न्याय के लिए कराह रहा है संस्थान, भ्रष्टाचारियों को संरक्षण और निर्दोष कर्मचारी तनख्वाह से वंचित
शिक्षा का मंदिर बना राजनीति का अखाड़ा, सत्ता संरक्षण में पलता भ्रष्टाचार, कार्रवाई अब भी अधूरी
कोई तो मेरी पीड़ा समझो, महुदा कॉलेज की मौन पुकार
समीद खान
मैं महुदा कॉलेज हूं। कभी गर्व से सीना चौड़ा कर कहता था कि मेरी गोद से निकलकर निकले छात्र ही इस समाज और देश के भविष्य के निर्माता हैं। मैं एक मां की तरह हर बच्चे को ज्ञान का संस्कार देता रहा। पर आज मैं टूट चुका हूं, झुक चुका हूं और भीतर ही भीतर सड़ रहा हूं। भ्रष्टाचार का दीमक मुझे खोखला कर रहा है, और मेरे आंगन की मासूमियत लगातार आहत हो रही है। क्या किसी को मेरी पीड़ा नहीं दिखती? क्या मेरे अंदर की चीख सुनायी नहीं देती? राजनीति के संरक्षण में पल रहे कुछ भ्रष्टाचारी मुझे जकड़ कर मेरे अस्तित्व को नष्ट करने पर तुले हैं। आज मैं अपने ही बच्चों की नजरों में असहाय और लाचार खड़ा हूं। मैं पूछता हूं— क्या एक मां की तरह समाज को भविष्य देने वाली इस संस्था की रक्षा के लिए कोई आगे नहीं आयेगा? क्या मेरी करुण पुकार यूं ही सन्नाटे में दब जायेगी? या फिर कोई ऐसा होगा जो इन भ्रष्टाचारियों के खिलाफ खड़ा होकर मुझे बचायेगा, ताकि मैं फिर से उसी शान और जिम्मेदारी के साथ समाज को सच्चे नागरिक दे सकूं?

शिक्षा का मंदिर कहे जाने वाला महुदा कॉलेज आज भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के बोझ तले कराह रहा है। कभी जहां से जिम्मेदार नागरिक निकलकर समाज और राष्ट्र का भविष्य संवारते थे, वहीं आज यह संस्थान खुद न्याय की गुहार लगा रहा है। कॉलेज की पीड़ा मानो उसकी दीवारों से निकल रही हो— मैंने एक मां की तरह समाज को शिक्षित संतानों का उपहार दिया। लेकिन आज राजनीति और प्रशासनिक संरक्षण में पल रहे भ्रष्टाचारियों ने मुझे खोखला कर दिया है। क्या मुझे बचाने कोई आगे नहीं आयेगा?

राजनीति और भ्रष्टाचार के शिकंजे में
महुदा कॉलेज में फैले भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करने के बजाय झारखंड एकेडमिक काउंसिल (जैक) ने कॉलेज का अनुदान ही रोक दिया। परिणामस्वरूप, कॉलेज के तमाम शिक्षकों और कर्मचारियों को पिछले सात महीनों से तनख्वाह तक नहीं मिल पायी है। स्थानीय लोगों और पीड़ित कर्मचारियों का सवाल है—क्या यह कदम भ्रष्टाचारियों को बचाने और निर्दोषों को सजा देने की दिशा में उठाया गया है? क्योंकि कॉलेज से जुड़े कई लोग स्पष्ट आरोपियों की ओर इशारा कर चुके हैं, बावजूद इसके अब तक उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। क्षेत्र के बुद्धिजीवी और सामाजिक संगठनों का कहना है कि सरकार और शिक्षा विभाग को इस मामले की पूरी जानकारी दी जा चुकी है। क्षेत्र के लोगों सहित कई पीड़ितों ने बार-बार पत्राचार कर भ्रष्टाचार की शिकायत दर्ज करायी, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से अब तक दोषियों पर कार्रवाई के बजाय आम कर्मचारियों और शिक्षकों को ही संकट में डाल दिया गया है। यह स्थिति न केवल महुदा कॉलेज की साख पर सवाल खड़ा कर रही है, बल्कि यह भी सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर क्यों भ्रष्टाचारियों को संरक्षण दिया जा रहा है और निर्दोष कर्मचारी दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं।

