पटना। सीमेज संस्था में संस्कार भारती की ओर से “भारतीय कला दृष्टि” विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर साहित्य, रंगमंच, संगीत और फिल्म से जुड़े विशेषज्ञों ने छात्रों को संबोधित करते हुए भारतीय कला की मूल आत्मा और उसके समकालीन महत्व पर प्रकाश डाला।

संस्कार भारती के अखिल भारतीय संगठन मंत्री अभिजीत गोखले ने कहा कि सोशल मीडिया के माध्यम से भारत की विविधताओं को आज पूरी दुनिया देख रही है। रील्स के जरिए संस्कृति, पर्यटन और भोजन से जुड़े कई पहलुओं की जानकारी लोगों तक पहुंच रही है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि सोशल मीडिया पर कुछ भ्रामक व विकृत सामग्री भी आ रही है, जो संस्कृति को नुकसान पहुँचा रही है। स्टैंडअप कॉमेडी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि मनोरंजन के बहाने टिक्का-टिप्पणी और आघात करने का चलन बढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि नई शिक्षा नीति में कला को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है, जिससे नई पीढ़ी भारतीय कला दृष्टि से और गहराई से जुड़ सकेगी।

फिल्म समीक्षक बिनोद अनुपम ने कहा कि फिल्मों में जहां एक ओर हिंसा दिखाई देती है, वहीं कुछ फिल्में आदर्श परिवार की झलक भी प्रस्तुत करती हैं। उन्होंने नई फिल्मों और राजश्री प्रोडक्शन की पारिवारिक फिल्मों के बीच अंतर को रेखांकित किया।

संगीत नाटक अकादमी के सदस्य व संस्कार भारती के अखिल भारतीय मंत्री डॉ. संजय कुमार चौधरी ने कहा कि प्रेमचंद की कहानियों में भारतीय दृष्टि स्पष्ट दिखाई देती है। उन्होंने जोर दिया कि फिल्मों में राष्ट्रभाव होना चाहिए और अनुकरणीय न होने वाले पात्रों को समाज के आदर्श के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए। उनका कहना था कि भारत का विचार आत्मा से जुड़ा है और कला का उद्देश्य जीवन, परिवार व राष्ट्र के लिए सामूहिक चेतना का निर्माण करना है। कुमार रविकांत ने कहा कि भारतीय कला दृष्टि लोक जीवन में रची-बसी है। फिल्मों के माध्यम से विमर्श स्थापित कर समाज को उससे परिचित कराना आवश्यक है।

वरिष्ठ नृत्यांगना अंजुला कुमारी ने कहा कि संस्कार भारती भारतीय कला दृष्टि का बोध कराती है। हमारी मिट्टी की खुशबू पूरे विश्व में फैली हुई है और युवा इसे और विस्तारित कर सकते हैं। उन्होंने वसुधैव कुटुम्बकम् का उदाहरण देते हुए कहा कि लोकगीतों व संस्कार गीतों में परिवार के सभी सदस्य शामिल होते थे, जो संयुक्त परिवार की परंपरा को दर्शाते हैं। आजकल हर रस्म में डीजे का चलन बढ़ गया है जिससे लोक संस्कृति का स्पर्श कम हो रहा है। उन्होंने चावल का उदाहरण देते हुए कहा कि उससे भात, खीर और बिरयानी सब बन सकता है, और हर व्यंजन की अपनी उपयोगिता है। उसी तरह कला भी जीवन में विविध रूपों में योगदान देती है।

वरिष्ठ नाटककार मिथिलेश कुमार ने कहा कि साहित्य, कला और संगीत से भले ही आजीविका कठिन हो, लेकिन इससे सम्मान और पहचान जरूर मिलती है। कार्यक्रम का संचालन सुदीपा घोष और नेहाल सिंह ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के निदेशक नीरज अग्रवाल ने दिया। इस अवसर पर संस्कार भारती के केन्द्रीय कार्यालय प्रमुख अशोक तिवारी, उत्तर और दक्षिण बिहार के महामंत्री, बड़ी संख्या में कार्यकर्ता और छात्र उपस्थित थे।

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