विशेष
पड़ोसी देशों में हालिया घटनाओं से भारत को सतर्क रहने की जरूरत
कट्टरपंथी ‘चिकन नेक कॉरिडोर’ को कमजोर करने की साजिश रच रहे
कालादान प्रोजेक्ट मजबूती देगा भारत की कमजोर कड़ी को
असम के सीएम हिमंता ने भी चेताया, स्थानीय नागरिकों को भड़काने की कोशिश लगातार हो रही

विश्व में, खासकर भारत के पड़ोसी देशों में हो रहे हालिया घटनाक्रमों को देखते हुए भारत को सतर्क रहने की जरूरत है। भारत विरोधी कई ऐसी ताकतें हैं, जो भारत को अस्थिर करने की जुगत में हैं। पहले श्रीलंका, फिर बांग्लादेश और अब नेपाल की घटना कई सवालों को जन्म देती हैं। विशेषज्ञों की मानें, तो दुनियाभर में जो सरकारें गिर रही हैं, युद्ध हो रहे हैं, उनके पीछे अमेरिकी सरकार से ज्यादा डीप स्टेट का एजेंडा छिपा हुआ है। जानकारों की मानें तो भारत का लोकतंत्र बहुत मजबूत है। भारत संविधान से चलता है। मोदी सरकार बेहतरीन काम कर रही है। भारत का नेतृत्व मजबूत हाथों में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार भारत को मजबूत स्थिति में लाने का निरंतर प्रयास कर रही है। भारत हर मोर्चे पर मजबूत होता दिखाई पड़ता है, चाहे आर्थिक हो या फिर सुरक्षा। रह-रह कर भारत को अशांत करने के लिए कई सारे आंदोलन भी खड़े किये गये और भविष्य में जाते रहेंगे। उसके पीछे गहरी साजिश का भी अनुभव सरकार को हुआ। सामाजिक स्तर पर भी कई बार भारत विरोधी शक्तियों ने मोदी सरकार को निशाने पर लेने की कोशिश की, लेकिन हर बार विफल रही। पुलवामा हमला भी उसी साजिश की रणनीति थी, जहां धर्म पूछकर हिंदुओं को गोलियों से भून दिया गया था। नतीजा युद्ध हुआ और भारत ने पाकिस्तान को धूल चटा दी। भारत ने विश्व को अपनी ताकत से भी अवगत कराया। जो शक्तियां भारत को कमजोर आंक रही थी, उनका मुंह काल हो गया। लेकिन ये शक्तियां लगातार इसी प्रयास में हैं कि भारत को कैसे अशांत किया जाये। भारत बड़ी आबादी वाला बड़ा देश है। यहां भारत विरोधी शक्तियां राज्यों के हिसाब से भारत को अशांत करने के लिए प्रयासरत रहेंगी। हालिया घटनाक्रमों पर अगर नजर डाली जाये, तो भारत विरोधी ताकतों की नजर भारत की कमजोर कड़ी पर है। वह है सिलीगुड़ी कॉरिडोर यानि ‘चिकन नेक कॉरिडोर’। अगस्त महीने में असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने दावा किया था कि बांग्लादेशी कट्टरपंथी चिकन नेक कॉरिडोर को कमजोर करने की साजिश रच रहे हैं। इसके लिए वे उन भारतीय नागरिकों को भड़काने का प्रयास कर रहे हैं, जो कभी बांग्लादेश से पलायन कर भारत आये थे। हिमंता ने कहा था कि धुबरी की स्थिति चिंताजनक है, यहां बांग्लादेशी कट्टरपंथियों का एक वर्ग स्थानीय लोगों को भड़काने और उन्हें बांग्लादेश के प्रति निष्ठा दिखाने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहा है, जबकि वे बहुत पहले वहां से पलायन कर चुके हैं। क्या है यह चिकन नेक कॉरिडोर और इसपर क्यों है भारत विरोधी ताकतों की नजर बता रहे हैं आजाद सिपाही के संपादक राकेश सिंह।