महुदा कॉलेज का निर्माण एक दर्दनाक घटना से जुड़ा
बताया जाता है कि महुदा कॉलेज का निर्माण एक दर्दनाक घटना से जुड़ा हुआ है। उस दौर में जब महुदा में उच्च शिक्षा का कोई साधन नहीं था, क्षेत्र के छात्र धनबाद कॉलेज जाते थे। इसी दौरान सड़क दुर्घटना में एक छात्र की मौत ने पूरे इलाके को झकझोर दिया। तब तत्कालीन मुखिया हाजी अब्दुल रब अंसारी ने बुद्धिजीवियों संग मिलकर महुदा में ही कॉलेज खोलने का संकल्प लिया। लोगों की मेहनत और बीसीसीएल कर्मियों के श्रमदान से वर्ष 1981-82 में कॉलेज की नींव पड़ी और 2000 में लालबंगला में इसे व्यवस्थित रूप से शुरू किया गया। वर्ष 2010 में झारखंड सरकार ने स्थायी मान्यता हेतु 7 एकड़ भूमि की शर्त रखी, जबकि कॉलेज के पास केवल साढ़े 3 एकड़ भूमि ही उपलब्ध थी। फलस्वरूप कॉलेज को केवल इंटर स्तर तक की अस्थायी स्वीकृति मिली। इसके बावजूद स्थानीय बुद्धिजीवियों, कर्मियों और जमीन दानदाताओं की मदद से कॉलेज चलता रहा। लेकिन सचिव अब्दुल रब अंसारी की मृत्यु के बाद कॉलेज में भ्रष्टाचार की जड़ें जमने लगीं। जीवी मीटिंग में जब संचालन की कमान दीप नारायण शर्मा को सौंपी गयी, तभी से कॉलेज में अनियमितता और भ्रष्टाचार बढ़ने लगा। उस समय शासी निकाय के अध्यक्ष बाघमारा विधायक (वर्तमान सांसद) ढुल्लू महतो थे। 15 साल तक भ्रष्टाचार की शिकायतें उठीं, मगर आवाज उठाने वालों को निलंबन झेलना पड़ा।
आज स्थिति यह है कि योग्य व्यक्तियों को दरकिनार कर अयोग्यों को सचिव और प्राचार्य बना दिया गया है। राजनीतिक संरक्षण में कॉलेज का अस्तित्व गर्त में चला गया है। लोग मानते हैं कि महुदा कॉलेज शिक्षा का मंदिर न रहकर अब राजनीति का शिकार बन चुका है।

गंभीर आरोपों की फेहरिस्त
कॉलेज पर लगे आरोप मामूली नहीं हैं। सूत्रों और कॉलेज से जुड़े कर्मचारियों के मुताबिक—
* इपीएफओ में करोड़ों का भ्रष्टाचार सामने आया है।
* कॉलेज पर करीब 2 करोड़ रुपये का फाइन झारखंड एकेडमिक काउंसिल द्वारा लगाया गया है।
नियमावली के विरुद्ध अयोग्य व्यक्ति को प्राचार्य बना दिया गया।
सचिव पद पर रहते हुए शिक्षकों व शिक्षकेतर कर्मचारियों को प्रताड़ित करने के मामले सामने आये हैं।
सचिव पद पर रहते हुए अन्य पदों पर बने रहकर अनियमित रूप से वेतन उठाने के आरोप हैं।
नियम विरुद्ध जाकर अपने सगे-संबंधियों को प्रोफेसर नियुक्त किया गया।
कॉलेज में भ्रष्टाचार का विरोध करने वाले कर्मचारियों और शिक्षकों को सस्पेंड करना या शो-कॉज नोटिस थमाना आम बात हो गयी है।

प्रशासन की खामोशी पर सवाल
इन गंभीर आरोपों और भ्रष्टाचार की परतें खुलने के बावजूद प्रशासन और उच्च शिक्षा विभाग की खामोशी ने स्थानीय समाज को आक्रोशित कर दिया है। अभिभावकों और छात्रों का कहना है कि यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई तो यह कॉलेज अपनी साख और अस्तित्व दोनों खो देगा।

मांगें तेज
क्षेत्रीय सामाजिक संगठन और बुद्धिजीवी वर्ग ने राज्य सरकार एवं शिक्षा विभाग से मांग की है कि महुदा कॉलेज को भ्रष्टाचारियों की जकड़ से मुक्त कराया जा और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाये, ताकि यह संस्थान फिर से शिक्षा का मजबूत केंद्र बन सके।

नियम-कानून की अनदेखी की गयी : गंगेश झा
पूर्व प्राचार्य गंगेश झा ने आरोप लगाया कि वर्ष 2020 के बाद से सचिव दीप नारायण शर्मा ने कॉलेज के नियम-कानून की अनदेखी करते हुए गलत तरीके से डिग्री का एफिलिएशन लाया और स्वयं को अनुचित ढंग से सचिव घोषित कर लिया। उन्होंने कहा कि नियम के अनुसार दानदाता को कॉलेज खाते में 25 हजार रुपये चेक द्वारा जमा करना होता है, लेकिन इनके सचिव बनने की प्रक्रिया सबके सामने स्पष्ट है। झा ने कहा कि कॉलेज में व्याप्त भ्रष्टाचार ने संस्था के अस्तित्व को संकट में डाल दिया है। उन्होंने विभाग और सरकार से जिम्मेदारों पर कार्रवाई कर कॉलेज को सुचारु रूप से संचालित कराने की अपील की।

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