रांची। झारखंड में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के विधायक सरयू राय ने राज्य सरकार पर सारंडा सघन वन क्षेत्र में अवैध खनन करने और सारंडा वन क्षेत्र का अस्तित्व समाप्त करने का आरोप लगाया है। राय मंगलवार को रांची प्रेस क्लब में प्रेस वार्ता कर रहे थे।

रांची प्रेस क्लब में विधायक सरयू राय ने कहा कि ऐसा लगता है कि खनन कंपनियां पूरे सारंडा सघन वन क्षेत्र में खनन पट्टा (लीज) प्राप्त कर लेना चाहती हैं और राज्य सरकार भी इसके पक्ष में है। इस तरह सारंडा सघन वन क्षेत्र का अस्तित्व पर खतरा पैदा हो गया है। इसके मद्देनजर उन्होंने सारंडा संरक्षण अभियान शुरू किया और इसे लेकर वर्ष 2012 में झारखंड उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका भी दायर की थी, जिसका निष्पादन हाल ही में उच्चतम न्यायालय का आदेश आने के बाद हुआ।

सरयू राय ने कहा कि पूरे सारंडा को सेंक्चुअरी घोषित करने के बारे में उच्चतम न्यायालय ने 17 सितम्बर को एक बड़ा और कड़ा आदेश जारी किया और कहा कि झारखंड सरकार सात अक्टूबर तक सारंडा वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित करे, अन्यथा राज्य के मुख्य सचिव जेल जाने के लिए तैयार रहें। इसके पूर्व गत 29 अप्रैल को झारखड सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग के सचिव ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष सशरीर उपस्थित होकर अभ्यारण्य घोषित होने में देरी के लिए क्षमा याचना की थी।

राय ने बताया कि वन विभाग के सचिव ने अदालत के समक्ष कहा था कि झारखंड सरकार 57,519.41 हेक्टेयर क्षेत्र में अभ्यारण्य घोषित करेगी और 13603,80 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र को ससंगदा बुरू संरक्षण रिजर्व के रूप में अधिसूचित करेगी। लेकिन सरकार ने अबतक ऐसा नहींं किया।

बिहार सरकार ने 1969 में गेम सेंचुरी किया था घोषितबिहार सरकार ने छह फरवरी 1969 को सारण्डा वन क्षेत्र के 314.68 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को गेम सेंक्चुअरी घोषित किया था। इसका उल्लेख सारण्डा वन प्रमण्डल के वर्किंग प्लान 1976 में है। इस पर सरयू राय ने कहा कि उन्होंने इस बारे में विधानसभा में दो मार्च 2021 को प्रश्न पूछा था, जिसके उत्तर में राज्य सरकार ने कहा था कि बिहार सरकार की यह अधिसूचना सरकार के पास उपलब्ध नहीं है।

उन्होंने बताया कि मंगलवार को झारखंड सरकार की एक मंत्रिमंडलीय उपसमिति सारंडा वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित करने के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययन करने के लिए सारंडा गई है। उप समिति की ओर से मंत्रिपरिषद को दिये गये परामर्श के अनुसार ही सरकार उच्चतम न्यायालय में आगामी आठ अक्टूबर को अपना पक्ष रखेगी।

विधायक ने कहा कि सारंडा वन क्षेत्र में खनन का इतिहास काफी पुराना है। सबसे पहले बोनाई आयरन कंपनी को घाटकुरी क्षेत्र में छह दिसम्बर, 1909 को 249.60 और 281.60 एकड़ में लौह अयस्क खनन का लीज दिया गया था। इसी तरह आठ दिसम्बर, 1915 तक अंकुवा और घाटकुरी इलाका में इस कंपनी को कुल 2706.16 एकड़ क्षेत्र में लौह अयस्क और मैंगनींज के खनन का लीज दिया था। इसके बाद में सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र की कई कंपनियों को मिलाकर स्वतंत्रता के पूर्व 11,886 एकड़ अर्थात 4,831.71 हेक्टेयर क्षेत्र में लीज दिया गया था।

उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद सार्वजनिक क्षेत्र की कुल 12 कंपनियों को कुल 6,633.30 हेक्टेयर में और निजी क्षेत्र की कुल 30 कंपनियों को 3132.18 हेक्टेयर क्षेत्र में लीज दिया गया था। इसके अलावे सार्वजनिक क्षेत्र की दो कंपनियों को 115.46 हेक्टेयर में और निजी क्षेत्र की पांच कंपनियों को 5,128.20 हेक्टेयर क्षेत्र में लौह अयस्क और मैंगनीज के खनन का पूर्वेक्षण पट्टा (प्रोस्पेक्टिंग लीज) दिया गया।

जदयू विधायक ने बताया कि वर्ष 2006 के बाद मधु कोड़ा की सरकार में सारंडा क्षेत्र में खनन लीज लेने वालों की जैसे बाढ़ सी आ गई थी। करीब 65,679.40 हेक्टेयर में माईनिंग लीज के आवेदन आये। इसमें प्रायः सभी आवेदन निजी क्षेत्र की कंपनियों का था।सारण्डा सघन वन का कुल क्षेत्रफल करीब 85,712 हेक्टेयर है।

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