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21 सितंबर को दुमका में अमित शाह फूंकेंगे विधानसभा चुनाव का बिगुल
सत्ता पक्ष भी लगातार बहा रहा है पसीना, खुद हेमंत ने संभाल रखी है कमान

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
विधानसभा चुनाव के दरवाजे पर खड़े झारखंड की राजनीति का केंद्र माना जानेवाला संथाल परगना इस बार भी कांटे के चुनावी मुकाबले के लिए तैयार होता दिखने लगा है। वैसे भी झारखंड की सियासत में संथाल परगना की भूमिका बेहद अहम मानी जाती है। यह इलाका न केवल विद्रोहों और आंदोलनों का गवाह रहा है, बल्कि यहां की फिजाओं में एक अलग किस्म की सियासी रवायत देखी जाती है। संथाल परगना को वैसे तो झामुमो का गढ़ माना जाता है, लेकिन भाजपा भी यहां उतनी कमजोर नहीं है। चुनावी अखाड़े में शिबू सोरेन भी संथाल परगना से पराजय का स्वाद चख चुके हैं और हेमंत सोरेन समेत झामुमो के लगभग सभी दिग्गज भी। दूसरी तरफ भाजपा के लिए भी यहां की धरती एक समान नहीं रही। कभी पार्टी ने खूब चुनावी फसल काटी, तो कभी उसे सूखे का सामना करना पड़ा। लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में संथाल परगना का परिदृश्य उलझा हुआ नजर आ रहा है। दोनों ही पक्षों ने संथाल फतह के लिए रणनीतियां तैयार की हैं। भाजपा की तरफ से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 21 सितंबर को दुमका से विधानसभा चुनाव का बिगुल फूकेंगे, तो सत्ता पक्ष की तरफ से सीएम हेमंत सोरेन ने ही कमान संभाल रखी है। 2019 के विधानसभा चुनाव में झामुमो को सबसे बड़ी पार्टी बनाने के साथ सत्ता में लाने का काम संथाल परगना ने ही किया था। इसलिए इस बार भी झामुमो ने संथाल परगना में पूरी ताकत झोंक रखी है। पिछले कुछ दिनों से संथाल परगना के सियासी माहौल को देखने से एक बात साफ होती है कि झारखंड की सत्ता की चाबी माने जानेवाले इस इलाके में इस बार का चुनावी मुकाबला बेहद रोमांचक होगा। इसलिए यहां दोनों ही पक्षों ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। भाजपा ने जहां बांग्लादेशी घुसपैठ से लेकर भ्रष्टाचार तक को मुद्दा बना रखा है, वहीं हेमंत सोरेन ने भाजपा पर पैसे के बल पर घर और पार्टी को तोड़ने की साजिश का, बाहर के नेताओं पर सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने का आरोप लगा कर साफ कर दिया है कि वह अपने इस अभेद्य दुर्ग को बचाने के लिए हर कीमत चुकाने को तैयार हैं। क्या है संथाल परगना का सियासी माहौल और संभावनाएं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

आंदोलनों और विद्रोह की धरती संथाल परगना के माहौल में एक बार फिर चुनावी रंग घुलता हुआ नजर आने लगा है। विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे झारखंड का यह इलाका हमेशा से ही सियासत का केंद्र रहा है और इस बार भी परिस्थितियां बहुत अलग नहीं हैं। सत्तारूढ़ झामुमो-कांग्रेस-राजद का इंडिया ब्लॉक अपने इस मजबूत दुर्ग को बचाने के लिए पूरी ताकत लगाये हुए है, तो भाजपा भी बहुत पीछे नहीं है। एक-दूसरे पर राजनीतिक हमलों के बीच संथाल परगना अब चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार दिख रहा है। इलाके में चुनावी चर्चाएं पूरे शबाब पर हैं। हर तरफ आसन्न विधानसभा चुनाव के बारे में बातें हो रही हैं। इन चर्चाओं में एक बात नोट करने लायक है कि यहां के लोग अब राजनीति के मामले में बहुत पीछे नहीं हैं। सोशल मीडिया के जमाने में संथाल परगना के लोग सियासत की महीन और झीनी परतों को भी उधेड़ने से परहेज नहीं कर रहे हैं। हर व्यक्ति के पास, चाहे वह शहरी हो या ग्रामीण, उच्च शिक्षित हो या अशिक्षित, अमीर हो या गरीब, हर उस व्यक्ति के बारे में पूरी जानकारी है, जो तनिक सा भी सियासत से जुड़ा हुआ है। संथाल के लोग अपने इलाके के बारे में हर वह जानकारी दे देते हैं, जो पहले संभव नहीं होती थी। कौन किससे मिल रहा है, कहां जा रहा है और कैसा काम कर रहा है से लेकर गलत कामों को गिनाने में आम लोग पीछे नहीं हटते। तेजी से बदलते राजनीतिक घटनाक्रमों पर लोग करीब से निगाह रख रहे हैं। इस तरह के माहौल से यह साफ हो गया है कि इस बार का विधानसभा चुनाव यहां दोनों ही पक्षों की ताकत का असली इम्तिहान लेगा। इसलिए दोनों ही पक्ष की तरफ से अभी से ही संथाल परगना में पूरी तकत झोंक दी गयी है। सत्ता पक्ष की तरफ से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मोर्चा संभाल रखा है, तो विपक्षी भाजपा की तरफ से प्रदेश चुनाव सह-प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा और प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी भी लगातार सक्रिय हैं।

