केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने हाल ही में ट्वीट किया कि कांग्रेस राहुल गांधी के ट्वीट को रीट्वीट करने के लिए बॉट्स (दूसरों की सामग्री उठाने वाला व्यक्ति) का सहारा ले रही थी, इसलिए पिछले महीने सोशल मीडिया पर उनके दस लाख फॉलोअर बढ़ गए। यह हिमाचल प्रदेश और गुजरात में होने वाले चुनाव के मद्देनजर भाजपा की बढ़ती चिंता का संकेत था। राहुल गांधी के ट्वीट हाल ही में आकर्षण का केंद्र बने। चाहे वह ‘जुमलों की बारिश’ हो, जिसमें उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के प्रति लोगों का असंतोष बढ़ता जा रहा है, क्योंकि वह एक के बाद एक ऐसे कार्यक्रमों की घोषणा करते हैं, जिससे लोगों को कोई फायदा नहीं हो रहा, या वह ट्वीट, जिसमें उन्होंने स्पष्ट कहा कि जिस तरह भाजपा ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ की बात कर रही है, उस तरह हम ‘भाजपा मुक्त भारत’ की बात नहीं करते, क्योंकि हम लोकतांत्रिक और बहुलतावादी समाज में यकीन रखते हैं।
बॉट्स हो या नहीं, पर देर से ही सही, कांग्रेस ने अपनी सोशल मीडिया रणनीति को मजबूत बनाया है। उसकी सोशल मीडिया टीम में युवा और सक्रिय कार्यकर्ता हैं और उसके ‘विकास पगला गया है’ ट्वीट गुजरात में वायरल हो चुका है और उससे प्रेरित होकर सोशल मीडिया पर बहुत सारे चुटकुले चल रहे हैं। कुछ भी उतना घातक नहीं है, जितना संदेश के रूप में चारों ओर फैले व्यंग्य बाण, उपहास, अपमान, वाक्पटुता और हास्य। नरेंद्र मोदी, अरविंद केजरीवाल और उनकी आप के विपरीत कांग्रेस ने धीमी गति से सोशल मीडिया का उपयोग किया। और इसके वरिष्ठ नेताओं ने अन्ना हजारे आंदोलन के दौरान और 2014 में जब नरेंद्र मोदी की अगुआई में भाजपा ने भारी जीत हासिल की, तो अपनी गलती मान ली थी। पर अब कांग्रेस ऊपर उठ रही है।

तेज और आक्रामक ट्वीटर/फेसबुक/सोशल मीडिया रणनीति और राहुल गांधी के चुस्त जुमलों के अलावा कांग्रेस ने गुजरात में भाजपा विरोधी सामाजिक गठबंधन बनाने की दिशा में अपना ध्यान केंद्रित किया है, जो अगर प्रभावी रहा, तो तस्वीर बदल सकता है। कांग्रेस ने आगामी चुनाव प्रचार में हाथ मिलाने के लिए हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी और अल्पेश ठाकोर से संपर्क किया है। इन तीनों जाति विशेष के युवा नेताओं के उनके अपने समुदायों में काफी प्रशंसक हैं और उन्होंने संकेत किया है कि वे कांग्रेस के साथ सहयोग करेंगे। ठाकोर ने, जिनकी पिछड़ी जातियों में मजबूत पकड़ है, कांग्रेस में शामिल होने का मन बनाया है, जबकि दलित उत्पीड़न के खिलाफ हुए उना आंदोलन से उभरे मेवानी और भाजपा से असंतुष्ट पाटीदारों का प्रतिनिधित्व करने वाले हार्दिक पटेल ने भाजपा के खिलाफ कांग्रेस के साथ गठजोड़ बनाने की योजना बनाई है।

ये इसके संकेत हैं कि राहुल की लोकप्रियता बढ़ने लगी है। पर ऐसा नहीं कहा जा सकता कि अचानक उन्हें नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है। शिक्षित मध्यवर्ग में से अनेक लोग, जो मोदी सरकार की नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं, राहुल को वोट देने के बारे में निश्चित नहीं हैं। उनमें से कुछ लोग कह रहे हैं कि वे या तो मतदान नहीं करेंगे या नोटा पर बटन दबाएंगे, या प्रतीक्षा करके देखेंगे या अनिच्छा से मोदी को ही वोट देंगे। पर कुछ लोग विकल्प के रूप में राहुल गांधी को वोट देने की बात कह रहे हैं।

रणनीति बनाने के मामले में अब भी राहुल की तुलना मोदी-शाह की जोड़ी से नहीं की जा सकती। गुजरात में पांच-छह सफल दिन गुजारने के बाद राहुल ने दिवाली निजी तौर पर मनाई। दूसरी तरफ, मोदी और उनके सहयोगियों ने हिंदुओं के बीच राजनीतिक एकजुटता बनाने के लिए दिवाली के हफ्ते के हर दिन का उपयोग किया। योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में दिवाली मनाई और सरयू के तट पर दो लाख दीये जलाए। वह इस आलोचना से बेखबर रहे कि वह इसके लिए करदाताओं के पैसे का उपयोग कर रहे हैं। यह अयोध्या में मंदिर निर्माण की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए किया गया, जो एक ऐसा मुद्दा है, जिसने कभी भाजपा को भारी चुनावी फायदा पहुंचाया था। मोदी ने सीमा पर जवानों के साथ दिवाली मनाई और उससे भी महत्वपूर्ण यह कि वह केदारनाथ मंदिर गए और उसे आदर्श तीर्थस्थल बनाने का वायदा किया। उनकी केदारनाथ यात्रा में गुजरातियों के लिए संदेश निहित था, क्योंकि गुजरातियों की केदारनाथ में बहुत आस्था है। और टीम मोदी ऐसे किसी भी अवसर को नहीं गंवाना चाहती, जिससे भाजपा को वोट में बढ़ोतरी हो सकती है। पार्टी के प्रबंधक इस बात से अनजान नहीं हैं कि उन्हें इस बार कई मोर्चों पर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

आज समाज के बड़े तबकों-व्यापारियों, छोटे एवं मंझोले उद्यमियों, किसानों, दलितों, युवाओं में रोजगार खोने और आर्थिक कठिनाइयों के कारण हताशा बढ़ रही है। नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद इनमें से कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। नतीजतन आज लोग कांग्रेस नेताओं की बात सुनने के ज्यादा इच्छुक हैं, जो वे छह महीने पहले से कह रहे थे। एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के मुताबिक, ‘पहले जब हम मोदी के खिलाफ बोलते थे, तो वह पत्थर की दीवार पर सिर पटकने जैसा था। लेकिन अब लोग हमारी बात सुनना चाहते हैं। यही बदलाव आया है।’  लेकिन अब भी मोदी एक बड़े वर्ग के लिए भरोसेमंद हैं, जो उनकी नेकनीयती पर सवाल नहीं उठा रहे।

फिर भी एक सवाल है कि क्या अब मौसम बदल रहा है। यदि हां, तो राज्यों के विधानसभा चुनाव पर उसका क्या असर होगा? कुछ लोगों का मानना है कि अगर कांग्रेस के पास गुजरात में नेतृत्व के लिए एक विश्वसनीय करिश्माई चेहरा होता, तो यह पहले ही आगे निकल गया होता। कहने की जरूरत नहीं कि गुजरात का चुनाव परिणाम 2019 के चुनावी संघर्ष को गति देगा। इसलिए भाजपा के आला नेता राहुल गांधी के बढ़ते ट्वीट को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दे रहे हैं, भले ही सोशल मीडिया कहानी के एक छोटे ही हिस्से को बयां करता है।

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