हालात बता रहे यहां सामान्य चुनाव की तरह होगा मुकाबला
दावेदारों का क्षेत्र में शुरू हो गया है भ्रमण
अरुण सिंह
आसन्न बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान झारखंड के घाटशिला विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव होना तय है। यह सीट राज्य के शिक्षा एवं निबंधन मंत्री रहे रामदास सोरेन के निधन के कारण खाली हुई है। प्राय: माना जाता है कि किसी नेता के निधन से रिक्त हुई सीट पर उस परिवार के किसी सदस्य को यदि चुनावी मैदान में पार्टी उतारती है, तो उसे मतदाताओं की सहानुभूति का लाभ मिलता है। इसलिए इस सीट पर स्व. रामदास सोरेन के बड़े पुत्र सोमेश चंद्र सोरेन चुनाव लड़ेंगे, यह तय है। बस, झामुमो नेतृत्व द्वारा औपचारिक घोषणा करना बाकी है। वहीं, मुख्य प्रतिद्वंदी दल भाजपा के टिकट पर बाबूलाल सोरेन चुनावीरण में एक बार फिर दिखायी पड़ेंगे, इसकी संभावना ज्यादा है। वर्ष 2024 में बाबूलाल सोरेन को हराकर स्व. रामदास सोरेन तीसरी दफा विधायक बने थे। घाटशिला सीट पर होने वाले इस उपचुनाव में दिवंगत रामदास सोरेन के बेटे को पार्टी के जनाधार के साथ-साथ सहानुभूति का लाभ हासिल होना अवश्यसंभावी है। उधर, अगर भाजपा बाबूलाल सोरेन पर दांव खेलेगी, तो पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन अपने बेटे को जीताने के लिए पूरी ताकत लगा देंगे। चर्चा है कि अगर ऐसा हुआ तो यह कहने के लिए उपचुनाव होगा। यह एक आम चुनाव की तरह दिलचस्प बन जायेगा। फिलहाल झाममो और भाजपा ने अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं की है।

झामुमो में इकलौता, भाजपा में कई दावेदार
रामदास सोरेन के असामयिक निधन से रिक्त घाटशिला सीट पर झामुमो से एकमात्र सोमेश सोरेन का नाम सामने आया है। कोई अन्य नेता अपनी दावेदारी ठोकता नजर नहीं आ रहा। सच तो यह है कि सोमेश के नाम पर विधानसभा क्षेत्र के तमाम झामुमो नेता-कार्यकर्ता सहमत दिख रहे हैं। दूसरी ओर, भाजपा में बाबूलाल सोरेन (2024 के प्रत्याशी), लखन मार्डी (2019 के प्रत्याशी), डॉ सुनीता देवदूत सोरेन (2019 में झाविमो की प्रत्याशी) का नाम उभरकर सामने आ रहा है।

कांग्रेस के एक धड़ा का अंदरूनी सुर:
घाटशिला से इस उपचुनाव में कांग्रेस अपना दावा ठोकेगी, इसकी संभावना तनिक भी नहीं है। हालांकि पार्टी के कुछ स्थानीय नेता-कार्यकर्ताओं का तर्क है कि प्रदीप कुमार बलमुचू यहां से लगातार तीन दफा चुनाव जीते हैं। पार्टी के कुछ लोगों का तर्क है कि रामदास सोरेन ने अपने बल पर यह सीट कांग्रेस को पराजित करके झामुमो की झोली में वर्ष 2009 में पहली बार डाला था। ऐसे कंग्रेसी तर्क दें रहे कि अब जबकि रामदास सोरेन नहीं रहे, तो गठबंधन के तहत यह सीट कांग्रेस को वापस मिल जाना चाहिए। यह अलग बात है कि इसकी कोई संभावना दूर-दूर तक नहीं है।

पहली बार भाजपा ने 2014 में जीत हासिल की:
घाटशिला विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को 2014 में 57 साल बाद पहली बार जीत का स्वाद चखने का मौका मिला था। पार्टी प्रत्याशी लक्ष्मण टुडू ने पार्टी को जीत दिलायी थी। वह घाटशिला के 16 वें विधायक बने थे। उन्हें 50 हजार से अधिक वोट मिले थे। वहीं, 2019 में लखन मार्डी भाजपा के वोटों में इजाफा करते हुए आंकड़े को 56 हजार के पार पंहुचाने सफल रहे थे, किंतु उन्हें तब दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा था। पिछले चुनाव में कोल्हान के प्रभावी माने जाने वाले नेता पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भाजपा ने टिकट दिया था। बाबूलाल भले ही 22 हजार से अधिक अंतर से चुनाव हार गये, किंतु पार्टी को रिकॉर्ड वोट दिलवाया। इन्होंने इन्हें 75 हजार 910 वोट प्राप्त हुए थे। इसलिए उपचुनाव में बाबूलाल को पार्टी फिर मौका देगी, इसकी चर्चा तेज है।