अमित शाह के दौरे से भाजपा को उम्मीद
इस चुनावी माहौल को धार देने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 21 सितंबर को दुमका आ रहे हैं। उनके साथ भाजपा शासित चार राज्यों के मुख्यमंत्री भी होंगे। ये सभी लोग झारखंड भाजपा द्वारा निकाली जानेवाली परिवर्तन यात्रा की शुरूआत करेंगे। इस परिवर्तन यात्रा को भाजपा के चुनाव अभियान का श्रीगणेश माना जा रहा है। 20 जुलाई को अपनी सात घंटे की रांची यात्रा के दौरान अमित शाह ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को जो मंत्र दिया था, दुमका का उनका दौरा उस मंत्र को कार्यरूप में उतारने का पहला अध्याय होगा। पिछले दो महीने में झारखंड भाजपा ने संथाल परगना के हर उस मुद्दे को पूरी ताकत से उठाया है, जो उसकी चुनावी नैया को पार लगाने में सहायक हो सकता है। अब अमित शाह के दौरे से उस नाव की गति को बढ़ाने में मदद मिलने की उम्मीद है।

संथाल का राजनीतिक परिदृश्य
इस बात में कोई संदेह नहीं कि संथाल परगना झामुमो का अभेद्य किला है। 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 18 में से नौ सीटें जीत कर अपना दबदबा साबित किया था। उसकी सहयोगी कांग्रेस ने चार सीटें जीती थी, जबकि पोड़ैयाहाट की सीट उसे बाद में मिल गयी थी। भाजपा को केवल चार सीटें मिली थीं। विधानसभा की 18 सीटों में सात अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। इन सभी आरक्षित सीटों, यानी दुमका, जामा, शिकारीपाड़ा, लिट्टीपाड़ा, महेशपुर, बोरियो और बरहेट के अलावा दो अनारक्षित सीटों, नाला और मधुपुर पर झामुमो का कब्जा है। उसकी सहयोगी कांग्रेस के पास पांच सीटें- जरमुंडी, पोड़ैयाहाट, महगामा, जामताड़ा और पाकुड़ हैं। भाजपा के पास चार सीटें- देवघर, गोड्डा, सारठ और राजमहल हैं। इन चार में से तीन सामान्य सीटें हैं, जबकि देवघर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में भाजपा ने संथाल के विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की थी। इनमें दो आदिवासी क्षेत्र, दुमका और जामा भी थे। 2019 के विधानसभा चुनाव में संथाल परगना में मिली ऐतिहासिक सफलता ने झामुमो नेतृत्व और खास कर हेमंत सोरेन को अपनी राजनीतिक रणनीति पर दोबारा विचार करने पर मजबूर कर दिया। विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद हेमंत सोरेन ने संथाल की किलेबंदी पर अधिक ध्यान दिया। उन्होंने कैबिनेट में तीन स्थान (खुद को मिला कर चार) के अलावा स्पीकर भी संथाल से बनाया।

