होकर पीएम के आने की बाट जोह रहे थे। उनमें अधिकांश लोगों के पास छाता भी नहीं था। पीएम की सभा में भीड़ का आना बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात यह थी कि जिन लोगों तक भाजपा अपनी बात पहुंचानी चाहती थी, वैसे लोग उस सभा न सिर्फ दिखे, बल्कि घंटों तक पानी में भीग कर भी डटे रहे। इस सभा में ग्रामीण क्षेत्रों से काफी संख्या में लोग वहां पहुंचे, जिनकी सचमुच में भाजपा को जरूरत थी।