भारत के नक्शे में पतले से रास्ते के तौर पर दिखने वाला रूट ही चिकन नेक कहलाता है। यह पश्चिम बंगाल में है। संकरे रूट के रूप में दिखने और संवेदशील क्षेत्र होने के कारण ही इसे चिकन नेक कहते हैं। चिकन नेक पूर्वोत्तर भारत के सात राज्यों अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा को शेष भारत से जोड़ने वाला एकमात्र भूभाग है। इसे सिलीगुड़ी कॉरिडोर भी कहा जाता है। यह भारत के पश्चिम बंगाल में एक पतला भूभाग है, जो उत्तर-पूर्वी राज्यों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है। यह क्षेत्र भौगोलिक और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। यह कॉरिडोर अपने सबसे संकरे बिंदु पर केवल 22 किलोमीटर चौड़ा है और इसकी सीमा उत्तर-पश्चिम में नेपाल और उत्तर-पूर्व में भूटान से लगती है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर का महत्व इसकी रणनीतिक स्थिति में निहित है, क्योंकि यह एकमात्र ऐसा भू-मार्ग है, जो भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर पूर्वोत्तर राज्यों के शेष भारत के साथ आर्थिक (व्यापार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उनके बीच एकमात्र रेलवे माल ढुलाई लाइन है) और राजनीतिक एकीकरण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत का यह पूर्वोत्तर भाग भूटान, चीन, म्यांमार और बांग्लादेश के साथ सीमा साझा करता है। यह क्षेत्र तेल, गैस और खनिजों सहित प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है। यहां विविध जातीय और भाषाई समूह रहते हैं। सुरक्षा के लिहाज से ये इलाका काफी संवेदनशील है।

चिकन नेक क्षेत्र में भारतीय सेना, वायुसेना और सीमा सुरक्षा बल की मजबूत मौजूदगी है। इस इलाके में भारत की मिसाइलें, एडवांस रडार और अन्य सुरक्षा प्रणाली तैनात हैं, जो भारत की पूर्वी सीमा को सुरक्षित रखने का कार्य करती हैं। इसके अलावा असम राइफल्स और बंगाल पुलिस भी सीमाओं का सरंक्षण करती है। भारतीय सेना की त्रिशक्ति कोर इस महत्वपूर्ण क्षेत्र की रक्षा करने की जिम्मेदारी निभा रही है।

बांग्लादेश ने चीन को लालमोनिरहाट जिले में एयरबेस बनाने का प्रस्ताव दिया था
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में चीफ एडवाइजर मोहम्मद यूनुस जब मार्च महीने में चीन के दौरे पर गये थे, वहां उन्होंने बांग्लादेश में आर्थिक निवेश बढ़ाने को कहा और चिकन नेक का जिक्र किया था। इसके बाद से कॉरिडोर की सुरक्षा को लेकर नयी बहस छिड़ गयी है। बांग्लादेश की चीन से करीबी सिलीगुड़ी कॉरिडोर के लिए बड़ा खतरा है। भारत की चिकन नेक पर बांग्लोदश और चीन के इरादे नेक नहीं हैं। बांग्लादेश के मुखिया मोहम्मद यूनुस की चीन की यात्रा से उनके नापाक मंसूबे सामने आये थे। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को भारत की सीमा के करीब लालमोनिरहाट जिले में एयरबेस बनाने का प्रस्ताव दिया था। लालमोनिरहाट भारत के चिकन नेक कॉरिडोर के पास है। अब इसी की काट भारत ने तैयार कर ली है। उसने कालादान प्रोजेक्ट को तेजी से पूरा करने के लिए कमर कस ली है।

कालादान प्रोजेक्ट
क्या लालमोनिरहाट में चीन अपना एयरबेस बना रहा है, यह सवाल फिलहाल चर्चा का विषय बना हुआ है। अगर यह प्रोजेक्ट पूरा होता है, तो इसका सीधा सा मतलब है कि चिकन नेक और भारत की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। चीनी सेना यहां पहुंचती है, तो वह पश्चिम बंगाल के करीब पहुंच जायेगी, यानी भारत के आसपास के इलाके में उसकी मौजूदगी मजबूत हो जायेगी। बांग्लादेश के लालमोनिरहाट के एक एयरबेस को लेकर पिछले कई दिनों से चर्चा तेज है कि बांग्लादेश इसे फिर से सक्रिय करने पर विचार कर रहा है। ऐसे में जब अगस्त महीने में भारत की लोकसभा में इससे संबंधित सवाल किया गया था, तो केंद्र सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया दी थी। संसद में विदेश राज्यमंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने कहा था कि भारत ने इस विषय पर बांग्लादेश की हालिया प्रेस ब्रीफिंग का संज्ञान लिया है। मंत्री ने कहा कि भारत सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हर घटनाक्रम पर पैनी नजर रख रही है और जरूरत के अनुसार सभी जरूरी कदम उठाये जा रहे हैं। हालांकि 26 मई को बांग्लादेश सेना के सैन्य संचालन निदेशक ने कहा था कि लालमोनिरहाट एयरबेस को सैन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग में लाने की कोई योजना नहीं है।