क्षेत्र में स्थापित कर चुके थे स्व. रामदास सोरेन:
झामुमो की तरफ से रामदास सोरेन वह पहला चेहरा साबित हुए, जिन्होंने कांग्रेस का गढ़ बन चुके घाटशिला सीट से प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बलमुचू को पराजित करके तीर-धनुष को स्थापित किया था। स्व. रामदास सोरेन कितने कर्मठ और मेहनती थे, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2005 में पहली बार इस क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़कर लगभग 35 हजार वोट हासिल करके चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों को चौंका दिया था। उसके अगले चुनाव यानी 2009 में झारखंड में कांग्रेस एवं झामुमो का गठबंधन टूटा और रामदास ने बलमुचू को पटखनी दे दिया। तब सोरेन को 38,283 वोट मिले और उन्होंने 1192 वोटों से जीत हासिल कर विधानसभा का चौखट लांघ ली। 2014 के चुनाव में स्व. रामदास सोरेन को भाजपा प्रत्याशी लक्ष्मण टुडू के सामने भले ही हार मिली थी, लेकिन सच तो यह भी है कि तब तक वे घाटशिला के चुनावी राजनीति एक बड़ा चेहरा बन चुके थे। चुनाव में पराजय के बावजूद घाटशिला से न उनका पांव डगमगाया और ना ही झामुमो समर्थकों का मनोबल गिरा। राजनीति में रूचि रखने वाले तमाम लोग स्वीकारते हैं कि भाजपा से जीत भले ही लक्ष्मण टुडू को मिली हो, किंतु सही मायने में उन्हें विजयी बनाने में पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। फिर आया 2019 और 2024 का विधानसभा चुनाव। स्व. रामदास सोरेन ने 2019 में भाजपा प्रत्याशी लखन मार्डी भाजपा के लखन मार्डी और 2024 में बाबूलाल सोरेन को हरा दिया। उपरोक्त दोनों चुनाव में रामदास को क्रमश: 63 हजार 531 और 98 हजार 356 मत मिले थे।

हेमंत-चंपई का चुनावी रणक्षेत्र बनेगा घाटशिला सीट!
बहरहाल, घाटशिला में उपचुनाव होना तय है। अभी तक चुनाव आयोग ने तारीख की घोषणा नहीं की है। उम्मीदवारों के नाम की भी घोषणा नहीं हुई है। हालांकि भावी प्रत्याशियों ने गांव-मोहल्ले में भागदौड़ शुरू कर दी है। लोग अभी से चर्चा करने लगे हैं कि रामदास सोरेन का किला बरकरार रखने के लिए मुख्यमंत्री सह पार्टी प्रमुख हेमंत सोरेन और पार्टी की स्टार प्रचारक विधायक कल्पना सोरेन कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगी। इसी तरह, भाजपा अगर बाबूलाल सोरेन एक बार फिर से चुनाव मैदान में उतारते हैं तो चंपई सोरेन झामुमो का किला ढहाकर अपने बेटे को विधायक के रूप में देखने के लिए जमीन-आसमान एक कर देंगे। झामुमो को ध्यान देना होगा कि इस उपचुनाव में जमीनी नेता रामदास सोरेन नहीं हैं। भाजपा नेता-कार्यकर्ताओं को पिछले चुनाव में मिले वोटों को बढ़ाने की जुगत में काफी मेहनत करनी पड़ेगी।

घाटशिला सीट से अब तक के विधायक
1. 1952 – मुकुंद राम तांती (झारखंड पार्टी)
2. 1957 – श्याम चरण मुर्मू (झारखंड पार्टी)
3. 1962 – बास्ता सोरेन (सीपीआइ)
4. 1967 – दशरथ मुर्मू (कांग्रेस)
5. 1969 – यदुनाथ बास्के (झारखंड पार्टी)
6. 1972 – टीकाराम माझी (सीपीआइ)
7. 1977 – टीकाराम माझी (सीपीआइ)
8. 1980 – टीकाराम माझी (सीपीआइ)
9. 1985 – कारण चंद्र मार्डी (कांग्रेस)
10. 1990 – सूर्य सिंह बेसरा (आजसू)
11. 1991 – टीकाराम माझी (सीपीआइ)
12. 1995 – प्रदीप बलमुचू (कांग्रेस)
13. 2000 – प्रदीप बलमुचू (कांग्रेस)
14. 2005 – प्रदीप बलमुचू (कांग्रेस)
15. 2009 – रामदास सोरेन (झामुमो)
16. 2014 – लक्ष्मण टुडू (भाजपा)
17. 2019 – रामदास सोरेन (झामुमो)
18. 2024 – रामदास सोरेन (झामुमो)

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