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    Home»Jharkhand Top News»पांच दशक से खूंटी के लोग झेल रहे हाथियों के आतंक का दंश
    Jharkhand Top News

    पांच दशक से खूंटी के लोग झेल रहे हाथियों के आतंक का दंश

    shivam kumarBy shivam kumarSeptember 3, 2025Updated:September 3, 2025No Comments3 Mins Read
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    खूंटी। झारखंड के खूंटी ही नहीं, राज्य के कई अन्य जंगली इलाकों में बसे गांवों के लोग पिछले पांच दशक से भी अधिक समस से जंगली हाथियों का आतंक झेल रहे हैं। इस दौरान सैकड़ों लोगों ने हाथियों के हमले से अपनी जान गंवाई और करोड़ों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ।

    जंगली हाथियों के आक्रमण से निजात दिलाने की मांग को लेकर खूंटी जिले के लोगों ने सड़क जाम, सरकारी कार्यालयों का घेराव, रेल रोको सहित कई अन्य आंदोलन किये, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। हाथी भी अब इतने निडर हो गये हैं कि वे दिन दहाड़े शहरों में भी पहुंचने लगे हैं। खूंटी क्षेत्र के लोगों के लिए लगभग 15-20 वर्ष वहले ही राज्य सरकार ने कर्रा पखंड के इंद्रवन (इंद वन) में हाथियों के लिए आश्रयणी बनाने की घोषणा की की, लेकिन योजना कभी धरातल पर नहीं उतरी। इतना हीं नहीं, जिन क्षेत्रों में हाथी के आक्रमण अधिक होते हैं, उन जंगली इलाकों में बाड़ लगाने सहित कई तरह के उपायों की घोषणा की गई थी, लेकिन सभी योजनाएं फाइलों में ही मिट कर रह गईं।

    ग्रामीण कहते हैं कि वन विभाग का काम सिर्फ हाथियो के हमले में मारे गये लोगों के शवों का पोस्टमार्टम कराना और अंतिम क्रिया के लिए कुछ हजार रुपये पीड़ित परिवार को देना भर रह गया है। तोरपा प्रखंड के डेरांग, रोन्हे, कालेट, गिड़ुम, एरमेरे सहित कई गांवों के ग्रामीण बताते हैं कि हाथियों के भय से उन्होंने खेती करना तक छोड़ दिया है। खेतों में तो फसलों को हाथी बर्बाद करते ही हैं हैं, घरों में रखे अनाज भी सुरक्षित नहीं हैं।

    क्यों बढ़ रहा है मानव और गजराजों के बीच संघर्ष?

    झारखंड के खूंटी ही नहीं ओड़िशा और छत्तीसगढ़ सहित कई अन्य राज्यों में मानव और जंगली हाथियों के बीच संघर्ष लगातार बढ़ता जा रहा है। अखिर क्या कारण है कि मानव और गजराज एक दूसरे की जान के दुश्मन बनते जा रहे हैं। रनिया के रहनेवाले सेवानिवृत्त वन प्रमंडल पदाधिकारी अर्जुन बड़ाईक कहते हैं कि जंगलों की अवैध और अंधाधुंध कटाई के कारण हाथियों का आशियना छिनता जा रहा है। इसके कारण वे जंगलों से बाहर आकर भेजन और पानी की तलाश में गांवों तक पहुंच रहे हैं और ग्रामीणों पर हमले कर रहे हैं। इसके अलावा घने जंगलों में नक्सलियों की गतिविधि तेज होने के कारण भी गजराज जंगल से बेदखल हो रहे हैं। अर्जुन बड़ाईक बताते हैं कि हमें प्रकृति से छेड़छाड़ बंद करना होगा और जंगलों की सुरक्षा करनी होगी।

    तोरपा के शिक्षाविद और सेवानिवृत्त शिक्षक पंचम साहू कहते हैं कि जब कोई हमारा घर छिनेगा, तो हमें कहीं न कहीं तो आश्रय चाहिए। उन्होंने कहा कि जंगली जानवर हमारे जीवन के अभिन्न अंग हैं। वे हमारी रक्षा नहीं करेंगे, पर उनकी रक्षा करना हमारी बड़ी जिम्मेवारी है। यदि जानवर संरक्षित नहीं रहेंगे, तो प्रकृति का संतुलन बिगड़ना तय है।

    कर्रा प्रखंड के प्रगतिशील किसान दिलीप शर्मा कहते हैं कि झारखंड के सारंडा, इंद्र वन, नगड़ा जंगल सहित कई अन्य घने जंगल कभी हाथियों के शांतिपूर्ण और सुरक्षित आश्रय थे, जहां जंगलों की गहराइयों में गजराज स्वछंद होकर घमुते थे, लेकिन वनों का क्षेत्रफल लगातार सिकुड़ता जा रहा है और इसका खमियाजा हमलोगों को भुगतना पड़ रहा है।

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