अब समझिए क्यों खास है लालमोनिरहाट एयरबेस
गौरतलब है कि लालमोनिरहाट एयरबेस भारत-बांग्लादेश सीमा से केवल 12-20 किलोमीटर और सिलीगुड़ी कॉरिडोर से करीब 135 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह एयरबेस ब्रिटिश काल में 1931 में बना था और द्वितीय विश्व युद्ध के समय काफी अहम भूमिका निभा चुका है। फिलहाल यह बांग्लादेश वायुसेना के अधीन है, लेकिन कई दशकों से निष्क्रिय पड़ा है।

क्या है कालादान प्रोजेक्ट के पीछे भारत की सोच
कालादान प्रोजेक्ट को भारत ने अंजाम तक पहुंचाने की पूरी तैयारी कर ली है और हाल ही में इस पर म्यांमार के अधिकारियों के साथ चर्चा तेज कर दी है। दरअसल, चीन और बांग्लादेश की जुगलबंदी से चिकन नेक को लेकर भविष्य में चुनौती खड़ी करने की कोशिश हो सकती है। ऐसे में भारत ने समंदर के रास्ते भी पूर्वोत्तर के राज्य से जोड़ने का वैकल्पिक रास्ता तैयार करना शुरू कर दिया है। भारत और म्यांमार के बीच स्थित कालादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट केवल एक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट नहीं है, बल्कि यह भारत की भू-राजनीतिक रणनीति का अहम हिस्सा है। यह परियोजना भारत के लिए सामरिक, आर्थिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है, खासकर उस समय जब चीन अपने पड़ोसी देशों में गहरी घुसपैठ कर रहा है और बांग्लादेश जैसे पुराने सहयोगी देश भी अब चीन के प्रभाव में हैं।

सित्तवे पोर्ट पर भारत का नियंत्रण, जो बनेगा अहम
भारत ने म्यांमार के सित्तवे पोर्ट का निर्माण किया और उसका ऑपरेशनल कंट्रोल भारत के पास है। इस पोर्ट को भारत के लिए चीन के कयाकफ्यू पोर्ट के जवाब के रूप में देखा जा रहा है। इससे न केवल भारत की नौसैनिक पहुंच म्यांमार तक बढ़ती है, बल्कि पूर्वोत्तर राज्यों के लिए एक सुरक्षित सप्लाई चेन भी बनती है।

भारत ने खत्म की पुरानी व्यवस्था, जानिए वजह
दरअसल, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने मार्च महीने में चीन का दौरा किया था। वहां उन्होंने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि भारत के पूर्वोत्तर राज्य लैंड लॉक्ड (जमीन से घिरे हुए) हैं और समुद्र तक उनकी पहुंच का एकमात्र रास्ता बांग्लादेश है। यूनुस ने चीन को बांग्लादेश की स्थिति का लाभ उठाने के लिए आमंत्रित किया था। मोहम्मद यूनुस ने चीन में जिनपिंग सरकार को भारत के बॉर्डर के करीब लालमोनिरहाट जिले में एयरबेस बनाने का प्रस्ताव दिया था। रणनीतिक तौर पर लालमोनिरहाट बेहद संवेदनशील है। यह चिकन नेक कॉरिडोर के पास है, जो भारत के प्रमुख हिस्से को पूर्वोत्तर के राज्यों से जोड़ने का काम करता है। सुरक्षा के लिहाज से इसे बेहद खास माना जाता है। यूनुस की यह टिप्पणी भारत को नागवार गुजरी थी। इसके बाद दोनों देशों के बीच राजनयिक तनाव भी देखने को मिला था।

असम के मुख्यमंत्री चिकन नेक कॉरिडोर को लेकर मुखर
अगस्त महीने में एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने दावा किया था कि बांग्लादेशी कट्टरपंथी चिकन नेक कॉरिडोर को कमजोर करने की साजिश रच रहे हैं। उन्होंने कहा कि धुबरी जिले में दीवारों पर बांग्लादेश के समर्थन में नारे लिखे गये, जिससे स्थानीय नागरिकों को भड़काने की कोशिश हो रही है। उन्होंने बताया कि हाल ही की यात्रा के दौरान उन्होंने दीवारों पर लिखे ऐसे नारे देखे, जिनमें लोगों से बांग्लादेश के प्रति निष्ठा दिखाने की अपील की गयी थी।

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