रांची। झारखंड हाइकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि आपराधिक मामले में बरी किया गया व्यक्ति मुआवजे का दावा नहीं कर सकता, क्योंकि ट्रायल के दौरान या उससे पहले पुलिस या किसी अन्य एजेंसी द्वारा आरोपों के आधार पर किसी को जेल भेजना मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं है। दरअसल रांची के रहने वाले बंशीधर शुक्ला ने हाइकोर्ट में क्रिमिनल रिट दायर की थी। अपनी याचिका में उन्होंने कहा था कि रांची सीबीआइ के विशेष कोर्ट ने उन्हें जालसाजी के मामले में वर्ष 2004 में दोषी करार दिया था, जिसके बाद उन्होंने सीबीआइ कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी, लेकिन अपील कोर्ट ने भी उनकी सजा को बरकरार रखा।

हाइकोर्ट ने सीबीआइ कोर्ट के फैसले को पलटते हुए उन्हें निर्दोष करार दिया
इसके बाद उन्होंने हाइकोर्ट में सीबीआइ कोर्ट के आदेश को चुनौती दी, जहां उन्हें राहत मिली और हाइकोर्ट ने सीबीआइ कोर्ट के फैसले को पलटते हुए उन्हें निर्दोष करार दिया। हाईकोर्ट से निर्दोष करार दिये जाने के बाद बंशीधर शुक्ला ने ट्रायल के दौरान उन्हें न्यायिक हिरासत में रखे जाने को मानवाधिकार का उल्लंघन बताते हुए हाइकोर्ट में मुआवजे की मांग को लेकर याचिका दाखिल की, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। इस मामले की सुनवाई हाइकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की कोर्ट में हुई।

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