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    Home»दुनिया»किस कदर उलझे हैं आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन
    दुनिया

    किस कदर उलझे हैं आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन

    आजाद सिपाहीBy आजाद सिपाहीOctober 31, 2017No Comments4 Mins Read
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    आज दुनिया में होने वाली तमाम चर्चाएं जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर सिमट कर रह गयी हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दुनिया को जकड़ने वाले ये मुद्दे आपस में किस हद तक जुड़े हैं.सन 2000 के आस पास सोमालिया में समंदर से मछलियां खत्म हो गईं और मछुआरे बेरोजगार हो गए. कुछ ही समय बाद देश समुद्री लुटेरों का गढ़ बन गया. अब वहां आतंकवाद पसरा है. कुछ इसी तरह के हालात नाइजीरिया और चाड में भी उपजे. जलवायु परिवर्तन के चलते वहां कृषि चरमरा गई और फिर हिंसक झड़पें शुरू हो गईं. तो क्या जलवायु परिवर्तन, हिंसा और आतंकवाद से जुड़ा है? बर्लिन के एक थिंकटैंक से जुड़े लुकास रुटिंगर बताते है, “जैसे की मौसम में बदलाव हो रहे हैं वैसे ही बोको हराम और आईएस जैसे आतंकी गुटों के काम करने के तरीके भी बदल रहे हैं.” रुटिंगर के मुताबिक जलवायु परिवर्तन आतंकी या अपराधियों को तैयार नहीं करता लेकिन जलवायु परिवर्तन के चलते ऐसी परिस्थितियों का निर्माण जरूर होता है जिससे असुरक्षा की भावना पैदा होती है. मसलन खाद्य असुरक्षा के अलावा स्थानीय आबादी को जमीन और पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनों के लिए भी जूझना पड़ता है जो आगे चलकर इन आतंकी संगठनों के लिये अनुकूल माहौल बनाता है. विशेषज्ञों के मुताबिक आईएस ने इन कमियों को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है और ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों से लड़ाकों की भर्ती की है जहां खेती खराब हो गयी या मवेशियों की मौत के अधिक मामले सामने आये. रुटिंगर कहते हैं कि ये संगठन लोगों को पैसा कमाने का नया विकल्प देते हैं कुछ मामलों में इन्हें आर्थिक लाभ भी देते हैं. सूखे ने बदले हालात नाइजीरिया डेवलपमेंट एसोसिएशन फॉर रिन्यूबल एनर्जी (डीएआरई) के संस्थापक याहया अहमद चाड झील के सूखने और बोको हराम के उदय के बीच एक संबंध बताते हैं.

    उनके मुताबिक, “बोको हराम जैसे संगठन लोगों के बीच मसीहा बने हुए हैं.” उन्होंने बताया “चाड बेसिन के निकट रहने वाले तकरीबन 80 फीसदी लोग कृषि कार्यों और मछली पकड़ने के लिए झील पर निर्भर थे और वह झील भी उनके अस्तित्व के लिए बेहद ही अहम थी लेकिन जलवायु परिवर्तन के चलते झील का बड़ा भाग सूखने लगा. इसके चलते आसपास के 200 गांव सूखे की चपेट में आ गये.” अहमद ने बताया कि लोगों को अपने घर छोड़ कर जाना पड़ा लेकिन उनके लिए पुनर्वास का कोई कार्यक्रम ही तैयार नहीं था जिसने उनके अंदर गुस्सा पैदा किया. इसी गुस्से के चलते तमाम स्थानीय लोगों ने हथियार उठा लिये क्योंकि उन्हें लगता था कि वे यही काम कर सकते हैं. व्यापक समाधान हालांकि एक बड़ा तबका इस तर्क से सहमत नहीं है.

    इनका मानना है कि इस तरह के संबंधों पर बातचीत करना आंतकवाद के असली खतरे से ध्यान हटाना है. लेकिन इस मसले पर रिपोर्ट तैयार करने वाले रुटिंगर कहते हैं कि बोको हराम और आईएस जैसे गुटों का मुकाबला करने के लिए यह जरूरी है कि हम इन समस्याओं के समाधान व्यापक स्तर पर खोजें. उन्होंने कहा, “ऐसे नहीं चल सकता कि विदेश नीति इस बारे में थोड़ी बात कर ले लेकिन सुरक्षा नीतियां इस मसले पर सुस्त रहे. इसके साथ ही मानवीय संगठन भी इस दिशा में काम करें और फिर विकास के लिए मिलने वाला फंड कहीं और खर्च किया जाये.

    कुल मिलाकर अगर हम इन चुनौतियों को सामना व्यापक ढंग से नहीं करेंगे तो इसका समाधान आसान नहीं है.” रुटिंगर का मानना है कि व्यावाहारिक रूप से जनसंख्या वृद्धि, जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण जैसे तमाम चुनौतियों से निपटने के लिए प्रभावी तौर-तरीके अपनाने होंगे. रुटिंगर मानते हैं कि इन मुद्दों पर समावेशी रणनीति कारगर हो सकती है. छोटी सफलताएं इस दिशा में काम कर रहे अहमद अपने अनुभव से बताते हैं कि कुछ समय पहले एक स्थानीय पुलिस अधिकारी उनके पास चार लड़कों को लेकर आये थे. पुलिस पहले भी उन्हें 17 बार गिरफ्तार कर चुकी थी इसलिए पुलिस उन लड़कों को अहमद के पास लेकर आयी और उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए कहा.

    अहमद कहते हैं कि शुरूआत में मुझे कुछ हिचकिचाहट हुई लेकिन जल्द ही उनमें बदलाव नजर आने लगा. अहमद कहते हैं, “ऐसे लड़कों को आसानी से बोको हराम या अन्य गुट अपने साथ शामिल कर लेते हैं लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ क्योंकि अब ये इतना कमा लेते हैं कि जिंदा रह सके और आतंकी गुटों से स्वयं को बचा सकें.” निवेश बनाना होगा आसान रुटिंगर भी मानते हैं कि इस दृष्टिकोण को व्यापक स्तर पर लागू करन के लिए वित्त सेवायें आसान बनानी होगी साथ ही लोगों को परिस्थितयों में ढालने के लिए भी पैसा खर्च करना होगा. उन्होंने कहा कि अगर प्रोत्साहन मिलेगा तो विकास कार्यों में भी तेजी आयेगी. अहमद भी समझदार निवेश के पक्षधर हैं.

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