भाजपा के लिए चुनौती भी और अवसर भी
संथाल परगना की झामुमो ने जिस तरह किलेबंदी की है, उससे भाजपा के लिए चुनौती बड़ी हो गयी है। संथाल परगना में आदिवासियों की बहुसंख्यक आबादी को अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा लंबे समय से कोशिश कर रही है। उसकी कोशिशें लोकसभा चुनाव में सफल होती दिखने लगी थीं। लेकिन हेमंत सोरेन ने इसे पूरी तरह बदल दिया है। अब संथाल में भाजपा की वापसी की राह बेहद कठिन हो गयी है। लेकिन इसके साथ ही उसके लिए इस किले को ध्वस्त करने का अवसर भी है। भाजपा के पास बाबूलाल मरांडी जैसा ताकतवर हथियार है, जिसने संथाल की राजनीति को बहुत करीब से देखा भी है और महसूस भी किया है। बाबूलाल मरांडी ही वह शख्स हैं, जिन्होंने शिबू सोरेन तक को मात दी है। इसके अलावा हाल के दिनों में भाजपा ने झामुमो के दो कद्दावर नेताओं, सीता सोरेन और लोबिन हेंब्रम को अपने पाले में कर हेमंत सोरेन के किले में दरार जरूर पैदा की है।

संथाल में आदिवासी अस्मिता बनाम घुसपैठ और भ्रष्टाचार
जहां तक विधानसभा चुनाव में मुद्दों की बात है, तो इस बार सत्ताधारी गठबंधन का फोकस आदिवासी अस्मिता पर ही है। हेमंत सोरेन जिस तरह भाजपा पर गुजरात-महाराष्ट्र, असम और मध्यप्रदेश के लोगों को झारखंड में लाने और यहां के आदिवासी, दलित और पिछड़ों को बरगलाने के साथ पैसे के बल पर घर और पार्टी को तोड़ने का आरोप लगा रहे हैं, उससे साफ हो गया है कि यह मुद्दा भी सत्ता पक्ष का प्रमुख हथियार है। हेमंत सोरेन अपनी सरकार की उपलब्धियों को भी जनता के सामने मजबूती से रख रहे हैं। इसके अलावा आरक्षण, सरना धर्म कोड, 1.36 लाख करोड़ का बकाया, स्थानीयता नीति और केंद्रीय योजनाओं में झारखंड के हिस्से में कटौती जैसे झारखंड की जनभावना से जुड़े मुद्दे भी उनके एजेंडे में शामिल हैं। सत्ताधारी महागठबंधन को पता है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उसके लिए मुश्किल होगी, तो इसकी काट के लिए वह केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर विपक्ष के नेताओं को जेल में बंद करने का मुद्दा उठा रहा है। खासकर हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को झारखंडी अस्मिता से जोड़ने का प्रयास भी असरदार होता दिख रहा है। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इसे लेकर ‘झारखंड झुकेगा नहीं’ का नारा दिया है। इसके अलावा महागठबंधन के पास जल-जंगल-जमीन और स्थानीयता के मुद्दों के साथ स्थानीय मुद्दों को केंद्र में रखने की रणनीति बनायी है। 2019 में सत्ता संभालने के बाद वैश्विक महामारी के दौरान राज्य सरकार द्वार किये गये कार्यों की भी याद हेमंत सोरेन दिला रहे हैं। मंईयां योजना और अबुआ आवास योजना के सहारे वह संथाल की सियासी हवा को थामने की जुगत में हैं।

इन मुद्दों पर महागठबंधन को घेरेगी भाजपा-आजसू
जहां तक विपक्षी भाजपा-आजसू का सवाल है, तो उसके पास विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा भ्रष्टाचार और परिवारवाद ही दिख रहा है। इसके अलावा संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण डेमोग्राफी में बदलाव का मुद्दा भी उसका मुख्य हथियार बना हुआ है। हाल के दिनों में हिमंता बिस्वा सरमा और भाजपा के दूसरे नेताओं ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है। भाजपा ने लोकसभा चुनाव में भी भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बना कर आक्रामक प्रचार अभियान छेड़ा था, हालांकि उसका बहुत अधिक असर नहीं पड़ा था। लेकिन विधानसभा चुनाव में वह इस मुद्दे को संथाल परगना के पिछड़ेपन से जोड़ कर सत्ता पक्ष को घेरने की कोशिश कर रही है। इसके बाद खनिजों से ही जुड़े डीएमएफटी (डिस्ट्रिक्ट मिनरल्स फाउंडेशन ट्रस्ट) का सवाल उठा कर भाजपा-आजसू महागठबंधन सरकार को कठघरे में खड़ा कर रही है।

कुल मिला कर संथाल परगना इस बार ऐसे चुनावी मुकाबले का गवाह बनेगा, जो पहले कभी नहीं हुआ। लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह से दोनों पक्षों ने यहां अपनी ताकत झोंक रखी है, उससे तो यही लगता है कि संथाल के रण में ही दोनों पक्षों की ताकत का लिटमस टेस्ट होगा।

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