मजबूरी या मकसद आखिर इस स्टैंड के पीछे क्या है कांग्रेस की रणनीति
महागठबंधन के सीएम चेहरे पर सस्पेंस जस का तस, सियासी संयोग या फिर सियासी प्रयोग
बिहार में लोकप्रियता के मामले में तेजस्वी यादव किसी से पीछे नहीं
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की बहुचर्चित वोटर अधिकार यात्रा 17 दिन बाद पटना में गांधी-अंबेडकर मार्च के रूप में समाप्त हुई। इस यात्रा ने बिहार की विपक्षी राजनीति में नयी ऊर्जा का निश्चित ही संचार किया है। यात्रा में राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कंधे से कंधा मिला कर भागीदारी की। प्रियंका गांधी, अखिलेश यादव, एमके स्टालिन, रेवंत रेड्डी, हेमंत सोरेन जैसे इंडिया ब्लाक के अन्य नेता भी शामिल हुए। तेजस्वी कभी ड्राइवर की भूमिका में दिखे, तो कभी पैदल चले और बाइक की सवारी भी की। राहुल कहते हैं कि उन्हें बिहार की इस यात्रा में काफी मजा आया। लेकिन इस यात्रा के दौरान सबसे बड़ा सवाल अनुत्तरित ही रह गया कि आखिर महागठबंधन का सीएम का चेहरा कौन है। राहुल गांधी ने पूरी यात्रा के दौरान एक बार भी नहीं कहा कि यदि बिहार में महागठबंधन की सरकार बनती है, तो तेजस्वी यादव सीएम होंगे। दूसरी तरफ तेजस्वी यादव ने कई रैलियों में खुल कर अपील की कि बिहार की जनता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री और उन्हें (तेजस्वी को) मुख्यमंत्री बनाने का वादा करे। अखिलेश यादव ने भी तेजस्वी को बिहार का अगला सीएम बताया, लेकिन राहुल की जुबान नहीं खुली। यात्रा की समाप्ति के दिन इसकी उम्मीद की जा रही थी, लेकिन राहुल ने फिर इस सवाल पर चुप्पी साध ली। राजनीतिक हलकों में इसे लेकर एक किस्म की खलबली है। सवाल उठ रहे हैं कि आखिर राहुल गांधी को तेजस्वी यादव को सीएम फेस घोषित करने में क्या परेशानी है। इस सवाल का जवाब इतना आसान भी नहीं है। इसके पीछे एक बड़ा सियासी खेल है। क्या है तेजस्वी के प्रति राहुल गांधी की चुप्पी के पीछे का कारण, बता रहे हैं आजाद सिपाही के संपादक राकेश सिंह।
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ही शह-मात का खेल शुरू हो गया है। आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन की तमाम बैठकें हो चुकी हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की वोटर अधिकार यात्रा का समापन भी हो चुका है। इसके बाद भी इंडिया ब्लॉक के सीएम चेहरे पर सस्पेंस जस का तस बना हुआ है। ऐसे में सवाल उठता है कि यह सियासी संयोग है या फिर कोई सियासी प्रयोग? एक दिन पहले संपन्न 16 दिन की वोटर अधिकार यात्रा के दौरान लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी से बिहार में इंडिया ब्लॉक के सीएम चेहरे पर कई बार सवाल किये गये, लेकिन हर बार वह खामोशी अख्तियार किये रहे। तेजस्वी ने राहुल गांधी को पीएम का उम्मीदवार तक बता दिया और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तेजस्वी के नाम पर अपनी सहमति जता दी। इसके बाद भी राहुल गांधी तेजस्वी के नाम पर मुहर लगाने को तैयार नहीं हुए।
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर इंडिया ब्लॉक ने एक समन्वय समिति बनायी और उसकी कमान तेजस्वी यादव के हाथ में है। इस तरह से तेजस्वी यादव 2025 के चुनाव में महागठबंधन में लीड रोल में हैं, लेकिन कांग्रेस उन्हें सीएम पद का चेहरा बनाकर विधानसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहती। इस तरह जनता के बीच असमंजस भी बढ़ रहा है। सवाल उठ रहे हैं कि तेजस्वी के चेहरे पर कांग्रेस की दुविधा है या फिर सियासी दांव?
तेजस्वी के चेहरे पर कांग्रेस रजामंद नहीं
आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव काफी पहले ही कह चुके हैं कि तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे, तो तेजस्वी भी अपने नाम का खुद ही एलान कर चुके हैं। इसके बाद भी कांग्रेस तेजस्वी को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर चुनाव नहीं लड़ना चाहती। वोटर अधिकार यात्रा के दौरान राहुल गांधी से इस संबंध में कई बार सवाल किये गये, लेकिन हर बार वह कन्नी काटते नजर आये। बिहार में कांग्रेस आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर राजी है, लेकिन इस बात पर सहमत नहीं है कि महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद का चेहरा तेजस्वी यादव को बनाया जाये। आखिर क्या वजह है कि तेजस्वी यादव के चेहरे को लेकर कांग्रेस दुविधा में फंसी हुई है। कांग्रेस की चुप्पी को देखते हुए तेजस्वी यादव खुद ही अपने लिए सियासी बैटिंग शुरू कर दी है और अपना चेहरा बनाने की कवायद में जुटे हैं।
बिहार में तेजस्वी सबसे लोकप्रिय चेहरा
चुनाव पूर्व सर्वे के मुताबिक आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर सबसे ज्यादा लोगों ने पसंद किया है। सर्वे के मुताबिक मई के महीने में बिहार के सीएम के रूप में 36.9 फीसदी लोग तेजस्वी को देखना चाहते हैं, तो 18.4 फीसदी लोग नीतीश कुमार को। पिछले चार सर्वे में तेजस्वी यादव की स्थिति ऐसी ही है। इस तरह वे बिहार के लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं। इसके बाद भी तेजस्वी यादव के नाम पर कांग्रेस तैयार नहीं है।
तेजस्वी यादव के चेहरे पर क्यों है सस्पेंस
सीएम चेहरे पर सस्पेंस बनाये रखने की रणनीति के साथ कांग्रेस बिहार चुनाव लड़ना चाहती है, जिस तरह 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन ने किसी को पीएम पद का चेहरा घोषित नहीं किया था। इस फॉर्मूले पर बिहार चुनाव में उतरने की कवायद है। कांग्रेस का तर्क है कि अगर तेजस्वी यादव को सीएम का चेहरा घोषित कर महागठबंधन चुनावी मैदान में उतरता है, तो उससे सियासी समीकरण गड़बड़ा सकता है। कांग्रेस को लगता है कि तेजस्वी यादव के नाम पर यादव समाज को छोड़कर, दलित, अन्य पिछड़ी जातियां और सवर्ण समाज का वोट नहीं मिल पायेगा। यह बात राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने सीधे तौर पर दिल्ली की बैठक में तेजस्वी यादव को बता चुके हैं। उन्होंने यह आश्वासन जरूर दिया था कि अगर बिहार में सरकार बनाने का मौका हाथ आता है, तो तेजस्वी यादव को सीएम बनाया जा सकता है, लेकिन विधानसभा चुनाव में उनके नाम की घोषणा कर लड़ना जोखिम भरा कदम हो सकता है।
2024 का फॉर्मूला रख रही कांग्रेस
इंडिया ब्लॉक ने 2024 में पीएम पद का चेहरा घोषित किये बिना चुनाव लड़ा था। इंडिया ब्लॉक ने एक संयुक्त समिति बनायी थी। उसी तर्ज पर बिहार में समन्वय समिति बनायी गयी है। कांग्रेस की रणनीति है कि बिना सीएम चेहरे के उतरने से किसी समाज के वोट छिटकने का खतरा नहीं होगा। इसी रणनीति के तहत कांग्रेस तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने के लिए तैयार नहीं है। दूसरी तरफ बीजेपी सीएम चेहरे पर सस्पेंस बनाकर सियासी जंग फतह करती रही है। अब बीजेपी के फॉर्मूले से कांग्रेस बिहार में नीतीश कुमार को सियासी शिकस्त देने की रणनीति बना रही है। यूपी में 2017 के चुनाव में बीजेपी किसी को सीएम पद का चेहरा बनाकर मैदान में नहीं उतरी थी, लेकिन जीत के बाद योगी आदित्यनाथ को सत्ता की बागडोर सौंपी थी। 2022 के चुनाव में भी सीएम फेस पर बीजेपी दो धड़ों में बंटी हुई नजर आ रही थी और सस्पेंस बनाकर चुनाव लड़ा था। बीजेपी इस जंग को जीतने में कामयाब रही और अब उसी रणनीति को कांग्रेस बिहार में अपना रही है।
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि बिहार में सीएम फेस पर कांग्रेस ऐसी ही दुविधा बनाकर रखना चाहती है, जिसमें उसका अपना सियासी फायदा है। बिना किसी चेहरे को आगे किये चुनाव में उतरने से कांग्रेस के तमाम नेता एकजुट होकर प्रयास करते हैं। बीजेपी और कांग्रेस ऐसी पार्टियां हैं, जहां मुख्यमंत्री बनने का मौका पार्टी के किसी भी नेता को मिल सकता है। कांग्रेस बिहार में सीएम चेहरे को लेकर ऐसी दुविधा को बनाये रखना चाहती है ताकि पार्टी के सभी नेता और उनके कार्यकर्ता एकजुट होकर पार्टी को जिताने में भूमिका अदा करें।
क्या यह कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा है
राजनीति के जानकार कहते हैं कि कई विकल्प खुले रखना किसी राजनीतिक दल के लिए हमेशा अच्छा होता है। इससे नेतृत्व को चुनावी अंकगणित साधने के लिए आवश्यक गुणा-भाग करने में सहूलियत हो जाती है। बिहार की जहां तक बात है, तो कांग्रेस और आरजेडी के बीच यह एक सोची-समझी रणनीति है। कांग्रेस को तेजस्वी के चेहरे पर कोई विरोध नहीं है, बल्कि यह चेहरा घोषित कर वह बीजेपी को कोई मुद्दा नहीं देना चाहती। यही वजह है कि कांग्रेस चुप है और आरजेडी मुखर है। इस तरह सियासी सस्पेंस बनाकर बिहार चुनाव लड़ने की रणनीति इंडिया ब्लॉक ने बनायी है। आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने जिस तरह से खुद मुखरता से तेजस्वी के नाम की घोषणा की है, तेजस्वी यादव ने यात्रा के दौरान कई बार अपने नाम को आगे बढ़ाया, लेकिन कांग्रेस नेताओं ने इस पर कोई निश्चितता नहीं जतायी है, बल्कि चुप्पी अपना कर रजामंदी के संकेत दिये। इस तरह आरजेडी नेताओं का मानना है कि महागठबंधन के सीएम चेहरे को लेकर कोई विवाद नहीं है। तेजस्वी यादव के चेहरे पर कांग्रेस सस्पेंस बनाकर चुनाव में उतरने का दांव आजमा रही है।